मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

व्यंग्य

दहशत पैदा करनेवाले नारे


दो दिन पहले की बात है। शहर के व्यस्ततम, स्तंभ चौक पर शाम पाँच बजे एक राष्ट्रीय दल के सौ-डेढ़ सौ कार्यकर्ताओ का मजमा लगा हुआ था। आस-पास के बिजली के खंभों पर पार्टी के झण्डे टंगे हुए थे। अधिकांश कार्यकर्ता पार्टी के झंडे को डंडे पर लपेट कर बगल में दबाये ऊँचे-ऊँचे स्वर में बतिया रहे थे। अधिकांश वे थे जिनके पास दो-तीन साल पहले पुरानी सायकिले भी नहीं थी पर अब उनके पास मंहगी कारे थी। मोटरसायकिलें तो अब सबके पास हो गई हैं। वे स्वयं और उनकी मोटर मोटरसायकिलें आधी सड़क को घेरे खड़ी थी। इसी चौक में जो ट्रैफिक पुलिस रोज सड़क किनारे के लाइन के बाहर खड़ी दसियों मोटरसायकिलों को क्रेन गाड़ी से उठाकर थाने ले जाती हैं; वही आज इन कार्यकर्ताओं की सड़क पर खड़ी मोटरसायकिलों की रखवाली कर रही थी।

मजमा देखकर मुझे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी। ठेले पर फल बेच रहे एक भाई से मैंने कारण पूछा। उन्होंने आर्त स्वर में कहा - क्या बताएँ भइया, राष्ट्रभक्त और अनुशासित दल के इन कार्यकर्ताओं को देख लो, इनके लिए न कोई कानून है और न कोई नियम। मर्यादा पुरुषोत्तम को आदर्श माननेवालों की मर्यादा देख लो। यहाँ से हजार मील दूर किसी शहर के स्थानीय चुनाव में इनकी पार्टी जीत गई है। पटाखा फोड़ने के लिए जुटे हैं। अपने नेता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

थोड़ी देर बाद उनके नेताओं का आगमन हुआ। बड़े नेता के चरणरज के लिए कार्यकर्ताओं में होड़ शुरू हो गई। मुझे उम्मीद थी, नेतागण ट्रैफिक नियम तोड़नेवाले अपने इन कार्यकर्ताओं को इस संबंध में टोकेंगे। परन्तु मुझे निराशा हुई।

इस शहर में दो चौक बड़े प्रसिद्ध हैं। एक है - मंदिर चौक। स्कूल के छात्रसंघ के लिए चयनित छात्रों से लेकर तमाम राजनीतिक पार्टी के लोग इसी चैक पर पटाखे फोड़कर अपनी खुशियों को सार्वजनकि करते हैं। दूसरा है - यही ऐतिहासिक स्तंभ चौक। पहले इस चौक पर देश के महान नेताओं के संबोधन हुआ करते थे। अब यहाँ विपक्षी नेताओं के पुतलों की अंत्येष्टि की परंपरा कायम हो चुकी है। विजय की शुभ घड़ी में इस
चौक पर, जिसे आम लोग अब शमशान चौक कहने लगे हैं,  पटाखा फोड़ने से अपशगुन तो होता ही, परंपरा का उलंघन भी होता। लिहाजा  कार्यकर्ताओं का जुलूश अपने नेता के पीछे-पीछे मंदिर चौक की ओर जाने लगी। कार्यकर्तागण चलते-चलते भारत माता की जय और जय श्रीराम के गगनभेदी नारे लगाने लगे।

स्कूल में बच्चे रोज राष्ट्रगान के बाद भारत माता की जय बुलाते हैं। तब राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र गौरव की भावना से मेरा हृदय भर उठता है। जय श्रीराम का स्मरण कर आत्मा पुलकित हो जाती है। पर पता नहीं क्यों, इस समय इन कार्यकर्ताओं के भारत माता की जय और जय श्रीराम के गगनभेदी नारों को सुनकर मुझे दहशत होने लगी थी।
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रविवार, 12 फ़रवरी 2017

गीत

गीत - अँखियाँ भूल गयी है सोना,    गीतकार - भरत व्यास, संगीतकार - बसंत देसाई,   फिल्म - गूँज उठी शहनाई (1959)

अँखियाँ भूल गयी है सोना।
दिल पे हुआ है जादू टोना।
शहनाईवाले तेरी शहनाई रे करेजवा को
चीर गयी, चीर गयी, चीर गयी।

अब दिन ये कैसे गोरी आये।
छुप-छुप के मिलना मन भाये।
सखियों से काहे अब चोरी।
बंध गई रे प्रीत की डोरी।
कोई जुल्मी सँवरिया की, तिरछी नजरिया हो
मार गयी, मार गयी, मार गयी।
अँखियाँ भूल गयी है सोना ............

सखियाँ न मार मोहे ताने।
जिसकी न लगी वो क्या जाने।
भूल जाओगी, भूल जाओगी, ...
भूल जाओगी करना ये ठिठोली।
कोई मिल गया जो हमजोली।
कैसे बच के रहोगे, आहें भर के कहोगे,
मैं तो हार गयी, हार गयी, हार गयी।
अँखियाँ भूल गयी है सोना.............

आपस में मिलते दीवाने।
और हमसे हो रहे बहाने
चितवन कमान पे जो ताने।
वो बाण हमने पहचाने।
नजरों की ये बातें, चोरी-चोरी मुलाकातें,
हम जान गयी, जान गयी, जान गयी।
अँखियाँ भूल गयी है सोना.................



अँखियाँ भूल गयी है सोना।
दिल पे हुआ है जादू टोना।
शहनाईवाले तेरी शहनाई रे करेजवा को
चीर गयी, चीर गयी, चीर गयी।

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