सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा के पुरखा: मदराजी दाऊ



लोकनाट्य ह वोतकच् पुरातन आय जतका मनुष्य के सामाजिक जीवन। सत्य अउ सनातन के खोज म लोक कलाकार मन जउन सपना देखथें अउ वोला मंच म अभिनय के माध्यम ले प्रगट करथें विही ह लोकनाट्य कहलाथे। छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य ल हम नाचा कहिथन। नाचा कलाकार मन लोकजीवन से जुड़े अपन अनुभव ल जउन सरलता, सहजता अउ सुंदरता ले प्रस्तुत करथें विही ह नाचा के संप्रेषणीयता के राज आय; एकरे ले नाचा म सामूहिक सम्मोहन के प्रभाव पैदा होथे। देखइया मन नाचा के मोहनी म अतका मोहा जाथे कि रात भर अपन जघा ले टसमस नइ होवंय। लोक संस्कृति के सतरंगी चमक, मनमोहक खुशबू अउ लोकहित के भाव ह नाचा के आत्मा आय। नाचा के कोनों संवाद ह लिखित म नइ रहय, कलाकार मन भुक्त संवेदनात्मक आवेग के भावात्मक ताकत से उत्पन्न विलक्षण हाजिरजवाबी द्वारा प्रसंग अनुसार अपन संवाद ल खुदे बोलत जाथें। इंखर संवाद म हंसी-मजाक तो रहिबेच् करथे, समाज के आर्थिक, धार्मिक अउ सामाजिक शोषण-जनित दुख- पीरा ऊपर करारा ब्यंग घला रहिथे।

छत्तीसगढ़ के नाट्य परंपरा ह संसार के सबले पुरातन नाट्य परंपरा आय। (रामगढ़ के पहाड़ी म स्थित रंगशाला ल दुनिया के सबले जादा जुन्नेट रंगशाला माने जाथे।) फेर नाचा के जउन सरूप ल आज हम देखथन वो ह जादा पुरातन नो हे। पहिली खड़े साज के चलन रिहिस हे। जेवन करके गांव के कोनो चंउक म सब सकला जावंय। कलाकार मन मुंह मा छुही-कोयला पोत के हाजिर हो जावंय। तबलची, मंजीरहा, चिकरहा, मसालची अउ परी, सब मिल के खड़े-खड़े ब्रह्मानंद अउ कबीर के निरगुनिया भजन गावंय। गम्मत नइ होवय। कोनों संगठित नाचा पार्टी नइ रहय। नाचा पार्टी ल संगठित करके वोला आज वाला सरूप देवइया महान लोक-रंगकर्मी, संगीतकार, सुंदर सामाजिक शुचिता अउ सौहाद्र के स्वप्न-द्रष्टा, समाज सुधारक अउ नाचा बर अपन तन-मन-धन ल अर्पित करइया महान विभूति के नाम रिहिस हे, दाऊ दुलार सिंह साव, जउन ल हम मंदराजी दाऊ के नाम से जानथन।

मंदराजी दाऊ के जन्म 1 अप्रेल 1911 ई. म राजनांदगांव ले सात कि. मी. दुरिहा रवेली गांव के संपन्न मालगुजार परिवार म होय रिहिस। पिता जी के नांव श्री रामाधीन साव अउ माता जी के नांव श्रीमती रेवती बाई साव रिहिस हे। इंखर प्राथमिक शिक्षा कन्हारपुरी म होइस। बचपनेच् ले इंखर रूचि गाना-बजाना म रिहिस। कहावत हे, ’होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ ; गांव म कुछ लोक-कलाकार रिहिन, इंखरे संगत म पड़ के बचपनेच् म ये मन तबला अउ चिकारा बजाय बर सीख गें। वो समय इहां हारमोनियम के नामोनिसान नइ रिहिस।
माता-पिता के इच्छा रिहिस कि बेटा ह पढ-लिख के मालगुजारी ल संभालय, फेर बेटा के मन तो नाचा के सिवा अउ कुछू म रमेच् नहीं। बाप ल ये सब चिटको नइ सुहावय। बेटा ल हाथ से निकलत देख के वोला फिकर होय लगिस। बेटा ल बांध के रखे खातिर अब वोला एकेच् उपाय दिखिस। चैदह साल के बालपन म ही राम्हिन बाई नांव के सुंदर कन्या के संग दुलार सिंह के बिहाव कर दिन। फेर मंदराजी के मूड़ म तो नाचा के भूत सवार रहय, दुनियादारी म वो कहां बंधने वाला रिहिस?

दुनिया के कोनों माया-मोह ह मंदराजी दाऊ ल नाचा ले अलग नइ कर सकिन। एक समय वो ह नाचा बर नरियर झोंक डरे रहय। घर म बेटा ह बीमार पड़े रहय। भगवान ल परछो लेना रिहिस होही। विही दिन बीमार बेटा के सांस ह टूट गे। पुत्र-सोग ले बढ़के दुनिया म अउ कोनों दुख नइ होवय, फेर वो तो रिहिस ए युग के राजा जनक, वीतरागी। बेटा के लहस ल छोड़ के पहुंच गे नाचा के मंच म। रात भर नाचा होइस। देखइया मन रात भर मजा लूटिन, मंदराजी के मन के दुख ल कोई नइ जान सकिन, न देखइया मन, न संगवारी कलाकार मन। बिहिनिया नाचा खतम होइस, मंदराजी के दूनों आंखी ले तरतर-तरतर आंसू बोहय लगिस। संगवारी मन चकरित हो गें। अइसन रिहिस मंदराजी दाऊ ह।

दुलार सिंह ले मंदराजी बनें के घला बड़ रोचक किस्सा हे। बचपन म बड़े पेट वाला हट्टा-कट्टा दुलार सिंह ह अंगना म खेलत रहय। तुलसी-चंवरा म वइसने एक ठन पेटला मूर्ति ओधे रहय जउन ह मदरासी मन सरिख दिखय; नाना ह विही ल देख के बालक ल कहि दिस ’मदरासी’। काकी-भउजी मन ल घला इही नाम ह भा गे अउ दुलार सिंह ह बन गे मदरासी। इही मदरासी ह सुधरत-सुधरत हो गे मंदराजी अउ जहरित हो गे जग म।

नाचा अउ मंदराजी दाऊ अब एक-दूसर के पहिचान बन गें। समाज के कुरीति अउ अंगरेज के गुलामी वोकर मन ल निसदिन कचोटय। मंदराजी दाऊ ह इंखर से लड़े खातिर नाचा ल हथियार बना लिस। अब वो ह नाचा ल अपन मनमाफिक रूप देय बर भिड़ गे। 1927-28 ई. म वो ह नाचा के प्रसिद्ध कलाकार मन ल जोड़ के नाचा पार्टी बनाय के उदिम शुरू कर दिसं। खल्लारी के प्रसिद्ध परी नारद निर्मलकर,  प्रसिद्ध गम्मतिहा लोहरा(भर्रीटोला) के सुकालू ठाकुर अउ खेरथा (अछोली) के नोहर दास, कन्हारपुरी (राजनांदगांव) के तबलची राम लाल निर्मलकर अउ चिकरहा के रूप म खुद, पांचों झन मिल के रवेली नाचा पार्टी के गठन करिन। इही ह पहिली संगठति नाचा पार्टी बनिस।

मंदराजी दाऊ के नांव अब छत्तीसगढ़ म जहरित हो गे। 1930 ई. म संगवारी मन संग कलकत्ता जा के हारमोनियम लाइस। नाचा म अब पहिली बार हारमोनियम बजे लगिस। नाचा के रंग-ढंग ल दाऊ जी ह अब चुकता बदले म भिड़ गें। नाचा के मंच म अब चंदेवा लगे के शुरू हो गे। बजनिहा मन बर बाजवट माढ़े लगिस। मशाल के जघा गियास बत्ती (पेट्रोमेक्स) जले लगिस। खड़िया अउ हरताल के जघा स्नो-पावडर आ गे। ब्रह्मानंद अउ कबीर के निरगुनिया भजन के जघा ’भाई रे तंय छुआ ल काबर डरे’ अउ ’तोला जोगी जानेव रे भाई’ जइसे गीत बजे लगिस (आगू चल के फिल्मी गीत घला आ गें।) गम्मत होय लगिस अउ इही गम्मत मन म समाज के ढोंग ल उजागर करे के उदिम अउ देश के आजादी के बात होय लगिस। नाचा अब रात के दस बजे ले बिहिनिया के होवत ले होय लगिस।

जनता नाचा के दिवानी हो गे। दिन डुबतहच जघा पोगराय बर बोरा-दरी जठे के शुरू हो जाय। दुरिहा-दुरिहा के आदमी गाड़ी-खांसर म जोरा-जोरा के आय। नाचा के लोकप्रियता के हिसाब रायपुर म सन् 50-51 म एकर प्रदर्शन से लगाय जा सकथे। डेढ़ महीना तक रोज नाचा होइस। नाचा के समय जम्मों टाकीज मन बंद हो जावंय। टाकीज वाले मन थर खा गें।

मंदराजी ह नाचा अउ नाचा कलाकार मन बर अपन सब कुछ ल होम कर दिस। अंत म सौ एकड़ के मालिक ये दधीचि के पास हारमोनियम के सिवा अउ कुछू नइ बचिस। दाऊ जी ह एक बात हरदम कहंय, -’’ दुनिया म धन कमाना सरल हे, नाम कमाना कठिन हे।’’ दुनिया म सबो खाली हाथ आथें अउ खालिच् हाथ जाथें, फेर महापुरूष मन अपन नांव ल दुनिया म छोड़ जाथें। उंखर कर्म के महक ह सदा-सदा के लिये समाज म बस जाथे।

24 सितंबर 1984 ई. म दाऊ जी ह ये दुनिया ले बिदा हो गें।

वोकर जन्म स्थान रवेली म वोला भक्ति-भाव अर्पित करे बर हर साल 1 अप्रेल के दिन लोक कलाकार मन के मेला लगथे। राज्य सरकार ह वोकर सम्मान म लोक कलाकार मन बर दो लाख रूपिया के मंदराजी सम्मान देथे।
                                000

कुबेर सिंह साहू  
व्याख्याता
शासकीय उच्च. माध्य. शाला कन्हारपुरी
वार्ड 28, राजनांदगाँव, (छ.ग)
Mo 9407685557

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें