रविवार, 28 अप्रैल 2019

अनुवाद

उंघासी - अंतोन चेखव

(अनुवाद हिंदी ले छत्तीसगढ़ी म। - कुबेर)

रात के बेरा रिहिस। एक ठन खोली म एक झन तेरा साल के नानचुक नोनी, वारिका ह एक ठन झूलना ल डोलावत बइठे रहय। अउ मद्धिम आवाज म लोरी गुनगुनावत रहय, ’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा।’’ 

वो खोली के एक कोन्टा म कोनों देवता के एक ठन फोटू टंगाय रहय, जेकर आगू म हरियर अंजोरवाला एक ठन बत्ती जलत रहय। खोली के एक कोन्टा ले दूसर कोन्टा तक एक डोरी बंधाय रहय जउन म बच्चा के पोतड़ा अउ करिया रंग के एक ठन लंबा पैजामा टंगाय रहय। खोली के छत म हरियर अंजोर के बड़े गोल चकता कस धब्बा परत रहय। डोरी म टंगाय पोतड़ा अउ लंबा पैजामा के लंबा-लंबा छंइहा मन खोली के आतिसदान म, झूलना म अउ वारिका के ऊपर परत रहय। बत्ती के लौ ह जब अचानक फड़फड़ाय तब छत के वो हरियर धबा ह अउ खोली म पोतड़ामन के बनल छंइहा मन ह अइसे फड़फड़ाय लगे मानों बहुत तेज हवा चलत होय अउ जेकर ले वोमन ह डोलत होय। खोली म दम घुटत रहय अउ उहाँ गोभी के सुरवा अउ जुन्ना पनही के बास, जइसे कि पनही के दुकान मन म आथे, आवत रहय। बच्चा ह रोवत रहय अउ रो-रो के वोकर नरी ह बइठ गे रहय। रो-रो के बच्चा ह थक गे रहय तभू ले वो ह सरलग रोतेच् रहय। पता नहीं वो ह कब चुप होही? 

वारिका के पलक मन ह नींद के मारे भारी हो गे रहय अउ आँखी ह नींद के मारे मुंदाय परे। वारिका ह अपन आँखीं मन ल उघारे के कोसिस करय तभू ले वोकर आँखीं मन मुंदइच् जावय। वोकर नरी ह रहि-रहिके ओरम जावय। वोकर नरी म पीरा भर गे रहय। वोकर चेहरा ह सुखा के कठवा कस दिखत रहय। न तो वोकर ओंठमन ह खुलय अउ न वोकर आँखीं मन ह खुलय। तभोे ले वो ह नींद म गुनगुनवात रहय, ’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा, तोर बर मंय ह हलुवा पकाहूँ .....।’’ 

आतिसदान डहर ले एक ठन झिंगरा के नरियाय के करकस आवाज आवत रहय। बगलवाले खोली डहर ले वोकर मालिक-मालकिन अउ इहाँ रहिके काम सिखइया अफानासी के खर्राटा के आवाज आवत रहय। झुलना ह अइसे चरमरात रहय कि मानो वहू ह झूलत-झूलत असकटा गे होय अउ अब झूले से इनकार करत होय। वारिका के सरीर म झुरझुरी भर गे रहय। सब मिला के अइसे लगत रहय कि रात के रानी ह संसार भर के परानी मन ल सुताय खातिर लोरी गावत होय कि जेला सुन के कोनों ल घला ढलंगते भार नींद आ जाय। पन लोरी के ये धुन ह वारिका के मन म कंझावट पैदा करत रिहिस काबर कि वोला सुनके वहू ल नींद आवत हे, जबकि वोला सुतना मना हे। मालिक नइ ते मालकिन ह वोला सुतत देखही त वोकर जोरदार पिटाई हो जाही। 

बत्ती के लौ ह अचानक फड़फड़ाय लगिस। छत के गोल, हरिय बुंदका ह घला फड़फड़ाय लागिस। पोतड़ा अउ पैजामा के छंइहाँ मन ह वोकर अधखुल्ला आँखीं मन म नाचे लागिस। उंघास ले भरे वोकर  दिमाग म नाना परकार के सपना झलके लगिस। सपना म वोला अगास म बादलमन ह जोर-जोर से दंउड़त, चीखत-चिल्लावत, एक-दूसर के पीछू भागत लइकामन के समान दिखे लगिस। तभे हवा चले लगिस अउ बादलमन ह गायब हो गिन। 

सपना ह बदल जाथे। अब वो ह खूब लंबा-चैड़ा सड़क देखत हे। सड़क म सबो कोती चिखलच् चिखला हे। टांगा अउ बघ्घी के रेला लगे हे। खूब भीड़ हे। मनखेमन के रेला लगे हे। लोगन अपन पीठ म गठरी अउ झोला लादे आवत-जावत हें। चारों डहर धुंधरा बगरे हे अउ धुंधरा म मनखेमन ह छंइहाँ बरोबर दिखत हें। सड़क के आजूबाजू घनघोर जंगल हे। अचानक मनखेमन के भीड़ ह अउ अपन पीठ म झोला अउ गठरी लादे मनखे मन ह अपन-अपन बोझा अउ गठरी सहित चिखला म फिसल-फिसल के गिरे लगथें। वारिका ह वोमन ले पूछथे, ’’तूमन ये का करत हव?’’

वोमन कहिथें, ’’हमला नींद आवत हे अउ हमन सुते बर ढलंगत  हन।’’ ये कहिके वोमन सुत जाथें। सड़क के दूनो बाजू लगे बिजली अउ टेलीफोन के तारमन म गजब अकन कँउआ अउ नीलकंठ बइठे काँव-काँव, चाँव-चाँव करत हें अउ सुतइया मनखेमन ल सुतन नइ देवत हें। वारिका ह फेर बुदबुदाय लगथे, ’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा, तोर बर मंय ह हलवा पकाहूँ .....।’’

अब वो ह दूसर सपना देखे लागथे। वो ह एकठन बंद अउ अंधियारी खोली म बइठग हे। वोकर मरे बाप येफिम स्पितनाक ह खोली म भुँइया म परे तलफत हे। वो ह वोला दिखत भले नइ हे फेर वोकर आवाज ह सुनाई देवत हे। वोकर छटपटई के आवाज ह घला वोला सुनावत हे। बाप ह वोला बताय रिहिस कि वोकर पेट के फोरा ह फुट गे हे अउ वोकर पेट म भयानक दरद होवत हे। दरद के मारे वोकर बाप ह बोल नइ सकत हे, खाली हफरत हे अउ दांत ल कटकटावत हे, तबला बाजे कस - कट कट कट। वोकर माँ पिलागेया ह दंउड़त-दंउड़त मालिक घर गे हे, ये बतायबर कि वोकर पति ह मरत हे। माँ ल गेय बहुत समय हो गे हे अउ अब तक वोला लहुट के आ जाना रिहिस। वारिका ह अंगीठी तीर ढलंगे हे अउ अपन माँ के रद्दा देखत हे। बाप के दांत कटकटाय के आवाज ह वोला साफ-साफ सुनावत हे। तभे वोकर झोपड़ी तीर एक ठन घोड़ा गाड़ी ह आके खड़ा होइस। घोड़ा गाड़ी ले एक झन आदमी उतरिस। ये ह विही डाक्टर हरे जउन ह वोकर मालिक घर कोनों मरीज के इलाज करे बर सहर ले आय हे। डाक्टर ह झोपड़ी के दुवारी ल ढकेल के भीतर आइस। घुप्प अंधियार रिहिस। हाथ ल हाथ ह नइ दिखत रहय फेर डक्टर के खाँसी अउ दरवाजा के चरमराय के आवाज ले पता चलिस।

’’मोमबत्ती जलाव।’’ डाक्टर ह किहिस।

’’वा.. वा..  ।’’ येफिम ह बुदबुदा के कुछू केहे के कोसिस करिस। पिलागेया ह दंउड़त-दंउड़त अंगीठी तीर के आंट तीर गिस अउ माचिस ल खोजे के कोसिस करिस। छिन भर चुप्पी छाये रिहिस फेर डाक्टर ह अपन जेब ल माचिस निकाल के जलाइस। 

’’एक मिनट साहब, बस एक मिनट।’’ पिलागेया ह चिचोरी करिस अउ दंड़त झोपड़ी ले निकल गिस अउ तुरत मोमबत्ती के एकठन टुकड़ा धर के लहुट गिस। येफिम के गाल ह लाल हो गे रहय अउ वोकर आँखीं मन ह अइसे चमकत रहय मानो वो ह डाक्टर ल पहिचान डरिस होही। वोकर निगाह मन अइसे ताकत रहंय जइसे वो ह डाक्टर अउ झोपड़ी के वो पार कोनों रहस्यमय जिनिस देख लिस होही।

’’का हो हे, तोला का हो गे हे?’’ डाक्टर ह येफिम ले पूछिस, ’’ओह, बहुत दरद होवत हे क? अबड़ दिन के बीमार हस क?’’

’’मरत हंव सरकार, मोर दिन पूर गे हे। अब तो मरहूँ तभे आराम मिलही।’’ येफिम ह किहिस।

’’अरे! बेवकूफ जइसे बात झन कर। मंय ह तोला बने कर दुहूँ।’’

’’जइसे आपके मरजी सरकार। आपके मेहरबानी होही। वइसे मंय ह जानथंव सरकार, आवल मौत ल कोनों ह नइ रोक सकय।’’

डाक्टर ह पंदरा मिनट ले येफिम के बीमारी के जांच करिस अउ सोझ खड़े हो गिस। पल भर ठहर के किहिस, ’’अब मंय ह कुछू नइ कर सकंव। तोला अस्पताल जाय बर परही। उहाँ डाक्टरमन ह तोर आपरेसन करहीं। तुरंत के तुरंत तोला जाय बर परही। बहुत देर कर डारे हस। घबर झनी। तुरंत, अभीचे तंय ह अस्पताल चले जा।’’
’’पन कइसे सरकार? हमर कना कोनों साधन नइ हे।’’ पिलागेया ह किहिस।

’’तंय फिकर झन कर। मंय ह अभी तुंहर मालिक ल जा के कहत हंव। वे ह घोड़ा भेज दिही।’’ कहत-कहत डाक्टर ह झोपड़ी ले निकल गिस।

पिलागेया ह मोमबत्ती ल बुझा दिस। येफिम ह दांत ल फेर किटकिटाय लगिस। तकरीबन आधा घंटा बाद दुवारी म एक ठन टांगा के आवाज आइस। येला येफिम ल अस्पताल लेगे बर वोकर मालिक ह भेजवाय रिहिस। येफिम ह तियार हो के तुरते गाड़ी म बइठ गिस।

बिहान हो गिस। पिलागेया ह घर म नइ दिखिस। वो ह अपन पति ल देखे बर अस्पताल चल देय रिहिस। 

कहुँचो एक झन बच्चा ह रोवत रिहिस अउ वारिका ल अपने आवज म लोरी सुनात रिहिस, ’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा, .....।’’

थोरिक देर म वोकर माँ, पिलागेया ह लहुट के आ गिस। वो ह रहिरहि के अपन छाती म सलीब के निसान बनाके कहत रहय, ’’रातकुन तो सब बने-बने रिहिस। डाक्टरमन ह वोला बने कर देय रिहिन। फेर बिहिनिया होवत-होवत वोकर आत्मा ह भगवान घर चल दिस। भगवान ह वोकर आत्मा ल सांति देय। डाक्टरमन कहत रिहिन, अबड़ देरी करेव। तुम्हला बहुत पहिली आ जाना रिहिस।’’ 

ये सुन के वारिका ह झोपड़ी ले निकल गिस अउ रोय लगिस। 

विही समय वोकर चेथी ल कोनों ह जोरदार मारिस। वारिका ह भोजपत्र के पेड़ म जा के टकरा गिस अउ वोकर आँखींमन ह उघर गिन। वोकर सपना ह टूट गिस। वो ह आँखी उठा के देखिस, आगू म वोकर मालिक मोची ह खड़े रहय अउ वोला बखानत रहय, ’’का करत हस रे झिथरी, बेसरम, लइका ह रोवत हे अउ तंय ह नींद भांजत हस।’’ वो ह वोकर चेथी म फेर जोरदार चांटा मारिस।

वारिका ह झकनका के अपन मुड़ी ल झटकारिस अउ फेर लोरी गाय लगिस, ’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा, तोर बर मंय ह हलुवा पकाहूँ .....।’’
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पलभर बीतिस होही, छत के हरियर, गोल धब्बा ह फेर झिलमिलाय लगिस; बच्चा के पोतड़ा अउ पैजामा के लंबा-लंबरा छँइहाँ मन ह फेर डोले लगिन। वारिका के आँखींमन ह फेर मुंदाय लगिन। नींद ह वोला फेर चमचम ले गरस लिस अउ वो ह फेर पहिलीवाला सपनामन ल देखे लगिस। विही चिखला म लतपथ सड़क अउ पीठ म झोला अउ गठरी लादे मनखे जउनमन अपन बोझा ल फेंक के सड़क म घोलंड-घोलंड के सुतत हें, वोला फेर दिखे लगिस। वोमन ल सुतत देख के वहू ल नींद आय लगिस। वो ह नींदभर सुतना चाहथे फेर वोकर माँ पिलागेया ह वोकर संग रेंगत हे अउ वोला जल्दी-जल्दी रेंगे बर झंझेटत हे। दुनों झन भीख मांगे बर सहर कोती जावत हें। सड़क रेंगइया मनखे मन के आगू हाथ लमा-लमा के वोकर माँ ह कहत हे, ’’यीशु के नाम म कुछू दे देव भइया हो। खुदा तुमला बरकत दिही, तुमला दुनिया भर के सुख दिही। गरीब के मदद करो भइया।’’

’’लइका ल एती लान, एती लान।’’ वोला जाने-पहिचाने आवाज सुनाइस। ’’लइका ल धर के एती आ,,। नइ सुनावत हे क?’’ विही आवाज ह वोला फेर सुनाई दिस। आवज म गुस्सा भरे हे। ’’हरामी, तंय ह सुतत हस।’’ 

वारिका ह डर के मारे कांपे लगिस। वो हर घूम के चारों मुड़ा देखिस अउ अनुमान लगाय के कोसिस करिस कि आखिर का हो गे, ये आवाज ह आवत कोन डहर ले हे। वोला वो सड़क, सड़क म सुतइया मनखे अउ वोकर माँ पिलागेया ह दिखना बंद हो गे। उहाँ तो सिरिफ वोकर मालकिन ह खड़े हे जउन ह लइका ल दूध पियाय बर आय हे। 

जतका देर ले भइसी सरिख वोकर मालकिन ह लइका ल दूध पियावत रिहिस, वो ह चुपचाप, नरी गड़ियाय खड़े रिहिस।

खिड़की के बाहिर दिन के नवा उजास बगरे लग गे हे। खोली म हिलत छँइहामन ह घुमलातत हें अउ छत के ऊपर के गोल हरियर घब्बा ह पींवरा परत जात हे। अब बहुत जल्दी बिहिनिया होनेवाला हे।

’’ले, लइका ल धर।’’ अपन बलाउज के बटनमन लगावत वोकर मालकिन ह किहिस, ’’ये हर अभी रोवत हे, येला कइसनो करके मना अउ सुता।’’ 

वारिका ह लइका ल अपन गोदी म पा लिस अउ वोला झुलना म सुता के झुलना ल डोलाय लहिस। छत के हरियर धब्बा अउ खोली के छंइहा मन ह अब पूरा-पूरा दिखना बंद हो गे। खोली म अब वोला नींद म जकड़नेवाला कोनों जिनिस नइ नजर आवत हे। तभो ले वारिका के आँखींमन ह मुंदाय परत हे। वो ह कइसनों करके सुतना चाहत हे। वो ह झुलना के पीछू डहर वोकर एक कोर म आपन मुड़ी ल टेका के अपन हाथ-गोड़ ल हला के नींद ल भगाय के कोसिस करे लगिस। खड़े हो के अँटियाइस। तहू ले वोकर आँखींमन ह मुंदायेच् परे। वोकर माथ ह तको पिराय लगिस। 

’’वारिका, चल चूल्हा बार।’’ अचानक मालिक के आवाज सुनइस। ’’अब उठे अउ काम करे के बेरा हो गे हे।’’
वारिका ह झूलना तीर ले उठिस अउ घर के पिछवाड़ा म बने लकड़ी टाल कोती भागिस। अब वो ह प्रसन्न हे काबर कि एक जघा बइठे रहय म नीद ह सताते अउ एती-ओती दंउठे-भागे अउ काम करे म नइ सताय। वो ह लकड़ी लान के चूल्हा सिपचाय लगिस। वोला अइसे जनाइस कि रातकुन वोकर मुँहू-कान ह कठवा सरीख हो गे रिहिस हे अउ अब वो मन ह फेर हरिया गे हे, मुुलायम हो गे हे अउ नींद ह भाग गे हे। 

’’वारिका, समोवार ल साफ कर दे।’’ मालकिन के आदेस सुनाई दिस। वो ह एकदम गुस्सा म हे।

अभी वारिका ह समोवार के सफाई करतेच् रिहिस कि दूसरा हुकुम मिल गे, ’’वारिका, मालिक के गमबूटमन ल साफ कर दे।’’

वारिका ह जमीन म बइठ के गमबूटमन ल पोंछे लगथे। गमबूटमन ल पोंछत-पोंछत वो ह सोचे लगथे, ’कतका अच्छा होतिस कि वो ह ये गमबूट म खुसर के ढलंग जातिस अउ नींदभर सुत लेतिस।’ अउ गमबूट ह धीरे-धीरे फूले़े लगिस अउ फूलत-फूल़त वो ह खोलीभर म पसर गिस अउ बिछौना म बदल गिस। अब खोली भर म बिछौना बिछे हे। बूट ल साफ करे के बुरुस ह वोकर हाथ ले छूट के गिर गिस। 

वो ह फेर सचेत हो गिस। आँखी ल उघार के चारों मुड़ा देखे लगिस। कोनों चीज ह वोला साफ-साफ दिखत नइ हे, सब एती-वोती घूमत हें। वो ह जिनिसमन ल साफ-साफ देखे के कोसिस करे लगिस।

’’वारिका, बाहिर सिढ़ियामन ह कतका गंदा हो गे हे, धो के जरा साफ तो कर दे। अतका गंदा सीढ़ियामन ल नहक के दुकान जाय म मोला सरम आथे।’’ मालिक ह आदेस दिस।

वारिका ह सीढ़ियामन ल धो के पोंछे लगिस। दुकान म जा के वोला बहरे लगिस अउ काम खतम करके घर कोती आ गिस। 

अभी वोला बहुत सारा काम करना हे। काम के मारे वोला पलभर के फुरसत नइ हे। फेर येला छोड़ के वो ह जाय तो जाय कहाँ। दूसर काम ह अतका आसान नइ हे जतका घर के काम ह आसान होथे। वो ह रसोई खोली म आ के आलू छिले बर बइठ गिस। आलू छीलत-छीलत वोकर नरी ह फेर ओरम गिस। नींद के मारे आँखीं मन ह फेर मुंदाय लगिस। वोकर नजर म आलूच् आलू झूले लगिस। चाकू ह छूट के गिर गिस। फेर वोकर कान ह बाजत हे। 
कुछू न कुछू बड़बड़ावत अउ अपन गाऊन के आस्तीन ल ऊपर चघा के, रखोईखोली म चक्कर लगावत, मालकिन के आवाज ह सुनावत हे। सब के नास्ता-पानी हो चुके हेे अउ मंझनिया के खाना बनाय के तइयारी हो गे हे। घर के साफ-सफाई के काम घला निबट गे हे अउ कपड़ामन ल धोय के दुखदायी काम ह चलत हे। वारिका ल सुतना हे, कुछू काम नहीं, खाली सुतना हे। काम करत-करत वोकर इच्छा होथे कि सब कामधाम ल छोड़के वोहा भुंइया म ढलंग जाय।

धीरे-धीरे दिन बीत जाथे अउ खिड़कीमन कोती ले सांझ के मुंधियारी ह आ-आके घर म समाय लगथे। वारिका ह अपन कनपटीमन ल मसक के देखथे। अइसे जनाथे कि वोकर सरीर ह सुखा के कठवा हो गे हे। अचानक खिड़की ह खुल जाथे। बाहिर म चारों डहर अंधियार बगर चुके हे। अंधियार ह वोला अबड़ सुहाथे काबर कि वोमा वोकर आँखींमन ल आराम मिलथे। सोचथे कि वोला अब जल्दी सुते बर मिल जाही। 

फेर सुतना वोकर किस्मत म नइ हे। घर म सगा आ गिन हें अउ मालकिन ह चिलवत हे, ’’वारिका, समोवार तइयार कर।’’ उंकर समोवार ह छोटकुन हे। सगामन के चहा-पानी खतम होय के पहिली वोला पाँच घांव ले पानी गरम करना परिस हे। 

चहा खतम होय के बाद वारिका ल फेर आदेस मिल गे, ’’वारिका, भागत जा अउ तीन बोतल बीयर खरीद के लान।’’ वारिका ह पइसा धर के बीयर दुकान कोती भागिस। वो एकदम पल्ला भागे के कोसिस करथे। भगई ह वोला बने लगथे। भागे म वोला नींद नइ आय। वो ह सरलग भागत रहना चाहथे जेकर ले नींद ह वोला सता मत सके। वोला रहि-रहि के आदेस मिलत हे, ’’वारिका, जा तो वोद्का के बोतल खरीद के लान। वारिका, बोतल खोले के सूजा कहाँ हे, लान तो।’’

आखिरकार सगामन चलेगिन। घर के सबो बत्तीमन ल बुझा दे गिस। मालिक अउ मालकिन, दुनोंझन सुतेबर अपन खोली म चलदिन। मालकिन ह जावत-जावत लइका ल वारिका ल धरा के किहिस, ’’ले धर, येला रोवन झन देबे। झुलना ल बराबर झुलावत रहिबे, ताकि वोकर नीद परे रहय।’’

आतिसदान म बइठे झींगुर फेर झनझनाय लगिस। देवता के फोटू के आगू जलत बत्ती ह फेर फड़फड़ाय लगिस। छत के ऊपर पड़नेवाला हरियर गोल धब्बा अउ डेरी म टंगाय पोतड़ा अउ पैजामामन के छंइहाँमन फेर वोकर आँखीं-आँखीं म डोले लगिन। नींद म वोकर आँखीं मन ह करुवा गे हे। वोकर दिमाग ह घूमत हे। नींद ह आ के वोला फेर जकड़े के कोसिस करत हे। वोकर होठ मन ह हालत हे अउ आवाज आवत हे, ’’’’आ जा रे निंदिया, आ जा, आ के मोर मुन्ना ल सुता जा, तोर बर मंय ह हलुवा पकाहूँ .....।’’

थोरिक देर बाद लइका ह फेर रोय लगिस। वोकर रोवई ह जारी हे अउ वो ह रोवत-रोवत थक गिस। वारिका के आँखींमन म कालीवाला सपनामन अउ दिखे लगिन। एकठन सड़क हे। सड़क ह चिखला ले भरे हे। बोझा अउ गठरी धर के रेंगइया मनखेमन ह अपन-अपन बोझा अउ गठरीमन ल फेंक के सड़क म ढलंगे हे। सबझन खर्राटा भरत हे। माँ पिलागेया अउ बाप फेहिम ह फेर वोकर आँखींमन म झूले लगिन। वारिका ह ये सबमन ल देखत हे, सबमन ल पहिचानत हे फेर वो ह अतका नींद म हे कि वोकर हाँथ-गोड़ ह काम नइ करत हे। 

ये नींद ह वोला जीयन नइ देवत हे। वारिका ह चारों मुड़ा नजर घुमा के देखत हे अउ अइसे चीज खोजत हे जउन ह वोला जीयेबर सहायता करे, जीये बर वोला ताकत देय। वोकर अंग-अंग ह थकान के मारे टूटे परत हे। वो ह जागे के भरपूर कोसिस करत हे। झत के गोल हरियर धब्बा ह फेर वोकर दिमाग म घूमे लगथे। लइका ह सरलग रोये जावत हे। वोला लगिस कि लइकच् ह वोकर असली दुस्मन हरे। लइकच् ह वोला जीये बर नइ देवत हे।

वोकर असली दुस्मन कोन हरे ये ह अब वोला समझ म आ गे हे। वोला हँसी आ गिस। अतका नानचुक बात ह वोला काबर समझ में नइ आवत रिहिस? वोकर ये समझ ऊपर, आसिदान म बइठे झींगरा, छत के गोल, हरियर धब्बा अउ पोतड़ा अउ पैजामा के छंइहाँमन ल घला अचरज होय लगिस। वोकर असली दुस्मन लइकच् ह हरे, ये खतरनाक विचार ह वोकर दिमाग म आ के बस गे हे। 

वो ह स्टूल ले चुपचाप उठिस अउ मुसकाय लगिस। वोकर चेहरा ह खुसी के मारे चमके लगिस। थोरिक देर वो ह खोली म एती-वोती चक्कर काटिस। वोला लगिस कि वोकर परेसानी के हल वोला मिल गे हे अउ अब वो ह ये झंझट ले छुटकारा पा सकथे जउन ह वोकर हाथ-गोड़ बांध के रखे हे। वो ह लइका गे टोंटा ल मसक देही अउ वोला ये बंधना ले छुटकारा मिल जाही। न बांस रही अउ न बांसुरी बजही। वो ह ऊपर डहर छत के गोल हरियर धब्बा कोती देख के कुछू किहिस अउ हाँसत-हाँसत लइका के टोंटा ल अपन दुनों हाथ के मुट्ठी म कंस के पकड़ लिस।

अउ जल्दी से आ के वो ह भुंइया म ढलंग गिस। वो ह मनेमन हाँसत हे। एकदम खुस हे कि अब वो ह आराम से नींदभर सुत सकथे। जल्दी वोकर आँखींमन म नींद ह आ के समा गिस अउ वो ह मुरदामन कस आराम से सुत गिस।
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गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

अनुवाद

6. सरत - अंतोन चेखव

(ये कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद कहानी के हिंदी अनुवाद ले करे गे हे। - कुबेर)

सरद रितु के एक घनघोर अँधियारी रात के बात आय। सहर के एक झन साहूकार, जउन ह अब उमर के चैथापन म अपन पुराना दिन के सुरता कर-करके दिन ल गुजारत रहय, अपन पढ़े-लिखे के खोली म उदास हो के टहलत रहय। वोला पंदरा साल पहिली के सरद पूर्णिमा के रात के सुरता आवत रहय जब वो हर जवान रिहिस, अउ अपन मित्र अउ सहर के जाने-माने विद्वान, वकील, अउ साहित्यकार मन ल जोरदार दावत देय रिहिस। 

वोला सुरता आइस कि वो पार्टी म जुरियाय जम्मों विद्वान मन ह अलग-अलग विसय ऊपर बड़ा रोचक वाद-विवाद करत रहंय अउ आखिर म बात इहाँ आ के अटक गे रिहिस कि अपराधीमन ल मौत के सजा देना उचित हे कि अनुचित हे। मेहमान मन म कतरो विद्वानमन मौत के सजा के विरोधी रिहिन। उंकरमन के मत रिहिस कि मौत के सजा के प्रथा ल खतम कर देना चाही काबर कि ये ह एक सभ्य अउ पढ़े-लिखे समाज बर असोभनीय अउ अनैतिक प्रथा हरे। वोमन म बहुत अकन विद्वानमन के मत रिहिस कि अपराधी मन ल मौत के सजा न दे के आजीवन कैद के सजा देना ही उचित अउ पर्याप्त हे। 

मेजबान साहूकार महोदय ह घला बीच-बहस म अपन विचार रखिस - ’’वइसे तो मोला न मौत के सजा के कोनों अनुभव हे अउ न आजीवन कैद के, तभो ले मोर विचार म मौत के सजा ह आजीवन कैद के सजा ले जादा अच्छा हे। काबर कि मौत के सजा म आदमी के मौत ह तुरते हो जाथे, तकलीफ पलभर के होथे जबकि आजीवन कैद म आदमी ह तिल-तिल करके मरथे। अब बतावव कि कोन सजा ल जादा दयालू अउ मानवीय माने जाही, जेमा पलभर के तकलीफ म मौत मिल जाथे वोला कि जउन म आदमी ह जीवनभर तड़प-तड़प के मरथे तउन ल?’’

एक झन मेहमान ह किहिस - ’’दुनों सजा ह अनैतिक हे। दुनों के एके उद्देस्य हे, आदमी के जीवन ल खातम कर देना। सरकार ह जीवन देनवाला अउ जीवन लेनेवाला कोनों भगवान नोहे। वो ह जब कोनों ल जीवन नइ दे सकय तब ककरो जीवन लेय के घला वोला अधिकार नइ हे।’’

पार्टी म एक झन पचीस साल के जवान वकील घला आय रिहिस। वोकरो राय पूछे गिस। वोकर कहना होइस कि - ’’मौत के सजा होय कि आजीवन कैद के सजा, दुनों ह अनैतिक हे। तभो ले, कोनों यदि मोला दुनों म एक ठन ल चुने बर कही त मंय ह आजीवन कैद ल चुनहूँ। मरे ले तो कोनों तरीका ले जीना ल मंय ह अच्छा मानथंव।’’

वकील के ये बात ऊपर जोरदार बहस छिड़ गे। घर के मालिक, साहूकार महोदय, जउन ह वो समय जवान रिहिस अउ एकदम चंचल प्रकृति के मनखे रिहिस, एकदम से गुस्सा हो गे। वो ह टेबल ऊपर जोरदार मुक्का जमाइस अउ किहिस के, ’’तंय ह गलत बात कहत हस। मंय सरत लगा सकथों, पाँच साल घला तंय ह जेल म नइ रहि सकबे।’’

वोकर बात ल सुन के जवान वकील ह किहिस - ’’यदि तंय ह सरत लगाबे ते पाँच साल ल कोन ह कहय, मंय ह पंदरा साल जेल म रहि के दिखा सकथंव। बता, सरत लगाबे क?’’

’’पंदरा साल। मोला सरत मंजूर हे। मंय ह दू करोड़ के सरत लगावत हंव।’’ साहूकार ह जोसिया के किहिस।

’’बात पक्का हो गे। तंय ह दू करोड़ के दांव लगावत हस अउ मंय ह अपन पंदरा साल के अपन जीवन के स्वतंत्रता के दांव लगावत हंव। अब तंय ह अपन बात ले मुकर नइ सकस।’’ जवान वकील ह किहिस।

अउ ये तरीका ले उंकर बीच एक बेहूदा अउ उटपुटांग सरत पक्का हो गे। धन ह साहूकार ल सनकी, बिगड़ैल अउ घमंडी बना देय रिहिस। वोकर तीर पइसा के कोनों कमी नइ रिहिस। वो समय वोकर बर दू करोड़ ह एकदम मामूली बात रिहिस। वोमन जब खाना खायबर बइठिन तब वो साहूकार ह वकील संग मजाक करिस, ’’श्रीमानजी, अभी घला समय हे, चेत जा। मोरबर तो दू करोड़ ह कुछू नो हे, फेर तोर बर अपन जवानी के तीन-चार बछर ल खोना मायने रखथे। मंय ह तीन-चार बछर ये पाय के कहत हंव कि मोला पक्का बिसवास हे कि येकर ले जादा दिन तंय ह कैद म नइ रहि सकस। तंय ये बात ल झन भूल कि मुक्ति अउ बंधन म जमीन आसमान के फरक हे। जब हार मान के तोर मन म मुक्ति अउ सुतंत्रता के बिचार आही, तब तोला जेल के जीवन ह नरक के समान लगही। मोला तो तोर ऊपर बड़ दया आवत हे।’’

 अउ आज वो साहूकार ह विही सरत अउ विही दिन के बात ल सोच के बेचैन होवत हे। वो हर खुद ले सवाल करिस कि आखिर मंय ह अइसन सरत लगायेंवच् काबर? येकर ले कोन ल फायदा होइस? वो हर अपन जीवन के सबले सुंदर पंदरा साल ल जेल म नस्ट कर दिस अउ मंय ह दू करोड़ रकम ल पानी म फेंक देंव। येकर ले का लोग-बाग लये पता  चल जाही कि मौत के सजा ले आजीवन कैद ह बेहतर हे कि नइ हे? ये तो एकदम बकवास हे। वो दिन मोर ऊपर अमीरी के सनक चढ़े रिहिस अउ वो वकील ऊपर पइसा कमाय के घोर लालच समाय रिहिस।

वो साहूकार ल यहू सुरता आवत रहय कि वो दिन पार्टी पूरा होय के बाद जेल म रहय बर नियम तय होय रिहिस अउ इकरारनामा बना के वोमा दस्तखत करे गे रिहिस जेकर अनुसार वकील ल जेल के पहिली दिन से आखरी दिन तक साहूकार के बगीच के बीच म बनल एक ठन खोली म सख्त निगरानी म रहय बर पड़ही। पंदरा साल तक वो ह ककरो ले न तो बात कर सकय अउ न ककरो ले मिल सकय। वो ह न तो अखबार पढ़ सके अउ न वोकर नाव से आवल कोनों चिट्ठी-पतरी ल पढ़ सकय। पर मांगे म वोला बजाय बर कोनों घला बाजा मिल सकथे। पढ़े बर किताब मिल सकथे। चिटृठी-पतरी लिख सकथे। सराब अउ सिगरेट पी सकथे। कोनों चीज के जरूरत पड़े म वो ह खोली म बनल एकलौता खिड़की डहर ले चुपचाप कागज म लिख के दे सकथे। बाजा, किताब, सराब, सिगरेट वो ह जतका मांगही, वोला खिड़की डहर ले दे दिये जाही।

इकरारनामा म हर छोटे-छोटे ले छोटे बात ल लिखे गे रिहिस जेकर सेती जेल ह कालकोठरी बराबर हो गे रिहिस। इकरारनामा के मुताबिक वो वकील ल 14 नवंबर 1870 के रात बारा बजे ले 14 नवंबर 1885 के रात के बारा बजे तक, पूरा पंदरा साल जेल म रहे बर पड़ही। इकरारनामा म लिखाय कोनों घला सरत के उलंघन होय म, जइसे कि दो मिनट के फरक परे म घला साहूकार ह दू करोड़ देय के दायित्व ले मुक्त माने जाही।
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बंदी जीवन के दौरान वकील के लिखे चिट्ठी ले पता लगत जय कि जेल म वो ह अपन दिन ल कइसे बितावय। जेल के पहिली साल ल वो ह अकेलापन अउ ऊब म बिताइस। दिन-रात वोकर खोली ले फकत पियानो के आवाज आवत रहय। सराब अउ सिगरेट ल वो ह ये कहि के तियाग दिस कि येकर ले मन म विकार पैदा होथे। तरह-तरह के विसय-वासना जागरित होथे, अउ इही विसय-वासना ह बंदी के मौत के कारण बनथे। चाहे कतरो बढ़िया सराब होय, अकेला पीये म कोई मजा नइ हे अउ सिगरेट पिये ले खोली ह धुंगिया म भर जाथे। येकर बदला वो ह हल्का-फुल्का किताब पढ़िस जेमा सुखांतक, कामोत्तेजक अउ अपराध के दुनिया से संबंधित उपन्यास मन सामिल रिहिस। 

दूसर साल वोकर पियानो बजई ह बंद हो गिस अउ अधिकतर समय वो ह उत्कृस्ट अउ सास्त्रीय साहित्य म रूचि लिस।

पाँचवा साल म फेर वोकर खोली ले संगीत के आवाज आय लगिस। सराब के घला मांग करे गिस। खिड़की डहर ले झांक के देखे से पता चले कि अधिकतर समय वो ह खाय-पिये अउ सुते म बितावय। कभू वो ह जंभावय अउ कभू वो ह खुदे ऊपर खीझय। वोकर किताब पढ़ई ह बंद हो गिस। कभू-कभू वो ह रात म लिखे बर बइठ जावय। अधरतिया होवत ले लिखत रहय अउ बिहने उठ के वो जम्मों लिखे कागज मन ल चीर के फेंक देवय। कभू-कभू वोला रोवत घला देखे गिस।

अउ छठवाँ साल पूरत-पूरत वो ह भासा, साहित्य, दर्सनसास्त्र अउ इतिहास के किताब मन म रूचि लेय लग गिस। वो ह रात-दिन जब देखो पढ़ते रहय, अतका कि वोकर मांग अनुसार किताब पूरा करे म साहूकार ल घला मुस्किल होय लगिस। चार साल म वोकर मांग के अनुसार वोकर खोली म कम से कम छै सौ किताब पहुँचाय गिस। इही समय वो ह साहूकार ल एक ठन सुंदर चिट्ठी लिखिस, ’मोर प्रिय जेलर। मंय ह ये चिट्ठी ल छै भासा म लिखत हंव। येला अलग-अलग विसेसज्ञ मन ल पढ़वा के उंकर विचार जानबे अउ उंकर राय लेबे अउ यदि एमा एको गलती नइ निकलिस तब कृपा करके अपन फुलवारी म बंदूक के गोली दाग देबे जेकर ले मोला ये पता चल जाय कि मोर मेहनत ह बेकार नइ गिस। अलग-अलग देस अउ अलग-अलग समय के महान जिज्ञासु लेखक मन के मंय ह जउन किताब मन ल पढ़े हंव वोमा वो मन ह अपन-अपन भासा म अपन विचार मन ल लिख के छोड़े हें अउ वो सब्बो म प्रभु यिशु के जोत ह जगमगावत हे। कास! कि आप मोर ये उदात्त आनंद ल, जइसे कि ये समय मोला मिलत हे, समझ पातेव। 

बंदी के ये इच्छा के पूर्ति करे गिस अउ फुलवारी म दू गोली दागे गिस।

दस साल पूरे बाद वो बंदी ह अब खाली मेज के आगू जड़ अवस्था म बइठे-बइठे खाली बरइबलि के न्यू टेस्टामेंट पढ़त रहितिस। ये बात ह साहूकार ल बड़ा अजीब लगिस कि जब वो चार साल म छै सौ पाण्डित्यपूर्ण किताब पढ़ के उंकर ऊपर पूरा-पूरा मास्टरी हासिल कर लेय रिहिस तब अब एक साल ले सरलग एके ठन बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट जइसे छोटकुन किताब ल कइसे पढ़त रहि गिस। येमा वोला आखिर का दिखिस?

बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट पढ़े के बाद वो ह धर्म के, इतिहास अउ.ब्रह्मविद्या के किताब पढ़े के सुरू करिस। अपन बंदी जीवन के आखिरी दू साल म वो ह असाधारण रूप ले जउन वोला सूझिस, वो सब ल अंधाधुंध पढ़े के सुरू करिस। पहिली तो वोह प्रकृतिविज्ञान ल पढ़े म अपन धियान लगाइस। वोकर बाद वो ह बायरन अउ शेक्सपीयर ल पढ़िस। फेर वो ह रसायन सास्त्र अउ चिकित्सा सास्त्र के मांग करे लगिस। उपन्यास, दरसन सास्त्र अउ थियोलोजी के विवेचना के किताब घला वोकर मांग म सामिल रिहिस। वोकर ये विचित्र मांग ल देख के अइसे लगिस कि जइसे वो ह समुद्र म बोहावत जावत हे, वोकर चारों मुड़ा कोनों भग्न जिहाज के टुकड़ामन छितराय परे हे जेन ल वो ह अपन जीवन रक्षा खातिर पकड़े के कोसिस करत हे। 

साहूकार ह ये सब बीते बात ल लगातार सोचत जावत हे अउ फेर वोला ये धियान आइस कि ’’इकरारनामा के अनुसार कल वोकर बंदी जीवन के पंदरा साल पूरा हो जाही अउ वोला मुक्ति मिल जाही। यदि अइसे होइस तब तो वोला मोला दू करोड़ रूबल देय बर परही अउ वोला दू करोड़ रूबल देय के बाद तो मंय ह कंगाल हो जाहूँ।’’

पंदरा बरस पहिली जब वो ह ये सरत लगाय रिहिस, साहूकार कना बेहिसाब दौलत रिहिस। अब वो सब धन ल वो ह सट्टा अउ जुँआ खेल-खेल के बरबाद कर चुके हे। ये लत ल वो ह छोड़ नइ सकिस अउ वोकर जम्मों कारोबार ह खतम हो गिस। अपन धन के नसा म चूर वो सनकी, घमंडी अउ गुस्सैल साहूकार ह अब एकदम छोटे अउ साधारण बेपारी बन गे हे अउ एक पइसा के घला घटा सहे के वोकर हालत नइ हे। घाटा होय के अंदेसा म वोकर छाती के धकधकी ह बाढ़े लगथे। 

काली दू करोड़ रूबल देय के नाम म वो ह अपन तरुवा ल धर के बइठे हे। सोचत हे कि पंदरा साल पहिली अइसन बेवकूफी वो ह काबर करिस होही। वो बेवकूफ वकील मरिस घला नहीं। वो तो अभी घला चालीस साल के हे अउ जेल ले छूट के वो ह काली मोर से पाई-पाई ल वसूल कर लिही। मोर धन म वो ह बिहाव करही, आलीसान जीवन बिताही, मजा लूटही, सट्टा खेलही अउ मंय ह भिखारी बन के वोकर ताना सुनहूँ कि ’’ये सब सुख ह तोरे देवल आय अउ येकर खातिर मंय ह तोर आभारी हंव। बता, मंय ह तोर का मदद कर सकथंव।’’ वोकर ये ताना ल मंय ह कइसे सुन सकहूँ। नहीं, नहीं, ये जिल्लत भरे जिनगी ले बचे बर वो वकील ल मरनच् परही।

घड़ी ह रात के तीन बजावत रिहिस। घर के सब मन चैन के नींद सुते रहंय। चारों कोती सन्नाटा पसरे रहय। फुलवारी ह सांय-सांय करत रहय। चुपचाप वो ह अपन तिजोरी के नजीक गिस। तिजोरी ले खोज के वो ताला के चाबी ल निकालिस जउन ल वो ह ठीक पंदरा साल पहिली बंदीघर के दरवाजा म लगाय रिहिस। फेर वो ह अपन ओवरकोट ल पहिरिस अउ बाहिर निकल गिस।

फुलवारी म कड़कड़उँवा जाड़ा पड़त रहय, घटाटोप अँधियारा बगरे रहय। पानी गिरत रहय, हवा चलत रहय जेमा पेड़मन ह झुमरत रहंय। हाथ ल हाथ नइ दिखत रहय। वो ह टमड़त-टमड़त जेलखाना तक पहुँचिस। चँउकीदार ल हुँत कराइस। वोला कोनों उत्तर नइ मिलिस। सोचिस, अइसन खराब मौसम के देखत चँउकीदार ह कोनों कोन्टा-कान्टा म लुका के बइठे होही। साहूकार ह सोचिस कि यदि मोला अपन काम ल पूरा करना हे तब बहुत सावधानी ले ये काम ल करे बर पड़ही। सारा सक चैकीदार ऊपर जाना चाही। 

सीढ़िया मन ल खोज के वो ह भीतर परछी म पहुँचिस। परछी ल पार करके वो ह भीतर पहुँचिस। उहाँ पहुँच के जेब ले माचिस निकाल के एक ठन काड़ी ल रोखिस अउ माचिस के उजेला म दरवाजा के तारा ल देखिस। तारा के सील-मुहर ह जस के तस रहय। माचिस ह थोरिक देर जल के बुझा गे। वो ह डर के मारे कांपत खिड़की डहर ले भीतर झांकिस। देखिस कि बंदी के खोली म मोमबत्ती बरत रहय। बंदी ह मेज के आगू बइठे रहय। वोकर पीठ, हाथ अउ बाल मन ह दिखत रहय। वोकर नजीक के कुरसी अउ बिस्तर म किताब मन ह जेती-तेती परे रहय। 

पाँच मिनट बीत गे, बंदी ह न हालिस न डोलिस। वो ह कोनों मुरती जइसे जड़ हो गे रहय। पंदरा साल के अभ्यास म वो ह अइसने बइठे बर सीख गे रिहिस होही। वो ह खिड़की ल खटखटाइस तभो ले बंदी के ऊपर कोनों असर नइ परिस। तब साहूकार ह पूरा सावधानी के साथ तारा के सील ल टोर के तारा म कुची लगाइस। पंदरा साल म तारा ह मुरचा गे रहय तभो ले थोरिक जोर लगाय म वो ह खुल गे। साहूकार ह सोचिस कि दरवाजा के आवाज ल सुन के बंदी ह झकनका जाही फेर वइसनो कुछू नइ होइस। वो ह जस के तस बइठेच् रिहिस।  साहूकार ह भीतर घुसिस। वो ह देखिस कि मेज के आगू कुरसी म एक आदमी ह मुरती कस बइठे हे। खाली हड्डी के ढांचा बचे रहय। वोकर चुंदी ह कोनों महिला के चुंदी कस बाढ़ गे रहय। डाढ़ी-मेछा म डंकाय वोकर चेहरा ह दिखत नइ रहय। मेज म हाथ मन ल टेका के वो हर अपन मुड़ी ल थाम के बइठे रहय। जम्मों चुंदी ह सन कस पंड़रा गे रहय। वोला देख के बिसवास करना कठिन रिहिस कि वो फकत चालीस बरस के रिहिस हे। वोकर आगू मेज म एक ठन कागज माड़े रिहिस जेमा कुछू लिखाय रिहिस। साहूकार ह सोचिस कि बिचारा ह नींद म हे। नींद म वो ह सायद अपन दू करोड़ रूबल के सपना देखत होही जउन वोला काली मिलनेवाला हे। वो ह सोचिस के मंय ह येला उठा के पलंग म फेंक देथंव अउ वोकर टेंटवा ल मसक देथंव। कइसे मरिस कोनों ल पता नहीं चलही। 

फेर वो ह सोचिस कि अइसन करे के पहिली ये चिट्ठी ल पढ़ के देख लेना चाही कि वोमा का लिखाय हे। अइसे सोच के वो ह चिट्ठी ल उठा के पढ़े लगिस। चिट्ठी म लिखाय रहय - ’’काली रात के बारा बजे मोला ये जेहल ले मुक्ति मिल जाही। मंय ह सुतंत्र हो के सब संग मिल सकहूँ। पन ये कमरा ल छोड़े के पहिली अउ सुरूज देवता के दरसन करे के पहिली मंय ह अपन बिचार ल लिख लेना चाहथंव। परमेसर, जउन ह मोला देखत हे, वोला सइत मान के अउ अपन सुद्ध अंतःकरण ले मंय ह ये बात मन ल लिखत हंव कि मोर ये मुक्ति, मोर ये जीवन, स्वास्थ्य अउ सब सुख जउन ल संसार म वरदान केहे जाथे वो सब ले मोला विरक्ति हो चुके हे। ये पंदरा साल म मंय ह ये संसार अउ सांसारिक जीवन के एक-एक ठन रहस्य के गहन अध्ययन करे हंव। ये सच हे कि ये पंदरा साल म न तो मंय ह धरती के जीवन ल देखे हंव अउ न उंकर लिखे कोनों किताब म लिखाय सुगंधित सुरा के पान करे हंव, न मधुर संगीत के सुवाद लेय हंव, न जंगल म घूमत कोनों हिरन के सिकार करे हंव, न कोनों सुदर कन्या, जउन कोनों कवि के कल्पना के अनुसार परी मन कस सुदर बादर म विचरण करत रहिथंय, के संग बिहार करे हंव। पर रोज रात म वइसने अलौकिक बादर म विचरण करनेवाला कोनों अलौकिक पुरूस ह आके मोला नाना परकार के कहानी सुनावय जउन ल सुन के मंय ह मदमस्त हो जावंव। वो किताब मन ह मोला पहाड़मन के चोटी मन म ले जावंय अउ मंय ह माऊण्ट ब्लैक अउ माऊण्ट एवरेस्ट ल तको घूम के आ गे हंव। विहिंचे ले मंय ह सूर्यास्त अउ सूर्योदय के घला दरसन कर लेवंव। वो किताब मन के जरिया मंय ह महासागर अउ परबत के चोटी मन के सैर कर सकत रेहेंव। मंय ह देख सकत रेहेंव कि आसमान म कइसे बिजली चमकथे अउ वो ह कइसे बादर के छाती ल चीर के बारिस कराथे। मंय ह हरा-भरा जंगल, खेत, नदिया अउ सहर-गाँव, सब कुछ देख सकत रेहेंव। समुद्र म रहनेवाली जल परी मन ल जलक्रीड़ा करत अउ गावत सुन सकत रेहेंव। एक भयंकर राक्षस ल अपन नजीक आवत देख सकत रेहेंव। ये कितब मन ह मोला ज्ञान के अकूत खजाना के वो पार ले जावंय अउ नाना परकार के चमत्कार देखावंय। कभू मंय ह कोनों सहर ल जलत अउ जर के भसम होवत देखेंव त कभू नवा-नवा धरम अउ वोकर परचार करइया मन के उपदेस ल सुनेंव। कतरो देस ल हारत अउ कतरो ल जीतत देखेंव। ये किताब मन ले मोला अनंत ज्ञान मिलिस। इही किताब मन के जरिया मनुस्य के अटल विचारधारा, जउन हजारों साल ले संचित होवत आय हे, मोर मन म बस गे हे अउ अब मंय ह जानथंव कि मंय ह अब आप सब ले जादा ज्ञानवान हो गे हंव। तभो ले मंय ह ये किताब मान ल बेकार समझथंव अउ ये जान के कि येमा लिखाय संसार के सब ज्ञान ह बेकार अउ फालतू हे, इंकर उपेक्षा करथंव। इहाँ हर चीज ह मृगमारीचिका के समान काल्पनिक अउ क्षणभंगुर है। आप सब ये अथाह किताबी ज्ञान के सुंदरता ऊपर गर्व कर सकथव पर ये बात ह अटल सच हे कि येमा लिखाय ज्ञान ह कोनों ल काल के चंगुल से मुक्ति नइ देवा सकय, एक न एक दिन सब ल मरनच् पड़ही ठीक वइसने, जइसे अपन बिला म रहिके घला मुसुवा ल मरे बर परथे। तुंहर सारा ज्ञान ह एक दिन धरती के भीतर समा जाही। मंय ह कहि सकथंव कि तुम सब इही ज्ञान के मद म अंधा बन चुके हो। झूठ ल सच अउ बदसूरती ल सुंदरता समझ के इतरावत हव। तुम सब धरती के सुख खातिर सवर्ग के सुख ल रहन म रख देय हव, वोला बेच देय हव। इही पाय के मंय ह वो सब सुख ल त्याग देना चाहथंव। ये जेहल ले अपन मुक्ति के पांच मिनट पहिलिच् मंय ह इहाँ ले भाग जाहूँ ताकि साहूकार ह अपन धन ल अपने तीर रख सकय।’’?
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साहूकार ह वो चिट्ठी ल पढ़ के वापिस मेज ऊपर रख दिस अउ वो अद्भुत आदमी के माथा ल चूम के धारोधार रोय लगिस अउ उहाँ ले निकल गिस। वोला अपन आप ले अतका घृणा होय लगिस जतका वोला अपन जिनगी म कभू नइ होय रिहिस। वो ह आपन खोली म आ के पलंग म ढलंग गिस। वोकर हिरदे म अतका पछतावा होवत रिहिस कि न तो वोला बहुत देर तक नींद आइस न वोकर रोवई ह बंद होइस।

अगला दिन बिहिनिया बिचारा चंउकीदार ह भागत आइस अउ बताइस कि वो बंदी ह खिड़की डहर ले निकल के अउ फाटक ल फलांग के निकल गे हे। 

बदनामी ले बचे खातिर साहूकार ह बंदी के खोली म गिस अउ मेज म रखे वो चिट्ठी ल उठा के अपन माथा म लगा लिस अउ वापिस आ के वोला अपन तिजोरी म रख दिस।
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रविवार, 21 अप्रैल 2019

अनुवाद

दुख - अंतोन चेखव

(अनुवाद हिंदी ले - कुबेर)

’’मंय ह अपन दुख ल कोन ल सुनावंव?’’ योना पोतापोव ह सोचथे। सांझ के मुंधियारी होवत बेरा रिहिस। सड़क तीर-तीर के खंम्भा मन के बगरे अंजोर के चारों कोती बरफ के मोट्ठा परत जमा होवत साफ दिखत रिहिस। बरफ गिरे के कारण घोड़ागाड़ीवाला योना पोतापोव ह सफेद भूत कस दिखत रहय। ठंड ले बचे खातिर कोनों आदमी ह अपन बदन ल जतका गुटूमुटू कर सकथे, वोतका करके वो ह अपन घोड़ागाड़ी म चुपचाप, बिना हालेडोले बइठे रहय। वोकर घोड़ा ह घला बरफ म ढंका गे रहय अउ एकदम सफेद दिखत रहस। वहू ह चुपचाप, बिना हालेडोले खड़े रहय। वोकर जड़ता, कमजोर काया, पतला-पतला लकड़ी बरोबर लंबा-लंबा गोड सब ल देखत वो ह लकड़ी के बनल खिलौना घोड़ा कस दिखत रहय।

योना अउ वोकर छोटकुन घोड़ा, दुनों झन ल अपन जघा ले हिलेडुले बिना बहुत देर हो गे रहय। रात के खाना खाय के समय रिहिस। सवारी के आस म वो ह बहुत देर पहिलिच इहाँ आ के खड़ा हो गे रिहिस फेर अब तक वोला एको सवारी नइ मिले रहय।

’’ऐ गाड़ीवाले! विबोर्ग चलबे क?’’ योना ल एक झन सवारी के आवाज सुनई दिस।

’’विबोर्ग?’’ घबरा के वो ह अपन जघा म बइठे-बइठे झकनका गे। अपन आँखीं म जमा हो गे रहय बरफ ल पोंछ के वो ह देखिस। मटमैला रंग के कोट पहिने वो ह एक अफसर रिहिस जेकर टोपी ह चमकत रहय।

अफसर ह एक घांव फेर किहिस - ’’विबोर्ग। अरे सुत गे हस क? मोला विबोर्ग जाना हे।’’ 

योना ह चले के तइयारी म घोड़ा के लगाम ल खींचिस। घोड़ा के नरी अउ पीठ म जमे बरफ ह दोरदोरा के गिर गिस। अफसर ह पीछू बइठिस अउ योना ह घोड़ा ल पुचकार के आगू बढ़े के आदेस दिस। घोड़ा ह अपन अकड़े नरी अउ लकड़ी कस अकड़े गोड़ मन ल मुस्किल से साधिस अउ कनवा के आगू बढ़े के सुरू करिस। योना ह जइसने गाड़ी ल आगू हाँकिस, अँधियार म रेंगत भीड़ डहर ले वोला सुनाई दिस - ’’अबे! का करथस? जानवर कहीं के। येला कहाँ लेगत हस? मूर्ख! जेवनी बाजू मुड़का।’’

’’तोला गाड़ी हाँके बर घला नइ आवय। जेवनी बाजू डहर बइठ न।’’ पीछू बइठे अफसर ह गुस्सा हो के योना ल डपटिस। अउ थोरिक देर रुक के,  अपन आप ल सांत करत फेर बोलिस, ’’कितना बदमास हें इहां के मन ..... सब के सब।’’ फेर मजाकिया लहजा म बोलिस, ’’सब के सब कसम खा के बइठे हें लगथें। या तो तोला धकेलना हे, या तोर गाड़ी के आगू कूद के आत्महत्या करना हे।’’

कोचवान येना ह पीछू मुड़ के अफसर कोती देखिस। वोकर ओठ ह थोकुन हालिस। वो ह कुछ कहना चाहत रिहिस। 

’’का कहना चाहथस तंय ह?’’ अफसर  ह वोकर ले पूछिस।

योना ह जबरन हाँस के भरभराय आवाज म किहिस - ’’मोर एकलौता बेटा, बारिन ह इही हफ्ता गुजर गे साहबजी।’’

’’अच्छा! कइसे मरिस?’’

योना ह अफसर कोती पूरा-पूरा मुड़ के किहिस - ’’काला बतावंव साहबजी। डाक्टर मन ह तो कहत रिहिन कि खाली जर धरे हे। बिचारा ह तीन दिन अस्पताल म पड़े-पड़े तड़पिस अउ फेर मोला अकेला छोड़ के चल दिस। भगवान के मरजी के आगू काकर चलथे?’’

’’अरे शैतान के औलाद, देख के घुमा।’’ अंधियार कोती ले आवाज आइस। ’’अबे, डोकरा! तोर अक्कल मारे गे हे क? तोला कुछू दिखथे कि नहीं?’’

’’जरा तेज चल। अउ तेज।’’ अफसर ह चिल्ला के किहिस। ’’नइ ते हम बिहान हो जाही, नहीं पहुँच पाबो। जरा तेज।’’ कोचवान योना ह फेर अपन घेंच ल सोझ करिस अउ उदास हो के अपन चाबुक ल हवा म लहराइस। बीच-बीच म वो ह पीछू डहर मुड़क के सवार कोती देख लेवय। अफसर ह आँखीं मूंद के बइठे रहय। योना ह कुछू बात करना चाहत रिहिस फेर वोला समझ म आ गिस कि अफसर के कुछू सुनेके मन नइ हे।

अफसर ल विबोर्ग पहुँचा के योना ह सराब घर के नजीक अपन गाड़ी ल खड़ा कर दिस अउ कुडमुड़ा के बइठ गिस। अइसने दू घंटा अउ बीत गे, एको सवारी नइ मिलिस। तभे फुटपाथ डहर ले वोला रबर के पनही के ’चूँ-चूँ, चीं-चीं’ के आवाज सुनाई दिस। तीन झन छोकरा आपस म झगड़त आवत दिखिस। दू झनमन पतना-दुबला अउ लंबा रिहिन अउ एक झन ह ठिंगना, कूबरा असन रिहिस। नजीक आ के कूबरा ह नाक के भार घिनघिना के किहिस, ’’ऐ गाड़ीवाले! पुलिस ब्रिज चलबे क? हम तोला बीस कोपेक देबोन।’’

योना ह तइयार हो गे। वो ह घोड़ा के लगाम ल खींचिस अउ हांक लगा दिस। पुलिस ब्रिज बर बीस कोपेक ह बहुत कम रिहिस, फेर का करे। बीस कोपेक होय कि बीस रूबल, सब बराबर हे। काकर बर वो ह मोलभाव करे। कोन हे वोकर अब दुनिया म?

तीनों छोकरामन गाड़ी म चढ़ गें अउ बइठे बर झगड़ा करे लगिन। तीनों छोकरामन आपस म धक्का-मुक्का करे लगिन अउ अंत म तय करिन कि कूबरा ह छोटे कद के हे अउ वोला गाड़ीवाला के पीछू म खड़ा हो जाना चाही।
’’ठीक हे। अब दउड़ा गाड़ी। एकदम तेज।’’ कुबरा ह नाक के भार बोलिस। वो ह योना के पीछू म खड़े रहय अउ वोकर सांस ह योना के पीठ म परत रहय। ’’तोर अइसी के तइसी होय, रद्दा भर अइसने मरियल चाल चलत रहिबे क? तेज चला, नइ ते तोर नरी ल मुरकेट ......।’’

’’ ओह! दरद के मारे तो मोर मुड़ी ह फटे जावत हे।’’ वोमा से एक झन लंबू ह किहिस। ’’काली रात वोकमासोव के पार्टी म मय अउ वास्का, दूनों मिल के कोंयाक के पूरा बोतल पी गे रेहेन।’’

’’मोला समझ म नइ आय यार कि तंय ह अतका झूठ काबर बोलथस। तंय ह बहुत दुष्ट अउ झुठल्ला हस।’’ दूसर लंबू ह किहिस।

’’भगवान कसम, मंय ह लबारी नइ मारंव। सच कहत हंव।’’

’’बिलकुल, वइसने सच, जइसे कोई कहय कि मंय ह सुई के बेधा डहर ले ऊँट ल बुलकाय हंव।’’

’’हें, हें, ...। आपमन कतका अच्छा मजाक करथव।’’ योना ह खीसा निपोरत किहिस।

’’अरे, भांड़ म जा तंय।’’ कूबरा ह गुस्सा के किहिस। ’’अरे बुढ़उ, आखिर तंय ह हमला कब तक पहुँचाबे? गाड़ी हांके के ये ह कोन से तरीका आय। कभू चाबुक तो घला चलाय कर। जरा जोर से चाबुक चला मिंया। आखिर तंय ह आदमी हरस कि पैजामा?’’

योना ल लगिस, वइसे तो वो ह आदमीमन संग बइठे हे, फेर अकेलापन ह वोकर आत्मा ल जकड़े जावत हे। 

कुबरा टूरा ह धीरे चले के नाम से वोला फेर गारी देय लगिस। लंबू टुरामन नादेज्दा पेत्रोवना नाम के कोनों टूरी  के बारे म गोठियाय लगिन।

योना ह कतरो घांव उंकर डहर मुड़क के देखिस। वो ह अपन हिरदे के दुख ल काकर संग बाँटय? खुदे टुड़बुड़ाइस, ’’मोर बेटा ह इही हफ्ता गुजर गिस।’’

’’हम सब ल एक न एक दिन मरना हे।’’ कहत-कहत कुबरा ल खाँसी आ गे।  खाँस के किहिस, ’’अरे! जल्दी-जल्दी चला, एकदम तेज। अरे यार, अइसन मरियल चाल म हमला नइ जाना हे। आखिर ये ह हमला कब तक पहुँचाही?’’

’’अरे, ऐ बुढ़वा, अपन घोड़ा के नरी ल थोरिक गुदगुदा न।’’

’’डोकरा, नरक के कीरा, सुनथस कि नहीं। मंय ह तोर नरी ल मुरकेट देहूँ। तोर जइसे मनहूस आदमी के खुसामद करे के बदला तो पैदल चल लेना रिहिस। अरे बुढउ, सुनथस कि नहीं। सुअर के औलाद, तोला कुछू लगथे कि नहीं?’’

योना ह वो सराबी टुरा मन क बात ल सुन के घला नइ सुनत रहय। वो हर ’हें, हें’ करके हाँसतिस अउ कहितिस, आप मन तो साहब हरो। जवान हव। भगवान ह आपमन के भला करे।’’

’’बुढ़उ, तंय ह बिहाव करे हस कि नहीं?’’ एक झन लंबू टुरा ह पूछिस।

’’मंय? साहब हो, आपमन खूब मजाकिया हव। अब तो बस, मोर घरवाली भर ह बचे हे। दुनिया भर के दुख भोग डरे हे बिचारी ह। वहू ह अबतब मरनेचवाला हे। कतका अजीब बात हे। मोर बेटा ह मर गे अउ मंय ह जिंदा हंव। मौत ह दरवाजा भुला गिस होही। मोर तीर आय के बदला मोर बेटा तीर पहुँच गिस।’’ योना ह पीछू डहर देख के किहिस। वो ह अपन बेटा के मौत के एक-एक ठन घटना के बरनन करना चाहत रिहिस। तभे कूबरा ह किहिस, ’’भगवान भला करे। आखिर ये ह हमला हमर ठउर म पहुँचाइच दिस।’’

तीनों टुरा मन गाड़ी ले उतर के अपन-अपन घर कोती चल दिन। योना ह फेर अकेल्ला हो गे। वोकर दुख, जउन ह थोरिक देर खातिर कम होवत रिहिस, फेर लहुट के आ गिस। अउ अतका जीवलेवा ढंग ले लहुट के आइस कि वोकर हिरदे ल चमचम ले जकड़ लिस। योना ह तड़प के भीड़ डहर देखिस। कोई तो मिले, जेकर ले वो ह अपन दुख ल बांट सकय। पर भीड़ म कोनों अतका फुरसत म नइ मिलिस जउन ह वोकर दुख ल बांट सकय। वोकर दुख के कोनों पारावार नइ हे। यदि वोकर हिरदे ह फट जातिस ते वोकर दुख के धार म जम्मा सहर ह बूड़ के बोहा जातिस। पर इहाँ वोकर दुख सुननेवाला, बाँटनेवाला कोनों नइ हे।

योना ल बोरा लाद के आवत एक झन कुली दिखिस। बात करे के गरज म वो ह वोला पूछिस, ’’भइया! का टाइम होय हे?’’

’’नौ ले जादा बज गे हे। अब तोला कोन सवारी मिलही। कोन ल देखत हस? जा अपन घर।’’ कुली ह किहिस अउ रेग दिस।

योना ह फेर दुख म बूड़ गे। वोकर दुख ल सुनेबर दुनिया म कोनों नइ हे। इच्छा करना बेकार हे। वोकर हिरदे ह फटे लगथे। वो ह ’’अस्तबल’’ जाय के बारे म सोचे लगिस। वोकर घोड़ा ह जइसे वोकर मन के बात ल समझ गिस अउ दुलकी चाल म अस्तबल कोती दउड़े लगिस।
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घंटा-डेढ़ घंटा बीत गे। योना ह अब एक बड़े जबर अउ गंदा स्टोव के आगू बइठे है। अगल-बगल म अबड़ अकन आदमी बेंच मन म खर्राटा मारत सुते हें। योना के आँखीं म नींद नइ हे। इहाँ के हवा म वोकर दम छेंकाय परत हे। वो ह अपन सरीर ल खजवावत सुतइया मन डहर देखथे। सोचिस, वो ह अतका जल्दी काबर लहुटिस होही? आज तो घोड़ा के चारा बर घला कमाई नइ हो पाइस।

एक झन जवान कोचवान जउन ह कोन्टा म सुते रहय, झकनका के उठ के बइठ गिस। थोरिक देर बड़बड़ाइस अउ पानी के बाल्टी कोती जाय लगिस।

’’पानी पीबे?’’ योना ह पूछिस

’’यहू ह पूछे के बात हरे।’’

’’अरे, नइ दोस्त! तंय सदा सुखी रह। का तोला पता हे कि मोर बेटा ह अब ये दुनिया म नइ हे? सुने हस क? इही हफ्ता ... अस्पताल म ..... कहानी ह बड़ लंबा हे दोस्त।’’

जवान ऊपर वो ह अपन बात के असर देखे के कोसिस करिस। जवान ह मुड़ी ढांक के फिर सुत गे। डोकरा ह अपन सरीर ल खजवावत लंबा सांस लिस अउ ढलंग गिस। 

वोकर बेटा ल मरे आज एक हफ्ता हो गे पन अपन दुख ल वो ह ककरो तीर नइ सुना सकिस। ये सब बात हड़बड़ी म बताय के नोहे। धीरे-धरे अउ फुरसत म, एक-एकठन बात ल सुरता कर-करके बताय के हरे। पन सुने बर कोन ल फुरसत हे? वोकर बेटा ह कइसे बीमार पड़िस, कतका दुख भोगिस, कतका तलफिस, मरे के पहिली वो ह का किहिस, अउ कइसे वोकर परान ह निकलिस, ये सब बात ल वो कोन ल बताय? दफन करे के समय के एक-एकठन बात ल बताना हे। अस्पताल म जा के वो ह अपन बेटा के कपड़ा मन ल कइसे लाइस यहू ल बताना हे। वो समय वोकर बेटी अनीसिया ह गाँवेच् म रिहिस, वोकरो बारे म बताना हे। कितना सारा बात हे बताय बर वोकर कना। पन सुनइया इहाँ कोन हे? महिला मन ल घला बताय जा सकथे, फेर वोमन ह भावुक होथंय। दुए सब्द सुन के रोय लगथंय।

’चल के अपन घोड़ा ल देखना चाही। सुते के का चिंता, रात परे हे।’ योना ह सोचिस अउ अपन कोट ल पहिर के अस्तबल कोती चल दिस। वो ह अपन घोड़ा तीर खड़े हो के मौसम के बारे म, फसल के बारे म, चारा के बारे म सोचे लगथे। अकेल्ला म अपन बेटा के बारे म सोचे के वोकर हिम्मत नइ होवय।

’’भर पेट खायेस कि नही?’’ वो ह अपन घोड़ा ल पूछिस। अपन घोड़ा के चमकत आँखीं कोती देख के किहिस, ’’ठीक हे, डट के खा। भले हम आज तोर पेट भरे के लाइक नइ कमा सकेन, पन कोई बात नहीं। हम रूखा-सूखा खा सकथन। अब तोला का बतावंव, मंय ह अब बुढ़ागे हंव, गाड़ी चलाय के लाइक नइ हंव ... मोर बेटा ह चला सकत रिहिस। कतका सानदार कोचवान रिहिस हे वो ह। कास कि वो ह जिंदा रहितिस।’’

पल भर चुप रहे के बाद योना ह फेर किहिस ’’हाँ दोस्त, मोर प्रिय संगवारी, इही ह सच हरे। मोर बेटा, ह अब ये दुनिया म नइ हे। हमला बेसहारा, अधर म छोड़ के चल दिस। तंय जरा सोच, तोर एक ठन पिला रहितिस, तंय वोकर माई होतेस अउ अचानक तोर पिला ह तोला छोड़के चल देतिस, तब तोला दुख नइ होतिस? होतिस न?’’
योना के छोटकुन घोड़ा ह अपन मालिक के हाथ म अपन थुथना ल मढ़ा दिस। अउ वोकर बात ल सुनत जाय अउ वोकर हाथ ल चाटत जाय। जइसे वो ह वोकर दुख ल बाँटना चाहत होय। 

अउ योना ह अपन एक-एक ठन दुख ल, एक-एक ठन बात अपन प्रिय संगवारी ल सुनात गिस।
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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

अनुवाद

गिरगिट - एंटन चेखव

(अनुवाद, हिंदी ले छत्तीसगढ़ी म - कुबेर)

नवा ओवरकोट पहिने पुलिस के दरोगा ओचुमेलोव ह अपन बगल म एक ठन बण्डल दबा के बजार चौक तरफ ले जावत रिहिस। वोकर पीछू-पीछू लाल चूँदी वाले एक झन सिपाही ह टुकना धर के लउहा-झउहा आवत रहय। टुकना ह जप्त करल झरबेरी ले लबालब भरे रहय। चौक म मरे रोवइया नइ रिहिस अउ चारों मुड़ा सन्नाटा बगरे रिहिस। यहाँ तक कि कोनों भीखमंगा तको नइ दिखत रिहिस। दुकान अउ शराबघर के खुल्ला दरवाजा मन अइसे लागत रिहिस मानों कई दिन के भूखा आदमी मन ईश्वर के बनावल संसार ल उदास अउ दुखी होके टकटकी लगा के देखत होय। 

’’अच्छा, तब तंय ह मोला चाबबे। राक्षस कहीं के।’’ ओचुमेलोव के कान म कोनो डहर ले अचानक ये आवाज आइस - ’’पकड़ो, भाई हो। बच के झन जावय। अब तो चाबना कानून अपराध हे। पकड़ो। अ...अ.. अहा।’’

ओचुमेलोव ह लहुट के देखिस - एक ठन कुकुर ह पैं-पैं करत पिचूगिन नाम के बेपारी के लकड़ी टाल डहर ले तीन गोड़ म दउँड़त आवत रहय। वोकर पीछू-पीछू  छींटवाले अउ कलफ लगे कमीज पहन के अउ वास्कट के बटन मन ल खोल के एक झन आदमी ह चिल्लावत दउड़त आवत रहय। वो ह कुकुर ल पकड़े खातिर वोकर पीछा करत रहय अउ आखिर गिरत-गिरत वोकर पीछू के गोड़ ल वो ह  धरिच लिस। कुकुर के पैं-पैं अउ वो आदमी के चीख ’’बच के झन जाय’’ दुबारा सुनाई दिस। दुकान के भीतर ऊँघत आदमी मन अपन घेंच निकाल के बाहिर झांके लगिन अउ थोरिकेच् देर म वो तीर भीड़ जमा हो गे।

’’हुजूर! मालूम पड़थे कि कोनों झगड़ा-फसाद होवत हे।’’ सिपाही ह किहिस।

ओचुमेलोव ह डेरी बाजू घूमिस अउ भीड़ डाहर चल दिस। देखिस कि चिल्लानेवाला आदमी ह लकड़ी टाल के फाटक म खड़ा होके अपन जेवनी हाथ ल ऊपर उठा के भीड़ ल रकत चुचवावत अंगठी ल देखावत रहय। मानो लड़ाई जीते के खुसी म झंडा लहरावत होय। कहत रहय - ’’बदमास, राक्षस, तंय बचके जाबे कहाँ।’’ वोकर वास्कट के बटन मन खुल्ला रिहिस। 

ओचुमेलोव ह वो अदमी ला चीन्ह डारिस। वोकर नाम खुकिन सोनार रिहिस। वोकर अपराधी, सफेद रंग के ग्रेहाउण्ड कुकुर के पिल्ला ह अपन आगू के दूनों टांग ल लमा के चित्त पड़े रहय। वोकर पीठ म पींयर रंग के दाग रहय। वो ह थरथर-थरथर कांपत रहय अउ वोकर आँखी डहर ले आँसू बोहावत रहय।

’’इहाँ का हंगामा होवत हे?’’ ओचुमेलोव ह चिल्ला के भीड़ ल पूछिस। ’’अउ तंय ह अपन अंगठी ल काबर उचाये हस? कोन ह चिललात रिहिस?’’

’’हुजूर! मंय ह कलेचुप अपन रद्दा रेंगत जावत रेहेंव। बिलकुल गाय समान।" खुकिन ह अपन हाथ ल मुँहू म रख के खाँसिस अउ केहे के सुरू करिस। मोला लकड़ी मिस्त्री मित्रिच ले कुछ पूछना रिहिस। पता नहीं, ये बदमास ह कते कोती ले आइस अउ मोर अंगरी ल चाब दिस। हुजूर! दया करव। मंय तो रोज कमानेवाला, रोज खानेवाला आदमी ठहरेंव। अउ वइसे भी मोर पेचीदा अउ बारीक काम। ये घाव ल माड़े म हफ्ता भर तो लगहिच। मंय तो भूखा मर जाहूँ हुजूर। मोला येकर हरजाना दिलवा देव हुजूर। अब तो अइसन कानून घला बन गे हे । अइसन आवारा जानवर के जादती ल अउ कतका सहिबोन। अइसन म तो काम करे लाइक कोनो आदमिच् नइ बाचही हुजूर।’’

’’तोर कहना वाजिब हे।’’ दरोगा ओचुमेलोव ह अपन गला साफ करके गुर्रा के किहिस - ’’ठीक हे। ये बता कि ये ह काकर कुकुर ए। वोला मंय नइ छोड़ंय। कुकुर ल छुट्टा छोड़नेवाला मन ल मजा चखाना जरूरी है। कानून के उलंघन करनेवाला मन ल सजा देना जरूरी हे। अइसे जुरमाना ठोंकहू ते छट्ठी के दूध के सुरता आ जाही। बदमास कहीं के। ढोर-ढंगार मन ल छुट्टा छोड़े के का मतलब? सबके अकल ल दुरुस्त करना हे।’’ फेर सिपाही ल चिल्ला के किहिस - ’’येल्दीरिन! पता कर, काकर कुकुर हरे। अउ रिपोट बना। कुकुर ल तुरंत मरवा दे। ये ह पागल हो गे हे। मंय पूछथंव - ये ह काकर कुकुर आय?’’

’’जनरल जिगालोव के हरे कातो।’’ भीड़ डहर ले आवाज आइस।

’’जनरल जिगालोव के?’’ जनरल जिगालोव क नाम सुन के ओचुमेलोव के आँखी ह खुले के खुले रहिगे। किहिस, ’’येल्दीरिन! मोर कोट ल उतारन लग तो। ओह्हो! यहा का गरमी हे। ... पानी गिरही तइसे लागथे।"

"अच्छा एक बात मोर समझ म नइ आवय कि ये कुकुर ह तोला चाबिस कइसे?’’ ओचुमेलोव ह खुकिन डहर घूम के किहिस, ’’ये ह तोर अंगरी ल अमरिस कइसे? ये ह नानचुक अउ तंय ह लंबा-चौड़ा आदमी। तोर अंगरी ह कोनो खीला-खाभा म छोलाय होही। हरजाना के लालच म तंय ह ये बिचारा कुकुर के नाव लेवत हस। तोर चालाकी ल मंय ह सब समझथंव। तोर जइसे बदमाश के रग-रग ल मंय ह पहिचानथंव।’’

’’ये ह येकर मुँहू ल जरती सिगरेट म आँकिस होही हुजूर। उदबिरिस करिस होही। पन ये कुकुर ह अतका बेवकूफ त नइ होही। चाबबे करही। ये आदमी ह बड़ चालबाज हे हुजूर।’’

’’चुप! झूठ काबर बोलथस। तंय ह देखे हस का? गप झन मार। सरकार ह खुद समझदार हे। सच का हे अउ झूठ का हे, वो सब जानथे। मोरो भाई ह पुलिस म हे। बता देथंव।’’

’’बकवास बंद कर।’’

’’नहीं, ये ह जनरल साब के कुकुर नो हे।’’ सिपाही ह गंभीर हो के किहिस। ’’वोकर तीर अइसन कुकुर हइच् नहीं। वोकर तीर तो सिरिफ सिकारी पौंढर कुकुर हे।’’

’’पक्का मलूम हे न?’’

’’पक्का हुजूर।’’

’’महू ल पता हे। जनरल साहब के सबो कुकुर मन अच्छा नस्ल के हे, एक से बढ़ के एक। कीमती। येला देख, कइसे मरियल हे। जनरल सााहब ह अइसने कुकुर ल पोंसही? तुंहर दिमाग खराब हो गे हे क? मास्को अउ पीटर्सबर्ग में कहू अइसन कुकुर दिख गे त का होथे जानथव? तुरंत मुरकेट देय जाथे। खुकिन! तोला चोट लगे हे क? तंय ह अइसन मामला ल छोड़ झन। .. कुकुर-माकर ल खुल्ला छोड़नेवाला मन ल मजा चखानेच हे।’’ दरोगा साहब के पारा ह फेर चढ़ गे।

’’लेकिन हो न हो ये ह जनरलेच् साहब के कुकुर आय।’’ सिपाही फेर बड़बड़ाइस। येकर माथा म तो लिखाय नइ हे। जनरल साहब के बंगला म अइसनेच् कुकर काली मंय ह देखे रेहेंव।’’

’’ बिलकुल, ये जनरलेच् साहब के कुकुर हरे।’’ भीड़ म कोनों ह फेर चिल्लाइस।

’’हूं ......। येल्दीरिन, मोर कोट ल तो पहिरा दे। ठंडा हवा के झकोरा आवत हे। मोला ठंडा लाग गे। तंय ह ये कुकुर ल धर के जनरल साहब के बंगला म जा अउ बने पता कर। कहिबे, ये ह सड़क म भटकत रिहिस तेला दरोगा साहब ह पकड़ के भेजवाय हे। अउर कहिबे कि अतका कीमती कुकुर ल अकेला सड़क म झन छोड़े करे। हर आने-जानेवाला बदमास मन येकर मुँहू म सिगरेट ल गोंजही तब ये बिचारा के का हाल होही? अइसन कुकुर मन बड़ नाजुक होथे। अउ तंय, बदमास। अपन अंगरी ल खाल्हे कर। ढ़िढोरा झन पीट। सब तोरेच् कसूर हरे।’’

’’वो दे, जनरल साहब के बावर्ची ह आवत हे। वोकर ले पूछ लिया जाय।  .... ऐ, प्रोखोर! जरा एती आ तो। ये कुकुर ल देख भला। तुंहर तो नो हे?’’

’’हमर इहाँ अइसन कुकुर? बिलकुल नहीं।’’

’’अरे! येमा पूछे के का जरूरत हे।’’ दारोगा ओचुमेलोव ह किहिस, ’’आवारा कुत्ता, साफ पता चलत हे। अउ येकर बारे म पूछताछ करना समय बरबाद करना है। अइसन ल तो तुरंत मार देना चाही।’’

’’हमर तो नो हे, पक्का हे।’’ प्रोखोर ह आगू किहिस, ’’पन ये ह वोकर भाई के हो सकत हे। हमर साहब ह अइसन कुकुर नइ पोंसे लेकिन वोकर भाई ल अइसने कुकुर पोंसे के संउख हे।’’

’’का?’’ दारोगा ओचुमेलोव के चेहरा ह फेर चमक गे। किहिस, ’’जनरल साहब के भाई, ब्लादीमिर इवानिच ह आय हे? अउ देख, मोला पतच् नइ हे। अभी रुके हे क?’’

’’हव।’’

’’वाह जी वाह। वो ह अपन भाई ले मिले खातिर आय हे अउ मोला पतच् नइ हे। तब ये ह वोकर कुकुर हरे। येला बने संभााल के ले जा। देख कतका नाजुक अउ नन्हा मुन्ना कस प्यारा कुकुर हे। कइसे गुर्र-गुर्र करत हे सैतान ह। अभी घला गुस्सा म हे।’’

प्रोखोर ह कुकुर ल धर के चल दिस। भीड़ ह खुकिन के मजाक उड़ाय लगिस।

’’मंय ह तोला ठीक कर देहूँ।’’ दारोगा ओचुमेलोव ह खुकिन ल धमकाइस अउ बाजार कोती ल दिस।
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गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

अनुवाद

ठट्ठा-ठट्ठा म - अंतोन चेखव 

(हिंदी अनुवाद से छत्तीसगढ़ी अनुवाद करे गे हे - कुबेर।)

जड़काला के दिन, मंझनिया के बेरा अउ कटकटउंआ जाड़ा। नाद्या ह मोर बाँहा ल चमचमा के धरे रहय। वोकर खंुजरी बाल म नान्हें-नान्हें बरफ ह जमा हो गे रहय अउ चंदैनी मन सरीख चमकत रहय। वोकर ओंठ मन म घला हल्का असन बरफ जम गे रहय। हम दूनों बरफ ले ढंके एक ठन डोंगरी म खड़े रेहेन। हमर खाल्हे लंबा-चौड़ा मैदान पसरे रिहिस, जउन ह सूरज के चमक ल चारों मुड़ा बगरावत रहय। अइसे लागत रहय कि मैदान रूपी दरपन म सूरज के प्रतिबिंब बन के चमकत होय। हमर नजीेके म एक ठन स्लेज गाड़ी रखे रिहिस जउन म लाल रंग के कपड़ा लगे रहय।

’’नाद्या! चल, एक घांव फिसलबोन। सिरिफ एक घांव। हमला कुछू नइ होवय। सही सलामत खाल्हे पहुँच जाबोन।’’ मंय ह नाद्या ले केहेंव।

लेकिन नाद्या ह डर्रावत रहय। इहाँ ले, डोंगरी के टीप ले मैदान तक के रद्दा ह वोला अबड़ लंबा लागत रहय। डर के मारे वोकर चेहरा ह पींयर पड़ गे रहय। जब वो ह खल्हे डहर देखय अउ जब मंय ह वोला स्लेज गाड़ी म बइठे बर कहंव तब जइसे वोकर परान निकले पड़े। मंय ह सोचथंव - पर तब का होही, जब वोह स्लेज गाड़ी म बइठ के फिसले लगही। या तो वो ह डर के मारे मर जाही, नइ ते पगला जाही।

’’मोर बात ल मान ले।’’ मंय ह वोला केहेंव - ’’न... न...डर्रा झन, तोर तीर हिम्मत नइ हे का?’’

ले दे के वो ह मानिस। फेर जब मंय ह वोकर मुँहू कोती ल देखेंव त अइसे लागिस जइसे अब तो मरनच् हे कहिके वो ह मोर बात ल माने हे। वोकर मुँहू ह डर के मारे सेठरा गे रहय और बदन ह काँपत रहय। मंय ह वोला स्लेज गाड़ी म बइठार के वोकर खांद म हाथ मड़ा के वोकर पीछू बइठ गेंव। हमन वो अथाह गहराई तरफ फिसले लगेन। स्लेज गाड़ी ह बंदूक के गोली समान फिसले लगिस। भयानक ठंडी हवा ह हमर चेहरा ल दंदोरत रहय। अइसे लगे कि वो ह चिंघाड़ मारत होय। भयानक सीटी बजात होय अउ हमर सरीर ल ठाड़ो ठाड चीरे के कोसिस करत होय, हमर नरी ल काँट लेना चाहत होय। फिसलत खानी हवा ह अतका तेज हो गे रहय कि हमला सांस लेना मुस्किल हो गे रहय। अइसे लगत रहय कि कोनों राक्षस ह अपन पंजा म दबोच के हमला नरक कोती खींचत लेगत होय। अगल-बगल के सब जिनीस मन डांड़ खिचाय जइसे दिखत रहय। हमला अइसे लागत रहय कि बस, अब हम मरनेच् वाला हन।

’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’ मंय ह धीरे से केहेंव।

स्लेज के गति ह धीरे-धीरे कम होय लगिस। हवा के गरजना ह अब वोतका भयानक नइ रहि गिस। हमर जान म जान आइस। आखिरकार हम खाल्हे पहुँचिच् गेन। नाद्या ह अधमरी हो गे रहय। वो ह डर के मारे हफरत रहय। मंय ह वोला धर के गाड़ी ले उतरेंव।

’’अब चाहे जो होय, दुबारा मंय ह कभू नइ फिसलंव। आज तो मंय ह मरत-मरत बचे हंव।’’ मोर डहर देख के वो ह किहिस। वोकर बड़े-बड़े आँखी म डर भाव ल साफ-साफ देखे जा सकत रिहिस। थोरिक देर म वोकर हफरई ह माड़ गिस। वो ह मोर डहर टकटकी लगा के देखत रहय, जइसे कोनों सवाल पूछत होय। अतका तो पक्का हे कि वो ह मोर वो सब्द मन ल जरूर सुनिस हे। पर वोला ये समझ म नइ आवत रिहिस कि वो सब्द मन ह मोरे मुँहू ले निकले हे। कहीं हवा के गरजना के सेती तो वो ह अइसन नइ सुनिस होही? 

मंय ह नाद्या के नजीक म खड़े हो के सिगरेट पीयत अपन दास्ताना मन ल धियान से देखत रेहंव। 

नाद्या अउ मंय, दूनों झन एक-दूसर के हाथ म हाथ डारे बहुत देर तक पहाड़ी म घूमेन। ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ ये आवाज ह कहाँ ले आइस, नाद्या ल ये बात ह समझ म नइ आवत रिहिस। का ये ह हवा के गूँज हरे? कि येला संगवारी ह बोले हे? कहीं वोला भ्रम तो नइ हो गे हे? वोकर ये सुनना सच हरे कि झूठ हरे?

अब ये सवाल ह वोकर इज्जत के सवाल बन गे, वोकर स्वाभिमान के सवाल बन गे, वोकर जीवन-मरन के सवाल बन गे। वोकर जीवन भर के खुसी के सवाल बन गे। सच्चाई जानना अब वोकर बर सबले जादा महत्वपूर्ण बात बन गे। नाद्या ह उदास अउ अधीर हो के मोर डहर ल देखिस, जइसे वो ह मोर अंतस म झांक के ये बात के सच्चाई के पता लगाना चाहत होय। जब मंय ह वोला कुछू पूछतेंव तब वो ह मोर सवाल के अंते-तंते जवब देतिस। वोला जइसे उम्मीद रिहिस के मोर अंतस ले, ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ के आवाज ह जरूर एक घांव अउ आही। वोला उम्म्ीद रिहिस कि आगू के बात के सिलसिला मंय ह इही आवाज ले करहूँ। मंय ह वोकर चेहरा ल ध्यान से देखेंव - ओह! ये बात ल ले के वोकर अंतस ह तड़पत रहय। वो ह अपन आप से लड़त रहय। वो ह मोर से कुछ कहना चाहत रहय, मोर से कुछ पूछना चाहत रहय। पन वो ह अपन अंतस के भाव ल बोल के प्रगट नइ कर पावत रहय। वो ह लजात रहय, झेपत रहय, डर्रावत रहय। आखिरकार वोकर मन के भाव ह वोकर जुबान म आइच गिस, - ’’सुनिए!’’ लजावत अउ खाल्हे कोती देखत-देखत वो ह किहिस।
’’का?’’
’’चल न! एक घांव अउ फिसलबोन।’’
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हम दूनों फेर बरफ ले ढंके डोगरी के टीप म पहुँच गेन। नाद्या के हालत फेर वइसने हो गे जइसन पहली घांव होय रिहिस। डर के मारे वो कांपे लहिस, चेहरा ह सफेद हो गिस। मंय ह नाद्या ल स्लेज म बइठारेंव अउ फेर भयानक गहराई कोती फिसले के सुरू करेन। फेर विही कनकन ले ठंडी हवा के कानफोड़ू दहाड़, स्लेज के गूँज। अउ जब स्लेज के गति अउ हवा के दहाड़ ह सबले भयंकर हो गे तब मंय ह फेर धीरे से केहेंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

खाल्हे पहुँच के जब स्लेज ह रुक गे तब नाद्या ह डोंगरी के टीप डहर नजर उठा के देखिस। फेर मोर डहर ध्यान से देखिस। वो ह ये जानना चाहत रिहिस कि ये आवाज ह आखिर कहाँ से आथे। मोर भावहीन चेहरा म वोला ये आवाज के कोनो भाव नइ दिखिस। वोला बड़ अचरज होइस। वोकर पूरा हावभाव ह अचरज म डूब गे। वोला समझ म नइ आवत रहय कि आखिर ये आवाज ह कहाँ ले आथे। इही ह किहिस होही कि बस, मोला भ्रम होवत हे?

संसय के मारे वो ह एकदम परेसान हो गेे। वोकर मन के अधीरता ह अउ गढ़ा गे। मोला वोकर ऊपर तरस आय लगिस। बेचारी लड़की। 

मंय कोनों बात करंव तब मोर कोनों बात के वो ह जवाब नइ देवय। वोकर सूरत ह रोनहू हो गे रहय।
’’घर चलबोन?’’ मंय ह पूछेंव।

’’मोला तो इहाँ फिसले म गजब मजा आवत हे।’’ वो ह किहिस। सरम के मारे वोकर मुँहू ह लाल हो गे रहय। ’’चल न, एक घांव अउ फिसल के देखबोन।’’

मंय ह मन म केहेव - अच्छा, तोला फिसले म मजा आवत हे? स्लेज गाड़ी म बइठत खानी अउ फिसलत समय डर के मारे तोर जान निकले पड़थे। पन मंय धीरे से खांस के अपन चेहरा ल रुमाल म पोछेंव। एक घांव अउ फिसले बर हम डोंगरी के ऊपर चहुँच गेन। अउ जब फिसलत-फिसलत आधा रद्दा पार होइस तब मंय ह फेर विही वाक्य ल धीरे ले दुहरा देंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

लेकिन नाद्या खातिर ये पहेली ह पहेलिच बन के रहि गिस। वोह कलेचुप रहय, हुंके न भूंके। मंय ह वोला वोकर घर तक अमराय बर गेयेंव। वोकर अटक-अटक के रेंगे से मोला लागिस कि वो ह मोर मुँह से कुछ सुनना चाहत हे। मोला वोकर मन के तड़प ह घला जना गे। पन वो ह बिलकुल कलेचुप रहय। अपन हिरदे के भाव ल, अपन मन के तड़प ल वो छुपाय के कोसिस करत रहय कि ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ आखिर ये बात ल बोलिस कोन होही?

दूसर दिन मोला वोकर एक ठन चिट्ठी मिलिस, लिखे रहय, ’आज जब तंय ह फिसले बर डोंगरी म जाबे तब महूँ ल संग म लेग जाबे - नाद्या।’ 

वो दिन के बाद हम दूनों रोज फिसले बर जावन। फिसलत खानी जब हवा अउ स्लेज के रफ्तार ह जानलेवा हो जातिस तब मंय ह फेर धीरे से कहितेंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

बहुत जल्दी नाद्या ल येकर नसा हो गे। नसा करनेवाला ह जइसे बिना नसा के नइ रहि सकय वइसने नाद्या ह ये आवाज ल सुने बिना नइ रहि सकय। हालाकि डोंगरी ऊपर जाके उहाँ ले फिसलना वोकर खातिर अभी घला मौत के मुँह म जाय के बराबर रिहिस, पन वो ह का करे? नसा जो ठहरिस। वो आवाज के स्वाद ह वोला अतका भाय रहय कि वोकर खातिर वो ह अब मौत से घला लड़ जावय। पन पहेली ह पहेलिच् रहि गिस। ये वाक्य अउ ये सब्द ल कोन ह कहिथे, वो ह कभू जान नइ पाइस। वोला दू झन ऊपर सक रिहिस - एक मोर ऊपर अउ दूसरा हवा ऊपर।

अब वोला ये बात ले कोनों फरक नइ पड़य कि ये वाक्य अउ ये सब्द ल कोन ह कहिथे। वोकर कान म ये आवाज सुनाई पड़ना चाही, बस। सराब ल चाहे कोनों बरतन म पीये जाय, नसा म फरक नइ पड़य।

एक दिन नाद्या ह अकेलच् डोगरी म पहुँच गे। मंय ह दुरिहा ले देखेंव, नाद्या के निगाह ह मोला खोजत रहय। हिम्मत करके वो ह डोंगरी म चढ़ गिस। अकेला फिसले के नाम से वोकर मन म कतका डर समाय रिहिस होही? मंय ह जानथंव। वोकर चेहरा ह सफेद पड़ गे रहय। ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ ये बात ल आखिर कोन ह कहिथे, ये राज ल वो ह आज जान के रही, अउ ये ह अकेला म ही जाने जा सकथे। चाहे येकर खातिर वोला फाँसी म झूलना काबर नइ पड़ जाय। मंय ह देखत रेहेंव, वो  ह आँखी ल मूँद के स्लेज म बइठ गे जइसे जीवन से अंतिम बिदा लेवत होय, अउ फिसले लगिस। स्लेज के फिसले के आवाज ह मोला दुरिहा ले सुनावत रहय।

नाद्या ल वो आवाज ह सुनाई दिस होही कि नहीं, आप जान सकथव। कड़कड़ँवा ठंडी हावा के भयंकर आवाज अउ मौत के डर के मारे कुछ सुन पाना वोकर बर संभव नइ रिहिस। वोला ये आवाज ह सुनाई पड़िस कि नहीं, वो ह खुदे नइ जानय। फेर मंय ह देखेंव कि बाजी हारल आदमी सरीख वो एकदम निरास अउ थके कस स्लेज ले उतरिस।

फेर कुछ दिन म बसंत के मौसम आ गे। मार्च के महीना। सूरज के गरमी बढ़ गे अउ डोगरी म जमे बरफ ह धीरे-धीरे टघल के बोहाय लगिस। डोंगरी ह करिया पर गे। वोकर आइना बरोबर चमक ह नंदा गे। हमर फिसले के खेल ह थम गे। 

अब वो ह ये आवाज ल दुबारा कभू नइ सुन पाय। हवा ह घला खामोस होगे अउ महूँ ह ये सहर ल छोड़ के पितुरबर्ग जाय के तियारी म जुट गेंव।

मोर पितुरबर्ग रवाना होय के कोनों दू दिन पहिली के बात होही, सांझ के बेरा मंय ह फुलवारी म अकेला बइठे रेहेंव। नाद्या के घर ह ये फुलवारी के रूँधना से लगे रहय। मौसम म अभी घला ठंडकता बचे रहय। कोनों-कोनों जघा बरफ घला दिखत रहय। हरियाली नइ आय रिहिस फेर बसंत के गमक आय के सुरू हो गे रिहिस। चिरई मन के चहचहाना ह बढ़ गे रहय। मंय ह फुलवारी के रूँधना तीर जा के एक ठन भोंगरा ले नाद्या के घर डहर झांकेव। उदास अउ दुखी नाद्या ह परछी म खड़े रहय। वो ह उदास हो के अगास डहर टकटकी लगा के देखत रहय। बसंत के सुघ्घर हवा ह वोकर चेहरा ल सहलावत रहय। ये बासंती हवा ह वोला वो डोंगरी के गरजत हवा के सुरता करावत रहय, जउन ह कहय - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’ 

वोकर मुँहू ह अउ उतर गे। गाल म आँसू के बूँद ढुरके लगिस। वो बिचारी लड़की ह हवा के आगू हाथ पसार के खड़े रहय मानो बिनती करत होय कि एक घांव तो वो ह वो आवाज ल दुहरा देय कि ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

अउ जब अचानक हवा के झकोरा आइस, मोर मुँहू ले धीरे से फेर विही आवाज  ह निकल गे - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

अचानक चमत्कार हो गे। झकनका के नाद्या ह मुसकाय लगिस। वो ह हवा कोती अउ हाथ लमाइस अउ खुसी के मारे झूमे लगिस। वो ह बेहद प्रसन्न अउ सुंदर दिखे लगिस।

अउ मंय ह अपन समान बाँधे बर अपन घर लहुट गेंव।
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ये ह बहुत पहिली के बात हरे। अब नाद्या के बिहाव हो चुके हे। नाद्या के बिहाव वोकर मरजी से होइस कि मां-बाप के मरजी से, ये बात ले कोनों फरक नइ पड़य। वोकर पति ह बहुत बड़े अफसर हे। वोकर तीन झन लइका हे।

फेर वो ह वो समय ल आज ले नइ भूल पाय हे जब हम बरफ ले ढंकाय, चम-चम चमकत डोंगरी म फिसले बर जावन अउ फिसलत खानी डर के मारे वोकर परान ह जब निकलो-निकलो हो जावय तब गरजत हवा म ये आवज सुनाई देय, ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

ये सुरता ह वोकर जीवन के सबले सुंदर, सबले सुखद अउ हिरदे रूपी वीणा के तार मन ल झनकारने वाला सुरता के रूप म बस गे हे।
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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

अनुवाद

भिखारी  - अंतोन चेखव

(हिंदी अनुवाद से छत्तीसगढ़ी अनुवाद करे गे हे। - कुबेर)

’’साहब जी! भूखा बेचारा ऊपर दया करो साहब जी। तीन दिन हो गे, लांघन-भूखन परे हंव साहब जी। रात के खाना खाय बर एक पइसा नइ हे। आठ साल तक मंय ह गाँव के स्कूल म मास्टर रेहेंव। बड़े आदमी मन के चालबाजी के कारण मोला नौकरी ले हाथ धोना पड़गे साहब जी। मोर ऊपर जुलुम होय हे। बेराजगार होय साल भर हो गे, नौकरी बर भटकत हंव।’’

बैरिस्टर स्क्वार्त्सोफ ह वो भिखारी ल ऊपर-खाल्हे देखिस। भिखारी ह मइलहा-कोचरहा कोट पहिरे रहय। नसा करइया मनखे मन के आँखी सही वोकर आँखी ह दिखत रहय। गाल म लाल-लाल चिनहा उपके रहय। वोला लगिस कि ये आदमी ल वो ह पहिली कहीं न कही जरूर देखे हे।

’’अभी मोला कलूगा जिला म नौकरी मिलनेच् वाला हे।’’ भिखारी ह आगू बोलिस ’’फेर उहाँ तक जाय बर घला पइसा नइ हे। मदद करे के किरपा करव साहब जी। भीख मांगना सरम के बात आय, फेर का करंव साहब जी, मजबूरी म सब करे बर परथे।’’

बैरिस्टर स्क्वार्त्सोफ के नजर ह वोकर रबर के पनही ऊपर परगे। एक गोड़ के बड़े अउ दूसर गोड़ के छोटे रहय। वोला हुरहा सुरता आ गे। किहिस - ’’सुनोजी, तीन दिन पहिली मंय ह तोला सदोवाया सड़क म देखे रेहेंव। तंही हरस न? फेर वो दिन तो तंय ह खुद ल कालेज ले निकालल विद्यार्थी बताय रेहेस। आज मास्टर बतावत हस। सुरता आइस?’’

’’न .... नहीं... अइसे नइ हो सकय।’’ भिखारी ह घबरा के फुसफुसाइस। ’’मंय ह गाँव म मास्टरेच् रहेंव साहबजी। आप कहू त वोकर कागजात ल दिखा सकथंव।’’

स्क्वार्त्सोफ साहब के चेहरा ह गुस्सा के मारे लाल हो गे। घृणा के कारण मुँह बिचका के वो ह दू कदम पीछू घूचगे। गुस्सा के मारे चिल्ला के किहिस - तंय कतका नीच हस। बदमास। मंय तोला पुलिस के हवाले करहूँ। भूखा हस, गरीब हस, ठीक हे; पन झूठ काबर बोलथस, वहू बेसरम बनके?

भिखारी ह चोरी करत सपड़ म आय चोर कस कपाट के हत्था ल चमचमा के पकड़ लिस अउ चारों मुड़ा घूम के देखिस अउ चिरौरी करिस ’’म...मंय झूठ नइ बोलंव। कागजात ........’’

’’अरे कोन पतियाही।’’ स्क्वार्त्सोफ साहिब के गुस्सा ह बढ़ते गिस। गाँव के गुरूजी अउ पढ़इया लइका मन के समाज ह लिहाज करथे तेकर फायदा उठाना चाहथस। कतका गंदा, घिनौना अउ नीच काम करथस।’’

स्क्वार्त्सोफ साहिब ह गुस्सा के मारे अरे-तरे हो गे। भिखारी ल कंस के लतेड़े लगिस। निर्लज्ज्ता, छिछोरापन अउ चालबाजी देखके भिखारी बर वोकर मन म घृणा पैदा हो गे। आदमी के मन म गरीब अउ भीखमंगा मन बर जितना अच्छा बिचार हो सकथे स्क्वार्त्सोफ साहिब के वो सब्बो बिचार ल ये भिखारी के बेवहार ले चोट पहुँचे रिहिस। अब तक वो ह गरीब अउ भिखारीमन ल बहुत प्रेम से, दया करके, खुल्ला दिल से, भीख देवत अवत रिहिस, फेर ये बदमास अउ चालबाज भिखारी ह वोकर ये सब भावना ल अपवित्र करके मिट्टी म मिला दिस। 

भिखारी ह भगवान के कसम खा-खाके अपन सफाई दिस अउ अंत म सरम के मारे मुड़ी गड़िया के चुप खड़े हो गे अउ हाथ जोड़के किहिस - ’’सचमुच मंय ह लबारी मारत रेहेंव साहबजी! न मंय ह पढ़इया हरंव अउ न मास्टर। मंय ह एक ठन संगीत पार्टी म काम करत रेहेंव। दारू के आदत के सेती काम छूट गे। भगवान मोर साक्षी हे। लबारी बिना काम नइ चलय। सच बोले म कोनों भीख नइ देवय। बेघर आदमी। भूख अउ जाड़ा म मरना हे। आप सही कहथव फेर का करंव।’’

’’करना का हे? मोला पूछथस कि का करंव?’’ स्क्वार्त्सोफ साहब ह वोकर नजीक आके किहिस, ’’काम करना चहिए, अउ का?’’
’’काम करना चाहिए, महू समझथंव साहबजी। फेर नौकरी कहाँ हे?’’

’’बकवास मत कर। जवान अउ हट्टा-कट्टा हस। काम काबर नइ मिलही? फेर तंय तो सुस्त अउ कामचोर हस। सराबी हस। तोर मुँह ले वोदका के बदबू अइसे आवत हे जइसे दारू भट्टी ले आथे। झूठ बोलथस। झूठ, निकम्मापन अउ दारू ह तो तोर नस-नस म भरे हे। भीख मांगे अउ लबारी मारे के सिवा तोला अउ कुछू नइ आवय। तोला तो नौकरी भी होना त कोनो दफ्तर के, नइ ते कोनों संगीत पार्टी के। मेहनत-मजूरी काबर नइ करस? भंगी नइ ते कुली के काम तो करबे नहीं। खुद ल बहुत बड़े आदमी समझथस न?’’

’’कइसे बात करथव साहबजी।’’ रोनहू हँसी हाँसत भिखारी ह किहिस, ’’मेहनत-मजूरी कहाँ ले मिलही? कोनों दुकान म नौकरी कर नइ सकंव, काबर कि ननपन ले मंय ह ये काम सीखे नइ हंव। भंगी घला कइसे बनंव, कुलीन घर म जनम धरे हंव। कारखाना म काम करे बर कोनों कारीगरी तो आना चाही न, मंय तो कुछू नइ जानंव।’’

’’बकवास झनकर। काम नइ करे के तोर तीर दसों बहाना हे। कइसे जनाब, लकड़ी चीरे के काम करबे?’’
’’मोला कोनों इनकार नइ हे। पन यहू काम तो नइ मिलय।’’

’’सब कामचोर मन ह इही राग अलापथें। मंय ह तोला काम देहूँ। भागबे तो नहीं? मोर घर म लकड़ी चीरे के काम हे, करबे?’’

’’आप कहहू ते काबर नइ करहूँ साहबजी।’’
’’वाह! देखथंव भला।’’

स्क्वार्त्सोफ साहब ह गुस्सा-गुस्सा म रसोईघर ले तुरंत अपन कामवाली बाई ल बलाइस अउ किहिस - ’’ओल्गा ! ये साहब ल तंय ह लकड़ी खोली म ले जा अउ येला लकड़ी चीरे के काम म लगा दे।’’

भिखरी ह कुरबुरावत कामवाली बाई के पीछू चल दिस। वोकर चाल-ढाल से जना गे कि वो ह भूख अउ बेकारी के कारण नहीं पन बात रखे बर ये काम करे बर राजी होय हे। यहू पता चल गे कि वो ह सराब पी-पीके बीमार अउ कमजोर हो गे हे। काम करे के वोकर मन नइ हे।’’

स्क्वार्त्सोफ साहब ह अपन खाना खाय के खोली म जा के बइठ गे, जिहाँ ले अंगना अउ लकड़ी खोली ह दिखत रिहिस। खिड़की तीर खड़ा हो के वो ह देखिस, बरफ गिरे ले अंगना म चिखला मात गे रहय जउन ल नहक के कामवाली बाई ह लकड़ी खोली कोती जावत रहय। वोकर पीछू-पीछू भिखारी ह जावत रहय। अबड़ फनफनही कामवाली बाई। अरपरा के चरपरा। भिखमंगा ल देख के वोकर पारा चढ़े रहय। फनफनात जाके लकड़ीखोली के कपाट ल धड़ाम ले खोलस।

’’लगथे कि आज हम ओल्गा  ल काफी देय बर भूल गे हन।’’ स्क्वार्त्सोफ साहब ह सोचिस। ’’कतना झरझरहिन हे।’’ अउ वो ह देखिस कि वो झुठल्ला मास्टर ह लकड़ी के एक ठन गोला म अपन लाल-लाल गाल ल धर के थोथना ओरमा के बइठे हे। ओल्गा ह घृणा के मारे वोकर आगू म थूंक के एक ठन टंगिया लान के वोकर गोड़ तीर फेंक दिस अउ गारी देय लगिस। भिखारी ह लकड़ी के एक ठन गोला ल अपन गोठ म चपक के हल्का से वोमा टंगिया मारिस। लकड़ी ह छटक गे। ठंड के कारण अकड़े हथेली ल वो ह रमजिस अउ डर्रावत-डर्रावत, कि कहूँ गोड़ ह झन कटा जाय, फेर टंगिया चलाइस। लकड़ी ह फेर छटक गिस।

स्क्वार्त्सोफ साहब के गुस्सा ह सांत हो गे रिहिस। अतका सरदी म एक बीमार, कमजोर अउ सराबी आदमी ल लकड़ी चीरे के काम म काबर लगायेंव, ये सोच के वोला थेरिक दुख होवत रिहिस। ’’चलो, कोई बात नहीं।’’ अपन पढ़े-लिखे के खोली म जाके वो ह सोचिस, ’’वोकर भलच् होही।’’
........
एक घंटा बीते पीछू ओल्गा ह आइस अउ बताइस कि काम पूरा हो गे हे। 

’’अच्छा! ये पचास कोपेक लेग के वोला दे दे।’’ स्क्वार्त्सोफ साहब ह किहिस - ’’वोला बोल देबे कि इच्छा होही त हर महीना के पहिली तारीख के आ जाय करही। वोला काम मिल जाही।’’

अगले महीना के एक तारख के वो भिखारी ह अउ आ गिस। लटलट ले पीये रहय। खड़ा नइ हो सकत रहय तभो ले पचास कोपेक के काम वो ह कर डारिस। वोकर बाद वो ह जब-तब, कभू घला आ जाय। हर बार वोला कोनों न कोनों काम मिल जातिस। कभू आंगन के बरफ ल हटाय के, कभू कालीन मन ल झर्राय के त कभू खोली मन के साफ-सफाई करे के। अउ हर बार वो ह तीस-चालीस कोपेक के काम कर लेतिस। एक घांव स्क्वार्त्सोफ साहब ह वोला अपन जुन्ना पतलून ल घला दीस।
.......
स्क्वार्त्सोफ साहब ह जब अपन नवा फ्लैट म गिस तब वोला वो ह समान उठइया कुली मन संग काम म लगा दिस। वो दिन वो भिखारी क एकदम उदास अउ गंभीर दिखत रहय। कुली मन के मदद करे के बहाना मुड़ी ओरमा के वो ह बस उंकर पीछू-पीछू घूमत रहय। वो ह कामचोरी नइ करत रहय, बस वो ह जाड़ा के मारे कुनमुनुवात रहय। एक तो सुस्त अउ कमजोर मनखे। ऊपर ले चाहे चिरहा-फटहा, पन साहब मन के पहिरे के कोट पहिरे रहय, तेला देख के दूसर कुली मन वोकर मजाक उड़ावंय, तब वो ह सरमा जाय।

काम पूरा होय के बाद स्क्वार्त्सोफ साहब ह वोला अपन तीर बुलाइस। ’’लगथे, अब तंय ह सुधर गे हस। मोर बात के असर पड़िस हे।’’ भिखारी के हाथ म एक रूबल थमावत स्क्वार्त्सोफ साहब ह किहिस - ’’सराब पीना छोड़ देय हस अउ काम करे म बहानाबाजी नइ करस। का नाम हे तोर?’’

’’जी, लुश्कोफ।’
’’अच्छा, त लुश्कोफ! अब मंय ह तोला दूसर काम दिलवाहूँ। एकदम साफ-सुथर। पड़े-लिखे के। पड़े-लिखे बर आथे कि नहीं?’’
’’आथे साहब जी।’’

’’त कल तंय ह ये चिट्ठी ल धर के मोर एक दोस्त के घर चल देबे। कागज-पत्तर के नकल करे के नौकरी हरे। मन लगा के काम करबे। सराब झन पीबे। देख, मोर ये बात मन ल भुलाबे झनी। ले जा।’’

एक दुस्ट, पापी अउ निकम्मा आदमी ल सही रास्ता देखा के स्क्वार्त्सोफ साहब बहुत प्रसन्न होइस। अबड़ मया करके वो ह लुश्कोफ के कंधा म हाथ रखिस अउ वोला छोड़े बर बाहिर दरवाजा तक आइस। वोकर से हाथ मिलाइस। लुश्कोफ ह चिट्ठी धर के चल दिस।
......

दू साल बीत गे। क्वार्त्सोफ साहब ह एक दिन नाटक देखे बर नाटकघर गिस। टिकिट खिड़की म वोला एक झन बुटरा आदमी दिखिस। वो ह भेड़ के चमड़ा के बनल गरदनवाले ओवरकोट अउ पोस्तीन के टोपी पहिरे रहय। वो ह डर्रावत-डर्रावत सबले सस्तहा, पाँच-पाँच कोपेकवाला टिकट खरीदत रहय।

’’अरे! लुश्कोफ, तंय।’’ क्वार्त्सोफ साहब ह अपन वो पुराना मजदूर ल पहिचान डरिस, ’’सब बने, बने न? का करथस? जिंदगी ह ठीक-ठाक चलत हे कि नहीं?’’

’’हव साहब, ठीक-ठाक चलत हे जी। अब तो मंय ह विही नोटरी तीर काम करथंव अउ पैंतीस रूबल कमाथंव।’’
भगवान के कृपा हे। वाह भई वाह। अबड़ खुसी के बात हे। मंय अबड़ खुस हंव। सच पूछा जाय तब तंय ह मोर चेला के बरोबर हस। तोला सही रास्ता देखायेंव। सुरता हे नहीं? पहिली दिन तोला कतका सुनाय रेहेंव। वो सब सुन के तोला चेत चढ़िस होही। धन्य हे। मोर बात ल तंय ह गांठ बांध के रखेस।’’

’’आप घला धन्य हव।’’ लुश्कोफ ह किहिस, ’’आप नइ मिलतेव त वइसने, मास्टर नइ ते पढ़इया, के नाम झूठ बोल के भीख मांगत रहितेंव। आप मन मोला खाई ले निकाल के बचा लेव।’’
’’एकदम ठीक, बहुत खुसी के बात हे।’’

’’आप कोनो अनुचित बात नइ केहे रेहेव अउ मोर संग बहुत अच्छा करेव साहबजी। मंय आपके अउ आपके कामवाली बाई के बहुत-बहुत आभारी हंव। भगवान ह वो दयालू अउ उदार महिला के भला करे। आपमन ह वो समय बहुत सही अउ उचित बात केहे रेहेव। जिनगी भर मंय ह आपके आभारी रहूँ। पर सच पूछे जाय ते आपके वो कामवाली बाई, ओल्गा ह मोला बचाय हे।’’

’’वो कइसे?’’

’’बात अइसन आय साहबजी, जब-जब मंय ह लकड़ी चीरे बर जावंव, वो ह मोला देख के बिफर जावय। पानी पी-पी के मोला बखानय, कहय - ’अरे सराबी, तोला जरूर ककरो सराप लगे हे। मरस काबर नहीं?’ अउ मोर आगू माथ धर के बइठ जावय। मोर डहर देख-देख के रोवय अउ कहय - ’हाय, बिचारा। ये जनम म ये ह कोनो सुख नइ पाइस। मर के घला नरक म जाही। अभागा, दुखियारा।’ बस वो ह अइसने बात करय। वो ह मोर खातिर अपन कतका खून सुखाइस, कतका आँसू बोहाइस, आप ल वो सब बताना मुस्किल हे। पन असली बात ये हरे साहबजी, कि विही ह मोर सब काम ल करय। सच कहत हंव साहबजी। आपके घर मंय ह एको लकड़ी नइ चीरे हंव। सब ल विही ह चीरे हे। वो ह मोला कइसे बचाइस, वोला देख के मंय ह पीये बर कइसे छोड़ेंव, मंय ह कइसे अपन आप ल बदलेंव, ये बात ल मंय ह आप ल कइसे समझावंव साहबजी। एके बात कहि सकथंव साहबजी, वोकर वचन, वोकर उदारता अउ वोकर मया-दुलार ह मोला सुधार दिस। ये बात ल मंय ह कभू नइ भूल सकंव। हाँ साहबजी! अब चलना चाही। नाटक सुरू होय के घंटी ह बाज गे हे।’’

अउ मुड़ी नवा के लुश्कोफ ह अपन सीट कोती चल दिस।
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सोमवार, 15 अप्रैल 2019

अनुवाद

कमजोर - अंतोन चेखव 

(महान् रूसी साहित्यकार अंतोन पावलोविच चेखव के ये प्रसिद्ध कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद हिंदी अनुवाद से करे गे हे। ये कहानी के ’जूलिया,’ ’छुईमुई’, अउ ’अन्याय के विरोध म’ शीर्षक घला मिलथे। -  कुबेर)

छे दिन पहिली के बात हरे। मंय ह अपन लइका मन के आया, जूलिया ल अपन पढ़े-लिखे के खोली म बलायेंव अउ केहेंव - ’’बइठ जूलिया। आज मंय ह तोर तनखा के हिसाब करना चाहत हंव। मंय सोथंव कि तोला पइसा के जरूरत होही। तंय हस लजकुरहिन, अपन हो के कभू मांगबे नहीं। विही पाय के मंय ह आज तोर तनखा के हिसाब करके तोर पइसा ल देना चाहथंव।’’

’’हाँ, तब बता। कतेक म बात होय रिहिस हे? तीस रूबल महीना। होय रिहिस कि नहीं?’’
’’नहीं साहब, चालीस रूबल महीना।’’ जूलिया ह डर्रावत-डर्रावत किहिस।
’’नहीं भाई, तीस रूबल महीना। ये देख ले, मंय ह अपन डायरी म लिख के रखे हंव। मंय ह हमेसा आया मन ल तीसेच् रूबल महीना म रखत आवत हंव।’’

जूलिया ह कुछू नइ बोल सकिस।
’’हाँ, तब तोला हमर घर काम करत के दिन होय हे? दू महीना न?’’
’’नहीं साहबजी, दू महीना अउ पाँच दिन।’’
’’का कहिथस? पूरा-पूरा दू महीना होय हे। देख ले भइ, मंय ह तो सब दिन-तिथि ल डायरी म लिख के राखे हंव।’’
जूलिया ह फेर कुछू नइ बोल सकिस।

’’हाँ, तब दो महीना के बनथे साठ रूबल। पन तब न, जब एको नांगा नइ होतिस। तंय तो हर इतवार के दिन छुट्टी मनय हस। कोल्या ल खाली घुमाय बर लेगे रेहेस। एकर अलावा तीन दिन अउ छुट्टी लेय रेहेस।’’
जूलिया के चेहरा ह पीला पड़ गे। वो ह घेरीबेरी अपन डरेस के सिंकुड़न ल दूर करे के कोसिस करत खड़े सुनत रिहि गिस। बोलिस कुछू नहीं।

’’हाँ भइ, नौ इतवार अउ तीन दिन के नांगा। बारा दिन के बारा रूबल कम हो गे। वोती कोल्या ह चार दिन बीमार होके सुते रिहिस। तंय ह खाली तान्या ल पढ़ाये हस। पीछू हफ्ता तोर दांत म दरद होवत रिहिस अउ मोर बाई ह तोला मंझनिया के बाद छोड़ देय रिहिस हे। ये तरह ले अब कतिक नांगा हो गे, बारा अउ सात उन्नीस। अब तोर हिसाब ह के दिन के बनत हे - इकचालीस दिन के। एकचालीस रूबल। ठीक हे न?’’

जूलिया के आँखी मन डबडबा गे। धीरे से खाँस के अपन गला ल साफ करिस। नाक ल पोंछिस। फेर मुँहू डहर ले बक्का नइ फूटिस।

’’हाँ, एक बात तो मंय ह भुलइच् गे रेहेंव।’’ डायरी कोती देखत मंय ह केहेंव, ’’जनवरी के पहिली तारीख के दिन तंय ह चाय के पलेट ल टोरे रेहेस। एक पलेट के कीमत तो तंय हा जानतेच् हस। मोर किस्मत म तो सदा नुकसानेच् नुकसान लिखाय हे। तब ले वोकर दू रूबल तो मंय ह काँटहूँच्। जूलिया, तंय अपन काम ऊपर ध्यान देय कर। वो दिन तंय ह ध्यान नइ देयेस अउ कोल्या ह पेड़ म चड़ गिस। पेड़ के डारा म फंस के वोकर जैकेट ह चिरा गे। वोकर भरपाई कोन करही? तब दस रूबल वोकर कँट गे। तोर अइसनेच लापरवाही के कारण हमर नौकरानी ह तान्या के नवा पनही ल चोरा के ले गे। अब देख भई। बच्चा मन के अउ उंकर समान के देखरेख करे बर तो तोला रखे गे हे। इही काम के तो तोला पइसा मिलथे। तंय ह अपन काम म ढिलाई करबे त पइसा तो कटबे करही। कोनो गलत बात कहत हंव का?’’

’’तब पनही के पाँच रूबल अउ कँट गे। अउ हाँ, दस जनवरी के दिन मंय ह तोला दस रूबल देय रेहेंव न?’’

’’नहीं साहब, आप मन मोला कुछ नइ देय हव।’’ जूलिया ह काँपत-काँपत किहिस।

’’अरे, त का मंय ह लबारी मारत हंव? मंय ह हर चीज ल डायरी म लिख के रखथंव। तोला परतिंग नइ परत हे, त देखांव का डायरी ल।’’

’’नहीं साहबजी, आप कहत हव, तब देयेच् रेहे होहू।’’

’’देयेच् रेहे होहू नहीं। देयेच् हंव।’’ मंय ह कड़क आवाज म केेहेंव। ’’तो ठीक हे? इकचालीस म सत्ताइस अउ घटा दे। बाँचिस चउदा। कइसे, हिसाब ह ठीक हे कि नहीं?’’

वोकर आँखी ह डबडबा गिस। कपड़ा ह पसीना म भीग गिस। काँपत-काँपत बोलिस - ’’मोला अभी तक केवल एके घांव पइसा मिले हे। आपके पत्नी ह देय रिहिस। खाली तीन रूबल। जादा नहीं।’’

’’अच्छा!’’ मोला अचरज होइस। केहेंव - ’’अतका बड़े बात हो गे अउ तंय ह मोला बतायेस घला नहीं? न तोर मालकिन ह मोला बताइस। अभी अनर्थ हो जातिस न? खैर, कोई बात नहीं। यहू ल डायरी म लिख लेथंव। हाँ, अब चउदा म तीन अउ घटा दे। कतका बाँचिस? ग्यारा रूबल। ठीक हे न। ये रख तोर तनखा। ग्यारा रूबल। बने गिन ले। देख ले, ठीक हे कि नहीं।’’

जूलिया ह काँपत-काँपत ग्यारा रूबल ल झोंकिस अउ अपन जेब ल टटोल के वोला कइसनो करके वोमा भरिस। फेर धीरे से किहिस - ’’जी, धन्यवाद।’’

मोर एड़ी के रिस ह तरुवा म चढ़ गिस। रकमका के खड़े होयेंव अउ गुस्सा म केहेंव - ’’का बात के धन्यवाद?’’

’’आपमन मोला ये पइसा देयेव, वोकर सेती धन्यवाद।’’

अब मोर से रहि नइ गीस। गुस्सा म चिल्ला के केहेंव, ’’तंय ह मोला धन्यवाद देवत हस। जबकि तंय ह पक्का जानथस कि मंय ह तोला ठगे हंव। तोला धोखा देय हंव। तोर मेहनत के पइसा ल हड़पे हंव। तोर संग अन्याय करे हंव। तभो ले तंय ह मोला धन्यवाद देवत हस।’’

जूलिया ह मुसका के किहस, ’’जी, एकर पहिली जिहाँ काम करत रेहेंव, वो मन तो एको पइसा नइ दिन। आप मन कुछ तो देय हव।’’

वोकर सरलता अउ सिधाई ल देख के मोर गुस्सा ह ठंडा पड़गे। ’’वोमन तोला एको पइसा नइ दिन। जूलिया, ये सुन के मोला कोनों अचरज नइ होवत हे। तोर जइसे बुद्धू ल कोनों भी ठग सकत हे।’’

’’जी।’’
वोकर ’जी’ सुनके मोला वोकर ऊपर हँसी आ गे। धीरे से केहेंव - ’’जूलिया, मोला माफ कर दे। मंय ह तोर संग बड़ क्रूर मजाक करे हंव। मंय ह तोला सबक सिखाना चाहत रेहेंव। देख जूलिया, मंय ह तोर एको पइसा नइ काँटव। ये डायरी ह अइने हरे। वो देख, तोर अस्सी रूबल ह माढ़े हे। मंय ह तोला अभी देवत हंव। फेर एक बात तोला पूछथंव - का कोनो इंसान ह अतका सीधा, अतका दब्बू हो सकथे?’’

’’जी।’’ जूलिया ह मुसका के किहिस।

वोकर ’जी’ सुनके मंय ह माथा पकड लेंव। केहेंव - ’’जूलिया, अपन आप ल भला इंसान कहलाय बर का कोनो ल अतका सीधा अउ दब्बू बन जाना उचित हे का, कि अपन ऊपर होवत अन्याय के विराध न कर सके। सब ज्यादती ल चुपचाप सहि लेय। नहीं जूलिया, ये ठीक बात नो हे। दुनिया म अपन आप ल बचा के रखे खातिर हमला ये सब से लड़ना पड़ही। झन भूल, कि बिना लड़े अपन हक नइ मिल सकय।’’

जूलिया ह मोर बात ल चुपचाप सुनिस। मुच ले मुसका के ’’जी’’ किहिस अउ चुपचाप चल दिस।

मंय ह वोला जावत देखत रहि गेंव। सोचथंव, ये दुनिया म कमजोर आदमी ल डराना अउ ठगना कतका आसान हे।
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गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

चित्र कथा

लोकसभा निर्वाचन 2019 के लिए मतदान दलों का प्रशिक्षण - मास्टर ट्रेनर के रूप में

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

आलेख

जाति न पूछो साधु की

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार की, पड़ा रहन दो म्यान।।

कबीर साहब कहते हैं - साधु (सज्जन, श्रेष्ठ, अथवा विवेकवान पुरुष) की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को परखना चाहिए। अर्थात् साधु (सज्जन, श्रेष्ठ, अथवा विवेकवान पुरुषों) की पहचान जाति से नहीं, उसके ज्ञान से होती है। मनुष्य की साधुता, सज्जनता और श्रेष्ठता की पहचान उसकी जाति नहीं बल्कि उसका ज्ञान है। ठीक उसी तरह जैसे, तलवार की श्रेष्ठता उसकी धार और उसकी मजबूती से तय होती है, म्यान से नहीं। स्वर्ण निर्मित, रत्नजटित म्यान के भीतर धार रहित और कच्चे धातु की तलवार रखी हो तो वह वीर पुरुषों के किस काम की? सुंदर और बहुमूल्य म्यान आपकी संपन्नता, आपके ऐश्वर्य और आपके अहंकार को प्रदर्शित कर सकता है, परंतु आपकी वीरता और आपकी श्रेष्ठता को अथवा तलवार की श्रेष्ठता को नहीं।

परंतु यह देखकर दुख होता है कि कबीर साहब के अनुयायी साधु और मठाधाीश सिर्फ कबीर साहब की जाति को लेकर अपना ज्ञान बघारने में लगे हुए हैं। वे कबीर साहब के जन्म और अवसान की घटनाओं को लेकर कि कबीर साहब सामान्य शिशु की तरह माता की कोख से पैदा नहीं हुए थे बल्कि उनका अवतरण लहरतारा नामक सरोवर में कमल पुष्प के ऊपर हुआ था। वे यह सिद्ध करने में लगे हुए हैं कि किस तरह एक सौ बीस वर्ष की अवस्था में उनके निधन के पश्चात् उनके पार्थिव शरीर के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद होने पर उनका पार्थिव शरीर फूल में परिवर्तित हो गया था जिसे दोनों समुदाय के लोगों ने बराबर-बराबर बाटकर अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया था। सिर्फ इतना ही नहीं कबीर पंथी मठाधीश इस बात को भी सिद्ध करने में लगे हैं कि कबीर साहब गृहस्थ नहीं बल्कि ब्रह्मचारी थे। कमाल-कमाली जिन्हें उनकी संताने बताई जाती है, निरा बकवास है। और यह भी कि कबीर किसी के दास नहीं थे अतः उनके नाम के साथ दास शब्द न जोड़ा जाय। ये सब बातें कबीर की जाति सिद्ध करने की दलीलें नहीं तो और क्या हैं। परंतु कबीर पंथी मठाधीश और साधु को इन सब बातों का बड़ा फायदा है। वे इन बातों में जनमानस को उलझाकर रखते हैं ताकि कबीर की शिक्षाओं के विपरीत उनके आचरण पर परदा पड़ा रहे। इन बातों का इसके अतिरिक्त और कुछ लाभ नहीं है। इन बातों से कबीर के ज्ञान और शिक्षाओं में कोई अंतर आनेवाला नहीं है। ये सारी बातें म्यान का मोल करने के समान है। 

कबीर साहब ने धर्म के नाम पर जन सामान्य का आर्थिक और भावनात्मक शोषण करनेवाले पंडे-पुरोहितों और मुल्लाओं का आजीवन विरोध किया परंतु आज स्वयं को कबीर साहब का अनुयायी माननेवाले कबीर पंथी मठाधीशों और साधुओं स्वयं पंडे-पुरोहितों का वेष धारण्कर बैठे हुए हैं। कबीर साहब ने धर्म के नाम पर पूजा पद्धति, छाप-तिलक, माला-सुमरनी, आदि आडंबरों का आजीवन विरोध किया परंतु उनके अनुयायी आज इन्हीं आडबरों को लेकर बैठे हुए हैं। न सिर्फ वे स्वयं छाप-तिलक, माला-सुमरनी से स्वयं को लादे हुए हैं बल्कि कबीर साहब के चित्र और मूर्ति बनाकर उसे भी छाप-तिलक, माला-सुमरनी से लाद चुके हैं। छाप-तिलक, माला-सुमरनी का विरोध करनेवाले कबीर साहब इन चीजों को धारण करते होंगे क्या?
कबीरपंथ के अनुयायियों और उसके प्रचारक साधुओं की कबीर साहब की शिक्षाओं के विपरीत दिनचर्या और आचरण को देखकर दुख होता है। कबीर साहब ने कंठीमाला और छापतिलक का विरोध किया था, परंतु आज ये सारे के सारे इसी से रंगे हुए हैं। मुल्लाओं का मस्जिद की मीनारों से बांग देने में और मंदिरों-मठों में शंख, झांझ-मजीरे और घंटों की कानफोड़ू आवाजों में क्या अंतर है? कबीर साहब ने पूजा-पाठ, पंडितों-पुराहितों, और मुल्लाओं का विरोध किया था, आज कबीर पंथियों ने अपने लिए अलग पुरोहित वर्ग, अलग पूजा पद्धति और अलग मठ और मंदिरों की व्यवस्था कर रखा है। कबीर साहब ने पत्थर पूजा का विरोध किया था, आज सारे के सारे कबीरमठ तथाकथित गुरुओं और उनके वंशजों की मजारों से भरे पड़े है। सारे कबीरपंथी लोग इन्हीं पत्थरों की पूजा करके स्वयं को कबीर का सच्चा भक्त मानकर गौरवान्वित हो रहे हैं।

कबीरपंथ के अनुयायी और उसके प्रचारक साधुगण जो आज इस तथ्य को सिद्ध करने में उलझे हुए हैं कि कबीर गृहस्थ नहीं बल्कि ब्रह्मचारी सन्यासी थे। उनका जन्म किसी माता की कोख से नहीं हुआ था बल्कि वे लहरतारा तालाब के बीच कमल पुष्प के ऊपर अवतरित हुए थे। और उनके निधन के पश्चात् उनका पार्थिव शरीर गुलाब फूल में परिवर्तित हो गया था। कबीरपंथ के प्रचारक सन्यासी और साधुगण अपने मंचों से कबीर की शिक्षाओं की उपेक्षा करके इन्हीं तथ्यों का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। यह प्रचार-प्रसार उनके द्वारा किये जा रहे आडंबरों और कबीर की शिक्षाओं के विपरीत आचरणों पर परदा डालने का काम करता है। कबीर मठों में सद्गुरू कबीर साहब की शिक्षाओं के नाम पर चल रहे आडंबरों की ओर से लोगों के ध्यान को भटकाने के लिए यह एक सुविचारित प्रपंच के अलावा और कुछ नहीं है। 
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