गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

कविता - आप क्या सोचते हैं

आप क्या सोचते हैं


दोस्तों और अपनों के बीच की
तेज, संबंध विदारक बहसें
संसद और सभाओं की
हिंसक, मान-संहारक, दलीलें
राजनीति की तमाम धार्मिकता
धार्मिकता की तमाम राजनीति
और इस आयोजन-प्रयोजन के निमित्त
धर्माचरणों, कर्मकांडों से प्रसूत
तमाम दृष्टिफोड़क धूल-धुएँ
शादी-समारोहों के
डी जे की हृदयाघाती महाशोर
क्रेता-विक्रेता और तमाशबीनों से भरे
बाजार की मतिहारक चिल्लपों
आधुनिक के आगे उत्तरआधुनिक के मेनहोल में
प्रवेश की प्रतियोगिता में उत्तीर्ण होने
अपनों की उत्साहवर्धक ध्वनियाँ
मान-प्रतिष्ठा के संग्रहण में संलिप्त
महा सामाजिकों के जद्दोजहद के घर्षण
से निकलती कर्कश ध्वनियाँ
परिवार में परिजनों के स्वत्वों की टकराहट
और इस टकराहट की टंकारें
शिक्षकविहीन कक्षा में
बच्चों की शरारतों का
अनुशाशनहीनता और उद्दंडता में रूपांतरण
सोचता हूँ, इन सभी को
झाडू-बुहारी से बुहार देना अच्छा होगा
स्वच्छ भारत अभियान से इन्हें भी जोड़ देना उचित होगा
आप क्या सोचते हैं, दोस्त!
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