बुधवार, 30 अप्रैल 2014

आलेख

परसाई के विचार

सबसे बड़ा खतरा

(भारतीय गणतंत्र - आशंकाएँ और आशाएँ, नामक लेख का अंश)


सबसे बड़ा खतरा गणतंत्र को धर्म आधारित साम्प्रदायिक राजनीति से है। दुनिया हँसती होगी, इस राजनीति से। राजनैतिक दलों का आधार आर्थिक, सामाजिक कार्यक्रम होते हैं। हर पार्टी दुनिया में अपने घोषण-पत्र के द्वारा यह बताती है कि यदि हम सत्ता में आए तो तो यह विकास करेंगे और औद्योगिक क्षेत्र बढ़ायेंगे, विदेशी व्यापार इतना होगा, उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन इतना होगा, गरीबी इस तरह मिटायेंगे।
दुनिया के लोग चकित होंगे कि भारत की एक पार्टी का प्रमुख कार्यक्रम और मत मांगने का एकमात्र वादा है - हम मस्जिद की जगह मंदिर बना देंगे।
हम तो इस पर रोते हैं। विदेशी हँस सकते हैं। देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। बँटवारे में दस लाख लोग मरे थे। हमने कुछ नहीं सीखा।
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आलेख

परसाई के विचार

’’वह एक नौकरशाह है, जो हत्यारा हो गया है।’’

(दर्द लेकर जाइए, नामक लेख का अंश)


एक रूसी उपन्यास है ’पारहोल्स’। सहकारी  कृषि फार्म के ट्रक में ड्राइवर-कण्डक्टर पैसे लेकर सवारी बिठा लेते हैं। हमारा भारतीय मन यह जानकर प्रफुल्लित होगा - अरे, वहाँ भी सवारी बिठा लेते हैं।

सड़क अच्छी नहीं है, गड्ढे हैं। एक जगह ट्रक पलट जाता है। एक आदमी बहुत ज्यादा घायल हो जाता है। कुछ किलोमीटर पर अस्पताल है। उसे वहाँ जल्दी और आराम से पहुँचाने के लिए पास के सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर मांगते हैं। सचिव कहता है - ट्रैक्टर खेती के लिए है, इस काम के लिए नहीं दूँगा।

लोग कहते हैं - क्या ट्रैक्टर आदमी की जान बचाने के लिए भी नहीं है।

सचिव कहता है - खेती के सिवा किसी काम के लिए नहीं है। मैं नहीं दूँगा।

वे लोग घायल को घोड़ागाड़ी में दचके खाते ले जाते हैं।

डाॅक्टर उसे देखता है। कहता है - यह तो थोड़ी देर पहले मर गया। क्या तुम इसे किसी तेज वाहन पर आराम से नहीं ला सकते थे?

साथ आए लोगों ने कहा - हमने सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर मांगा था, पर उसने यह कहकर मना कर दिया कि ट्रैक्टर इस काम के लिए नहीं है।

डाॅक्टर के शब्द जो इस उपन्यास के भी अंतिम शब्द हैं - ’’वह एक नौकरशाह है, जो हत्यारा हो गया है।’’
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युगोस्लाविया भी समाजवादी देश है। एक युगोस्लाव कहानी मैंने पढ़ी जिसका अनुवाद आशुतोष सिंह ने ’समकालीन सृजन' में किया है। कहानी का सार है - एक नौकरशाह समुद्र के किनारे खड़ा है। उसे शार्क दिखती है। दोनों में बातचीत होती है।

तुम किस तरह काम करती हो शार्क?

वह बताती है कि मैं समानता की बात करती हूँ। छोटी मछलियों से कहती हूँ कि हम सब समान हैं। तुम मुझे निगल जाओ। वे कोशिश करती हैं और मुझे निगल नहीं पातीं। तब मैं कोशिश करती हूँ और मैं उन मछलियों को निगल जाती हूँ।

नौकरशाह शार्क की ताकत की तारीफ करता है और शार्क शुरू में ही नौकरशाह की ताकत की तारीफ करती है। दोनों इस बारे में बात करते हैं कि उनकी आलोचना होती है तब वे क्या करते हैं?

आखिर पंख फड़फड़ाकर शार्क समुद्र में चली जाती है। नौकरशाह बिदा के लिए हाथ हिलाता है। फिर नौकरशाह भी समुद्र में कूद जाता है। थोड़ी देर बाद वह निकलता है। उसके दातों में शार्क फँसी है।
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विश्वव्यापी नौकरशाही है। तीसरी दुनिया के नव स्वतंत्र देशों में वह अधिक शक्तिशाली और भ्रष्ट है। कल्याणकारी योजनाओं को यही नौकरशाही नाकाम करती है।

वैसे दर्द लेकर जाना अच्छा है।
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आवारा भीड़ के खतरे
हरिशंकर परसाई

(हरिशंकर परसाई के निबंध  आवारा भीड़ के खतरे  का अंश)

युवकों का यह तर्क सही नहीं है कि जब सभी पतिति हैं, तो हम क्यों नहीं हों। सब दलदल में फँसे हैं, तो जो नए लोग हैं, उन्हें उन लोगों को वहाँ से निकालना चाहिए। यह नहीं कि वे भी उसी दलदल में फँस जाएँ। दुनिया में जो क्रान्तियाँ हुई हैं, सामाजिक परिवर्तन हुए हैं, उनमें युवकों की बड़ी भूमिका रही है। मगर जो पीढ़ी ऊपर की पीढ़ी की पतनशीलता अपना ले क्योंकि वह सुविधा की है और उसमें सुख है तो वह पीढ़ी कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। ऐसे युवक हैं जो क्रान्तिकारिता का नाटक बहुत करते हैं, पर दहेज भरपूर लेते हैं। कारण बताते हैं - मैं तो दहेज को ठोकर मारता हूँ पर पिताजी के सामने झुकना पड़ा। यदि युवकों के पास दिशा हो, विचारधारा हो, संकल्पशीलता हो, संगठित संघर्ष हो तो वे परिवर्तन ला सकते हैं।

पर मैं देख रहा हूँ एक नई पीढ़ी अपने ऊपर की पीढ़ी से अधिक जड़ और दकियानूस हो गई है। यह शायद हताशा से उत्पन्न भाग्यवाद के कारण हुआ है। अपने पिता से अधिक तत्ववादी, बुनियादपरस्त (फंडामेंटलिस्ट) लड़का है।

दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका उपयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था। यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है। यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ चल सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर देे। फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं। यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है। हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है। इसका उपयोग भी हो रहा है। आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनास के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है।
जून 1991
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मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

आलेख

वनमानुष नहीं हँसता


(व्यंग्य के पितामह हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना ’वनमानुष नहीं हँसता’ का एक अंश।)

वनमानुष नहीं हँसता। पर लकड़बघ्घा हँसता है। चँन्द्रकांत देवताले के कविता संग्रह का नाम है - लकड़बघ्घा हँस रहा है। मैंने लकड़बघ्घा नहीं देखा। चिड़ियाघर में भी नहीं देखा। जिन्होंने देखा है वे बता सकते हैं कि यह क्रूर जानवर हँसता है या नहीं। हँसता होगा तो उसकी हँसी मगर के आँसू जैसी होती होगी।

क्रूर कर्म करके हँसना, दूसरे को पीड़ा देकर हँसना, यह लकड़बघ्घे की हँसी है। मैंने मनुष्य अवतार में कई लकड़बघ्घ्घे देखे हैं। सभी ने देखे होंगे। दंगों में आदमी लकड़बघ्घा हो जाता है। लोगों को मारकर, घर में आग लगाकर जो अट्टहास करते हैं, वे लकड़बघ्घे होते हैं। अंधे की लाठी छीनकर, उसकी घबराहट पर हँसने वाले भी देखे हैं। कमजोर को पीटकर, उसकी चीख-पुकार पर ताली बजाकर हँसते और कहते, मजा आ गया यार, मैंने देखे हैं। इनका मुँह तोड़ा जाना चाहिए।

एक परिवार में बैठा था। परिवार में एक लड़की मोटी थी। इस कारण उसकी शादी नहीं हो रही थी। वह दुखी और हीनता की भावना से पीड़ित थी। उस परिवार की मित्र दो शिक्षित महिलाएँ आई और उस लड़की से कहा - अरे सुषमा, तू तो बहुत दुबली हो गई है। और हँसने लगीं। लड़की की आँखों में आँसू आ गये और वह कमरे से बाहर चली गई। वे दोनों मूर्खा विदूषियाँ मुझे लकड़बघ्घे की मादा लगीं।

एक और घटना मुझे याद आ रही है। दो आदमियों ने कहीं से शास्त्री पुल के लिए रिक्शा तय किया। मगर उसे बढ़ाते-बढ़ाते कमानिया फाटक तक ले आये। दूकान पर उतर गये और उसे शास्त्री पुल तक के पैसे दे दिए। उसने कहा - बाबूजी, आपने शास्त्री पुल का तय किया था और कमानिया ले आए। और पैसा दीजिए। वे दोनों सोने का चैन लटकाए आदमी हँसने लगे। बोले, अरे यही तो शास्त्री पुल है। यह जो फटक है, यही पुल है। रिक्शावाला कहने लगा - बाबूजी, क्यों गरीब आदमी का मजाक करते हो। यह कमानिया फाटक है। वे दोनों फिर हँसने लगे। जितना रिक्शावाला दीनता से गिड़गिड़ाता तो वे दोनों अट्टहास करते। आखिर लाचार रिक्शावाला चला गया। वे दोनों अट्टहास करने लगे। कहने लगे - अच्छा बेवकूफ बनाया साले को। बड़ी अदा से गिड़गिड़ा रहा था। हा, हा, हा, हा। मजा आ गया। यह लकड़बघ्घों की हँसी थी।

मनुष्य को हँसना चाहिए। पर निर्मल, स्वस्थ हँसी हँसना चाहिए। जो नहीं हँसता वह वनमानुष है। पर मनुष्य लकड़बघ्घे की हँसी हँसे तो उसे गोली मार देना चाहिए।
फरवरी 1991
हरिशंकर परसाई
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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

अनुवाद

 बुलबुल अउ गुलाब -The Nightingale And The Rose

मूल -
The Nightingale and the Rose
कथाकार -
(आस्कर वाइल्ड)
Oscar Wilde 
Transtated in Chhtisgarhi by KUBER

’’वो ह कहिथे, वो ह मोर संग तभे नाचही, जब मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दुहूं।’’ रोवत-रोवत जवान छात्र ह कहिथे, ’’फेर मोर सबो फुलवारी म तो लाल गुलाब के एको ठन फूल नइ फूले हे, कहाँ ले लानव मंय ह लाल गुलाब के फूल?’’

फुड़हर पेड़ के खंधोली मन के बीच, अपन खोंधरा म बइठे बुलबुल चिरई ह वोकर रोवई ल सुनिस, पत्ता मन के ओधा ले झांक के वोला देखिस अउ बड़ा हैरान होइस।

’’मोर फुलवारी म एको ठन लाल गुलाब नइ हे।’’ वो ह जोर से चिल्लाइस अउ वोकर सुंदर अकन आँखीं डहर ले तरतर-तरतर आँसू बोहाय लगिस। ’’हाय, आदमी के खुशी ह कतका छोटे-छोटे बात के मुहताज रहिथे! महू ह पढ़े हंव, बुद्धिमान मनखे मन घला कहिथें, शास्त्र मन म लिखाय रहस्य ल घला जानथंव, तभो ले एक ठन लाल गुलाब के फूल खातिर मोर जीवन ह अबिरथा लागत हे।’’

’’आखिर इही हरे असली प्रेमी।’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर प्रेम-गीत ल न जाने, के रात ले, रात भर-भर जाग के मंय ह गाय हंव। भले येला मंय ह नइ जानंव, फेर येकरे गीत ल तो मंय ह रात-रात भर जाग के चंदा-चंदेनी मन ल सुनाय हंव, अउ देख, आज ये ह मोर आघू म बइठे हे। येकर चूंदी ल देख, सम्बूल फूल के गुच्छा मन सरीख कइसे सुंदर करिया-करिया दिखत हे; अउ येकर ओंठ ल तो देख, येकर हिरदे के प्रेम रूपी लाल गुलाब सरीख कइसे लाल-लाल दिखत हे। फेर येकर मन के उदासी ह येकर चेहरा ल हाथी दांत कस पिंवरा-पिंवरा कर देय हे। दुख ह येकर माथा म चिंता के गहुरी लकीर खींच देय हे।’’

’’कल रातकुन राजकुमार ह नाच-गान के उत्सव करत हे,’’ जवान छात्र ह टुड़बुड़ा के कहिथे - ’’अउ मोर मयारुक ह घला विहिंचे रही। अगर मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दे दुहूं तब वो ह बिहिनिया के होवत ले मोर संग नाचही। अगर मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दे दुहूं तब मंय ह वोला अपन आगोश म भर सकहूं, अउ वोकर हाथ मन ह मोर हाथ मन म कटकट ले जुड़े रही। फेर मोर फुलवारी मन म तो कहूँ घला लाल गुलाब के फूल नइ हे, अउ येकरे सेती मंय ह उहाँ अकेला बइठे रहिहूँ। वो ह मोर तीर ले रेंग के चल दिही फेर मोर डहर हिरक के देखही घला नहीं। मोर हिरदे ह टूट-टूट के छरिया जाही।’’

’’इही ह वास्तव म प्रेमी आय, सच्चा प्रेमी आय,’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर प्रेम-गीत ल मंय ह रात-रात भर गाथंव, जउन ल गा के मोला तो आनंद मिलथे फेर सुन-सुन के येकर तो मन ह दुखित हो जाथे। सचमुच, प्रेम ह कतका अनोखा चीज होथे? ये ह मुंगा-मोती मन ले घला मंहगा होथे। अनमोल रत्न मन ले घला जादा कीमती होथे। मुंगा-मोती अउ हीरा-जवाहरात ले येला खरीदे नइ जा सके, अउ न कोनों दुकान म ये ह बिके। न तो येला दुकान से खरीदे जा सके अउ न येला सोना के तराजू म तउले जा सके।’’

’’बजनिहा, (संगीतकार) मन अपन जघा म बइठहीं,’’ जवान छात्र ह किहिस - ’’अउ अपन-अपन बाजा मन ल मस्त हो के बजाहीं अउ मोर मयारुक ह वीणा अउ वायलिन के धुन म सुग्घर नाचही। वो अतका संुदर नाचही, अतका बिधुन हो के नाचही कि वोकर पांव ह धरती म नइ परही। रंग-बिरंगा कपड़ा पहिरे दरबारी मन के भीड़ ह वोकर चारों मुड़ा सकला जाही, फेर वो ह मोर संग नइ नाचही, काबर कि वोला देय खातिर मोर कना लाल गुलाब के फूल नइ होही।’’ दुख के मारे वो ह मैदान के हरियर दूबी म विही करा धड़ाम ले गिर गिस, अपन मुँहू ल हथेली मन म ढांप लिस अउ रोय लगिस।
’’ये ह काबर रोवत हे?’’ एक ठन नानचुक हरियर छिपकिली ह पूछिस अउ अपन पुछी ल हवा म नचात वोकर तीर ले रेंगत नहक गे।

’’सचमुच म काबर रोवत हे?’’ पूछत-पूछत एक ठन रंगबिरंगी फुरफुंदी (तितली) ह सूरज के सुंदर किरण म हवा म तंउरत निकल गे।

’’आखिर काबर रोवत हे ये ह?’’ बीच म हरियर रंग के टिकुली लगाय सफेद रंग के नान्हे गुलबहार के फूल ह अपन पड़ोसी के कान म धीरे ले सुहाती-सुहाती फुसफुसा के किहिस।

’’वो ह लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे।’’ बुलबुल चिरई ह किहिस।

’’लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे?’’ सब झन एक संघरा चिल्ला के किहिन - ’’कतका बड़ मजाक हे ये ह।’’
हरियर छिपकिली, का जाने वो ह मया-पिरीत के मरम ल, जोर से हाँस दिस।

फेर बुलबुल चिरई ह तो ये लइका के दुख के रहस्य ल जानत रिहिस, फुड़हर पेड़ के अपन खोंधरा म चुपचाप बइठे-बइठे वो ह प्रेम के रहस्य के बारे में सोचे लगिस।

अचानक उड़े खातिर बुलबुल ह अपन डेना मन ल खोलिस, अउ बात कहत अगास म उड़े लगिस। छंइहा बरोबर वो ह उड़िस अउ छंइहच् बरोबर उड़त-उड़त वो ह फुलवारी के वो पार चल दिस।

घास के मैदान के बीच म एक ठन बड़ संुदर अकन  गुलाब के पेंड़ रहय। विही ल देख के बुलबुल ह उतर गे अउ वोकर एक ठन डारा म बइठ गे।

’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह चिल्ला के किहिस - ’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनाहूँ।’’

गुलाब के पेंड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो सफेद हे,’’ वो ह किहिस - ’’समुद्र के फेन जइसे अउ पहाड़ म जमे बरफ जइसे सफेद। फेर कोई बात नहीं, तंय ह मोर भाई तीर जा, जउन ह जुन्ना धूप-घड़ी तीर रहिथे। वो ह तोला तोर मर्जी के चीज दे दिही।’’

सुन के बुलबुल ह उहाँ ले उड़िस अउ उड़त-उड़त जुन्ना धूप -घड़ी तीर जागे गुलाब के पेंड़ तीर चल दिस। ’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह रो के बिनती करिस - ’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनहूँ।’’

सुन के गुलाब के पेड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो पींयर हे,’’ उत्तर मिलिस - ’’तृणमणि सिंहासन के ऊपर बइठे मत्स्यकैना के चूँदी कस पींयर, अउ घास के मैदान म घास काटे के पहिली फूले नरगिस के फूल जइसे पींयर। फेर कोई बात नहीं, तंय जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे मोर भाई तीर जा, हो सकथे, वो ह तोर इच्छा ल जरूर पूरा करही।’’

बुलबुल बिचारी का करे, उड़त-उड़त जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे गुलाब के पेंड़ तीर चल दिस।
’’मोला लाल गुलाब के एक ठन फूल दे दे’’ वो ह रो के किहिस - ’’अउ वोकर बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले     मधुर गीत ल सुनहूँ।’’

यहू ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस।

’’मोर फूल हा लाल जरूर होथे,’’ वो ह जवाब दिस - ’’पानी म तंउरत बत्तख के पंजा अउ समुद्र के पानी भीतर खोह मन म झूलत मुंगा-पंख मन ले जादा लाल। फेर कड़कड़ंउवा ठंड म मोर नस मन ह जम गे हे, मोर डोहड़ू मन ल पाला मार दे हे, अउ हवा-बड़ोरा ह मोर डारा मन ल फलका दे हे, अउ विही पाय के अब साल भर मोर पेड़ म लाल फूल नइ फूल सकय।’’

’’मोला सिरिफ एक ठन लाल गुलाब के फूल होना,’’ बुलबुल ह रोवत किहिस - ’’सिरिफ एक ठन लाल गुलाब के फूल। का कोनो उपाय नइ हे कि मोला एक ठन लाल गुलाब के फूल मिल सके?’’

’’एक ठन उपाय हे,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’फेर वो ह अतका भयानक, अउ अतका डरावना हे कि वो उपाय ला तोला बताय बर मोर हिम्मत नइ होवत हे।’’

’’जल्दी बता मोला वो उपाय,’’ बुलबुल ह झट ले किहिस - ’’मंय नइ डर्राव।’’

’’अगर तोला गुलाब के लाल फूल होनच् त सुन,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’वोला तोला चंदा के दूधिया अंजोर म अपन सबले सुंदर संगीत ले सिरजे बर पड़ही, अउ अपन खुद के हिरदे के रकत ले वोला रंगे बर पड़ही। अपन छाती ल मोर कांटा म गोभ के तोला रात भर मोला अपन सबले संुदर गीत ल सुनाय बर पड़ही। रात भर तोला गीत गाय बर पड़ही, अउ मोर कांटा ह तोर हिरदे म धंसत जाही, धंसत जाही, अउ तोर जीवन-रकत ह निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, अउ जइसे-जइसे तोर जीवन-रकत ह निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, मोर होवत जाही, लाल गुलाब के रचना होवत जाही।’’

’’लाल गुलाब के एक ठन फूल खातिर मौत, ये तो बड़ा मंहगा सौदा हे,’’ बुलबुल ह चिल्ला के किहिस - ’’अउ ये दुनिया म सब ल अपन-अपन जिंदगी ह सबले जादा प्यारा हे। सुंदर हरियर-हरियर जंगल म बइठ के मिलने वाला आनंद ले घला जादा प्रिय हे, सोन के रथ म बइठ के जावत सुरूज ल देखे से, अउ मोती के रथ म बइठ के जावत चंदा ल देखे से मिलने वाला आनंद से घला जादा प्रिय हे। फेर प्रेम, प्रेम तो जिंदगी ले भी बढ़ के होथे। अउ फेर मनुष्य के हिरदे के सामने मोर जइसे छोटे से चिरइ के हिरदे के का कीमत?’’

बुलबुल ह अपन भुरवा डेना मन ल खोलिस, अउ हवा म छंइहा के समान वेग से उड़त-उड़त, उड़त-उड़त आ के (अपन) पेंड़ के ऊपर बइठ गे।

जवान छात्र ह अभी ले विहिच करा विहिच् हालत म अल्लर परे रहय, जउन हालत म वो ह वोला छोड़ के गे रिहिस हे। वोकर सुंदर आँखीं मन के आँसू ह अभी ले सुखाय नइ रहय।

’’खुश हो जा अब,’’ बुलबुल ह चिल्लाइस - ’’बाबू! तंय अब खुश हो जा। अब तोला तोर लाल गुलाब ह मिल जाही। आज रात चंदा के दुधिया अंजोर म अपन संगीत के सुर ले मंय ह वोकर सिरजन करहूँ, अपन हिरदे के लाल रकत के रंग ले वोला रंगहूँ। बदला म मोर बस इतना कहना हे कि तंय ह एक सच्चा प्रेमी आवस, अपन प्रेम म सदा सच्चा बने रहना, काबर कि दुनिया म प्रेम ह सबले अनमोल हे, वेद-शास्त्र ले घला जादा; अउ दुनिया के सबले बड़े ताकत ले घला जादा ताकतवर हे। बरत जोत के लौ के समान लकलक-लकलक करत वोकर पंख होथे, अउ वइसनेच् वोकर शरीर ह घला लकलक-लकलक चमकत रहिथे, मदरस के समान मीठ वोकर ओंठ मन होथे, अउ लोभान के खुशबू कस वोकर सांस के खुशबू ह होथे।’’

जवान छात्र ह जमीन म गड़े अपन नजर ल उठा के बुलबुल कोती देखिस, वोकर बात ल सुनिस, फेर जीवन के सच्चा प्रेम के मरम के जउन बात ल बुलबुल ह कहत रहय तेला वो ह समझ नइ सकिस। वो ह तो बस विहिच् ल समझथे जउन ह किताब-पोथी म लिखाय हे।

फेर फुड़हर के पेड़ ह सब बात ल समझ गे, अउ उदास हो गे। वो ह तो छोटकुन बुलबुल के सबर दिन के मयारूक आय, जउन सबर दिन वोकर डारा मन म खोंधरा बना के रहत आवत हे।

’’तंय तो अब जावत हस, (छुटकी बुलबुल) तोर बिना मंय ह एकदम अकेल्ला हो जाहूँ,’’ फुड़हर के पेड़ ह रो के कहिथे - ’’जावत-जावत एक ठन अपन गीत तो सुना दे।’’

बुलबुल ह फुड़हर ल अपन सुंदर गीत सुनाय लगिस। वोकर कंठ ले गीत ह वइसने झरे लगिस जइसे चाँदी के मग्गा ले जल के धार बोहावत हो।

जब बुलबुल के गीत खतम हो गे तब वो जवान छात्र ह चुपचाप उठिस, अउ अपन जेब ले कागज अउ सीस निकाल लिस। ’’वोकर तीर रूप-विधान तो हे,’’ पेड़ ले दुरिहा, अपन खोली कोती जावत-जावत वो ह अपने आप से किहिस - ’’एकर ले इन्कार नइ करे जा सकय, फेर का वोकर तीर संवेदना घला हे? मोला येकर कोनो परवाह नइ हे। वहू ह बाकी दूसर कलाकार मन जइसेच् तो हे, वोकर तीर सब कला हे, फेर बिना भावना के। वो ह दूसर खातिर अपन बलिदान नइ कर सकय। वो ह खाली संगीतेच् के बारे म जादा सोचथे; अउ ये बात सारी दुनिया जानथे कि कलाकार मन स्वार्थी होथें। तभो ले ये बात तो मानेच् बर पड़ही के वोकर कंठ म सुंदर मिठास हे। फेर ये सुंदर सुर, मधुर गीत, सब बेकार हे, जब येकर ले कोई फायदा न होने वाला हो, येकर ले कोई व्यवहारिक लाभ न होने वाला हो।’’ इही बात मन ल सोचत वो ह अपन खोली म जा के अपन छोटे से बिस्तर म ढलंग गे; अउ अपन प्यार के बारे म सोचे लगिस; अउ छिन भर बाद वोकर नींद लग गे।
अउ जब स्वर्ग म चंदा ह चमके लगिस, बुलबुल ह उड़ के लाल गुलाब के वो पेड़ म आ के बइठ गे, अउ अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ लिस। अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ के वो ह रात भर बर प्रेम के सुंदर-सुंदर गीत गाय के शुरू कर दिस, अउ जउन ल सुने बर शीतल चमकदार उजास बगरावत चंद्रमा ह निहर के धरती म आ गे। रात भर वो ह सुंदर-सुंदर गीत गातेच् रिहिस अउ कांटा ह वोकर छाती म गहरी, अउ गहरी धंसतेच् गिस, अउ वोकर जीवन-रकत ह वोकर हिरदे ले निकल के बोहावत गिस, बोहावत गिस।

सबले पहली वो ह प्रेम के वो सुंदर गीत ल गाइस जब एक लड़की अउ एक लड़का के हिरदे म प्रेम ह जनम लेथे। अउ गुलाब के पेड़ के सबले ऊपरी खांधा म गुलाब के एक ठन अद्भुत डोहड़ू ह डोहड़ा गे। वो ह जइसे-जइसे गीत गावत जाय, वो डोहड़ू म एक-एक ठन पंखुड़ी जुड़त जाय, जुड़त जाय। अंत म वो डोहड़ू ह पूरा फूल बन गे। फेर पेड़ के ऊपरी डारा म फूलने वाल वो फूल ह पहली एकदम पींवरा रिहिस, कलकल-कलकल करत नदिया के ऊपर छाय धुंधरा सरीख पींवरा, पंगपंगावत बिहिनिया अउ सुरूज नारायण के निकलत खानी के पहिली अगास के रंग सही पिंवरा (बिहिनिया के पांव कस पिंवरा अउ उषा काल के चांदी समान डेना कस)। चांदी के दरपन म दिखत गुलाब के छांया कस, जल-कुंड म पड़त गुलाब के छांया कस, बिलकुल पिंवरा।

तभे गुलाब के पेड़ ह जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से दबाय बर कहिथे। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह चिल्लाइस - ’’नइ ते गुलाब के ललियाय के पहिलिच् बिहिनिया हो जाही।’’
तब बुलबुल ह अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से कंस लिस, अउ जब नर-नारी के आत्मा म प्रेम के जन्म होथे, जेकर तेज खिंचाव म (मोहनी-थापनी डारे कस) एक-दूसर कोती खिंचावत- खिंचावत ऊंकर मन के मन ह एकाकार हो जाथे, वो समय के पे्रम-गीत ल वो ह जोर-जोर से गाय लगिस।

अउ तब वो पिंवरा फूल के पंखुड़ी मन धीरे-धीरे गुलाबी होय लगिस, दुलहिन के गाल म छाय गुलाबी, आभा कस, जब दुलहा ह पहिली घांव वोकर ओंठ ल चूमथे अउ वोकर गाल ह चमके लागथे। फेर कांटा ह अभी तक बुलबुल के हिरदे म नइ धंस पाय रिहिस हे, अउ इही कारण गुलाब के हिरदे ह अभी तक सफेद के सफेद बांचे रहि गे रिहिस हे, काबर कि केवल बुलबुल के हिरदे के रकत के रंग से ही वोकर हिरदे के रंग ह लाल हो सकत रिहिस हे।

तब गुलाब के पेड़ ह अउ जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से दबाय बर किहिस। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह चिल्लाइस - ’’नइ ते बिहिनिया हो जाही, लाल गुलाब के फूल फूले के पहिलिच्।’’

अउ बुलबुल ह अपन हिरदे ल वोकर कांटा म अउ जोर से दबाय लगिस, अउ जोर से दबाय लगिस, अउ अंत म जब कांटा ह वोकर हिरदे ल छेदे लगिस, बुलबुल के मुँह ले एक दर्दनाक चीख निकलिस। दरद ह अनसंउहार हो गे। जइसे-जइसे वोकर दरद ह बाढ़त गिस, वइसने-वइसने वोकर गायन ह अउ प्रचंड ले प्रचंड होवत गिस काबर कि अब वो ह प्रेम के वो गीत ल गाय लगिस हे जउन ह मृत्यु ल घला अमर बना देथे, वो प्रेम के गीत जउन ह कब्र म घला कभू दफन नइ होय।

अउ अद्भुत गुलाब के पंखुड़ी के रंग ह अब एकदम लाल हो गे, जइसे सुरूज निकले के समय पुरब के अगास ह हो जाथे, अउ वोकर हिरदे ह अइसे लाल हो गे, जइसे माणिक के रंग होथे।

फेर बुलबुल के स्वर अब धीरे-धीरे मंद से मंदतर होवत गिस, अउ वोकर छोटे-छोटे पांखी मन फढ़फड़ाय लगिस, अउ वोकर आँखी के ऊपर परदा छाय लगिस। वोकर स्वर ह मद्धिम से मद्धिम होवत गिस, अउ वोला अइसे लगे लगिस कि वोकर कंठ म कुछू चीज ह आ के अटकत जावत हे।

तब बुलबुल ह आखिर म फेर पूरा जोर लगा के संगीत के लहर छेड़ दिस। दुधिया चंद्रमा ह जउन ल सुन के अगास म जिंहा के तिंहा ठहर गे अउ भुला गे अगास ह पंगपंगाय बर। जउन ल लाल गुलाब ह सुनिस अउ मारे खुशी के कांपे लगिस, बिहिनिया के मंद-शीतल हवा म वो ह अपन पंखुड़ी मन ल खोल दिस। अनुगूंज ह ये गीत ल दूर पहाड़ के अपन गुलाबी कंदरा मन म पहुँचा दिस अउ गड़रिया मन ल जगा दिस जउन मन ह नींद म सुंदर-सुदर सपना देखत रहंय। ये गीत ह नदिया तीर-तीर उगे सरकंडा मन म तंउरत गिस अउ वो मन प्रेम के संदेश ल समुद्र तक पहुँचा दिन।

’’देख! देख!’’ गुलाब के पेड़ ह चिल्लाइस - ’’लाल गुलाब के फूल ह पूरा फूल गे।’’ फेर बुलबुल ह कोनो जवाब नइ दिस, काबर कि वो तो पेड़ के खाल्हे लंबा-लंबा दूबी म मरे परे रहय, अउ गुलाब के कांटा ह वोकर हिरदे म गोभाय रहय।
दोपहर म जवान छात्र ह अपन खिड़की ल खोलिस अउ बाहिर झांक के देखिस।

’’मोर भाग ह कतका ऊँचा हे,’’ वो ह मारे खुशी के चिल्लाइस - ’’ये देख लाल गुलाब। अतका सुंदर गुलाब के फूल तो मंय ह अपन जिंदगी म कभू नइ देखे रेहेंव। ये ह अतका सुंदर हे कि लातिनी भाषा म जरूर येकर कोई लंबा-चैड़ा नाम होही।’’ अउ निहर के वो ह गुलाब के फूल ल टोर लिस।

वो ह अपन टोपी ल पहिरिस, लाल गुलाब ल हपन हाथ म पकड़िस अउ प्रोफेसर के घर कोती भागिस।

प्रोफेसर के बेटी ह चकरी म नीला रंग के रेशमी सूत ल लपेटत, घर के मुहाटी म बइठे रहय, अउ वोकर छोटे से पालतु कुकुर ह वोकर गोड़ तीर बइठे रहय। ’’तंय ह केहे रेहेस न, तंय मोर संग नाचबे, यदि मंय ह तोला लाल गुलाब के फूल लान के दे दुहूँ।’’ जवान छात्र ह चिल्ला के किहिस - ’’ये देख, दुनिया के सबले सुंदर लाल गुलाब के फूल। ये ले अउ येला अपन हिरदे से लगा के रख, अउ जब हम नाचबोन तब बताहूँ कि मंय ह तोला कतका मया करथंव।’’

लेकिन सुन के तुरते लड़की ह गुस्सा म अपन मुँहू ल बिचका दिस (नाक-भौं सिंकोड़ दिस)।

’’मोला डर हे कि ये ह मोर पोशाक के संग मेल नइ खाही,’’ वो ह जवाब दिस - ’’अउ फेर मनीजर के भतीजा ह मोर बर असली गहना भेजवाय हे, अउ सब जानथें कि गहना ह फूल ले जादा कीमती होथे।’’

’’ठीक, मंय ह कसम खा के कहिथंव, दुनिया म तोर ले जादा नमकहराम अउ कोनों नइ होही’’ छात्र ह क्रोध के मारे किहिस, अउ वो सुंदर फूल ल गली के चिखला में फेंक दिस, जिंहा एक ठन गाड़ी के चक्का ह वोला रमजत निकल गे।
’’नमकहराम!’’ लड़की ह किहिस - ’’मंय तो तोला बस अतका कहहूँ कि तंय ह बहुत जंगली (असभ्य) हस, अउ आखिर तंय होथस कोन? केवल एक छात्र, मंय ह तोर ऊपर भरोसा नइ कर सकंव, का होइस कि तोर पनही म चाँदी के बक्कल लगे हे, वो तो मनीजर के भतीजा के पनहीं म घला लगे हे।’’ अतका कहि के वो ह अपन कुरसी ले उठिस अउ घर के भीतर चल दिस।

’’प्रेम घला कतका बेकार चीज होथे,’’ छात्र ह उहाँ ले जावत-जावत किहिस - ’’ये ह तो तर्कशास्त्र के तुलना म आधा काम के घला नइ होवय, येकर से कुछ भी सिद्ध नइ करे जा सकय, अउ ये तो हमला खाली विही बात के बारे म बतावत रहिथे जइसन वास्तव म कभी होयेच् नहीं, अउ हमला वइसन चीज के बारे म विश्वास करे बर मजबूर करथे जउन ह कभू सत्य होबेच् नइ करय। वास्तव म, प्रेम ह बिलकुल अव्यवहारिक होथे, अउ आज के युग म व्यवहारिक होना ही सब कुछ हे। अब तो मोला फिर से दर्शनशास्त्र अउ अध्यात्म के अध्ययन करे बर पड़ही।’’

लहुट के वो ह अपन खोली म आइस, अउ धुर्रा जमे एक ठन मोटा असन किताब ल निकालिस, अउ पढ़े लगिस।
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बुधवार, 23 अप्रैल 2014

उपन्यास के अंश

मुरहा राम के नियाव


गरमी के दिन रिहिस। संपत महराज के सारा ह सगा आय रिहिस। सगा टूरा ह कालेज म पडत रिहिस। गर्मी-छुट्टी के मजा अउ जमीदारी दबदबा के सुवाद लेय बर आय रिहिस। ननपन के आवत रिहिस। पंदरही हो गे रिहिस आय। गाँव के जम्मो झन संग जान-पहचान हो गे रिहिस। संझउती के बेरा रिहिस। हवा खाय के नाव म गाँव के अड़हा जात के टुरी मन ल लाइन मारे बर दुबे परिवार के दूसर उतलंगहा संगी जहुंरिया टुरा मन संग गली कोती निकले रहय। फिल्मी गाना गावत अउ गब्बर सिंग के डैलाग बोलत फकीर घर कोती ले जावत रहंय। फकीर के ददा लतखोर ह गाँव के चार-छै झन संगवारी मन संग बंबूर के एक ठन गोला ल बैलागाड़ी म जोरत रहय। चिराय बर आरा मसीन लेगना रहय। गोला ह काबा भर के अउ बने लंबा रहय। घंटा भर हो गे रहय, गाड़ी म जोरातेच् नइ रहय। फकीर के बहिनी टुरी, जउन ह आठवीं कक्षा म पढ़ रिहिस, जोरइया मन बर चहा-पानी धर के आय रहय। सोन म सुहागा; बाम्हन टुरा मन ह देख के विही करा बिलम गें अउ बेलबेलाय लगिन।
एक झन ह कहिथे - ’’जोर लगा के ....।’’

बांकी मन कहिथे - ’’हइया ...।’’

सगा आय रहय तउन बाम्हन टुरा ह टूरी कोती निसाना लगा के कहिथे -  ’’अबे! अब मिलिस रे पेसल चहा, सांय ले चढ़ही गोला ह।’’

फकीर के ददा ह सुन के अउ समझ के घला उे बात म धियान नइ दिस; कहिथे - ’’आव जी महराज हो! आपो मन  चहा पी लव, आजकल चहा म तो कोनो ह छुवा नइ मानय।’’

सगच् टुरा ह फेर कहिथे - ’’जरूर, जरूर! अइसन पेसल चहा ल कोन छोड़हय।’’

बांकी बाम्हन टुरा मन ठठा के हँस दिन। टुरी बिचारी ह सरमा के घर भीतर खुसर गे। सबके मुँहू ह करूवा गे। सबर दिन के तो अइसन बात ल सुनत अउ सहत आवत हें, चुरमुरा के रहि गिन सब झन। फकीर ह घला विही करा रिहिस। सुन के वोकर तन-बदन म आगी लग गे।

चहा पी के थोरिक धक्की मारिन अउ फेर भिड़ गिन गोला म। काबर चढ़े गोला ह गाड़ी म। फकीर के ददा ह कहिथे - ’’लेव न जी महराज हो! आय हव ते एक-एक हाथ लगा देव।’’

अतका सुनना रिहिस कि अरे तरे हो गे महराज लइका मन  - ’’अरे! जबान संभाल के बात कर। हमर घर म नौकरी करने वाला, हमला तियारथस तंय ह।’’

’’तियारंव नहीं जी, महराज हो। मदद करे बर कहत रेहेंव। गलती होइस होही ते क्षिमा करहू, भड़को झन।’’ लतखोर ह हाथ जोर के खड़ा हो गे।

बाम्हन टुरा मन ल तो रार मचाना रिहिस। दबे ल अउ दबाना, गिरे ल अउ गिराना, कोनो अड़हा-गरीब ल मरत देख के उछाह मनाना; इंकर नस म रचे बसे हे। का होइस कि उमर म छोटे रिहिन वो मन, जाति के तो बड़े रिहिन? अउ लतखोर ह उमर म बड़े रिहिस, सियान हो गे रिहिस ते का होइस, रिहिस ते अड़हा जाति के। लतखोर ह बात ल सकेले के कोशिश करे, वोमन ह लमाय के। बात ल बढ़ात गिन अउ आखिर म आदर-मादर म उतर गिन। लतखोर ह फकीर के सुभाव ल देख के मनेमन डर्रावत रहय कि कोनो अलहन झन हो जाय।
अउ विहिच् होइस। फकीर ह सबर दिन के हाँ के हूँ कहवइया लइका। उमर म उंकरे जोड़ के रिहिस। गाड़ी के एक ठन खुँटा ल उखानिस अउ उबा के दौड़िस उंकर मन डहर। किहिस - ’’खबरदार, मोर बाप ल अंट-संट गारी बकने वाले साले कमीना हो।’’

लतखोर ह निगरानी म रहय, तुरते जा के वोला पोटार लिस। एक-दू झन मन अउ दंउड़िन तब कहू ले दे के फकीर ह काबू म आइस।

बात ह तुरते गाँव भर म आगी बरोबर बगर गे। बाम्हन पारा वाले मन ह आगी हो गंे। पहिली अइसन होतिस तब तो गदर मात जातिस। बाम्हन मन के गुप्ती-तलवार निकल जातिस। फेर जमाना ह बदल गे हे। जमीदारी के वो दिन ह नंदा गे हे। अउ फेर, गाँव म नवजवान टुरा मन के नवयुवक मंडल जब ले बने हे, समय ह बदल गे हे। संपत महराज ह गजब सोच-बिचार करिस। फकीर के उदेली के ये ह पहिली घटना नो हे, पहिली घला कर चुके हे। वोकर खून म कतका गरमी भराय हे तउन ल अब तो देखेच बर पड़ही। घंटा भर ले सोच बिचार करिस संपत महराज ह। वोला खून-खराबा करना उचित नइ लगिस। शस्त्र बल के जघा शास्त्र बल जादा उचित दिखिस।

घंटा भर के पीछू बैसका सकला गे। कटकटंउवा जुरियाय हे छोटे-बड़े सब।

सरपंच कका ह बैसका म सकलाय मनखे मन कोती निशाना बांध के किहिस - ’’गाँव भर के सब सकला गिन होहीं ते बैसका शुरू करतेन भाई हो, जादा रात करे ले का मतलब?’’ सब झन के मन ल भांप लिस तब फेर कोतवाल डहर देख के किहिस - ’’कोतवाल! बता जी, काकर ऊपर का बिपत आ गे हे, कोन ह बैसका सकेले हे।’’

संपत महराज ह तो खार खाय बइठे रहय, मन ह तो कहत रहय कि दू-चार आदमी ल जपते जाय, फेर गुस्सा ल पी के कहिथे - ’’बीपत हमार ऊपर आय हे जी, हम सकेले हन बैठका ल।’’
’’का बीपत आय हे तउनो ल बता डर महराज।’’

’’आदमी ह आदमी के बीच म रहिथे। परिवार म, गाँव म, समाज म रहिथे। जंगल म कोनो नइ रह सकय। काबर? काबर कि दुख होय कि सुख, चार के बीच म बँटे के चीज होथे। जब कोनों ऊपर बीपत आथय तब चार झन मिल के वो बीपत ला बाँट लेथंय। दुखियारा के दुख ह हल्का हो जाथे। सुख ल बाँटे ले सुख ह बाढ़ जाथे, जिनगी के मजा ह बाढ़ जाथे। सब एक-दूसर के मुँहू ल देख के बस्ती म बसे हबन। एक के दुख ह सब के दुख आवय अउ एक सुख ह घला सब के सुख आवय। गाँव म कोनो एक के बहू-बेटी ह सब के बहू-बेटी होथे। सबके मान-सनमान अऊ ईज्जत करे बर पड़थे। चार के बीच म रहि के ईज्जत पाना हे त चार के ईज्जत घला करे बर लगथे। इही खातिर समाज म रिश्ता-नाता बनाय गे हे। छोटे ल छोटे जइसे दुलार मिलना चाही अउ बड़े ल बड़े जइसे सम्मान मिलना चाही।’’

संपत महराज के गंजहा पार्टी के पेटपोंसवा नानुक राम ह  वोकर बाजूच् म बइठे रहय। गाँव वाले बेलबेलहा टुरा मन वोकर ’छप्पनभोग’ नाव धरे हवंय। ये गाँव म बिरले होहीं जेकर कोनों बढ़ावल नाव नइ होही, टूरी होय के टूरा होय, सबके कोनों न कोनों बढ़ावल नाव हे। नाव बाढ़े हे तब नाव बढ़ाय के कोनों न कोनों कहानी घला हे। छप्पनभोग नाव बढ़ाय के घला कहानी हे, फेर ये कहानी ह बताय के लाईक नइ हे, आप मन खुदे अनुमान लगा लेव।

नानुक राम ह बोले के शुरू करिस तहाँ ले बेलबेलहा दल वाले मन के बीच म खुसुर-फुसुर शुरू हो। नानुक ह अद्दर खेत म रेंगत गाड़ी के चक्का ले निकलत हदक-हिदिक आवाज कस आवाज म कहिथे - ’’आने कि मने कि, भइ मोर हिसाब म तो महराज ह कहत हे तउन ह सोला आना सच आवय; फेर, आने कि, कहे के तमलब ये हे कि, ..........

मरहा राम, तारन, रघ्धू, जगत, ओम प्रकाश, लखन अशोक गुरूजी, सब एके जगह फकीर के संग बइठे रहंय। नानुक के बात ल बीचेच म काँटत मरहा राम ह कहिथे - ’’तोर आने कि मने कि, हिसाब अउ मतलब ल तोर घर म छोड़ के आय कर जी नानुुक भइया, जऊन बात कहना हे बने सोझ-सोझ कह।’’

’’............ आने कि मने कि महराज के कहना बिलकुल वाजिब हे। आने कि केहे के मतलब, मने कि ये गाँव के आदमी मन सियान मन के कतका ईज्जत करथें, संउहत देख लेव। आने कि मने कि कोनो सियान ह, मतलब, कोनो बात कहत हे तउन ल, बीच म मतलब, कैंची म कांटे बरोबर चक ले नइ काँटना चाहिये।’’

सरपंच ह कहिथे - ’’नानुक के कहना ह बिलकुल सही हे जी। बात करे के सबके अपन-अपन तरीका होथे। कोनो ह आने कि मने कि कहिके अपन बात के शुरूआत करथे, कोनो ह बच्चा के खातिर कहिके, तब कोनो ह अउ कुछू कहिके। सार बात ल, पकड़े के बात ल पकड़े करो। बीच-बीच म टोका-टाकी झन करे करो। नानुक भइया, आगू बोल जी; का कहत रेहेस तउन ल पूरा कर।’’

’’आने कि मने कि अउ का कहना हे जी। मतलब, इही कहना हे, महराज देवता ह कि आने कि, काकर मान-सनमान के का बात हो गे? आने कि, काकर बहू-बेटी के ईज्जत के ऊपर कइसन आंच आ गे, तउन ल बने फोर के बताय।’’

संपत ह फेर शुरू करिस - ’’गाँव के सब किसान भाई मन संपत के पालागी करथव, संपत ह बाम्हन आय, खाली येकरे सेती नो हे, संपत ह घलो सबके सनमान करथे तेकर सेती आवय। बताय कोनों कि संपत ह ककरो ईज्जत के ऊपर दाग लगाय होही ते? बाम्हन जइसे उच्च कुल म जनम धरे के बावजूद वो ह अड़हा मन ल गाँव नत्ता म जइसन-जइसन मानना हे तइसन-तइसन; भाई ल भाई कहत हे, कका ल कका अउ बबा ल बबा कहत हे तेकर सेती आवय। ..... का नइ करे हे संपत महराज ह गाँव के भलाई खातिर? दू ठन कुआँ कोड़वाइस। भरे अकाल म जनता ल पाले खातिर तीन ठन तरिया कोड़वाइस। बाँध बनवाईस, स्कूल बनवाईस, सड़क बनवाईस, बिजली लगवाईस। संपत ह न कोनो पंच आय न सरपंच आय, तब ले सरकार ले लड़-लड़ के अतका काम करवाय हे। सबके हिसाब लगा के देख लव, करोड़ रूपया ले जादा के काम संपत ह ये गाँव म करवाय हे। का अपन ईज्जत बेचे बर? गाँव के दसों झन जवान मन ल सरकारी नौकरी म लगाइस हे। आज वो मन ह राज करत हें। अपन तनखा ल वो मन ह संपत ल लान के देथे का? भगवान के देवल संपत महराज कना सब कुछ हे। नेकी कर दरिया म डाल। अउ कुछू नइ होना वोला। मान-सनमान के घला लालच नइ हे, फेर नेकी के बदला बदी तो झन देवव। गाँव के विकास होय, गरीब के भलाई होय, हमर तो बस इही उद्देश्य हे; आगू घला अपन ले जइसन बनही, करत रहिबोन। अतका सब करे के बाद बतावव; अपन अपमान अउ बेईज्जती कराय बर हम इहाँ बसे हाबन का?’’ 

वोकरे कना मुसुवा ह घला कोरियाय कस बइठे रहय। मौका देख के कहिथे - ’’छोटे मुँहू अउ बड़े बात, गलती ल छिमा करहू। समझदार ल इशारा काफी। महराज ह अपन दुख ल बता तो डरिस। फेर अतका बिनती अउ हे महराज ले कि अपमान करइया के नाव ल टीप के बतावय। बच्चा के खातिर। आज ये गाँव म काकर कना अतका हिम्मत हो गे, कि बाम्हन-बैरागी के हिनमान करे, बच्चा के खातिर?’’

संपत ह रकमखा के कहिथे - ’’लतखोर अउ वोकर टूरा ल पूछव, मोर से का पूछथव।’’

सरपंच - ’’बने बने बताव जी, लतखोर अउ वोकर टूरा कहे ले काम नइ बनय, वोकर टूरा के के नाव धर के बताव। येमा दूनों झन के गलती हे कि कोनो एक के, येकरो फरियाव करके बताव। ककरो ऊपर दोष लगाना सरल हे, फेर वोकर फुराजमोगा करे बर गवाही के घला जरूरत पड़थे, गवाही मन के नाव ल बताव। घटना कइसे होइस तउन ल मुड़ी-पूछी फरिया-फरिया के बने बताव।’’

संपत - ’’हमर घर मेहमान आय हे, मोर साला ह। साल म दू घांव, तीन घांव आतेच् रहिथे। अब तो वो ह गाँवेच् के लइका जइसे हो गे हे। आज संझा कुन के बात आय। गरमी के दिन, सांझ कुन के हवा ह सुहाथे। चाय-पान बर वो ह अपन संगवारी मन संग पीपर चैंक कोती गे रिहिस। बीच म लतखोर के घर पड़थे। वोकरे मुहाटी म दस-पंद्रह आदमी सकलाय रिहिन। लतखोर के टुरा फकीर घला रिहिस। विही ह मोर साला ल गाड़ा के खुँटा ल निकाल के मारे बर दँड़ाय हे। गली-खोर म निकलना घला जुलुम हे का जी? आगू के बात ल विही मन ल पूछव। मोला जउन कहना रिहिस, कहि डरेंव।’’

सरपंच - ’’कोन ह जुलुम करिस अउ काकर ऊपर करिस, सब ल जांचे जाही अउ सब के सुने जाही। सगा बाबू ह कोन जघा बइठे हे। बता जी आप ल कोन ह का किहिस, कइसे होइस।’’

सगा ह बोले म पिछवा गे, वोकर लंगोटिया यार, नाता म संपत महराज के एक झन भतीजा विजय ह रोसिया के कहिथे - ’’ये संरपंच कौन होता है? वो पुलिस है कि जज है जो हमारा फैसला करेगा। इस गाँव म सदा से दुबे लोग फैसला करते आ रहे हैं। हमारा फैसला ये क्या करेगा जो इनके सामने हम हाथ फैलायेंगे?’’
सरपंच - ’’सरपंच ह न पुलिस हरे अउ न जज। सरपंच ह ककरो नियाव घला नइ करय। इहाँ सब के बात ल सुने जाही, पांच पंच वोकर ऊपर बिचार करहीं अउ बहुमत के आधार म फैसला सुनाय जाही। अउ बाबू! जब तंुहला पंचायत म नियाव नइ कराना रिहिस, तब ये बैठका ल सकेले काबर हव? ये गाँव म पहिली का होवत रिहिस, वो ह तइहा के बात हो गे। अब जउन होही, चार के झन के सुम्मत से होही।’’

मरहा राम ह संपत महराज के बात ल सुन के गुसियाय बइठे रहय, विजय महराज के बात ल सुन के वोकर पारा ह अउ गरम हो गे। सरपंच के बात ल बीच म काट के कहिथे - ’’गाँव वाले भाई हो! अभी हम महराज मन के बात ल सुनेन। बात ह छोटे नइ हे। पूछे गे हे कि सरपंच ह नियाव करने वाला कोन होथे। हम सब चुनाव म चुने हन तब ये आदमी ह सरपंच बने हे, जबरन के नइ बने हे। सरपंच के बारे म अइसन कहना तो सरपंच के सरासर अपमान हरे। भरे सभा म हमर चुने सरपंच के जउन ह अपमान कर सकथे वो ह बाहिर जा के ककरो घला अपमान कर सकथे। अब मंय ह संपत महराज के बात के जवाब पहिली देना चाहहूँ। आप सब जानथव, संपत महराज ह घला जानथे। मंय पूछथंव, का इहिच् गाँव म कुआँ, तरिया अउ सड़क बने हे, बिजली ह इहिच् गाँव लगे हे। विकास के ये जम्मों काम ह अतराब के सब गाँव मन म घला होय हे; सब ह वोकरेच् करावल होही का? अउ कहिथे कि गाँव के लइका मन के नौकरी लगवाय हंव। कतेकर नौकरी लगाय हे नाव धर के तो बताय जरा। अतका पहुँच वाले हे ये आदमी ह तब अपन बेटा के नौकरी ल काबर नइ लगवाय सकिस? लतखोर ल पूछ, फकीर के पढ़ाई ल छोड़वाय बर वोला का किहिस अउ के घांव ले किहिस। ’मेटरिक पास हो गे रे तोर टुरा ह अउ कतका पढ़ाबे? पढ़ा लिखा वोला साहब बनाना हे का? छोड़ा वोकर पढ़ाई ल अउ बनी-भूती करे बर भेज।’ ये बात ह सच आय कि झूठ लतखोर भइया ल पूछ सकत हव। इही बात अशोक गुरूजी के बाप ल घला कहय। वहू ह येकर बात म आ जातिस त अशोक ह गुरूजी बन पातिस क? डाकिया ह येला गाँव के प्रमुख आदमी समझ के कतरो झन लइका के नौकरी के परीक्षा अउ इंटरबू के कागज ल येकर हाथ म देय-देय हे। काकर कागज ल ये ह समय म देय हे?

मरहा राम के बात ल सुन के सब आदमी मन कहे लगिन - ’’सब्बास मरहा भइया, जउन बात ल हमन नइ कहि सकत रेहेन, वोला तंय आज कहि देस।’’

कलर-किलिर के बीच म मरहा राम ह आगू किहिस - ’’ओरियाय म रात पहा जाही, ये मन का बताहीं, फकीर! तंय बता जी आज तोर संग का होइस तउन ल।’’

बाम्हन पारा के टुरा मन अउ संपत के मंदहा-गंजहा पार्टी के वोकर पेटपोंसवा मन घला रोसिया गे। कोन ह काकर ल सुने? सरपंच के समझाइस ह घला बेकार हो गिस।

संपत महराज ह किहिस - ’’विजय ह बने केहे हे। सबरदिन के नियाव करइया दुबे परिवार के नियाव ल तुम का कर सकहू। हमला जउन कहना रिहिस, कहि देन, जउन बताना रिहिस हे बता देन।  रहि गे फैसला के बात; जउन करना होही, दुबे मन अपन फैसला ल खुदे कर लिहीं।’’

फकीर ह बादर सही गरज के अउ छाती पीट के कहिथे - ’’अरे जा, जा! ये ह फकीर आय, मुरहा राम नो हे, जउन ह तोर धमकी ले डर्रा के गाँव छोड़ के चल दिस। तोर अइसन गीदड़भभकी ले डरने वाला नइ हे फकीर ह।’’

वो जमाना ह तइहा के बात हो गे हे जब दुबे परिवार के मुखियागिरी चलय अउ कोनो ल कइसनो घला फैसला सुना देवंय।

सब गाँव वाला मन ल एक तरफा होवत देख के दुबे मन के सक्कापंजा बंद हो गे। बिना कोनों फैसला के बैसका ह उसल गे।
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KUBER
Mo. 9407685557

रविवार, 20 अप्रैल 2014

आलेख

LED TV क्या है?

LED TV, Light-emitting diodes अर्थात् LEDs तकनीक पर आधारित TV है जिसे औपचारिक रूप से LED-backlight LCD Television कहा जाता है।

LEDs मूल रूप से PN-junction Diode का संयोजन है, जो कि एक अर्धचालक (semiconductor) युक्ति है। LEDs के धनोद (anode lead)  पर जब वोल्टेज प्रदान किया जाता है, यह ऋणोद (cathode lead)  की तुलना में अधिक धनात्मक हो जाता है और युक्ति के अंदर इलेक्ट्राॅन प्रवाहित होने लगता है जो होल के साथ पुनर्संयोजित होकर फोटाॅन (photon) के रूप में (प्रकाश) ऊर्जा मुक्त करता है। इसे इलेक्ट्रोल्युमिनिसेन्स (electroluminescence)  प्रभाव कहा जाता है। इसकी खोज 1907 में हो चुकी थी परन्तु इसका व्यवसायिक उपयोग 1968 के बाद ही संभव हो सका। LEDs में उत्पन्न प्रकाश एकवर्णी (monochrome) और एक ही तरंगदैध्र्य (wavelength)  वाली होती हैं। उत्पन्न प्रकाश का रंग LED में प्रयुक्त अर्धचालक पदार्थ के ऊपर निर्भर रहता है। LEDs में दृश्य प्रकाश के अलावा इन्फ्रारेड तथा अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें भी उत्पन्न होती है जिनका उपयोग रिमोट उपकरणों में किया जाता है।

LED TV  में तीन तरह की तकनीक का प्रयोग किया जाता है -
1. Edge-lit LED
2. RGB LED
3. Full-arry LED

भविष्य की तकनीक:-

1. Organic light-emitting diods (OLEDs) :-  इस तकीनक का प्रयोग करके प्लास्टिक की तरह लचीला और पतला Display बनाया जा रहा है जो कि मौजूदा तकनीक की तुलना में अधिक गुणवत्ता वाली, सुग्राही और उपयोगी होगा। 
2. Quantom dot based LED Display :-. यह तकनीक अभी प्रायोगिक स्तर पर है और यह प्लाज्मा टी वी तथा OLEDs तकनीक से भी श्रेष्ठ होगा। 

LED की खूबियाँ:-

इसका आकार छोटा (2 मि.मी.) होता है।
यह बहुत कम ऊर्जा पर चलता है।
इसमें  कलर फिल्टर की आवश्यकता नहीं होती।
इसका प्रकाश शीतल होता है।
यह झटकों को सहन करने में सक्षम है।
इसका जीवनकाल 50 हजार घंटों का होता है।
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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

हाना

छत्तीसगढ़ी हाना कोश:ः संकलनकर्ता - कुबेर

छत्तीसगढ़ के गाँव मन म जा के देख लव, बात-बात म, हर वाक्य म हाना सुने बर मिल जाही। छत्तीसगढ़िया मन के कोनों वाक्य ह बिना हाना के संपूरन होयेच् नहीं। जमाना ह अब बदलत जावत हे। लोग लइका मन पढ़त लिखत जावत हे। छत्तीसगढ़ी भाखा के सरूप ह घला बदलत जावत हे। हाना के प्रयोग ह कम होवत जावत हे। भाखा के मिठास ह उरकत जावत हे। पढ़े-लिखे लइका मन ल अपन मातृ-भाखा ल बोले बर शरम आथे। अब के जवनहा मन अपन गुरतुर मातृ-भाखा ल भुलावत जावत हें, हाना मन ल ये मन का सरेखहीं, का जानहीं? अइसे जनावत हे कि अवइया पढ़े-लिखे पीढ़ी ह हाना ल बिसर जाही। हमर साकेत साहित्य परिषद् के संगवारी मन बाते बात म अइसने भूलत-बिसरत हाना मन ल सकेले-संजोय के प्रयास करे हंे। येकर मात्रा ह कम हे। थोकुन अउ मेहनत करे ले, अउ कोशिश करे ले येकर ले कई गुना हाना अउ सकेले जा सकत हे। ये स्मारिका म इहाँ खाल्हे म मोटा अक्षर म हाना अउ लगे हाथ सामान्य अक्षर म वोकर अरथ देय के कोशिश करे गे हे। सकेले गेय हाना के बनावट अउ वोकर अरथ म चूक होना संभव हे। अइसन कोनों बात होही तब पढ़इया विद्वान संगवारी मन ले निवेदन हे कि हमला वोकर जानकारी देय के कृपा करहीं। आखिर के हाना मन वर्णक्रम मुताबिक नइ जम पाइन काबर कि ये मन ल बाद जोड़े गे हे। असुविधा बर क्षमा चाहथंव।

क्र. हाना अउ वोकर हिन्दी म अरथ

1.  एक कोलिहा हुँआय, त सबो कोलिहा हुँआय।        
बिना सोचे-समझे जन समर्थन देने वाली भीड़ के लिए  प्रयुक्त।
2  एक के एक्काइस होना।           
उन्नति करना। इकलौते पुत्र का परिवार विस्तार होना।
3  एक चुटकी नून देथे बपुरी कहाथे,
    एक बटकी बासी देथे गारी खाथे।
बहु की की दुविधा जनक स्थिति पर प्रयुक्त हाना।
4  एक नइ चलना।                   
कोई भी तर्क/या प्रयास का काम नहीं आना।
5  एक अचंभा अइसे होइस, सुन ग राजा भील।   
   लोहा ल घुना खा गे, लइका ल ले गे चील।  
अविश्वसनीय बात कहने वालों पर व्यंग्य।
6  एक गोड़ म राजी होना।           
स्वार्थ सधने की आस में काम करने के लिए तत्परता दिखाना।
7  एक ल माय, एक ल मौसी करना।       
भेद-भाव करना।
8  एक लौठी म सब ल हाँकना।           
योग्य-अयोग्य, सबके साथ एक ही जैसा बर्ताव करना।
9  एकबोलिया होना।                   
अपने वचन का पक्का होना।
10 एकक पइसा बर तरसना।              
 कौड़ी-कौड़ी के लिए मोहताज होना।
11 एके कुला म पादना।           
 परस्पर अंध समर्थन करना।
12 एके हाथ म रोटी नइ पोवावय।       
   एक ही व्यक्ति विवाद पैदा नहीं कर सकता।
एक हाथ से ताली नहीं बजती।
13 एके नाउ के मुड़े होना।           
एक जैसा विचार और एक जैसा काम करने वाले।
14 एड़ी के धोवन होना।           
योग्यता में तुच्छ होना।
15 एड़ी के रीस तरूवा म चढ़ना।       
अत्यधिक क्रोधित होना।
16 एती के बात ल ओती करना।       
चुगली करना।
17 एतीतेती करना।                   
जवाब न दे पाना।
18 धंधा करना।               
अकारण किसी काम को करते रहने के लिये बाध्य होना।
19 धरे के कान, न काटे के पूछी।       
 सी को बस में करने का कोई उपाय न होना।
20 धारे-धार बोहाना।                   
बर्बाद होने के आसार।
21 धारन बनना।               
सहारा बनना।
22 धोय मुरई के विही भाव,    
 बिन धोय मुरई के विही भाव।       
योग्यता की अनदेखी करना।
23 धान न पान, मुँहू भर ल जान।       
 लफंगाई।
24 धान-पान अउ खीरा, तीनों पानी के कीरा।   
धान, पान और ककड़ी के लिये पानी जरूरी हैं।
25 धुर्रा उड़ना।               
किसी काम में तन्मयता से जुट जाना।
26 धन ले धरम रहिथे।           
धन है तो धरम भी है।
27 धनो गे, धरमो गे।               
 आर्थिक नुकसानी के साथ मान-सम्मान भी चला जाना।
28 धूँकी आना।               
हैजे का प्रकोप होना।
29 घँूस मुसुवा कस मोटाना।           
शोषण करके संपन्न होना।
30 घींव देख बाम्हन टेंड़वाय।               
अधिक सुविधा की मांग करना।
31 घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध।   
योग्यता का सम्मान अपने लोगों के बीच नहीं होता।
32 घर के ला कुकुर खाय,
     पर धन बर हाथ लमाय।                  
 खुद की संपति, पत्नी आदि की सुरक्षा या उपभोग नहीं  कर पाना और दूसरे की संपत्ति का लालच करना।
33 घर म भूंजे भांग नहीं, मेछा अँइठत जाय।   
 झूठी शान बघारना।
34 घर म नाग देव, भिंभोरा पूजे ल जाय।          
 घर के बड़ों का सम्मान न करके बाहरी लोगों का सम्मान करना। घर में उपलब्ध वस्तु को बाहर जाकर खोजना।
35 घर म टुटहा बंदूक नही, बाहिर म भड़ाभड़।   
दिखावा करना।
36 घोरन मताना।               
जिद्द करना।
37 घानी कस बइला पेराना।           
विपत्ति में फंस जाना।
38 घाट-घाट के पानी पीना।               
अनुभवी व्यक्ति।
39 घुरवा-गॉँगर होना                  
 क्षमा का गुण धारन करना।
40  खँडरी नीछना या ओदारना।               
 कड़ा दण्ड देने की चेतावनी देना।
41  खटिया धरना।                   
 बीमार पड़ जाना।
42  खटिया रेंगना।                    
किसी के मृत्यु की कामना करना।/बद्दुआ देना।
43  खीरा चोर, जांधरा चोर, धीरे-धीरे सेंधफोर।   
बड़ा चोर पहले छोटी-मरेटी चाोरियाँ करता है।
44  बात खपलना।                       
 अपना दोष दूसरों पर मढ़ना।
45  खाय बर खरी, बताय बर बरी।       
 गरीबी को छिपाने का प्रयास करना।
46  खाय बर खोखमा, पिराये ल पेट।
      का लइका होबे टुरी, हँसिया के बेंठ।            
बहानेबाजी करना। दिखवा करना।
47  खाय करेला, मुँहू करूवा।              
गलत काम का गलत परिणाम होता है।
48  खाय के पातुर।                   
 स्वार्थी
49  खांद/कोरा म लइका, पारा भर ढिंढोरा।       
सामने रखी वस्तु को कठिनाई से ढूँढ पाना।
50  खाद परे त खेती, नइ ते नदिया के रेती।   
बिना खाद के मिट्टी उपजाऊ नहीं बनती।
51  खोरवा लंगड़ा सदा उपाई।
      परवा म चढ़ के बंदूक चलाई।                
अपंग व्यक्ति उत्पाती होता है।
52  खोदाखादी करना।                   
 छिद्रान्वेशण करना। गड़े मुर्दे उखाड़ना।
53  खाली हाथ होना।                    
विधवा होना।
54  खसल परे म हर-हर गंगा।                   
 संयोग से कोई अच्छा काम हो जाना।
55  खुरच-खुरच के मरना।           
दुर्गति होकर मरने की बद्दुआ करना।
56  खुद तो हागे कुला, दूसर ल छी।       
अपना दोष न देखना पर दूसरों से घृणा करना।
57  खेत बिगाड़े सोमना, गाँव बिगाड़े बाम्हना।   
खरपातवार खेत को बिगाड़ता है और बाम्हन गाँव को।
58  खेती, अपन सेती।                    
स्वयं जिम्मेदारी लेने से ही खेती संभव है।
59  खलक उजरना।                    
उत्सव आदि देखने के लिए बड़ी तादाद में लोगों का उमड़ पड़ना।
60  ढोल तरी पोल, मसाल तरी अँधियार।           
 ईज्जतदार कहलाने वाले व्यक्ति के अंदर बुराई होना।
61  ढेखरा सही बाढ़ना।           
बच्चों का तेजी से बढ़ना।
62  ढेंचरा लगाना।                    
 बहाना करना।
63  झख मारना।               
व्यर्थ बैठे रहना।
64  झकझक ले दिखना।            
सुंदर, साफसुथरा दिखना।
65  झींका के टूटती, बिलई के झपटती।            
अवसरवादी को अनायास अवसर मिल जाना।
66  झगरा के नाव बरपेली।           
जबरन करने झगड़ा होता है।
67  ऊपर म राम-राम तरी म कसाई।
      चीख ले रे मनी राम सक्कर-मिठाई।           
 कपट का व्यवहार करना
68  इंदरी कलपना।                   
 दिल दुखना।
69  ठोसरा मारना।                    
व्यंग्य करना।
70  ठसा परना।               
परिणामूलक बात होना।
71  ठेका लुकाना।               
सकुचाना।
72  इज्जत बेचना               
अपनी मर्यादा को दांव पर कोई नहीं लगाता।
73  ठगड़ी के डेराउठी चिक्कन।              
बच्चों से विहीन घर साफसुथरा रहता है।
74  ठलहा बनिया का करे,
    एती के माल ल ओती करे।                
 निठल्ल आदमी व्यस्त दिखने की कोशिश करता है।
75  बखत परे म बाप कहय।               
 मुसीबत में बात मानने पर मजबूर होना।
76  बइद घर लइका नहीं, न बढ़ई घर कपाट।   
गुनी का पुत्र अयोग्य होना।
77  बइला होना।               
अपढ़ होना।
78  बर न बिहाव, छटृटी बर भात।       
काम शुरू करने से पहले फल के लिये लालायित रहना।
79  बरी पुट कोनो नून नइ डारे।                
समूह में पृथक-पृथक लाभ की बात नहीं करना चाहिये।
80  बरदी धर के आना।           
भीड़ लेकर आना।
81  बरदी बर पेरा नइ पूरना।                
भीड़ के लिए भेजन की व्यवस्था करना कठिन होता है।
82  बरदीहा छोंड़ दिही त छोंड़ दिही, ठाकुर नइ छोंड़े।            
 नौकर गैरजिम्मेदार हो सकता है, पर मालिक नहीं।
83  बरेंडा ल बोहना।
संपूर्ण जिम्मेदार लेना।     
84  बांस के भीरा म बासेच् जागही।       
    दुष्ट के कुल में दुष्ट पुत्र ही पैदा होता है।
85  बाम्हन, कुकुर नांऊ,
     जात देख गुर्राऊ।                    
अपने ही समान व्यवसायी के प्रति ईष्र्या होना।
86  बातिक-बाता होना।           
विवाद होना।
87  बाप के करनी, बेटा के भुगतना।       
बाप का कर्ज बेटा को चुकाना पड़ता है।
88  बारा कुआँ म बांस डारना।                
एक काम में असफल हाने पर दूसरा आजमाना।
89  बारा उदीम करना।                    
अनेक प्रकार का प्रयास करना।
90  बाराबाट होना।                   
 तहस-नहस हो जाना। परिवार का बिखर जाना।
91  बासी के नून नइ निकले।                 
असंभव कार्य।
92  बावन बनिया, तिरपन तेली।               
 तेली बनिया से भी अधिक कंजूस होता है।
93  बात बिगड़ गे मोटर म,
     जात बिगड़ गे होटल म।                 
आधुनिकता के चलते मर्यादा भूल जाना।
94   बात बिगड़ना।                    
 विवाद की स्थिति बनना।   
95   बात गिरना।               
जुबान खराब होना।   
96   बात लमाना।               
किसी बात को बेवजह तूल देना।   
97   बातेबात लेना।                    
 मुँहजोरी करना।   
98   बों दे गहूँ, निकल जा कहूँ,
       बों दे चना गाँव जाना मना।                 
चने की खेती में अधिक देखरेख की जरूरत होती है।
99   बोकरा के परान छूटे, खवइया बर अलेना।   
मेहमान मेजबान की मजबूरी का मजाक बनाता है।
100  बड़े संग जाय खाय बीरो पान।
        छोटे संग जाय, कँटाय दुनों कान।       
गुणी व्यक्ति की संगति से सम्मान और गलत व्यक्ति के संगति से अपमान मिलता हे।    
101  बुढ़ना झर्राना।                    
 सबक सिखाना।
102  बत्तर कीरा कस झपाना।                 
 जबरन जूझ पड़ना।
103 बेंझवारना।               
गोलमोल बात करना।
104 बेंदरा का जाने अदरक के सुवाद।            
अयोग्य व्यक्ति मूल्यवान का मूल्य नहीं पहचान सकता।
105 बैरी बर ऊँच पीढ़ा।           
घर आये दुश्मन का भी सम्मान करना चाहिये।
106 बने-बने बजार के, कड़हा कोचरा मरार के।        
उत्पादक अच्छे उत्पाद को ही बाजार भेजता है।
107 बूड़ मरे नहकँउनी देय।           
नुकसान सहकर भी मूल्य चुकाने के लिए मजबूर होना।
108 करू-करू मुँहू करना।           
अप्रसन्नता व्यक्त करना।
109 कंडिल देख-देख के बरी खाय।       
सावधानी पूवग्क कार्य करना।
110 कऊवा के कटरे ले ढोर नइ मरे।       
 ईष्र्यालु के कोसने से परोपकारी का बिगड़ता नहीं है।
111 कब बबा मरे, ते कब बरा चुरे।       
    अवसर की ताक मे रहना।
112 कबरी गाय के बछिया कबरी।       
माँ के संस्कार बेटी में आ जाते हैं।
113 कका करबे रीस, त सील-लोढ़ा म पीस।   
क्रोध करने से कोई लाभ नहीं होता।
114 कमाय लंगोटी वाला, खाय टोपी वाला।   
मजदूरों का शोषण करने वालों पर व्यंग्य।
115 करिया आखर भंइस बरोबर।                
अनपड़ होना।
116 कथरी ओढ़ के घींव खाय।                
छिपकर काम करना।
117 कनिहा टूटना।                    
लाचार होना।
118 कहाँ गे रेहे? कहूँ नहीं।
       का लाने? कुछू नहीं।           
व्यर्थ की भागदौड़।
119 कीरा पर के मरना।           
दुर्गति होने की बद्दुआ देना।
120 कभू लांघन, कभू फरहार।               
 गरीबी में दोनो समय पेटभर भोजन नहीं मिलता।
121 करम के नांगर ल भूत जोते।       
भाग्य प्रबल होना।
122 करथन खेती मरथन भूख,
       फेर पान-लकड़ी के गजब सुख।       
किसानों के पास चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तो है पर भोजन बनाने के लिए अनाज नहीं है।
123 करेजा जुड़ाना।                    
शांति का अनुभव होना।
124 करनी करइया बाँच गे,
       फरिका उघरइया के नाव।                
अपराधी बच जाता है, देखने वाला फंस जाता है।
125 करनी दिखे मरनी के बेर।                
अंततः बुरे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।
126 करनी दिखना।                    
बढ़चढ़ कर बात करने वाले की असफलता पर व्यंग्य। 
127 का के कहत का होगे, मूड़ म घाव होगे।           
 अनापेक्षित समस्याओं से घिर जाना।
128 का दर्जी के कांटेबोंगे, का डाक्टर के पिराय।
    का धोबी के फाटे त का  नाऊ के करलाय?       
 दूसरे का नुकसान करना।
129 काम के न धाम के, दौरी बर बजरंगा।           
 अच्छा खाना मिलता देख काम के लिए तैयार हो जाना।
130 काम बिगाड़ना।                    
असफलता हाथ लगना या नुकसान होना।
131 काम सिधाना।               
युक्ति पूर्वक काम सिद्ध कर लेना।
132 काम न बूता, पहिरे बर सूँता।       
बिना मेहनत धन की कामना करना।
133 कारी पसीना छूटना।           
कठिन मेहनत करना।
134 कोठी म धान हे, त मति ह आन हे।       
धन पाकर बौराना।
135 कोठी म दाना नहीं, मुसवा बर नेवता पठोय।        
 सामथ्र्य से बढ़ कर काम करना।
136 कोदो दे के पढ़ना।                    
पढ़ई में कमजोर होना।
137 कोदो लुवत ले भाँटो, नइ ते ठेंगवा चाँटो।     
काम सधाने के लिए चापलूसी करने पर प्रयुक्त हाना।
138 कोनो करे, कोनो भरे।           
निरपराधी को सजा होना।
139 कान-नाक झर्राना।                   
 असमर्थता जाहिर करना।
140 कउआसी लगना                   
 हताश हो जाना।
141 कछोरा भीरना।                    
सामना करने के लिए तैयार होना।
142 कुकुर के पूछी, टेंड़गा के टेंड़गा।       
दुष्ट व्यक्ति कभी सुधर नहीं सकता।
143 कुकुर के राई आय,
      छानी म चढ़ के मरी जाय।                
नासमझी के करण मुसीबत में पड़ना।
144 कुकुर ह गंगा जाही,
       त पतरी ल कोन चांटही?                
नीच व्यक्ति अपनी नीचताई नहीं छोड़ता।
145 कुकुर भूंके हजार, हाथी चले बजार।            
सच्चे व्यक्ति का बुरा नहीं हो सकता।
146 कुल बोरुक।               
कपूत।
147 कुला दुवारी होना।                   
बहुत ही निकट होना।
148 कतरो करे, नाव के न गुन के।       
एहसान फरामोश के लिए यह हाना प्रयुक्त होता है।
149 कनवी ले चिपरी बने।           
अंतिम विकल्प को स्वीकार करने विवश होना।
150 कनवा पादे, भैरा जोहारे।                
गलत अर्थ ग्रहण करना।
151 कनवा ल भांव नहीं, कनवा बिना रहंव नहीं।       
 किसी से नफरत भी करना और प्रेम भी करना।
152 कनुवाना।                       
 आनाकानी करना।
153 कल नइ परना।                    
चैन न मिलना।
154 कलपा डारना ।                   
 दुख पहुँचाना।
155 कलउ नंदाना।                   
 अंधेरगर्दी हाना।
156 कल्ला कटना।                  
किसी जिम्मेदारी से मुक्ति पाना।
157 मंद पीये मतवार कहाय।               
 गलत काम करने वाला अपराधी कहलाता है।
158 मंतर पढ़ाना/सिखाना।           
    बरगलाना।
159 मइंता भोगाना।                   
 तिलमिलाना, क्रुद्ध होना,
160 मड़िया के कोदो लू लिस
फेर छाती ठोंक के बरात झन गिस।             
बारात जाकर भूखा मरने के बदले खेत में काम करना उचित है।
161 मीठ म कीरा परना।           
अत्यधिक प्रेम से संबंध बिगड़ने की संभावना रहती है।
162 मरे बिहान होना।                    
मुसीबत में पड़ना।
163 मरे रोवइया नइ बाँचना।               
 निर्वंशी होने की बद्दुआ। कुल का नाश हो जाना।
164 माँ मारे जाय, नइ ते बाप कुत्ता खाय।                
दुविधा में पड़ना।
165 मारते मारे, फुलते फूले,
       कोलिहा के कुला म भूंसा भरे।       
गलत काम करने का फल तुरंत मिलता है।
166 माछी खोजे घाव ल, राजा खोजे दांव ल।   
 मौके की तलाश में रहना।
167 माछी मारे हाथ गंधाय।           
 नीच काम करने से अपयश मिलता है।
168 माछी पोंडा।               
दूरी में बहुत कम अंतर ।
169 माता के परसे, मघा के बरसे।       
    माँ के हाथ से खाने पर तृप्ति मिलती है।
170 मोहनी-थापनी डारना।           
 वश में कर लेना।
171 मोर पेट म हीरच्हीरा, डउका बिन का करंव।        
अपना खोट दूसरे पर मड़ना।
172 मोटई आना               
अनुरोध को स्वीकार न करना, इन्कार करना। स्वयं को समर्थ दिखाना।
173 मान न बड़ई, का जाबे मंडई।       
जहाँ सम्मान न मिले वहाँ नहीं जाना चाहिये।
174 मान गे त देवता, नइ ते पखरा।       
जिद्दी व्यक्ति।
175 मुख म कीरा परना।             
बद्दुआ देने के लिए हाना।
176 मुख म राम बगल म छूरी।                
 कपटी व्यक्ति या कपट भाव रखना।
177 मुख टारना।               
नजरों से दूर हट जाओ।
178 मुँह म दूधभात।                   
 शुभ बात कहने वालों को धन्यवाद देने के लिये हाना।
179 मुँह मारना।               
बीच में टोकना। बात काटना।
180 मुँह लुकाना।               
मुँह छिपाना।
181 मुँहदेखी करना।                    
अपनों का पक्ष लेना।
182 मुँहू म थूकना।                   
 मुँह पर जवाब देना।
183 मुँहू करू-करू करना।           
अप्रसननता जाहिर करना।
184 मुँहू म पेरा गोंजना।           
शोषण करना। हक छीनना।
185 मुँहू म लाड़ू गोंजाना।           
चुप्पी साध लेने वालों के लिए हाना।
186 मुँहू मुरेरना।               
इन्कार करना।
187 मुँहू पनछियाना।                   
 लालच होनां।
188 मुँहू देख बीड़ा, कुला देख पीढ़ा।       
 आदमी देखकर व्यवहार करना।
189 मुँहू फुलोना।               
अप्रसन्न होना।/ नाराज होना।
190 मुँहू नानचुक होना।                   
 झेपना।
191 मुरदा रेंगना।               
बद्दुआ देना।
192 मुसुवा ताके बिलई सपट के।           
धैर्य पूर्वक अवसर की प्रतीक्षा करना।
193 मुड़ के नाव कपार।           
नया परिणाम न आ पाना।
194 मुड़ म राखड़ डार के निकलना।       
लापरवाह होना/ जिम्मेदार से बचने के दूर भागना।
195 मुड़ी के रहत ले कोनों माड़ी म पागा नइ बाँधय।            
योग्य के रहते अयोग्य को जिम्मेदारी नहीं दी जाती।
196 मुड़ी मटकाना।                    
चिढ़ाना। इन्कार करना।
197 मुड़ी पटकना।/मुड़ी नइ उचना।       
इन्कार कर देना।
198 मन भर आगर।                    
अत्यधिक प्रसन्नता।
199 मन चंगा, त कठोती म गंगा।       
मन की पवित्रता।
200 मूड़ के नाव कपार।           
समान अर्थ होना/ समान उद्देश्य होना।
201 मूड़ मुड़ाय भए सन्यासी।               
 बाल मुड़ुवा कर कोई सन्यासी नहीं हो जाता।
202 ठिकाना पुरोना।                    
अच्छी तरह से खबर लेना।
203 बिच्छी के मंतर नइ, सांप के बिला म हाथ।   
अज्ञानता में मुसीबत मोल लेना।
204 बिता भर के आदमी अउ मूते बर आगी।   
हैसियत से बढ़-चढ़कर बात करने वाला।
205 बिन पेंदी के लोटा।           
निष्ठाहीन व्यक्ति।
206 पिला परना।               
लंबी प्रतीक्षा करना।
207 रिस खाय बुध ल, बुध खाय परान।           
 क्रोध में विवके चला जाता है।
208 थोथना ओरमाना।                    
हार मान लेना।
209 थोरहे खाय हदर मरे, बहुते खाय फूल मरे।   
    संतुलित आहार ही उचित होता है।
210 थोरहे खाना बहुते डकारना।               
 अपनी उपलब्धि को बढ़ाचढ़ाकर बताना।
211 सिधवा के लोगाई, गाँव भर के भौजाई।   
सिधाई का फायदा सभी उठाते हैं।
212 सियानी बघारना।                    
अपने से बड़ों के बीच बढ़चढ़कर बात करना।   
213 सियानी करना।                    
बड़ों से पूछे बिना कोई महत्वपूर्ण कार्य कर लेना।   
214 सिखाय पूत दरबार नइ चढ़य।       
दूसरे की बुद्धि काम नहीं आती।
215 दिया बरइया नइ बाचना।               
 कुल का नाश होना।
216 दिया बुताना।               
मौत की बद्दुआ देना।
217 चिभिक लगा के कमाना।                
मन लगा कर काम करना।
218 चिहुर परना।                
अव्यवस्था होना। शोरशराबा होना। मातमी माहौल बनना।
219 चिरई के खाय ले धान ह नइ सिराय।            
कुछ नुकसान होने पर संपन्न व्यक्ति का कुछ नहीं बिगड़ता।
220 तिड़ीबिड़ी होना।                   
 बिखर जाना।
221 जियान परना।           
किसी काम को करने में अनाकानी करना।
222 जिही पतरी म खाना विही म भोंगरा करना।       
 नमक हरामी करना। अपकार करना।
223 जिहाँ चार अहीर, तिहाँ बात गंहीर।                
चार अहीरों के मिलने पर डंडा-लाठी चलने की ही संभावना रहती है।
224 जिहाँ गुर, तिहाँ चाटी।           
स्वार्थी व्यक्ति के लिये प्रयुक्त हाना।
225 जिहाँ-जिहाँ दार-भात, तिहां-तिहां माधोदास।        
स्वार्थी व्यक्ति अवसर का लाभ लेने से नहीं चूकता।
226 निंधा परना।                    
परिणाममूलक काम होना।   
227 टिंग-पाँच करना।                    
बढ़चढ़कर बोलना। होशियारी दिखाना।
228 लिखरी लगाना।                    
चुगली करना। उकसाना।
229 हरू-गरू होना।                    
प्रसव होना।
230 हफ्ता भर बेटी, चार दिन दमाद।
    येकर ले जादा, होबे कुकुर समान।            
अधिक दिन की मेहमानी से अपमान सहना पड़ता है।
231 हक खाना।               
किसी काम को करते हुए थक जाना, पर काम पूरा न होना।
232 हरही/पहिदे गाय कछारे जाय।       
आदत से लाचार होना।
233 हरहा/छेल्ला ढिलाना।           
उच्श्रृँखल व्यवहार करना।
234 हाय रे मोर बरा, गिंजरफिर के मोरे करा।   
जिसे उपेक्षित किया गया हो, अंततः उसी की शरण में लौटना।
235 हाँड़ी के मुँहू म पराई ल ढाऊकबे, 
आदमी के मुँहू म काला?               
 निंदा करने वाले को रोका नही ज सकता।
236 हाथ-बांही धरना।                   
 छेड़ना। कुकर्म करने का प्रयास करना।   
237 हाथ तंग होना/हाथ सुक्खा होना           
 आर्थिक तंगी होना।
238 हाथी बर चांटी गजब।           
अवसर पाकर निर्बल भी प्राणघातक हो सकता है।
239 हाथी के पेट सोंहारी म नइ भरे।       
आवश्यकता से कम की उपलब्धि पर कही जाती है।
240 हार मानना।               
हार स्वीकार कर लेना। असफलता स्वीकार कर लेना।   
 241 हाड़ा म काई रचना।           
वर्षों पहले स्वर्गवासी होना।
242 हुँकारू देना।               
समर्थन करना।
243 हूँ कहत हाँ।               
त्वरित प्रतिक्रिया  व्यक्त करना।
244 हगरी बर गगरी ओधा।           
हमेशा बहानेबाजी करने वाला।
245 हगरी के खाय ते खाय, उगढी के झन खाय।         
अपकारी व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए।   
246 हगत खानी पदासी।           
काम के वक्त बहानेबाजी करना।
247 भँइसा बैर।               
जानी दुश्मनी।
248 भँइसा के सींग, भँइसेच् ल भारी होथे।           
 जिसकी जिम्मेदार, उसी को चिंता रहताहै।
249 भरे तरिया म पानी नइ मिलना।        
अत्याचारी के लिए बद्दुआ करना।
250 भांठा, करम नाठा।                 
बंजर जमीन से किस्मत नहीं चमकती।
251 भागती भूत के लंगोटी सहीं।                
अधिक पाने का अवसर गाँवाना।
252 भूख न जाने जात-कुजात,                  
नींद न चीन्हें अवघट-घाट।   
मजबूरी और मुसीबत के समय आदमी को आत्मरक्षा के अलावा और कुछ नहीं सूझता।         
253 भूत धरना।               
बकवास करना।
254 भल ल भल जानना।           
विश्वास करके धोखा खाना।
255 भर्री भात खाना।     
सामूहिक भोज का दण्ड।
256 पंचइत करना।               
ना नुकुर करना। बहस करना। तर्क-कुतर्क करना।
257 परिया लहुटना।                    
जमीन का बंजर होनां। साफ-सफाई का अभाव।
258 पथरा के बुता अउ कोदो के बनी।           
 परीश्रम के अनुकूल मजदूरी न मिलना।
259 पथरा म मूड़ी पटकबे त मुड़िच् ह फूटही।   
हृदयहीन व्यक्ति से दया की आशा नहीं रखना चहिये।
260 पतिया देना।               
    धन की मदद। ऋण के लिये याचना।
261 पहाड़ होना।                
मुसीबन बन जाना।
262 पीछू पड़ना।               
 पीछे पड़ना।
263 पर बर खांचा कोड़े, अपन झोरस जाय।   
दूसरों के लिए मुसीबत पैदा करने वाला स्वयं मुसीबत में पड़ता है।
264 पर के मुँहू म पान खाना।                 
सिखी-सिखाई बात कहना।
265 पर के आँखी म सपना देखना।       
दूसरे से सुख की अपेक्षा करना।
266 परोसी के भरोसा लइका उपजरना।            
दूसरों से सहायता की उम्मीद में कोई भी काम नहीं करना चाहिए।
267 परान देना।               
संकल्प के साथ डट जाना।
268 परले होना।               
कोई बड़ी आफत आना।   
269 पाँव के रहत ले पनही के का अंकाल?           
 पत्नी बनाने के लिए पुरूष को औरत की क्या कमी?
270 पाँव भारी होना।                   
 गर्भवती होना।
271 पाँव पराना।               
झुकने, आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य कर देना।
272 पाँव परना।                    
आत्मसर्पण कर देना।
273 पाँचों अँगरी घींव म अउ सिर कड़ाही म।   
हर प्रकार से फायदे में रहना।
274 पाठ-पीढ़ा देना।                    
उत्तराधिकारी को जिम्मेदारी सौंप देना। दीक्षा देना।
275 पाप के मटका ह एक दिन फूटबे करथे।   
पाप का घड़ा एक दिन भरता ही है।
276 पोची परना।               
दिया गया उत्तर गलत होना। खरा नहीं उतरना।   
277 पानी बर नइ पूछना।           
आवभगत नहीं होना।
278 पानी बरसे आधा पूस, आधा गहूँ आधा भूँस।        
समय बीत जाने पर अनुकंपा मिलने से का क्या लाभ।
279 पानी म हगही ते एक दिन उफलहीच्।           
 पाप-कर्म एक दिन जरूर प्रगट होता है।
280 पानी म रहि के मंगर ले बैर।       
सबल से टकराने की कोशिश नहीं करना चाहिये।
281 पानी पी के जात पूछना।                
सोच समझ के काम करना चाहिये, बाद में पछताने से  क्या लाभ?
282 पानी पी-पी के बखानना।                
रह-रहकर कोसना।
283 पानी उतरना/पानी मरना।                
आत्मसम्मान समाप्त हो जाना।
284 पानी उतारना।                    
आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचाना।   
285 पानी देवइया नइ बाँचना।               
 निर्वंशी हो जाने की बद्दुआ करना। वंशहीन हो जाना।    
286 पानीदार होना। ईज्जतदार होना।
287 पाटी पारना।               
श्रृँगार करना।
288 पागा बाँधना।               
जिम्मेदारी का काम करने के लिए राजी हो जाना।
289 पाला बदलना।/कल्हथना।                
पक्ष बदलना/अपनी बात से मुकर जाना।
290 पानी के पइसा पानी में, नाक गिस बेईमानी में।
बेईमानी से अर्जित धन अपमान का सबब बनता है।
291 पछीना ओगराना।                   
 कठोर परिश्रम करना।
292 पदासी आना।               
अरूचि होना। किसी काम में तत्परता न दिखाना।        
293 पुदगा जागना।                    
पर निकल आना।    
294 पुचपुचाना।                    
उतावलापन दिखाना।
295 पतरी चाँटना।               
गुलामी करना।
296 पाँव धो के पीना।                   
 अधिक सम्मान करना। किसी की गुलामी करना।
297 पेट के पानी नइ पचना।               
 चुगली करना।
298 पेट के नाव सदा जगजीता।
संझा खाय बिहाने रीता।               
 गरीबी को व्यक्त करने के लिये अथवा जीवन में पेट और भूख के अंतर्संबंधों की व्याख्या करने के लिए कही जाने वाला हाना।
299 पेट म रक्सा समाना।           
बार-बार भूख लगना।
300 पेट भरे न पुरखा तरे।           
आवश्यकता से बहुत कम मिलना।
301 पनही सीलना               
काम में रूचि न दिखाने वाले के लिय कही जाती है।
302 पल्ला भागना।               
पीछा छुड़ा कर भागना। डर कर भागना।
303 पर के भोभस में भरना।                   
 परायों पर धन लुटाना।
304 ररूहा सपनाय दार-भात।                
भोजन पर टूट पड़ना या किसी चीज के लिए उतावलापन दिखाना।
305 रगड़ा टूटना।               
काम करते पस्त हो जाना।
306 रंग भल ते संग भल।           
जैसा विचार वैसी संगत।           
307 रांड़ी बेटी मन के, कुँवारी बेटी चार के।   
विधवा बेटी अपने मन से रिश्ता कर सकती है परंतु कुँआरी कन्या का विवाह समाज की सहमति से तय होता है।
308 रांड़ी ह रोय ते रोय, हेंवाती ह घला रोय?   
 विपन्न का दुख स्वभाविक है पर संपन्न का दुखी होना दिखावा है।
309 राई आना।               
विनाश को न्योता देना।
310 राई-रत्ती देखना।                    
काम में खोट निकालना। मीनमेख निकालना।
311 राम भरोसा रहना।                    
भाग्य भरोसे रहना।   
312 राम नाम जपना।                    
उम्मी छोड़ देना।
313 राम-रमायन तिहाँ कुकुर कटायेन।            
शुभ कार्य में बाधा।
314 राड़ी डरवाय कांड़ी बर, आय दुखाही मूसर बर।            
सहायता की जरूरत सबको पड़ती  है, इसलिये अच्छे दिनों में घमंड नहीं करना चाहिये।   
315 रात भर रेंगे, कुकदा के कुकदा।       
मेहनत का कोई परिणाम न निकलना।   
316 राज करते राजा नइ रह जाय,
    रूप करते रानी,
    रहि जइहय गा नाव निसानी।       
दुनिया में धन नहीं बल्कि यश रह जाता है।
317 राजा रूसाय, गाँव लेय।           
किसी की नाराजगी की उपेक्षा करने के लिए हाना।
318 राजा के राज पाय, हागत खानी गीत गाय।        
अचानक संपन्नता आ जाने पर अपनी ही बड़ाई करते रहना।
319 राजा के राज जाही, हमर का?       
    संपन्न व्यक्ति की हानि होने पर गरीब का क्या जाता है?   
 320 राजा मरना।               
    अनापेक्षित कार्य होना।
321 राजा ह राज पाही, हमला का?       
राजा को राज मिलने से हमें क्या लाभ।
322 राजा नल ल बीपत परे,त भूंजे मछरी ह दहारा म कूदे।       
 मुसीबत पर मुसीबत आना।       
323 राम नाम सत्त होना।           
मृत्यु हो जाना।
324 रस्ता तीर के खेती, त रांड़ी के बेटी।           
 कमजोर की संपत्ति पर सबकी नजर रहती है।
325 रद्दा चतवारना।                   
 भविष्य के लिए निरापद उपाय करना।
326 रद्दा नापो।               
जाओ।
327 रद्दा-बाट देखना।           
व्यग्रता पूर्वक प्रतीक्षा करना।   
328 ज्ञानी मारे ज्ञान से, अंग-अंग भिन जाय।
    मूरख मारे लउठी ले, मूड़-कान फुट जाय।   
बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धि से काम लेता है।
329 संझा के झगरा, बिहिनिया के पानी।           
 देर तक चलने की संभावनाओं वाली घटनाओं पर।
330 सन्ना जाना।               
बेवजह क्रोधित हो जाना।       
331 संहराय पूत बेढे जाय।           
सपूत का कपूतों के समान व्यवहार।   
332 संुकुड़दुम होना।                    
घबरा जाना।
333 समय के चूके किसान, डार के चूके बेंदरा।   
समय पर काम नहीं होने से नुकसान अवश्य होता है।
334 सहराय बहुरिया बेढ़े जाय।                
अधिक प्रशंसा पाकर बहुएँ निरंकुश हो जाती हैं।
335 सपना होना।                
दुर्लभ होना।   
336 सपनाना।                        
व्यर्थ ही उम्मीद कर बैठना।
337 साह जी के खेती ल भलवा खाय।           
 लापरवाही में नुकसान होता है।
338 सादा झण्डा म रंग चढ़ना।               
 मामले को अतिरंजित करनां
339 सात पुरखा म पानी रुकोना।               
 दुर्गति करना।
340 सोसन बुताना।                    
तृप्त होना।
341 सोज्झेसोझ कहना।                    
खरी-खरी कहना।
342 ससुर के लामलाम बहु के का काम।            
ससुर और बहु के बीच मर्यादा जरूरी है।
343 सुत उठ के लड़ंगा नाचे।                
अधिक प्रसन्नता व्यक्त करना।
344 सुते के बेर मुते ल जाय, उठ-उठ के घुघरी खाय।         
समय निकल जाने के बाद काम करने वालों पर व्यंग्य करना।
345 सुने सब के करे मन के।               
 सोच-समझ कर काम करना।
346 सतौरी धरना।               
दण्डित करना।
347 सेंध बिन चोरी नहीं, बिन गिरहा के हानि।   
नुकसानन की कोई वजह जरूर होती है।
348 सूम के धन बंबूर के खूँटा,            
    मरे के बेरा लूटिकलूटा।           
मरने के बाद कंजूस के संपत्ति की लूट मच जाती है।
349 सगा बनके दगा करना।           
अपनापन दिखाकर नुकसान पहुँचाना, धोख देना।
350 उध के न बूध के, बजनिया मारे कूद के।   
बिना सेचे समझे काम करना।
351 उधार/बाढ़ी के खवई अउ पेरा के तपई।   
उधार के भोजन से तृप्ति नहीं मिलती।
352 उधारी बर कुद परे, नगदी बर मूत भरे।   
मुफ्तेमाल दिले बेरहम।
353 उठौर के घाव अउ ससुर के बइदई।           
 दुविधा की स्थिति।
354 उरकना।                        
नष्ट होना।
355 डौकी टमड़े कनिहा, दाई टमड़े पेट।           
 पत्नी ताकत देखती है परंतु माँ को बच्चे के भोजन की चिंता रहती है।
356 डोकरी मरे छोकरी होय, तीन के तीन।   
यथा स्थित बने रहना। आय के बाद बराबर व्यय होना।
357 उड़न छू होना।                   
 अविश्वसनीय व्यक्ति।
358 डउकी सियानी, मरे बिहानी।               
 पत्नी की मुखिया गिरी से मुसीबत आती है।
359 उछरत बोकरत ले भकोसना।   
गले तक खना। अत्यधिक मद्यपान कर लेना।
360 उतलंग नापना।                   
 अति करना।
361 डेहरी खूँदना।               
निमंत्रण स्वीकार करनो के लिए आग्रह करना।
362 डेरा-डंडा उसलना।           
रहने के स्थान को छोड़ कर अन्यत्र चला जाना।
363 उल्टा छूरा म मूड़ना।           
क्रूरता पूर्वक व्यवहार। गंभीर नुकसान पहुँचाना।
364 दया-मया धरे रहना।           
प्रेम-भाव बनाये रखने की मनुहार करना।
365 छंइहा खूँदे के धरम नइ होना।       
चरित्रहीन से दूर ही रहना चाहिये।
366 छक्का-पंजा बंद करना।               
 बेबस कर देना।
367 छकल बकल करना।           
अनायास धन पाकर फिजूलखर्ची करना।
368 दही के मही करना।           
खलबली मचाना। उलट-पुलट करना।
369 दही के भोरहा कपसा खाय।                
लालच में पड़कर नुकसान उठाना।
370 दही देख बिलई रतियाय,
कोठी देख पहुना रतियाय।                 
यह हाना लालची व्यक्ति के लिय कहा जाता हैं।
371 दहरा के मछरी भांठा म मोल।       
कुतर्क प्रस्तुत करना। अप्रासंगिक बात करना।
372 दहरा के भरोसा केंवट बाढ़ी खाय।                
आय की उम्मीद में उधारी खाना।
373 छी!छी! करय अउ छितका अकन खाय।   
पहले न नुकुर करना पर बाद में टूट पड़ना।
374 छींचे बर न कोड़े बर, धरे बर खोखसा।   
    चतुर व्यक्ति दूसरे की मेहनत से लाभ कमा लेता है।
375 दरेरा परना।               
ईष्या के कारण तकलीफ होना।
376 दांत निपोरना।                    
बेशर्मी दिखाना।
377 छाती म पथरा लदकना।               
 कठिन से कठिन दुख को सह लेना।
378 छाती म दर्रा हनना।           
 ईष्र्या होना।
379 दौहा नइ रहना।                    
आने में देरी करना। 
380 छोटे मुहँू बड़े बात।                   
 योग्यता से अधिक बात करना।
381 ददा मरे दाऊ के बेटा सीखे नाऊ के।           
 मौके का फायदा उठाना।
382 ददा-भइया से काम चलाना।                
चिरौरी करके काम निकालना।
383 दुब्बर बर दू असाड़।           
एक के बाद एक मुसीबतों का आना।
384 छुहिन ले पेट लुकाय।           
बुराई नहीं छिपती।
385 दुहानू गाय के लात पियारा।                
फायदा देने वाले की अप्रिय व्यवहार भी भाता है।
386 छुछवाना।                       
 बुरी नीयत से पीछा करना।
387 छै-पाँच नइ जानना।           
    छल-कपट से दूर रहना
388 देख के कोनो माछी ल नइ लीलय।           
 जानबूझ कर कोई भी गर्हित कार्य नहीं करता।
389 देख रे आँखी सुन रे कान।
तैं नहीं त कोन्हों आन।           
योग्य व्यक्ति से ही सहायता लेना चाहिये। 
390 देखो-देखो होना।                   
 एकाएक मरणासन्न हो जाना।
391 दू बियाय, एक बताय।           
असलियत छिपाना।
392 दूध के साखी बिलई           
चोर की गवाही/चैकीदारी।
393 दूधो गे, दुहनी घलो गे।           
    धन, ईज्जत, मान-सम्मान, सब कुछ खो देना।
394 दूथ के जरइया ह मही ल घला फूंक के पीथे।   
    धोखा खानेवाला हर काम जांच-परख कर करता है।
395 छलंडे मछरी जांघ बरोबर।               
चूके अवसर के महत्व को बड़ाचढ़ा कर प्रस्तुत करना।
396 वोकरे टोरना, वोकरे बोरना।
    वोकरे उतरंढा, वोकरे उपरंढ़ा।       
एहसान करने वाले प्र और अधिक जिम्मेदारी लादना।
397 चंदोरा-निपोरा करना।           
तामझाम करना।
398 चरित्तर करना।                  
  चालबाजी करना।
399 चरबी बाढ़ना।               
घमंडी होना।
400 चार ठन बरतन हे त ठिकिर-ठकार होबेच् करही।            
संयुक्त परिवार में विवाद होता रहता है।
401 चार बेटा नाम के, कउड़ी के न काम के।   
बेटों का निकम्मा होना।
402 चार दिन के चंादनी, फेर अँधियारी रात।   
    खुशियाँ अधिक दिन नहीं रहती।
403 चार आना के घाघर, बारा आना पुदगउनी।   
अधिक लागत लगाकर कम लाभ।
404 चोर घर ढेंकी।                    
असंभव। असंगत कथन कहना।
405 चोर के जीव पुतकी म।           
चोर के दाढ़ी में तिनका।
406 चोर ले मोटरा उतियाइल।               
 काम करने वाले को जल्दी नहीं है पर देखने वालों को  जल्दी है।
407 चाल म कीरा परना।           
चरित्रहीन होना।
408 चाल चलना।               
धोखा देने की कोशिश करना।
409 चुकुल जाय।               
खाली हाथ वापस लौटने की स्थिति।
410 चुरोना कस काँचना।           
बुरी तरह से मारना-पीटना।
411 चुल्हा म जाय।                  
  किसी स्थिति की उपेक्षा करना।
412 चुलुक लगाना।                     
तलब लगना।
413 चतुरा ल केकरा नइ चाबे।               
 चतुर आदमी को काम साधने में तकलीफ नहीं होती।
414 चेंदरा परना।               
 किसी काम को करने में अधिक समय लगना।
415 चेथी के माँस खाना।           
शोषण करना।
416 चेथी डहर आँखीं जाना।               
 विवेकहीन हो जाना। गैरजिम्मेदार हो जाना।
417 चेत चढ़ना।               
धोखा खाकर सबक मिलना।
418 चेत ले बिचेत होना।               
 विवेक-शून्य होना।
419 चना हे त दांत नइ हे, दांत हे त चना नइ हे।             
संपन्न के घर खाने वाला नहीं रहता, गरीब के घर
खाना नहीं रहता।
420 चले मुँहू, पादे कुला।           
आदत से मजबूर व्यक्ति।
421 चलनी म दूध दुहे, करम ल दोस देय।
चलनी म दूध दुहे, करम ल ठठाय।           
 मूर्खता करके पछताना।
422 फाँसी टाँगना।               
सजा देना।
423 फुटानी मारना।                   
 थोड़ा धन पाकर शेखाी बघारना।
424 फुटहा करम के फुटहा दोना,
पेज गंवा गे चारों कोना।               
 समय विपरीत होने पर मेहनत विफल हो जाता है।
425 तइहा के बात ल बइहा लेगे।            
परिस्थितियाँ बदल गई है।
426 तीन तिखार, महा बिचार।               
 महत्वपूर्ण मसले पर मूर्ख कोई निर्णय नहीं ले सकते।
427 तीन तिकाड़ा, काम बिगाड़ा।                
तीन मूर्ख मिलने से काम बिगड़ता ही है।
428 ताँय-फाँय होना।                   
 व्याकुल होना।
429 तातेतात।                       
 तत्काल।
430 तोर गारी, मोर कान के बारी।       
बेशर्मी।
431 तोरे गाना, तोरे बजाना।           
बेगारी कराना।
432 तोलगी टांठ करना।           
    किसी काम के लिय कटिबद्ध होना। जिम्मेदारी लेना।
433 तालाबेली देना।                   
 व्याकुल होना।
434 तेल न तेलई, बरा-बरा नरियई।       
अप्रासंगिक बात करना।
435 तेली घर तेल रहिथे, त महल ल नइ पोते।   
धन का दुरूपयोग नहीं करना चाहिये।
436 तेली के बेली।               
तेली जाति में रिस्तेदारियों का अत्यधिक उलझाव।
437 तेली के तेल जरे, मसलची के जीव जरे।   
दूसरे की शानोशौकत पर जलने वाला।
438 तेली, कुर्मी, बनिया, अउ लिंबू कुसियार।
    दाबे ले रस देत है, पाँचों बड़ ,हुसियार।   
तेली, कुर्मी, बनिया, नींबू और गन्ने को दबाने से ही रस निकलता है।
439 तेलफूल म लइका बाढ़य, पानी म बाढ़य धान।
बात-बात म बात बाढ़य, फोही म बाढ़े कान।       
 बातों-बातों में विवाद बढ़ता है।
440 तन बर नइ हे लत्ता, जाय बर कलकत्ता।        
अतिमहत्वकांक्षी व्यक्ति।
441 जँउहर होना।               
    बड़ा नुकसान होना।
442 जॉंगर खिराना।                   
 उम्रदराज होना। कमजोर हो जाना।
443 जॉंगर पेरना, ।                   
 मेहनत करना।
444 जइसे करनी, वइसे भरनी।                
जैसी करनी, वैसी भरनी।
445 जइसन बोंही, तइसन लूही।               
 जैसा बोओगे, वैसा ही कांटोगे।
446 जइसन ला तइसन मिलै, सुन गा राजा भील.
लोहा ला घुना खा गै, लइका ला लेगे चील.।           
 मूर्ख व्यक्ति असंगत बातों का भी विश्वास कर लेते है।
447 जइसन-जइसन घर-दुवार, वइसन-वइसन फरिका।
    जइसन-जइसन दाई-ददा, तइसन-तइसन लइका।
    माँ-बाप के संस्कार बच्चों में आते ही है। स्वभाव या आचरण से हैसियत का अंदाजा हो जाता है।
448 जइसने-जइसने बारी बइला,
     वइसने-वइसने खीरा-करेला।       
हैसियत अनुसार प्रदर्शन।
449 जब बांध लिस झोरी, त का बाम्हन के कोरी। संकल्प करके पीछे न हटना।
450 जब भरे खोचका-डबरा,
    तब जाने बाम्हन पदरा।           
भविष्यवाणी करने वालों पर व्यंग्य।
451 जबान खइत्ता करना।           
 कही गई बात का अथवा प्रयास का व्यर्थ जाना।
452 जी कउवाना।               
उकताहट।
453 जी अरझना ।               
दुविधा की स्थिति।
454 जीव करलाना।                    
व्याकुल होनो।/व्यथित होना।
455 जीव कलकलाना।                   
 दुखी हाना।
456 जीव म जीव पारना।           
झूठी बात को भी पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहना।
457 जीव जरना।               
दुखी हाना।
458 जपतना।                       
 हत्या करने की धमकी देना।
459 जाय के बेरा होना।                    
बुढ़ापा अना।
460 जांगर चले न जंगरोटा, खाय गहूँ के रोटा।        
निकम्मा व्यक्ति का अच्छा खाने की मांग करना।
461 जांगर टोरना।               
    कड़ी मेहनत करना।
462 जादा बरबे, जल्दी खपबे।               
 ज्यादा अति करने वाले का अंत भी जल्दी होता है।
463 जात म नउवा, पंछी म कँउवा।       
वर्गगत विशेषता बताने के लिये प्रयुक्त हाना।
464 जोझा झपाना।                
व्यवधान डालना। अंधानुकरण करना। झपट्टा मारना।
465 जोग म रोग।               
सत्कर्म में बाधा पड़ना।
466 जोगी मरे गोड़ के घाव,
    कुकुर मरे मूड़ के घाव।           
आजीविका प्रभावित होना।
467 जुटाही रापना।                    
चमचागिरी करना।
468 जे करे सरम, तेकर फूटे करम।       
उचित अवसर पर चुप रहने वाले को नुकसान उठाना पड़ता है।
469 जेकर घर डौकी सियान,
    तेकर घर मरे बिहान।                  
    जिस घर की मुखिया औरत है, वहाँ पति को अपमानित होना पड़ता है।
470 जेकर बेंदरा तेकरे ले नाचही।        
    जिसकी बंदरिया उसी से नाचती है।
471 जेकर नाक म माछी नइ बइठे,
    तेमा गाड़ी रेंगत हे।            
अपनों की करनी के कारण अपमानित होना।
472 जेला पनही नइ मिलय-
तउन ल हाथी म चढ़ाना।               
 गरीब को भी मान देना।
473 जग हँसाई होना।                    
बदनामी होना।
474 न कंडरा घर जाँव न कटारी के मार खाँव।        
गलत व्यक्ति की संगति से बचना चाहिये।
475 न मरे न मोटाय।                   
 आर्थिक हालत में सुधार न होना।
476 न सावन सूखा, न भादो हरियर।       
    नफा नुकसान से अप्रभावित रहना।
477 न जूड़ ल खांव, न तात ल अगोरंव।           
 अस्थिर बुद्धि वाला।
478 नंजराना।                        
किसी की बद्दुआ लग जाना।
479 नंगरा नाचना।               
व्यर्थ की बकवास करना।
480 नंगरा ल मिलिस गांव, संझा जांव, बिहने जांव।        
निर्धन को अचानक धन मिलने पर वह बौरा जाता है।
481 नकटा के नाक कटे, सवा बीता बाढ़े।          
  बेशर्म।
482 नमोसी मरना/ नमोसी गिरना।       
    इज्जत चला जाना। अपमानित होना।
483 नरिहर झोंकना।                    
किसी काम को करने के लिए जिम्मेदारी ले लेना।
484 नरिहर बदना।               
किसी काम के लिए संकल्पित हो जाना।
485 नीयत म कीरा परना।           
मन में खोट आना। बदनीयती करना।
486 नीयत डोलना।                    
बुरी नीयत से काम करना।
487 नाऊ के बरात म ठाकुरे ठाकुर।       
 काम करने के लिए किसी का राजी न होना।
488 नांगर के न बक्खर के, दौंरी बर बजरंगा।    
नकारा व्यक्ति।
489 नांगरजोत्ता।               
अनपढ़ व्यक्ति।
490 नाक ऊँचा करना।                  
झूठी शान मारना।
491 नाक कटाना।               
 ईज्जत खोना।
492 नाक मारना।               
 बेईज्जत करना।
493 नाक गिराना।               
ईज्जत पर बट्टा लगाने वाला काम करना।
494 नाक लम्भा करना।                    
झूठी शान बघारना।
495 नाक-कान झर्राना।                   
 इन्कार कर देना।
496 नाव बुताना।               
वंश का नाश होना।
497 नौ मन तेल सिंगारे म जाय।   
धन की व्यर्थ बरबादी।
498 नोहर होना।               
 दुर्लभ होना। अति प्रिय होना।
499 नोहर के नोकदर्रा।
किसी वस्तु पर अधिक स्नेह प्रदर्शित करना।       
 500 नोहराहा होना।                    
अनमोल होना।
501 नान्हे नीयत करना।           
बुरी नीयत डालना।
502 नानचुक गांव के चिपरी मोटियारी।       
न मामा में काना मामा।
503 नदी नहाये, अमर सुख पाये, तरिया नहाय आधा।           
 कुआँ नहाये कुछू नइ पाये, घर नहाय ब्याधा।
 ’’नदी में नहाने से अक्षय सुख मिलता है, तालाब में नहाने  से आधा सुख मिलता है, कुआँ में नहाने से कोई सुख नहीं मिलता, घर में नहाने से व्याधियाँ आती हैं।’’
504 नवा बइला के नवा सींग,
    चल रे बइला टींगेटींग।           
प्रारंभ में अधिक उत्साह दिखाना।
505 नवा बहुरिया के रेंगना भारी।               
 नई-नवेली दुल्हन अधिक सकुचाती है।
506 नवा बहुरिया, खुसरे कुरिया।               
 नई-नवेली दुल्हन अधिक सकुचाती है।
507 नवा समधी के अड़बड़ मान।               
 नये समधी का अधिक मान होता है।
508 नवा सगा आना।                   
 परिवार में बच्चे का जन्म होना।
509 अघाय केंवटिन चिंगरी म कुला धोय।            
संपन्न लोगों की फिजूलखर्ची पर व्यंग्य।
510 अँइठना।   
नाराजगी जाहिर करना। हठ करना।
511 अँचरा म गठियाना।             
किसी सीख को मन से अपना लेना।
512 अढ़त गढ़त।                
बढ़-चढ कर बोलना। असंगत, अतार्किक बात कहना या  काम करना।
513 अंधरा खोजे दू आँखी।           
अनायास मनचाही वस्तु मिल जाना
514 अंधरा का मांगे, दू आँखी।                
जरूरतमंद को अनायास सहायता मिल जाना।
515 अंधरा ल मारे पंदरा घांव, लेखा न सरेखा।   
लापरवाह व्यक्ति हिसाब नहीं रखता।
516 अंधरौटी आना।                    
प्रत्यक्ष की वस्तु को न देख पाना।
517 अंधा पीसे कुत्ता खाय।           
अयोग्य व्यक्ति से काम कराने पर नुकसान होता ही है।
518 टंगिया म खपटे, बसुला म सुधारे।            
अपमान करके माफी मांगना।
519 अंडा सेना।               
निठल्ला बैठे रहना।
520 अंजेरी-अंजेरी गोठियाना।               
 व्यंग्य करना।
521 अंगरी म नचाना।                   
 वशीभूत करना।
522 अइलाना।                        
निश्तेज दिखना।
523 अबक-तबक होना।                   
 मरणासन्न स्थिति।
524 अक्कल बड़े कि भंईस।           
    किसी की मूर्खतापूर्ण कार्य पर व्यंग्य।
525 अक्कल चरे बर जाना।           
 ऐन मौेके पर बुद्धि का काम नहीं करना।
526 टठिया न लोटिया, फोकट के गौंटिया।           
 झूठी शानोशौकत दिखाने वाला।
527 अप्पड़ ल थप्पड़े थप्पड़।           
अपढ़ व्यक्ति ज्ञान की बात क्या समझे?
528 अपन बेटा ल कोन ह कनवा कही?            
अपने पुत्र को कोई खराब नहीं कहता।
529 अपन हाथ जगन्नाथ।           
 काम की स्वतंत्रता।
530 अरपरा के परपरा, ठेंगा जाय बरात।           
 कर्कश व्यक्ति का कोई साथ नहीं देता।
531 अरपरा के परपरा।                    
आक्रामक स्वभाव वाली औरत।
532 अरे हरना, समझ के चरना,
    एक दिन होही तोरो मरना।                    
 जीवन की नश्वरता को अभिव्यक्त करने के लिए इस हाना का उपयोग किया जाता है।
533 आय लड़धू, जाय लड़धू, लड़धू गिस बरात,
    एक पतरी भात खाइस, वहू हो गे खराब।   
निठल्ला घूमना।
534 आँखी धो के देख परना।                
संयोग से अच्छा दिन आ जाना।
535 आँखी धो के देखना।           
अच्छी तरह से देखना।
536 आँखी म धुर्रा डारना।           
धोखा देना।
537 आँखी मूंदना।               
नजरअंदाज करना। अनदेखी करना।
538 आँखी छटकारना।                   
 मूर्छित होना/मरणासन्न होना।
539 आँखी फूटना।               
बुरी नीयत करना।
540 आँखी गड़ाना।                   
 बुरी नीयत करना।
541 आँखीं आँज के देखना।           
संयोग से इच्छित वस्तु का मिल जाना।
542 आँखीं-आँखीं म झूलना।               
 भूल नहीं पाना।,यादों में बस जाना।
543 आमा चुहके कस चुहक डारना।       
पूरी तरह शोषण कर लेना।
544 आभा मारना।               
 व्यंग्य करना।
545 आप जाय, जजमानों ल ले जाय।       
    अपना नुकसान होता देखकर पंडित जी अपने यजमान         
 को भी नुकसान पहुँचाने का प्रयास करता है।
546 आवन लगे बरात, ओटन लगे कपास।           
 ऐन वक्त पर हड़बडी करना।
547 ओरछा के पानी बरेंडा नइ चघे।       
असंभव।
548 ओड़ा दे देना।               
जिद्द में डटे रहना।
549 टोनही चुहके कस दिखना।               
 बीमार दिखना।
550 टोनही चुहकना।                    
अस्वस्थ दिखना।
551 औने-पौने म बरोना।           
पीछा छुड़ाने के लिए घाटा सहने के लिए तैयार रहना।
552 ओन्नाईस-बीस होना।           
मिलती जुलती योग्यता।
553 टोटकर्रा होना।                    
कमी होना।
554 आज के बासी काली के साग,
अपन घर म का के लाज।                
अपनी गरीबी पर शर्मिंदा क्यों होना?
555 आज ह आज हे, कल ह काल हे,       
    परनदिन ह परले काल हे।
काल करे से आज कर, आज करे सो अब।               
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब।
556 आगू के भंइसा पानी पीये,
पाछू के ह चिखला चँाटे।                    
सामूहिक भोज के समय पीछे रह जाने वाले को भोजन कम पड़ने की संभावना रहती है।
557 टेंड़गा चाल चलना।           
 कुटिलता करना।
558 टेटका खुसरे बर जगह नइ होना।            
अत्यंत भीड़ होना।
559 टेटका कुरिया, मेकरा झाला,
    देख तो गोई वोकरे चाला।                या
    छेरी  कुरिया, मंजर झाला,
    देखो सगा हमर चाला।   
अपनी जगह पर सभी अपना महत्व दिखाते है।
560 अटकरपंचे होना।                    
अंधे के हाथ बटेर लगना।
561 अटकरपंचे साढ़े बारा।           
बिना कियी उद्देश्य या योजना के कोई काम में सफलता मिल जाना।
562 अटके राजा नौ सेर बनिया।
    या
    अटके बनिया, नौ सेर जाय।               
 समय का सभी फायदा उठाते हैं।
563 अलकरहा होना।                    
मुसीबत आना।
564 गंगा नहाना।               
 दायित्व से मुक्त होना।
567 गम पाना।               
भंेद पा जाना या जानकारी होना।
568 गर के फाँसी।               
 मुसीबत का काम
569 गर म फाँसी ओरमाना/टाँगना।       
सामथ्र्य से अधिक जिम्मेदारी सौपना।
570 गरहन तीरना।               
बेडौल दिखना।
571 गरीब के हाथ घींव अउ
बड़हर के हाथ भात झन परोसवाइस।                
सामूहिक भोज में गरीब से घी और संपन्न व्यक्ति से भात नहीं परोसवाना चाहिये। एक जादा-जादा परोस  देगा और दूसरा कम-कम।
572 गाय मार के पनही दान।               
 पाप कर्म को छिपाने के लिए धर्म का आड़ लेना।
573 गाँव के कुकुर गाँवे डहर भूँकही।       
समय आने पर अपने लोगों का ही पक्ष लिया जाता है।
574 गाँव गे गँवार कहाय।           
    रिस्तेदारी में जाने पर मेजबान की ही इच्छा चलती है।
575 गोड़िन बर महुआ मीठ।           
गरीब थोड़े में ही संतुष्ट हो लेता है।
576 गोहार परना ।                    
भेद को प्रगट करना।
577 गोरसी सेना।               
वृद्धा अवस्था। बीमार अवस्था।
578 गोल्लर ढिलाना।                   
 निरंकुश व्यवहार करना।
579 गोल्लर सही भँुकरना।           
उच्श्रृँखल व्यवहार।
580 गाज गिरना।               
अचानक विपत्ति आना।
581 गुरू ह गुरूच् रहिगे, चेेला ह सक्कर होगे।   
चेला अधिक योग्य हो जाता है।
582 गुहरी गदबद होना।           
अव्यवस्थित होना।
583 गुन हगरा होना।                  
कृतघ्न होना।
584 गुना-भाग करना।                    
सोच-विचार करना।
585 गत बनाना।               
दुर्गति करना।
586 लइकोरी बहू झिथरी, जर गे बहिरी भीतरी।   
    दूध पिलाने वाली महिला को बनाव-श्रँ्गार का समय
    नहीं मिलता।
587 लइकोरी के मांग चिकनी, ठगड़ी के अंगना।      
जिनके घर में बच्चे नहीं होते उनके घर स्वच्छ रहते हैं।
588 लबरा के नौ नांगर, अठारा कोप्पर।           
 बढ़ा-चढ़ा कर बात करने वाला।
589 लमसेना के लंबा नाक।           
असम्भव ।
590 लगिन के बेरा कैना हगासी।              
 ऐन वक्त पर व्यवधान पड़ना।
591 लहुटे बराती अउ गुजरे गवाही।       
    समय चूक जाने पर सम्मान नहीं होता।
592 लपट-लंगर चार दुवारी,
    तेकर मान होय अगारी।           
ढोंगी व्यक्ति अधिक मान पाता है।
593 लाखा परना।               
भाइयों में बँटवारा होना।
594 लाहो लेना।               
उपद्रव करना। अति करना।
595 लाद दे लदा दे, छै कोस अमरा दे।            
अधिक सुविधा की मांग करने पर कही जाती है।
596 लात के देवता बात म नइ मानय।           
 बुरे के साथ सख्ती जरूरी है।
597 लोक्खन के नोकदर्रा।           
किसी से अत्यधिक मोह का दिखावा करना।
598 लाल पीला होना।                   
 क्रोधित होना।
599 लउठी लगना।                   
 गो हत्या का पाप हो जाना।
600 लेंदरा के फेंदरा, चेंदरा के बाती।       
जोड़-तोड़ करके काम चलाना।
601 तोरे ऊन, तोरे तून, हम बेरागी पुनेपून।   
    सहयोगी से अथवा सलाह बताने वाले से ही मुफ्त
में अपना सारा काम कराने की जुगत में रहने वालों के लिए यह हाना कही जाती है।
602 जग अँधियार होना।           
पुत्र या घर के बुजुर्ज या मुखिया का निधन हो जाना।
603 जउन घर नौ-नौ गाय,
       तउन मही मांगे जाय।               
 संपन्न या सक्षम व्यक्ति मामूली बात के लिये सहायता मांगे।
604 नारी, पटउँहा, कूप-जल, अउ बरगद के छाँव।
गरमी में स्ीतल करे, ठंडा में गरमाय।                
स्त्री, पटउँहा, कुआँ के पानी अउ बरगद के छँइहा ह विपरीत परिस्थिति म काम आथे।       
605 दुरिहा दमाद फूल बरोबर, गाँव के दमाद आधा,
    लमसेना ह गदहा बरोबर, जब चाहे तब लादा।
ससुराल में बार-बार जाने से दामाद की ईज्जत कम हो जाती है।
606 जाड़ा किथे लइकामन ल छुअँव नहीं       
    जवान हे मोर भाई,
    डोकरा मन ल छोड़ँव नहीं,
    कतरो ओढ़ रजाई।
बच्चों को कम,जवानों को बराबर और वृद्धों को अधिक ठंड लगती है।
607 दार-भात अटकन, पुछइया ल चटकन।   
 किसी की आजीविका के बारे में पूछना नहीं चाहिये।
608 चार दिन के पानी अउ चारे दिन के घाम
चार दिन के जवानी, नइ आवय कोनों काम।        
जीवन की नश्वरता के बारे में कहावत।
609 सबर दिन नाचबे ते नाचबे,
    सगा आही तेन दिन झन नाचबे।       
मेहमान की मौजूदगी में व्यवस्था में व्यवधान आ जाना।
610 सब दिन चंगा, तिहार के दिन नंगा।           
 ऐन मौके पर धोखा देना।
611 मरहा ल मारे जियत ल गड़ाय।       
मुसीबत को और बढ़ाना।   
612 पानी गिरे कंेवटा हाँसे।           
अनुकूल परिस्थिति आता देख प्रसन्न होना।
613 रंग हे, भंग हे, बिरंग हे, मस्त हे जवानी।
अउ बांका का देखथो, मारे हे फुटानी।           
 सुख के दिन और जवानी का घमंड नहीं करना चाहिये।
614 बिन बल के बजनी बाजे, बिन गला के गीत।
    बिन ठसा के हँासी हाँसे, तीनों गपड़वा मीत।        
योग्यता और सामथ्र्य से बाहर जाकर काम करने वालों के लिए हाना।
615 जो खाए पढ़ीना के पेटी, वोकरे बैकुंठ म खेती।            
गलत काम का औचित्य सिद्ध करनो वानों के लिए यह हाना है।
616 चिंगरी, पुर्रू मछरी खाय टुप ले उठ के बैकुंठ जाय।       
गलत काम का औचित्य सिद्ध करने वालों के लिए यह हाना है।
617 बनी को, भूती को, लात को बैपारी,
एक बीता पेट के खातिर, छोड़े बाप-महतारी।   
स्वार्थ में आदमी माँ-बाप को भी भूल जाता है।
618 लाद दे लाद दे, चार कोस अमरा दे।
उपकार करने वाले से और काम लेने की कोशिश करना।
619 खाय के पातुर।
खाने के लिय तैयार पर काम के समय नदारत हो जाना।
620 मेड़वा बन जाना।
जोरू का गुलाम होना
621 जीव के जंजाल होना।
मुफ्त की आफत मोल लेना।
622 न बड़े ल डर्राय, न छोटे ल घिनाय ।
खरी-खरी बात कहना।
623 केकरा कस चाल चलना।
 कभी हाँ कहना, कभी न कहना।                 
624 पानीघाट होना।
अभ्यस्त होना, सरल होना।
625 पानी के मोल होना।
किसी वस्तु की कीमत लागत मूल्य से भी कम हो जाना।
226 पानी-पानी होना।
लज्जित होना।
627 कलेजा फटना।
व्यथित होना।
628 करेजा जुड़ना
संतुष्टि मिलना।
628 कतल के रात। निर्णायक रात।
629 सजन म साढ़ू, कलेवा म लाड़ू।रिस्तेदारी में साढ़ू सर्वाधिक प्रिय होता है।
630 अँगरी धरत-धरत बहाँ धरना।
हड़पने या अधिकार जमाने का प्रयास करना।

631 तेली टुरा अकड़घानी रे, गाँव म पेरे घानी रे,गली-गली घूमत हे, अउ मारत हे फुटानी रे।
सम्पन्न व्यक्ति का पुत्र गाँव में अत्याचर करता है।
632 जादा ल बटोरे अउ कम ल भुलाय।
अवश्यम्भावी नुकसान की आशंका हो तो कीमती सामानों की ही चिंता करना चाहिये।
633 पढ़े-लिखे बने करे, फेर तोर चाल म कीरा परे।
शिक्षित व्यक्ति के चरित्रहीन हो जाने पर प्रयुक्त हाना।
634 कनवा हे कानून अउ भैरा हे सरकार।
अंधा कानून।
635 उजराना।
रजस्वला के बाद शुद्ध होना।
636 गुरेरना।
आँख तरेरना।
637 लउठी दोस लगना।
गऊ हत्या का पाप लगना।
638 परिया परना।
बंजर पड़ना।
639 मर-मर पोथी पढ़े तिवारी, घोंडू मसके सोहारी।
मेहनत करने वाला भूखों मरता है परन्तु कामचोर मौज करता है।
640 रड़िया बइठे खटिया, बाम्हन बइठे गाड़ा। 
मरिया ल भीख नई मिले, मसके सोहारी गांडा। जरूरतमंद और योग्य व्यक्ति को उचित सम्मान नहीं मिलता है।
641 गांड़ा घर गाय नहीं बाय।
अयोग्य व्यक्ति के हाथ बहुमूल्य वस्तु लग जाना।
642 आज के न काल के बईहा पूरा साल के।
कष्ट देने वाला बारबार आता है।
643 बोंय सोन जामय नहीं, मोती फरे न डार, गे समय बहुरे नहीं, खोजे मिले न उधार।
अनुपयुक्त कार्य का फल नहीं मिलता।
644 हाय रे मोर बोरे बरा, गिंजर फिर के मोरे करा।
अंततः लौटकर आना।
645 हाय रे मोर मूसर, तैं नहीं त दूसर।
किसी और से काम चला लेना।
646 बईठन दे, त पीसन द।
किसी से बेगारी कराना हो तो पहले उसका सम्मान करें।
647 आँजत-आँजत कानी।
भलाई के लिये किये जाने वाले काम में बिघ्न आना।
648 जोगी के भीख म कऊँवा हग दीस।
समय विपरीत होने पर दुख मिलता ही है।
649 आल बहुरिया काल करे, काड़ी कोचक के घाव करे।
इच्छा के विरूद्ध आई हुई दुल्हन कलह के बहाने ढूँढती है।
650 दही के भोरहा कपसा ल लीले।
धोख होना।
651 घींव गंवागे खिचरी में।
परीश्रम से अर्जित बहुमूल्य वस्तु का हाथ से निकल जाना।
652 अड़हा बैइद परान घात।
नीम हकीम खतरा-ए-जान।
653 जहर खाय न महुरा खाय, मरे बर होय ता लोहारा जाय।
654 छुईखदान के बस्ती जय गोपाल के सस्ती।
655 गंडई के नेवता।
656 बेलगांव कस बईला धपोर दिस।
657 बहु बिहाय कोहका बोड़ झन जाय।
658 मातिस गोंड़ दिस कलोर, उतरिस नशा दांत निपोर।
मदपान करने के बाद गोंड़ जाति के लोग उदार हो जाते हैं।
659 रोड सुधर गे, फेर गोंड़ नई सुधरिस।
660 हाथी बर गेंड़ा, कोष्टिन बर खेड़हा।
661 ठेलहा बनिया मटकाय कनिहा।
निठल्ले लोगों के प्रति हाना।
662 चिट जात तेली घोरन जात कलार, कुर्मी जात मदन मोहनी घोरमुंहा जात मरार। 
जाति विषयक हाना।
663 गदहा सूर, न बगुला जती, बनिया मित्र, न बेसिया सती।
जिस प्रकार वेश्या सती नहीं हो सकती उसी प्रकार गधा वीर नहीं हो सकता, बगुला योगी नहीं हो सकता और बनिया किसी का मित्र नहीं हो सकता।
664 संहराय बहुरिया डोम घर जाय।
जिस पर गर्व करो वही धोखा दे जाता है।
665 आय देवारी राऊत माते।
समय आने पर सभी अपना महत्व प्रदर्शित करते हैं।
666 उजरिया बस्ती के कोसरिया ठेठवार।
अँधों में काना राजा।
667 जइसे दाऊ के बाजा तइसे नाऊ के नाचा।
दाम के अनुसार काम होता है।
668 गांडा के बछवा।
शोर और शरारत करने वाला।
669 हरियर खेती गाभिन गाय, जभे होय तभे पतिपाय।
खेत में खड़ी फसल और गाय के गर्भ में पल रहे बछड़े का भरोसा मत करो।
670 सामिल के खेती ल कोलिहा खाय।
सम्मिलात खेती का रखवाला कोई नहीं होता।
671 उत्तम खेती मध्यम बान, निर्धिन चाकरी भीख निदान।
672 कोरे-गांथे बेटी, नींदे कोड़े खेती।
673 कौंवा के कटरे ले ढोर नाई मरे।
674 टेटका के चिन्हारी बारी ले।
व्यक्ति की पहचान उसके पहनावे से हो जाती है।
675 राजा के मरगे हाथी, परजा के मरगे घोड़, राड़ी के मरगे कुकरी त एक बरोबर होय।
राजा का हाथी, प्रजा का धोड़ा और विधवा की मुर्गी का मरना एक समान है।
676 कनिहा टमड़ना।
सामथ्र्य की परीक्षा करना।
677 बुटरी गाय सदा कलोर।
नाटी महिला सदा जवान लगती है।
678 परोसी बुती सांप नइ मरे।
दूसरे के भरेसे काम नहीं होता।
679 सांप के मुड़ी, तिहाँ बाबू के झूलेना।
जानबूझका मुसीबत में डालना।
680 चील खोंदरा म मांस बॉचही।
असंभव। शोषक अपना काम करता ही है।
681 आठ हाथ खीरा, नौ हाथ बीजा।
किसी बात को बढ़ाचढ़ाकर कहना।
682 अपटे बन के पथरा, पगेरे घर के सील।
दूसरे पर क्रोध उतारना।
683 सब पाप जाय फेर मनसा पाप नई जाय।
वहम दूर नहीं हाता।
684 बोहिक बईला घर जिंया दमाद, मरे के बांचय जोते के काम।
बैल और घरजवाईं, दोनों की हालत एक जैसी होती है।
685 हाथी गिंजरे गाँव-गाँव, जेखर हाथी तेखर नांव।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
686 बिन आदर के पहुना, जेला देख गुर्राये। गोड़ धोये परछी म बइठे, कुकुर बरोबर खाये।
बिन बुलाए मेहमान का सदा अपमान होता है।
687 कका-बड़ा कांटा गड़ा, ममा-फूफू हाहा छूछू।
मामा-फूफू के भाइयों में अपेक्षाकृत अधिक प्रेम होता है।
688 मानिस पोरा, हेरिस मोरा।
समयानुकूल काम किया जाता है।
689 खेती धन के नाश, जब खेले गोसइया ताश।
घर का मुखिया ही जुआ खेलने का आदी हो तो धन-संपत्ति का विनाश अवश्यंभावी है।
690 चेथी खजवाना।
बहाना बनाना, अनाकानी करना।
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परिशिष्ट
1. गांड़ा गोहार पारना।
आवश्यकता से अधिक प्रचारित करना।
2. जइसे रानी के, तइसे कानी के।
सुंदर हो या कुरूप, धनी हो या निर्धन, औरत का शरीर समान होता है।
3. चोंगी-माखुर बर पूछना
आदर-सत्कार करना।
4. गोड़ धोय बर पानी देना।
स्वागत करना।
5. राम-राम नइ कहना।
बात नहीं करना।
6. भूंजे भांग नइ होना।
रूपया-पैसा नहीं होना
7. चिटपोट नइ करना।
मौन साध लेना
8. चाल म कीरा परना।
चरित्रहीन होना।
9. राख चुपर के निकल जाना।
गृहत्याग करना, साधु बन जाना
10. लइका ह जांघ म हग दिस ते जांघ ल कोनों नइ कांट के फेंके।
बच्चों की गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं।