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मंगलवार, 2 अगस्त 2022
सोमवार, 1 अगस्त 2022
प्रेमचंद जयंती
विश्व साहित्य की अनूठी कहानी 'कफन'
साकेत साहित्य परिषद, सुरगी, जिला - राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) द्वारा उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती (31 जुलाई 2022, रविवार) के अवसर पर उनकी कहानियों पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। ’बाबा जी का भोग’ कहानी पर चर्चा करते हुए ओमप्रकाश साहू ’अंकुर ने कहा कि अंध धार्मिक आस्था द्वारा स्थापित रूढियों, परंपराओं और मान्यताओं के कारण हम सदियों से शोषित होते आ रहे हैं। हमारी विडंबना यह है कि इन स्थापित रूढियों के चलते शोषित होकर भी हम स्वयं को धन्य और कृतार्थ मानते हैं। ’सवा सेर गेहूँ कहानी में भी इसी विडंबना को उद्धाटित किया गया है। ’सद्गति’ कहानी पर चर्चा करते हुए महेंद्र बघेल ’मधु’ ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के पात्रों को दो श्रेणियों रखा जा सकता है - पहली श्रेणी शोषित पात्रों की है जिनमें दलित, किसान, मजदूर और महिला पात्र शामिल हैं तथा दूसरी श्रेणी शोषक पात्रों की है जिनमें जमींदार, महाजन, साहूकार, ब्राहमण और पुरोहित वर्ग शामिल हैं। सभी तरह के शोषणों में ब्राहमण और पुरोहित वर्ग द्वारा हो रहा शोषण सर्वाधिक भयावह है। इस शोषण में शोषित वर्ग शोषित होने को ही अपनी सद्गति मानता आ रहा है। राज कुमार चैधरी ’रौना’ ने कहा कि प्रेमचंद कबीर की परंपरा के कलमकार थे। कबीर और प्रेमचंद के समय की समाजिक परिस्थितियाँ आज भी मौजूद हैं इसलिए वे आज भी प्रासंगिक हैं। पवन कुमार यादव ’पहुना’ ने ’पंच परमेश्वर’ कहानी का स्मरण करते हुए कहा कि न्याय की आसंदी पर बैठा हुआ व्यक्ति सदा न्याय का ही पक्ष लेता है। छत्तीसगढ़ के गाँवों में किसी जटिल मामले पर अंतिम निर्णय के लिए पांच पंचों की समिति नामित करने की परंपरा है। इस मान्यता का एक रूप हम आज के न्यायालयों में भी ’जूरी’ व्यवस्था के रूप में देख सकते हैं। ’पीसनहारी का कुआँ’ कहानी पर चर्चा करते हुए कुलेश्वर दास साहू ने कहा कि इस कहानी में कहा गया है कि अमानत पर खयानत करना किसी सरल विश्वासी के साथ महान विश्वासघात करना है। इसका परिणाम विश्वासघाती का सर्वनाश हो जाना है। परिषद के अध्यक्ष लखनलाल साहू ’लहर’ ने कहा कि उनकी कहानी ’पूस की रात’ में एक भारतीय किसान का खेती के प्रति मोहभंग की परिस्थियों का चित्रण किया गया है। अंत में परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे कुबेर सिंह साहू ने ’कफन’ कहानी पर चर्चा करते हुए कहा कि कफन शव को ढकने के लिए होता है परंतु प्रेमचंद के ’कफन’ ने वर्णवादी भारतीय समाज की समस्त नग्न सच्चाईयों को अनावृत्त कर दिया है। ’कफन’ एक ऐसी अनूठी कहानी है जिसकी समीक्षा अनेक विद्वानों द्वारा की जा चुकी है फिर भी कोई भी समीक्षा पूर्ण और संतोषप्रद नहीं लगती। प्रेमचंद के उत्तर साहित्य में गांधी जी के विचारों का प्रभाव परिलक्षित होता है। गांधी जी ने अंग्रेजी सत्ता का विरोध करने के लिए ’असहयोग आंदोलन’ चलाया था जिसकी झलक कफन में घीसू और माधव के चरित्र में मिलती है। प्रेमचंद ने घीसू और माधव के रूप में अत्यंत संश्लिष्ट चरित्र का सृजन किया है। पहले उन्होंने उनकी कमजोरियों का उल्लेख किया है परंतु तुरंत ही उन्हें विचारहीन किसानों से अधिक विचारवान कहते हुए उनकी तुलना किसी विरक्त साधु से किया गया है। कहावत है, ’भूखे भजन न होय गोपाला’। भूखे व्यक्ति के लिए मान-अपमान, धर्म-दर्शन, नैतिकता और न्याय की बाते फिजूल है। घीसू और माधव को जीवन में कभी भरपेट भोजन नहीं मिला। घीसू ने तो फिर भी बीस साल पहले ठाकुर की बारात में तृप्ति का आनंद पा लिया था, परंतु माधव को तो तृप्ति का पहला आनंद बुधिया के कफन के पैसों के बदौलत ही मिलता है। तृप्त हो जाने के बाद वे दोनों किसी धार्मिक की तरह धर्म और अध्यात्म की बातें करते हुए नाचने लगते हैं। इस कहानी में पाठकों के लिए अवकाश की कोई कमी नहीं है।
कार्यक्रम का संचालन लखनलाल साहू ’लहर’ ने तथा आभार प्रदर्शन कुलेश्वर दास साहू ने किया।
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प्रस्तुतकर्ता
कुबेर
01 सितंबर 2022