शनिवार, 25 जनवरी 2014

आलेख

शासनतत्र या सेवातंत्र 

गणतंत्र की 64वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर आप सबको हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ। इस राष्ट्रीय पर्व को आइये आज हम संकल्प पर्व के रूप में मनाने का निर्णय लें। आज हम संकल्प लें अथवा अपने संकल्पों को दृढ़ करें कि अपने जीवन में हमें जरूर ऐसा कुछ करना है जिससे मातृभूमि का गौरव और सम्मान बढ़े। एक संपन्न और सुदृढ़ राष्ट्र के रूप में दुनिया में इसकी पहचान बने। 

 आज हम अपनी अब तक की उपलब्धियों की समीक्षा भी करें। निसंदेह हमारी आज तक की उपलब्धियाँ हमारी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में निहित शक्तियों की देन है। हमारा लोकतंत्र हमें इससे अधिक दे सकता था यदि हमने इसे एक शासन-प्रणाली या शासन-तंत्र के रूप में अंगीकार न करके इसे एक सेवा-प्रणाली या सेवा-तंत्र के रूप में अंगीकार किया होता। चूँकि इसे हमने एक शासन-प्रणाली के रूप में अंगीकार किया है, जाहिर है हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि जो इस प्रणाली के अंग होते हैं, स्वयं को शासक ही मानते हैं। यह स्थिति जिन कारणों से अपने चरम रूप में प्रगट हुई है वह पूरी तरह स्पष्ट है। हमारे अब तक के अधिकांश शासक (प्रधिनिध) पुराने राजतंत्रीय व्यवस्था की शोषक जमीन से ही आते रहे हैं। अपनी राजसत्ता (शोषण की सत्ता) खोने वाले इन जन प्रतिनिधियों की विचारधारा में एकाएक परिवर्तन आ जाय, इस प्रकार की कल्पना करना भी बेमानी है, सेवातंत्र की अवधारणा तो दूर की बात है। इन लोगों ने आम जनता ही नहीं देश के बहुमूल्य संसाधनों का भी बेशर्मी और निर्दयता पूर्वक शोषण किया है, और कर रहे हैं। 

आज तक के राजनीतिक विचारकों और विद्वानों ने भी लोकतंत्र को एक शासन प्रणाली के रूप में ही परिभाषित किया है। आप जानते ही हैं कि लोकतंत्र की सर्वाधिक लोकप्रिय परिभाषा देने वाले अब्राहम लिंकन ने भी इसे एक शासन-प्रणाली ही माना है। अब लोकतंत्र की अब तक की मान्य परिभाषाओं को पृष्ठभूमि में रखकर आज की आवश्यकताओं के अनुरूप एक नई परिभाषा गढ़ने का, एक ऐसी परिभाषा गढ़ने का समय आ गया है जिसमें लोकतंत्र को एक सेवातंत्र के रूप में मान्य किया गया हो। 

 लोकतंत्र सेवाव्रती लोगों द्वारा जनसेवा के लिये चलाया जाने वाला एक अभियान होना चहिये। 
कुबेर

सोमवार, 6 जनवरी 2014

लघु कथाएँ

मरहाराम की कहानियाँ

कुबेर

1. परंपरा

रात मरहाराम ने एक सपना देखा। एक व्यक्ति काफी दिनों से बीमार था। बचने की उम्मीद नहीं थी। संयोग से उसके घर एक सिद्ध पुरूष का आगमन हुआ। उन्होंने उसे एक औषधि दिया। उस औषधि के सेवन से वह स्वस्थ हो गया। औषधि की कृपा से उस समय उसने मौत को जीत लिया था। औषधि पर श्रद्धा हो जाना स्वाभाविक था। वह उसकी पूजा करने लगा।

मरते वक्त उसने अपने पुत्र से कहा कि इस औषधि को वह संभाल कर रखे, पता नहीं कब आवश्यकता पड़ जाय। पुत्र ने पिता की परंपरा का निर्वाह किया। वह जीवन भर उसकी श्रद्धा पूर्वक पूजा करता रहा। बीमार पड़ने पर भी उसने उस औषधि का सेवन नहीं किया। उनके बच्चों ने भी उसकी परंपरा का निर्वाह किया। अगली पीढ़ी को बस इतना ही पता था कि यह एक दिव्य वस्तु है। पूर्वज इसकी पूजा करते आये हैं इसलिये इसकी पूजा करन उनका भी धर्म बनता है। इससे पुण्य लाभ होता है।

एक बार उस परिवार का मुखिया उसी रोग से पीड़ित हो गया जिससे कभी उसका पूर्वज ग्रसित हुआ था। जिस दिव्य वस्तु की वह रोज पूजा करता था, उसके सेवन से वह रोग मुक्त हो सकता था, परंतु उसने ऐसा नहीं किया। दिव्य वस्तुएँ पूजा के लिए होती हैं, सेवन करने के लिये नहीं। वह कालकवलित हो गया।
उस औषधि का नाम था, ईश्वर।
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2. छठवाँ तत्व

उस दिन सतसंग में पंडित जी कह रहे थे - ’’क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा ..  मनुष्य का शरीर पाँच तत्वों से बना होता है। यह शरीर नाशवान है। मृत्यु होने पर ये पाँचों तत्व अपने-अपने मूल में वापस समा जाते हैं।’’
मरहा राम भी सतसंग लाभ ले रहा था। उसकी अड़हा बुद्धि के अनुसार पंडित जी के इस कथन में उसे कुछ घांच-पाँच लगा। उसने कहा- ’’पंडित जी! हजारों साल पहले लिखी यह बात उस समय जरूर सत्य रही होगी। अब इसकी सत्यता पर मुझे संदेह होता है।’’

पंडित जी ने कहा - ’’हरे! हरे! घोर पाप! कैसा जमाना आ गया है। धर्मग्रंथों में लिखी बातों के ऊपर संदेह? ऐसी बातें कभी असत्य हो सकती हैं?’’

’’मैं भी तो यही कह रहा हूँ पंडित जी’’, मरहा राम ने कहा - ’’अब तत्वों की संख्या बढ़ गई होगी, वरना पाप कहाँ से पैदा होता?’’

’’अरे मूरख! पाप-पुण्य कब नहीं था। उस समय भी थे, अब भी हैं।’’

’’लेकिन तब भ्रष्टाचार और अनाचार तो नहीं रहे होंगे न?’’

’’मरहा राम! ये सब भी पहले थे, फरक केवल मात्रा का है। अब कम का जादा और जादा का कम हो गया है।’’

’’लेकिन पडित जी,’’ मरहा राम ने कहा - ’’लोग कहते हैं, आज का आदमी जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है। और जैसा होता है, वैसा दिखता नहीं। मुझे लगता है, नहीं दिखने वाला यही तत्व पहले नहीं रहा होगा। नहीं दिखने वाला तत्व मतलब अदृश्य तत्व, डार्क मैटर। कहीं यही तो छठवाँ तत्व नहीं है।’’
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3. संत

मरहा राम आजकल धार्मिक व्यक्ति हो गया है। गाँव में उत्तर वाले किसी पहुँचे हुए संत का प्रवचन चल रहा था। नियम-व्रत का पालन करते हुए पिछले पाँच दिनों से वह सत्संग-लाभ ले रहा है। वह संत जी के वचनों को हृदय में बसाता भी है और बुद्धि से तौलता भी है। खाली समय में वह संत जी के पास जाकर बैठ जाता है, अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त करने के लिए।

संतों का लक्षण बताते हुए प्रवचनकार संत जी आज ही  अपने प्रवचन में कह रहे थे - ’’संत वह है जो मीठा खाता है और मीठा बोलता है। मीठा खाने का मतलब मीठा सुनना।’’

संत जी की बातों ने मरहा राम के हृदय को छू लिया। उसने कहा - ’’भगवन! संतों के बारे में आप ठीक ही कहते हैं। नेता जी जब भी आते हैं, मीठा-मीठा ही बोलते हैं।’’
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शनिवार, 4 जनवरी 2014

नोबल प्राईज 2013

नोबल प्राईज 2012-13 

1. - चिकित्सा:- 

हार्मोन शरीर के विभिन्न अंगों में स्थित नलिका विहीन ग्रन्थियों जिन्हें ’एण्डोक्राइन ग्लैण्ड्स’ कहते हैं के द्वारा बनाई जाती हैं। हार्मोन्स रक्त प्रवाह के माध्यम से शरीर की कोशिकाओं में पहुँचते हैं एवं विभिन्न महत्वपूर्ण जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। कोशिकाओं में विभिन्न हार्मोन्स का प्रवाह किस प्रकार से होता है, इस विषय पर महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए इस वर्ष का नोबल प्राईज संयुक्त रूप से निम्न वैज्ञानिकों को प्रदान किया गया है -
1 जेम्स रादमैन, अमेरिका 
2 रैंडी शेकमन, अमेरिका 
3 थामस सुडाॅफ, जर्मनी 

2. - अर्थशास्त्र 

’’पूँजी की कीमत समझने की वर्तमान व्यवस्था की आधारशिला’’ पर महत्वपूर्ण शोध कार्य हेतु निम्न अर्थशास्त्रियों का इस वर्ष का नोबल प्राईज प्रदान किया गया- 
1. लार्स पीटर हैनसन, अमेरिका 
2. यूजीन फामा, अमेरिका 
3. राबर्ट शिलर, अमेरिका 

 3. - भौतिक शास्त्र 

पदार्थ के मूल कण ’हिग्स बोसाॅन’ जिसे ’गाॅड पार्टिकल’ भी कहा जाता है की खोज करने पर इस वर्ष भौतिकी का नोबल प्राईज निम्न वैज्ञानिकों को प्रदान किया गया - 
1 - पीटर हिग्स (84 वर्षीय), ब्रिटेन 
2 - फ्रांस्वा एंगलर्ट (80 वर्षीय), बेल्जियम 

4 - रसायन शास्त्र 

जटिल रसायनिक क्रियाओं को समझाने के लिए बहुमापन प्रणाली का विकास करने के लिए निम्न वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार प्रदान किया गया - 
1 - मार्टिन कारप्लस, अमेरिकन आस्ट्रेलियाई 
2 - माइकल लेविट, अमेरिकन ब्रिटिश 
3 - आरिया वार्शेल, अमेरिकन इजरायली 

5. - साहित्य 

’’मानवीय स्थिति की कमजोरियों पर आधारित कहानियों’’ के लिए कनडा के 82 वर्षीय एलिस मुनरो को इस वर्ष का नोबल प्राईज प्रदान किया गया। एलिस मुनरो साहित्य का नोबल प्राईज पाने वाली विश्व की 13 वीं महिला साहित्यकार हैं। 

6. - शांति 

इस वर्ध शांति का नोबल प्रईज दुनिया को रसायनिक हथियारों से मुक्त कराने के लिए काम करने वाली संस्था “O.P.C.W. - ORGANIZATION FOR THE PROHIBITION OF CHEMICAL WEAPONS” को यह पुरस्कार दिया गया है। 
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 प्रस्तुति - कुबेर

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

चित्र कथा

कुबेर की समकालीन छत्तीसगढ़ी कहानियों का संग्रह ’कहा नहीं’ का विमोचन, 25 दिसंबर 2011; सृजन संवाद राजनांदगाँव 

मुकुन्द कौशल (सुप्रसिद्ध गीतकार; दुर्ग) कृतिकार कुबेर, डाॅ. विनय पाठक (भाषाविद्, साहित्यकार, समालोचक एवं प्रकाशक; बिलासपुर), डाॅ. शंकर मुनि राय (प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, हिन्दी; शा. स्वशासी दिग्विजय महा. राजनांदगाँव)


संतराम देशमुख ’विमल’ (दुर्ग), कृतिकार कुबेर, आ. सरोज द्विवेदी, (राजनांदगाँव), मुकुन्द कौशल (सुप्रसिद्ध गीतकार; दुर्ग) डाॅ. विनय पाठक (भाषाविद्, साहित्यकार, समालोचक एवं प्रकाशक; बिलासपुर), डाॅ. शंकर मुनि राय (प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, हिन्दी; शा. स्वशासी दिग्विजय महा. राजनांदगाँव) प्रो. थानसिंह वर्मा, (प्राध्यापक, शा. स्वशासी दिग्विजय महा. राजनांदगाँव)