मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

कविता

यह, वह समय नहीं है

यह, वह समय नहीं है
यह, इस समय है, सच यही है
वह समय, अभी नहीं आनेवाला है
वह समय, को कोई अभी नहीं लानेवाला है

वह आये,
ऐसा जतन करनेवाला अभी कोई नहीं है
उसे लाया जाये,
ऐसा सोचनेवाला भी अभी कोई नहीं है

लोग अभी,
इस समय को भुनाने में मस्त हैं
लोग अभी,
इस समय को बिताने में व्यस्त हैं

यह समय
साबित, सिद्ध और प्रमाणित होने का समय है
यह समय
साबित, सिद्ध और प्रमाणित लोगों का समय है

और
इस समय लोग स्वयं को
साबित, सिद्ध और प्रमाणित करने में लगे हुए हैं
घृणिततम पाप करके
जघन्यतम अपराध करके
गर्वोक्त कथन में लगे हुए हैं -
’तुम्हारे ..... में दम है तो साबित करके बता
फिर ऊँगली उठा ...... ।’

उसे पता है
यह, यह यमय है, और
इस समय कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता
साबित, सिद्ध और प्रमाणित लोगों के खिलाफ
इस समय कुछ भी नहीं किया जा सकता
साबित, सिद्ध और प्रमाणित लोगों की मर्जी के खिलाफ

लोग स्वयं को
साबित, सिद्ध और प्रमाणित करने में लगे हुए हैं
ताकि उनकी मर्जी के खिलाफ
कुछ भी साबित, सिद्ध और प्रमाणित न हो सके
इस समय।

वह समय
अपमानित और, तिरस्कृत होकर चला गया था
हजारों साल पहले
वह समय शायद अब लौटकर आनेवाला नहीं
हजारों सालों तक

इस समय, अभी कोई नहीं है
उसका सम्मान और स्वागत करनेवाला।
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kuber - 28.12.2106

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

दिल्ली का लटियन जोन


देशबंधु, 19 दिसंबर 2016 के संपादकीय पृष्ठ में पुष्परंजन ने अपने लेख में बहुत से सवाल उठाये हैं। जैसे - 

’’....कार्ड करेंसी के वास्ते प्रचंड प्रचार में देश के करदाताओं के पैसे किस बेरहमी से बहाए जा रहे हैं, उस पर कोई सवाल नहीं उठाता। तर्क क्या दिया जा रहा है? इससे भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा, काले धन को बाहर निकाल लेंगे। आतंकवादियों के फंडिंग को रोक देंगे। अभी तो चंद बिल्डरों, ज्वेलरों, व्यापारियों, कानून की आड़ में काले का सफेद करनेवाले धंधेबाजों के यहाँ छापेमारी में कुछ सौ करोड़ निकले हैं। क्या दिल्ली के लटियन जोन में जाने की किसी की हिम्मत है? ......’’

पढ़कर मन में जिज्ञासा हुई कि यह लटियन जोन क्या है, यहाँ कौन लोग रहते होंगे, जहाँ जाने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता और जहाँ जाने की हिम्मत जुटाने के लिए सरकार को चुनौती दी गई है? 

20 दिसंबर 2016 के नई दुनिया के पृष्ठ 12 पर ’’देश के सबसे मंहगे रिहायशी इलाके में केपी सिंह की बेटी ने खरीदा बंगला’’ शीर्षक से एक समाचार छपा है। देश के इस सबसे मंहगे रिहायशी इलाके का नाम लुटियंश जोन है। केपी सिंह डी. एल. एफ. के चेयरमैन हैं और उनकी बेटी का नाम रेनुका तलवार है जिन्होंने पृथ्वीराज रोड इलाके में 435 करोड रूपये में बंगला खरीदा है। इस सौदे को अब तक का सबसे मंहगा सौदा बताया गया है। 

’’.... 4925 वर्गमीटर के प्लाट पर स्थित यह बंगला 1189 वर्गमीटर में फैला है। बंगले को 8.8 लाख रूपये प्रति वर्गमीटर के हिसाब से बेचा गया है। ........’’  

आगे बाक्स में यह जानकारी दी गई है - 

’’इन उद्योगपतियों के बंगले इन जोन में हैं। ... एल. एन. मित्तल, नवीन जिंदल, केपी सिंह, सुनील मित्तल, एस्सार ग्रुप के शशि और रवि रूइया, मलविंदर और शिविंदर सिंह और अनलजीत सिंह जैसे उद्योगपतियों के बंगले बने हुए हैं। लटियन जोन का फिलहाल कुल क्षेत्रफल 3000 एकड़ है। .......’’

यह भी बताया गया है कि इस जोन में मंत्रियों और आला अधिकारियों के बंगले भी हैं। मुझे लगता है, लटियन जोन और लुटियंश जोन एक ही है।
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सोमवार, 12 दिसंबर 2016

कविता

व्युत्क्रम अनुपात


जब-जब, जितना-जितना
मंहगे और चटक वस्त्र ओढ़ते जाता हूँ
तब-तब, उसी अनुपात में
उतना ही अनावृत्त होते जाता हूँ।
वैज्ञानिक इसमें व्युत्क्रम अनुपात का नियम ढूँढेंगे।
नीयत के खोंटेपन के इन आयामों को
खोंटे नीयत के इन चलित दृश्यों को
पता नहीं आप क्या कहेंगे
समझ नहीं आता, मैं इसे क्या कहूँ
पर अपने व्यवहार-व्यापार की इस सच्चाई को मैं
पल-प्रतिपल जरूर देखता हूँ।
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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

कविता

बस


बस का अर्थ जानते हो?
तो बताओ -

किसी ने कहा -
’’वह, जो हमें पहुँचाती है
हमारे गंतव्य तक
पीं-पों, पीं-पों, घर्र-घर्र करती
(और बीच में जो कभी धपोड़ भी देती है।)’’

किसी ने कहा -
’’वह, जो हमारी सामथ्र्य है
और जिसके चलते
हम बहुतकुछ कर लेते हैं
बहुतकुछ कर लेने की चाह रखते है।’’

किसी ने कहा -
’’बस! माने पूर्ण विराम
जो लगा हुआ है बहुत दिनों से
हमारे विचारों पर,
लगा दी गई है जिसे हमारी अभिव्यक्ति पर
हमारे अधिकारों पर
गंतव्य तक पहुँचने के पहले ही
बहुतकुछ कर लेने के पहले ही।’’

किसी ने ऐसा भी कहा -
’’बस! माने वह भाव
जो ताकत और अधिकार बन हुआ है सदियों से
सवर्णों, शोषकों, सामंतों और दबंगों का
और जो बेबसी और किस्मत बना हुआ
दलितों, शोषितों, गुलामों और वंचितों का।’’

अंत में एक आवाज और आई -
’’बस का अर्थ ऐसे समझ में नहीं आयेगी
इसके लिए कुछ अलग करना होगा
सही देखने के लिए, इसे उलटना होगा
और इस तरह ’बस’ को ’सब’ बनाना होगा
ताकि सबको उनका सभी प्राप्य मिल सके
सब, सबमें, सबको, स्वयं को पा सके।’’
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