रविवार, 16 दिसंबर 2018

आलेख

पाठ आधारित आलोचना - साहित्य आलोचना का नया मानक

(संदर्भ - ’मानक आलोचना का उत्कृष्ट उदाहरण’, नया ज्ञानोदय, अंक 189, नवंबर 2018, पृ. 86-88)

नया ज्ञानोदय, अंक 189, नवंबर 2018, पृ. 86-88 में मुक्तिबोध की कविता ’अँधेरे में’ की आलोचना पर आधारित अमिताभ राय की भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सद्य प्रकाशित पुस्तक ’सभ्यता की यात्रा अँधेरे में’ नामक पुस्तक की समीक्षा प्रकाशित हुई है। पुस्तक के समीक्षक हैं - राजेंद्र टोकी। इसमें आलोचक का संदर्भ देते हुए समीक्षक द्वारा साहित्य आलोचना के नये मानक - पाठ आधारित आलोचना की चर्चा की गई है जिसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं -
1 - लेखक का मानना है कि -  हिंदी आलोचना थोपी गई सैद्धांतिक आलोचना से त्रस्त रही है क्योंकि सैद्धांतिक आलोचना के आधार पर आलोचना करते समय आलोचक अपने पूर्वाग्रह के कारण ’कविता जो कहती है, प्रस्तावित करती है, उसे संपूर्णता में पकड़ना’ कठिन होता है। पाठ आधारित आलोचना इसमें मदद करती है।

2 - सैद्धांतिक आलोचना के संबंध में, ’दूसरी शिकायत लेखक को यह है कि - ’’आलोचक प्रायः उन्हीं अंशों से काम चलाता है, जिनसे पहले के आलोचकों ने काम चलाया था।’ ..... ’हम पूरे पाठ के साथ रगड़-धस्स कर, अपने समाज की नयी स्थितियों-परिस्थितियों के अनुरूप एक नया पाठ निर्मित नहीं कर पाते। उसकी नयी सृजनात्मक पुनः प्रस्तुति नहीं कर पाते।’’ पाठ आधारित आलोचना में ऐसा संभव हो पाता है।

3 - सैद्धांतिक आलोचना के संबंध में लेखक की, ’तीसरी शिकायत यह है कि इससे ’’हिंदी आलोचना रचनात्मक अंतर्विरोधों से बच निकलता है या बच निकलना चाहती है।’’ पाठ आधारित आलोचना में इस तरह के बचाव की संभावना से बचा जा सकता है।

’अँधेरे में’ कविता की प्रस्तुत आलोचना में आलोचक का कहना है कि ’यह कविता मानवीय सभ्यता के विकास की यात्रा है, उसका बिंब या रूपक है। इसमें ’’सभ्यता विकास की बिंबात्मक प्रतीकात्मक स्थितियाँ पार करता हुआ नायक पूँजीवादी विकास के उस दौर में पहुँचता है, जो उसका यथार्थ और वर्तमान है।’’ इस यात्रा के लिए ही मुक्तिबोध ने फैंटेसी, कल्पना, युटोपिया का संरचना के धरातल पर प्रयोग किया है।’ 

समी़क्षक का मानना है कि - कविता और इसमें वर्णित परिस्थितियाँ बहुआयामी और बहुअर्थी है जिसे आलोचक महोदय ने पूरी सक्षमता से खोला है। सभ्यता की यह यात्रा मनु से प्रारंभ होकर गाँधी - यानी आज तक पहुँचती है। इस  यात्रा के कई पड़ाव हैं, कई उतार-चढ़ाव हैं, बाह्य भी, भीतरी भी। अमिताभ ने इसका सांगोपांग वर्णन किया है।

समी़क्षक राजेन्द्र टोकी आगे कहते हैं - दरअसल ’अँधेरे में’ कविता के लिए जिस पाठोन्मुख (पाठकोन्मुख नहीं) पद्धति को अपनाया गया है, हिंदी आलोचना में इसका प्रचलन नहीं है। ..... मुक्तिबोध ने ’अँधेरे में’ में टालस्टाय, तिलक और गाँधी को सकारण उपस्थित किया है जिसका वर्णन प्रस्तुत विनिबंध (’सभ्यता की यात्रा अँधेरे में’) में है। इसके साथ केवल दो मिथकीय पात्रों का उल्लेख इस कविता में हैं - मनु और शुनःशेष्प के शापभ्रष्ट पिता अजीगर्त का। .... लेकिन आलोचक अमिताभ राय ने शुनःशेष्प के शापभ्रष्ट पिता अजीगर्त का प्रसंग अन्य आलोचको की तरह ही छोड़ दिया है। मुक्तिबोध जैसे सजग कवि द्वारा मनु के बाद इस मिथक का प्रयोग यूँ ही नहीं हुआ होगा और न ही इससे संबंधित पँक्तियाँ उपेक्षणीय होगी।

समी़क्षक राजेन्द्र टोकी का अभिमत है कि -  ’अँधेरे में’ पर लिखित अन्य आलोचनाओं का महत्व अपनी जगह है लेकिन यह विनिबंध (’सभ्यता की यात्रा अँधेरे में’) इस कविता को समझने के लिए अनिवार्य आधार के रूप में स्थापित होगा, ऐस यकीन के साथ कहा जा सकता है।

रविवार, 2 दिसंबर 2018

हौसला

हौसला


दुनिया में जो भी शास्वत है
भूख उनमें प्रथम है
भूख उनसे अलग है

दुनिया का सारा व्यापार
भूख का व्यापार है
भूख का व्यापार
दुनिया का आदिम व्यापार है

दुनिया में
कुछ लोग भूख को भुनानेवाले होते हैं
और बहुत सारे लोग भूख से लड़नेवाले

भुनानेवालों की भूख कभी मिटती नहीं
और लड़नेवालों की जीत कभी होती नहीं

भूख जिनकी मिटती नहीं
उन्होंने जाना नहीं भूख को कभी
भूख के पहले हाज़िर हो जाती है
व्यंजनों की थालियाँ उनके सामने

भूख से लड़नेवाले
व्यापित होती है रग-रग में जिनकी भूख
उनके सामने हाजिर होता है
केवल भूख का सवाल हर पल - यक्ष की तरह
व्यंजनों की थाल नहीं दिखती कभी उन्हें
कल्पना में और सपने में भी कभी

भूख को महसूस करना अलग बात है
पर भूख सबको लगती है
भूख को भुनाने में लगे हैं उन्हें भी
और भूख को हराने में लगे हैं उन्हें भी

भूख मिटती नहीं
भूख हारती नहीं
पर भूख को हराने का हौसला कहती है
हारेगी भूख कभी न कभी।
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कुबेर