गुरुवार, 25 जनवरी 2018

कविता

सरके दिमागवालों का सपना

पता नहीं
बुद्धि कभी-कभी इस तरह क्यों भटक जाती है
कभी घास चरने वली जाती है 
तो कभी पल भर में  इंगलैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया
और न जाने कहाँ-कहाँ की सैर कर आती है

न कहीं कोई रोकता-टोकता है
और न कहीं कोई पकड़कर जेल में ठूँसता है
धेला भी एक खर्च नहीं होता है 
और विश्व नागरिक होने का गुमान भी होता है

घरवाली कहती है -
’अरे! सठिया गये हो
या सरक गया है तुम्हार दिमाग
घर से बाहर न तो कभी निकले
न कहीं घूमते-घुमाते हो
अच्छे-खासे दिन का जबरन वाट लगाते हो।’

घरवाली का कहना जायज है
पर मुझे पता है
सरके दिमागवालों का सपना
कभी न कभी हकीकत में जरूर बदलता है।
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सोमवार, 22 जनवरी 2018

कविता

तीन कविताएँ


1. दिन का समय-सारणी

आदतन
हर सुबह की शुरुआत हम
पूजा की आरती की तरह
किसी अधिनायक की अभ्यर्थना से करते हैं

और इसी तरह
फिर दूसरे दिन की सुबह हो जाने तक
भूखे-नंगे, निचुड़ चुके जन के तंत्र को
फिर-फिर निचोड़नेवालों की ’सेवा में’
’नम्र निवेदन है’ से लेकर
’असीम कृपा हो’, की उक्ति के बीच के शब्दों में
खुद को नग्न गुलाम की तरह पेश करते चलते हैं

सही और साफ शब्दों में कहूँ?
दिन बदलते हैं
तारीखे बदलती है
मुखौटे की तरह जिसे धारणकर
काल और परिस्थियाँ बदलती है

और इसी तरह
तलवे चाटने की प्रतियोगिता का
प्रथम पुरस्कार मांगने की
हमारी अदाएँ भी बदलती हैं।
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2. जो है, जैसा है

अभी यहाँ जो है, जैसा है
अभी और यहाँ के हिसाब से है
अभी यहाँ जो है, जैसा है
कुछ-कुछ ही सही, यदि बदल सके
तो सब कुछ बदल सकता है।
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3. घटना और घटाना

घटना
कभी-कभी घटनेवाली
प्राकृतिक आपदाएँ होती हैं

घटाना
सतत चलनेवाली
राजनीतिक अदाएँ होती हैं

और आज की कहें तो
घटना और घटाना
एक खेल की तरह है
जिसमें अपार संभावनाएँ होती हैं।
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मंगलवार, 9 जनवरी 2018

व्यंग्य

2050 में

आजकल मेरा दिमाग सरकने लगा है। कभी-कभी नींद में भी सरक जाता है। आज ऐसा ही हुआ। नींद में मुझे 2050 के किसी प्रतियोगी परीक्षा में पूछे जानेवाले एक प्रश्न और प्रतियोगियों द्वारा लिखे गये उस प्रश्न के उत्तर की उत्तर पुस्तिकाएँ दिखने लगी जो इस प्रकार थी - ’’किसी प्राचीन ग्रंथ के इस अंश का अध्ययन कीजिए - ’लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींदभर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया।’ इस अंश पर आप अपने विचार तथ्यात्मक रूप में प्रस्तुत कीजिए।’’ 
प्रतियोगियों के उत्तर इस प्रकार थे -

1. दिये गये सेन्टेंस की स्क्रिप्ट और लैंगुएज से पता चलता है कि यह अधिक ओल्ड नहीं है। लगभग ट्वन्टीएथ सेंचुरी के फोर्थ-फीफ्थ डेकेड का लगता है। 

2. इस सेन्टेंस के एकोरडिंग होल ह्यूमेन लाइफ को तीन सेगमेंन्ट्स - बचपन, जवानी और बुढ़ापा में डिवाइड किया गया है। 

3. इस सेन्टेंस के फर्स्ट सेगमेंन्ट में बचपन और खेल का रिफरेंस दिया हुआ है। उस समय ह्यूमेन लाइफ में लोग पहले बचपन की स्टेज से गुजरते थे। इतना ही नहीं, बचपन को खेल में वेस्ट भी करते थे। क्या बच्चों के लिए उस समय कंप्यूटर जैसी किसी इलेक्ट्रानिक डिवाइस बनाई जा चुकी थी? यह मोस्ट अमेजिंग इंन्सिडेंट लगता है। द फर्स्ट थिग - उस समय बचपन को इतना इम्पोर्टेन्स दिया जाता था, एण्ड सेकंड इज, उस समय के बच्चों के पास खेलने के लिए खेल भी होते थे और टाइम भी। यह एक हैरान करनेवाली इन्फरमेशन है।

4. इस सेन्टेन्स के दूसरे क्लाज में जवानी और नींद का रिफरेंस मिलता है। यह इन्फरमेशन तो और भी अनबिलिविएबल है कि उस समय के जवानों को नींद आती थी। वे सो भी सकते थे।

5. इस सेन्टेंस के अंतिम क्लाज में बुढ़ापा देखकर रोने का रिफरेंस है।  लगता है कि उस समय बूढ़ों को इम्पोरटेन्स दिया जाता था। उन्हें बर्डन और बेकार नहीं समझा जाता था। एण्ड दिस इज रिमार्केबल थिंग - चाहे रोकर ही सही, उस समय के बूढ़े अपना जीवन जी लेते थे। 

6. कन्क्लूजन यह कि यह सेन्टेंस टू मच अमेजिंग एण्ड अनबिलीविएबल इन्फरमेशन्स से भरा हुआ है। इस सेन्टेन्स में दी गई इन्फरमेशन्स पर इन्टेन्सिव रिसर्च की जरूरत है। रिअली, क्या उस समय इस तरह की बातें होती होंगी?
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