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शुक्रवार, 18 मई 2018

भाषा और व्याकरण

भाषा की प्रकृति


भाषा की प्रकृति विलक्षण है। यह स्वयं में सत्तासंपन्न होती है। यद्यपि यह समाज की निर्मिति है इसके बावजूद यह समाज और व्यक्ति का निर्माण करती है और उनकी योग्यताओं और चेतना के स्तरों को निर्धारित करती है, व्यक्त करती है। शायद इसीलिए कहा गया है - बंद मुट्ठी लाख की, खुल जाये तो खाक की। भाषा प्रवाहमान होती है अतः यह नित नया रूप भी धारण करती रहती है। इस प्रक्रिया में इसके शब्दों के पारंपरिक अर्थ भी बदलते रहते हैं। बहुत सारे शब्द प्रचलन से बाहर होकर विलुप्त भी हो जाते हैं। यह भाषा के शब्दों की मृत्यु है। बहुत सारी भाषाएँ विलुप्त हो चुकी हैं और बहुत सारी भाषाएँ विलुप्ति के कगार पर हैं। इसके बहुत से कारक हो सकते हैं परंतु कुछ कारक ऐसे हें जिससे लगता है कि भाषा की हत्या हो रही है। इसके विपरीत, भाषाविज्ञानियों के अनुसार - भाषा परंपराओं के साथ मिलकर शोषण भी करती है। तो क्या भाषाएँ हत्या भी करती हैं? कहना न होगा कि भाषा का अपना बहुआयामी व्यक्तित्व भी होता है। इस मायने में यह स्यवं में किसी नागरिक से कम नहीं है। - kuber

रविवार, 30 अप्रैल 2017

भाषा और व्याकरण


निपात और उसके कार्य

कुछ अलग शब्द वाक्य में प्रयुक्त होकर अर्थ को विषेश बल देते हैं; उन्हें निपात कहा जाता है। जैसे -
’ही’     1 समने ही दिख रही थी सड़क।
    2 समने सड़क ही दिख रही थी।
    3 समने सड़क दिख ही रही थी।

’भी’    1 वह समय पर अड़ भी सकता है।
    2 वह भी समय पर अड़ सकता है।
    3 वह समय पर भी अड़ सकता है।

निपात की विशेषताएँ

१. निपात शुद्ध अव्यय नहीं है - क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्यय का प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता।
2. निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है।
३. निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं होते।
४- साधारण निपात अव्यय ही होते हैं
5. हिंदी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं।

निपात के कार्य

निपात के निम्नांकित कार्य होते हैं -
१. प्रश्न - क्या वह जा रहा है?
2. अस्वीकृति - वह आज नहीं जायेगा।
३. विस्मयादिबोधक - क्या अच्छी पुस्तक है!
४. वाक्य में किसी शब्द पर बल देने के लिए।
अतः कह सकते हैं -
निपात का कोई लिंग व वचन नहीं होता।
निपातों में सार्थकता नहीं होती, पर वे सर्वथा निरर्थक भी नहीं होते।