गुरुवार, 29 मार्च 2018
बुधवार, 21 मार्च 2018
शनिवार, 17 मार्च 2018
कविता
कविता
चोट
आदमी तब भी हँसता और रोता है
कहीं आ, जा और खा रहा होता है
बेतहाशा भाग रहा होता है
जब वह सो रहा होता है।
कहीं आ, जा और खा रहा होता है
बेतहाशा भाग रहा होता है
जब वह सो रहा होता है।
आदमी तिलमिला रहा होता है
जब वह चोट खा रहा होता है
चोट खाकर आदमी तिमिलाता है
चोट खाकर आदमी जागता है।
जब वह चोट खा रहा होता है
चोट खाकर आदमी तिमिलाता है
चोट खाकर आदमी जागता है।
सोये हुए नसों पर चोट करो।
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शनिवार, 3 मार्च 2018
आरंभ Aarambha: छत्तीसगढ़ के नवान्वेषित कतिपय विलक्षण मूर्ति-शिल्प...
आरंभ Aarambha: छत्तीसगढ़ के नवान्वेषित कतिपय विलक्षण मूर्ति-शिल्प...: ज्ञान-प्रवाह, वाराणसी के तत्त्वावधान में मैं डा० नीलकण्ठ पुरुषोत्तम जोशी (पूर्व निदेशक मथुरा तथा लखनऊ संग्रहालय) के साथ मिलकर एक शोध परियोज...
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