मंगलवार, 30 मई 2017

व्यंग्य

चोचंजी का कर्मवाद


आज चोचंजी मध्यांतर में पहुँचे। वैसे अन्य दिनों के मुकाबले वे कुछ जल्दी पहुँच गये थे।

आसन में जमते ही लंचबाक्स खोलकर बैठ गये। घी से सिंकी पराठे की खुशबू कमरे में भर गयी। बड़े इत्मिनान से वे लंच करने लगे। शुद्ध देशी घी से पोषित उसकी त्वचा बड़ी मुलायम, चिकनी और तेजस्वी दिख रही थी। उनकी आँखों में अध्यात्म बल से उत्पन्न आत्मविश्वास की ज्योति झिलमिला रही थी। धार्मिक कर्मकांड के तेज से उसका मुखमण्डल प्रकाशित हो रहा था। तीसरे नेत्र की भाँति माथे पर सिद्ध सिंदूरी तिलक तो था ही। उसकी वाणी शहद के समान और मुस्कान सुध-बुध हरनेवाली होती है। सूर-तुलसी की भाषा में कहूँ तो - उसके इस दिव्य व्यक्तित्व को देखकर जिनकी आँखें तृप्त न हों, उनका इस संसार में जीना व्यर्थ है।

तभी भावी साहब का आगमन हुआ। चोचंजी से नजरें मिली और उनकी नजरों में चमक आ गयी। भावी साहब कुछ कह पाते इससे पहले ही चोचंजी की मधुर वाणी गूंज उठी - ’’पंडाल में सारा समय आपको ढूँढता रहा। कहाँ थे आप?’’

अपराधबोध से ग्रस्त होकर भावी साहब ने कहा - ’’क्या बताऊँ सर! आटोवालों ने तंग कर रखा है। साला! समय पर कोई पहुँचता ही नहीं। अपने देश में सबसे बड़ी समस्या यही है - समय पर न तो कोई अॅफिस पहुँचता है और न ही ईमानदारी से कोई अपना काम ही करता है। बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना पड़ा। ऊपर से मटन के लिए श्रीमती जी की जिद्द। आज ही जिद्द करना था उनको भी। मटन मार्केट जाना पड़ा। अखर गया सर। साला! इतने बड़े संत का प्रवचन मिस हो गया।’’

चोचंजी ने भावी साहब के अपराधबोध को उद्दीप्त करते हुए कहा - ’’बहुत पहुँचे हुए संत हैं। मानना पड़ेगा। कर्मवाद को इतना बेहतर तीरीके से और इतने सरल शब्दों में आज तक किसी ने नहीं समझाया होगा। मजा आ गया।’’ 

तब तक चैथे पिरियेड की घंटी बजने लगी। हम सब क्लस रूम की ओर जाने लगे। चोचंजी ने अपनी कलाई घड़ी देखी। भावी साहब ने कहा - ’’अरे बैठो यार। कौन क्या कहेगा साला। सुनाओ कुछ, क्या कहा संत ने?’’

और कर्मवाद पर चोचंजी की व्याख्या शुरू हो गई।

और छुट्टी की घंटी बजने के बाद जब हम स्टाफ रूम में आये, चोचंजी अपना प्रवचन समाप्त करते हुए कह रहे थे - ’’मनुष्य जिस काम की रोटी खाता है, उस काम के साथ कभी छल नहीं करना चाहिए।’’
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लघु कथाएँ

’’मैं कौन हूँ’’ इस रहस्य को समझातेे हुए ओशो सिकंदर से जुड़ी एक कथा कहते हैं। लौटते समय सिकंदर अपने साथ यहाँ से एक फकीर ले जाना चाहता था। उन्होंने अपने सैनिकों कोे कोई फकीर ढूँढ़कर लाने का आदेश दिया। तलाश शुरू हो गई। तलाशी में जुटे एक सैनिक ने एक दिन आकर सिकंदर से कहा - महाराज! एक बहुत विचित्र फकीर का पता चला है। उसे यहाँ तक लाने के लिए हमने हर संभव काशिश किया। आपका भय भी दिखाया। पर उसने आने से इन्कार कर दिया।
सुनकर सिकंदर चकित भी हुआ और क्रोधित भी। वह स्वयं उस फकीर के पास गया। पूछा - क्या तुम्हें सिकंदर से डर नहीं लगता?
कैसा डर?
हुक्म न मानने पर हम तुम्हारा सर कलम कर सकते हैं।
हाँ! जानता हूँ। आप एक शरीर से उसका सिर काट सकते हैं। पर मेरा सिर नहीं।
मौत से तुम्हें भय नहीं लगता?
किसकी मौत? आप एक शरीर को जरूर मार सकते हैं। मुझे कैसे मारोगे? एक शरीर से उसका सर कटता हुआ जैसे आप देखेंगे, और लोग देखेंगे, वैसा ही मैं भी देख लूँगा। फिर डर कैसा?
सिकंदर हारकर लौट गया।
भय से मुक्त होना ही मोक्ष प्राप्त करना है। कबीर ऐसा ही था।

रविवार, 28 मई 2017

आलेख

छत्तीसगढ़ियों का शोषण - 1


भिलाई स्पात संयंत्र छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों के लिए अभिशाप के अलावा और कुछ भी साबित नहीं हुआ। इससे चाहे देश समृद्ध हुआ होगा, परंतु यहाँ के लोग केवल शोषत हुए हैं। संयत्र स्थापित होते समय यहाँ के लोक कलाकार ददरिया में एक नवीन पद गाते थे -

’का साग रांधे टुरी लोहा के कड़ाही में।
तोर-मोर भेट होही दुरुग-भिलाई में।।’
(प्रेम करनेवाले नायक-नायिका की आर्थिक स्थिति असमान है। नायिका की रसोई में सब्जी लोहे की कड़ाही में बनती है। लोहे की कड़ाही में सब्जी का बनना संपन्नता का प्रतीक है। नायक गरीब है। इसीलिए दोनों के मिलने की संभावना कम है। परंतु अब भिलाई में स्पात का कारखाना बन रहा है। सरकार ने कहा है कि यहाँ के सभी गरीबों को वह कारखाने में नौकरी देगी। नायक भी वहाँ नौकरी पायेगा। नौकरी पाकर खूब पैसा कमायेगा। तब नायिका से मिलन में कोई बाधा नहीं होगी। इसीलिए उन्होंने नायिका से वादा किया है कि अब उनकी अगली भेंट दुरुग-भिलाई में ही होगी।)

भिलाई स्पात संयंत्र की स्थापना के समय सरकार ने यहाँ के लोगों को संपन्नता के खूब सब्जबाग दिखाये। यहाँ के लोग अपनी उम्मीदों को अपनी लोककलाओं के विभिन्न माध्यमों के द्वारा व्यक्त करते रहे। परंतु जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि वे छल लिये गये हैं।

संयंत्र स्थापना हेतु जिन गाँवों को उजाड़ा गया, जिन किसानों की जमीनों, और खेतों को अधिग्रहित किया गया; उनके लिए बड़े-बड़े वादे किये गये। पर वे अब कहाँ और किस हालत में हैं, कोई नहीं जानता।

यहाँ की नदियों में बहनेवाले जल से यहाँ के खेतों की सिंचाई के लिए बारहों महीने पानी दिया जा सकता था। तब यहाँ के किसान और खेतिहर मजदूर पंजाब के किसानों की तरह समृद्ध और खुशहाल होते। परंतु स्पात संयंत्र बनने से यहाँ की नदियों का अधिकांश जल स्पात कारखाने में और स्पात नगरी के लोगों के टायलेटों में खप जाता है। छत्तीसगढ़ में केवल वर्षा आधारित खरीफ की खेती हो पाती है। प्रचुर जल संपदा के रहते छत्तीसगढ़ को हर साल सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

स्पात नगरी में अन्य प्रांत से आकर बसनेवाले लोगों ने यहाँ की समृद्ध लोक परंपराओं का, यहाँ की भाषा का मजाक उड़ाने में कोई कमी नहीं की।

यहाँ के लौह अयस्क का दोहन करके जो स्पात बनाया जाता है वह छत्तीसगढ़ियों के लिए नहीं है। आज से पाँच-सात साल पूर्व तक यहाँ के किसानों और मजदूरों के बच्चों के लिए उच्चशिक्षा (मेडिकल, इंजीनियरिंग, आई.आई.टी., आई.आई.एम. आदि) की कोई व्यवस्था नहीं थी। यहाँ के बच्चों को षडयंत्रपूर्वक उच्चशिक्षा से वंचित रखा गया। आज भी ऐसी कोई व्स्पष्ट यवस्था नहीं है जिससे यहाँ के गरीबों-किसानों के प्रतिभावान बच्चों को इन संस्थानों में प्रवेश मिल सके।
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शुक्रवार, 26 मई 2017

आलेख



.......... एक फिल्म देखी थी - ’द चिल्ड्रेन आॅफ वार’। फिल्म में पाकिस्तानी सेना के कुकृत्य और बृहत्तर राष्ट्र निर्माण की इच्छा से किये गये दमन और शोषण का अंकन है। पाकिस्तानी सेना ने गैर सुन्नी मुसलमानों और बंगाली हिंदुओं पर सबसे अधिक कहर ढहाये। कहा जाता है कि बंगाली औरतों का बलात्कार उसी मानसिकता का प्रदर्शन था जिसके तहत यह माना जाता है कि बलात संपर्क से एक पूरी की पूरी जाति को समूल नष्ट किया जा सकता है। स्त्री तो सिर्फ कोख है। उसका महत्व इतना ही है कि वह वीर्य वहन करे - इच्छित अथवा अनिच्छित - वह हमेशा पराजित है - औरतों से उत्पन्न संतान बलात्कारी के डी.एन.ए./खून होने के कारण उन्हीं की मानसिकता की अनुयायी होंगे। इन्हीं का परिणाम आज बंगला देश के आतंकवादी संगठन जेएमबी है जो पाकिस्तान समर्थक है, तथा हुजी, सिमी, इंडियन मुजाहिदीन आदि इसी का परिणाम है। अरबी जिहाद में यही मानसिकता सैकड़ों सालो से है। ... (हंस, मई 2017, पृष्ठ27)

(वर्तमान में बस्तर के संदर्भ में हंस का यह अंश विचार करने योग्य है)

सोमवार, 22 मई 2017

आलेख

मुगल बादशाहों के बारे में ...


साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका ’आजकल’ मई 2017 ’भारतीय नव जागरण और हिंदी’ अंक कें कुछ अंश और -
1.
उपन्यास (शाज़ी ज़मा का उपन्यास ’अकबर’) में बाबर की हुमायुँ के नाम वह वसीयत भी दस्तावेज़ के रूप में शामिल है जिसमें हुमायुँ को यह हिदायत दी गई थी कि, ’बेटा, हिंदुस्तान की सरज़मीं में हर मज़हब को माननेवाले लोग रहते हैं। अल्हम्दोलिल्लाह इस मुल्क की बादशाहत तुम्हें सौंपी गई है। अपने दिल से भेदभाव दूर करके इन्साफ करो। ख़ास तौर पर तुम गाय की कुर्बानी न करो। इससे तुम हिंदुस्तान के लोगों का दिल जीत लोगे और लोग बादशाहत से जुड़ेंगे। सल्तनत में रहनेवालों की इबादतगाहों को गिराओ मत। इतना बराबरी का इन्साफ करो कि लोग अपने बादशाह से खुश हों और बादशाह लोगों से। इस्लाम जुल्म की तलवार से नहीं, नरमी से आगे बढ़ेगा।’
(पृष्ठ 43)
2.
उपन्यास (शाज़ी ज़मा का उपन्यास ’अकबर’) में मुल्ला अब्दुल कादि़र बदाँयुनी के हवाले से अकबर का यह चित्रण दिलचस्प है - ’सुल्तान जलालुद्दीन अकबर ने जो बहुत सी गलत और इस्लामी शरीयत के खिलाफ बातें लागू कीं उनमें से एक यह थी कि गाय का गोश्त खाना हराम कर दिया गया। इसकी वजह यह थी कि बादशाह बचपन से ही कट्टर मज़हबी हिंदुओं के साथ उठता-बैठता था और गाय का एहतराम करना हिंदुओं के अकीदे के मुताबिक दुनिया की सलामती का सबब है और हिंदुओं की गलत बाते बादशाह के दिल में घर कर गई थीं और भारत के बहुत से हिंदू राजाओं की बहुत-सी लड़कियाँ जो हरम में दाखिल थीं, वो बादशाह के मिजाज में बहुत दखल देती थीं और बादशाह गोमांस, लहसुन और प्याज के खाने और दाढ़ीवाले और तरह के लोगों से परहेज करने लगेे थे।’’
(पृष्ठ 43)

आलेख

साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका ’आजकल’ मई 2017 ’भारतीय नव जागरण और हिंदी’ अंक कं कुछ अंश और -
1
दाराशिकोह जितना उदार और सहिष्णु था, उसका भाई औरंगजेब उतना ही क्रूर था तथा राजसत्ता हड़पने के लिए उसने दारा की हत्या करा दी। बंदी बनाये गये गर्मी से प्यासे शाहजहाँ ने औरंगजेब को एक पत्र लिखा था, ’’हिंदुओं की तारीफ करनी चाहिए जो अपने मरे हुए संबंधियों को भी पानी देते हैं और तू मेरा बेटा अद्भुत मुसलमान है कि मुझ जीते हुए को पानी के लिए तरसा रहा है।’’
(पृष्ठ 32)

2
इतिहासकार जदुनाथ सरकार का यह कथन सही है कि भारत को एक शांत और सुरक्षित राष्ट्र बनाने के लिए हिंदू धर्म और इस्लामद दोनों को मरना होगा और फिर जन्म लेना होगा, कठोर तपस्या और पश्चाताप करके, विवेक और विज्ञान के प्रभाव से स्वयं को शुद्ध करना होगा और नया जीवन प्राप्त करना होगा।
(पृष्ठ 32)
3
उन्होंने (राजा राममोहन राय) लार्ड एमहसर्ट को दिसंर 1823 में एक पत्र लिखा था, ’’यदि अंग्रेजी संसद की इच्छा है कि भारत अंधकार में रहे तो संस्कृत शिक्षा से उत्तम कुछ नहीं हो सकता। परंतु सरकार का उद्देश्य भारतीय लोगों को अच्छा बनाना है। अतएव सरकार को एक उदारवादी शिक्षा का प्रसार करना चाहिए जिसमें गणित, सामान्य दर्शन, रसायनशास्त्र, शरीर रचना (एनाटोमी) तथा अन्य लाभदायक विज्ञान इत्यादि सम्मिलित हों और निश्चित धनराशि से विदेशों से कुछ विद्वान भर्ती किये जाएं और यहाँ कालेज खोले जाएं।’’(पृष्ठ सं.144-45)
(पृष्ठ 38)
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रविवार, 21 मई 2017

आलेख

साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका ’आजकल’ मई 2017 ’भारतीय नव जागरण और हिंदी’ अंक महत्वपूर्ण और संग्रहणीय है। इस अंक में विद्वान लेखकों के द्वारा भारतीय नवजागरण में हिंदी क्षेत्र के योगदानों को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसी तारम्य में, अंक में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है। कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं -
1.
1947 में अंग्रेजी राज से मुक्त होने के बाद जब संविधान बनने लगा, तब हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने नवजागरण और प्रबोधन के मूलभूत आदर्शों को अपने आदर्श के रूप में स्वीकार किया, लेकिन तब भी भारत की सामाजिक हकीकत इन आदर्शों के विपरीत थी। संविधान आत्मसात करते हुए 26 नवंबर 1949 को डाॅ. अंबेडकर ने बहुत पीड़ा के साथ कहा था - ’26 जनवरी, 1949 (1) को हम अंतरविरोधों के  जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में समत्व होगा और सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में विषमता रहेगी। ..... अंतरविरोधों का यह जीवन हम कब तक जीते रहेंगे? हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समत्व से कब तक इंतिजार करते रहेंगे।’
(पृष्ठ 17)
(1) - (भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था अतः लेख में ’26 जनवरी, 1949’ भ्रम पैदा करता है।)
2.
विवेकानंद ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा है कि , ’पुरोहिताई भारत का एक अभिशाप है। क्या कोई व्यक्ति अपने ही भाई को अपदस्थ कर अपनी अपदस्थता से बच सकता है?
(पृष्ठ 39)

3.
सावित्री बाई फूले जैसी सशक्त स्त्री नवजागरण की चर्चा में कहीं नहीं हैं। सन् 1890 में जो स्त्री अपने पति की अर्थी उठा रही है, अपने पति को दफना रही है, कविता संग्रह प्रकाशित कर रही है, पति के भाषणों को प्रकाशित कर रही है, सन् 1848 में लड़कियों की शाला की औपचारिक शिक्षक है, पारंपरिक समाज द्वारा इस कार्य के लिए पत्थर की चोटें बर्दास्त कर रही है, लड़कियों को शिक्षित करने के अपराध पर उस  पर रास्तेभर गोबर फेंका जाता है, लोग उस पर थूँकते हैं और वह अपने हाथ के थैले में एक साड़ी लेकर चलती है, शाला में जाकर नहाती है, दूसरी साड़ी पहनती है और लड़कियों को पढ़ाती है; ऐसी सशक्त चैतन्य स्त्री का जिक्र नवजागरण की चर्चा में क्यों नहीं है?
(पृष्ठ 40)

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शुक्रवार, 19 मई 2017

व्यंग्य

लघु व्यंग्य
ये क्या कम है


मरहा राम अपने साथियों के साथ बीते दिनों की नैतिकता की डीगें मार रहा था। कह रहा था - ’’भाइयों! अब तो अंधेर ही अंधेर है - जिधर भी देख लो। भ्रष्टाचार देश को खोखला किये जा रहा है। ये देखो, एक सौ साल पुरानी सरकारी इमारत। भूरी चींटी के घुसने लायक भी कोई दरार हो इसमें, तो बता दे ढूँढकर, माई का लाल कोई हो तो। मजबूती से अब भी कैसे खड़ी है।’’

मरहा राम की इन ढींगों को पास ही बैठा मंत्री सुन रहा था। जब रहा नहीं गया तो मरहा राम को उसने ललकारा - ’’ओये! मरहा राम के बच्चे। और ये बिल्डिंग तुझे नहीं दिखती बे। एक ... साल्..से जादा हो गया है कि नहीं। खड़ी है कि नहीं अब भी? साला! बात करता है।’’


’एक ... साल्......से’, पर जिस तरीके से जोर देकर बोला गया था, उसी का असर होगा; बात मरहा राम के मर्म को छू गई। उसने हाथ जोड़कर कहा - ’हुजूर! ठीक कहते हैं आप, वरना यहाँ कई इमारतें तो बनते ही गायब हो जाती है।’’
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गुरुवार, 18 मई 2017

आलेख

अगर मैं किसी किसान से कहूँ कि - ’आपका ज्ञान दुनियाभर के शास्त्रों, ग्रंथों और किताबों में वर्णित सभी ज्ञानों से श्रेष्ठ है, क्योंकि -

आपका ज्ञान उत्पादक और पोषक है।

आपका ज्ञान दुनिया का पेट भरता है और उसे जीवन देता है।

आपके ज्ञान ने भूख को जीतकर दुनिया को स्वतंत्रता की अवधारणा दिया है, यह मोक्ष देनेवाला है।

आपका ज्ञान समस्त कलाओं, सभ्यताओं, धर्मों और ईश्वरों को जन्म देनेवाला है। आप अपने ज्ञान पर गर्व करो।

जो शास्त्रीय ज्ञान अनाज का एक दाना भी पैदा नहीं कर सकता, किसी का पोषण नहीं कर सकता, वह आनंद और मोक्ष कैसे दे सकता है? समस्त शास्त्रों और ग्रंथों की रचना आपकों मूर्ख और आपके ज्ञान को हीन साबित करने के लिए एक प्रपंच है, जिससे आपके श्रम का, आपके धन का और आपका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा सके। आप पर शासन किया जा सके और शोषित होने को आप अपनी नियति स्वीकार लें।’ तो वह किसान मुझे मूर्ख समझकर मेरी बातों को अनसुना कर देगा। बहुत संभव है कि वह मुझे स्वर्ग-नर्क, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म और चैरासी लाख योनियों, ईश्वर और अवतारों की बातें समझाने लगेगा।

फिर भी मैं अपनी बात पर कायम हूँ और इन बातों को मैं हमेशा दुहराता रहूँगा।
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व्यंग्य


लघु व्यंग्य
साले! कानून अभी जिन्दा है

उन्होंने पहले बलात्कार किया। फिर उसका गला घोंटा।
चमचे ने कांपते हुए कहा - ’’साहब! बहुत बुरा हुआ। अब क्या होगा?’’
साहब ने पहले ठहाका लगाया। फिर अजीब तरह का मुँह बनाया। पच्च से उसके चेहरे पर थूँका, मानों गटर का पानी मुँह में चला गया हो। और सहज भाव से कहा - ’’साला कुत्ता! भूल गया बे, इस देश में कानून अभी जिन्दा है।’’
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कविता


मेरे गाँव में

महेन्द्र बघेल ’मधु’

1
ये भी कोई तर्क है?
आम और खास में फर्क है।
आजाद हैं आप
पर ’तुम’ गुलाम है
सुबह की तलाश में
शाम ही शाम है।

संघर्ष से थका नहीं,
थमा नहीं
जो कहता है, बखूबी करता है
बेबाकी से, जोश से, खरोश से
कागज से, कलम से।

पर गजब नाकेबंदी है
कारपोरेट घरानों की,
मीडिया दुकानों की
चालबाजों ने
पढ़े, फाड़े
रद्दी टोकरी में गाड़े।

आजादी का बेहिसाब दंभ है,
हाँ! साहब,
व्यवस्था का
वह चैथा स्तंभ है
छपने नहीं देते
संघर्ष को।

मैं की, तुम की
पर कोशिशें जारी है
कोहरा हटाने की
स्वाभिमान जगाने
मेरे गाँव में।
 ऽऽऽ
2
शोर है, शोर है, शोर है,
ट्रकों का, डंपरों का
घुटकुरी में बंपरों का
बेधड़क आना और जाना
यही विकास का तराना।

सोणा है, सोणा है
गाँव में खेत में, नदी में
सोणा है।

देखो! वाहनों से
सड़क अटा है
रेत चूसने जे. सी. बी. डटा है।

चूस लो, चूस लो, दबंगों चूस लो
परसू, परनिया का तो
धूल-धुएँ से यारी है
पूरे गाँव में दमा की बीमारी है।

हक मांगने दम फूल जाता है
मैं, तुम या पड़ोसी
कौन है जो अड़ेगा
दबंगों से लड़ेगा?

तलाश है, तलाश है
घना कोहरा हटाने
तलाश है
मेरे गाँव में।
 ऽऽऽ
3
खार में खेत, नदी में रेत
सुने हैं, होता है
पास में नदी, लोग प्यासे हैं
वाटर बनाने
लायसेंसी तलाशे हैं।

मेरे खेत में विकास आया
एक्सप्रेस वे का
कल-कारखानों का
दबंगों का, मुस्टंडों का
पहलवानों का,
चमचमाती कारों में विद्वानों का
काले चश्मों से झांकते
गाँव की औकात मापते।

चिमनी के धुएँ की छाँव में
कारखाना है मेरे गाँव में
काले, गाढ़े धुएँ में
राख है, धूल है
ताजा गुलाब-गोंदा भी
बासी फूल है।

नाली जाम है छानी का
रंग धूसर है पानी का
श्वास  में गुंगवा
और गले से
इसी गरल को पीते हैं
प्रकृति की गोद में
हम ऐसे ही जीते हैं
मेरे गाँव में।
 ऽऽऽ

आलेख

 लोक-प्रतिकार

बापू ने कहा है - लोक निरक्षर हो सकता है परंतु अज्ञानी और मूर्ख नहीं। लोक का ज्ञान उनकी परंपराओं और अनुभवों से अर्जित ज्ञान है। लोक के इसी ज्ञान पर उत्पादन के तमाम साधन आश्रित हैं जो समाज की सभ्यता और विकास के मूल कारक हैं। लोक के इसी ज्ञान के सत्व से समस्त लोककलाएँ पुष्पित और पल्लवित हुई हैं। इसके बावजूद लोक के इस विराट और उत्पादक ज्ञान को सदैव दोयम दर्जे का साबित करने का और अनुत्पादक और कल्पित शास्त्रीय ज्ञान को धर्म और अध्यात्म का आवरण चढ़ाकर इसे लोकज्ञान पर वरीयता दिये जाने का कुत्सित प्रयास होता रहा है। इस तरह लोकज्ञान को हीन और दोयम दर्जे का साबितकर लोकमानस में हीनता का बीजारोपण किया गया जिससे उनका हर प्रकार से शोषण किया जा सके। लोक इसे भी अच्छी तरह समझता है और अपने ढंग से इसका प्रतिकार भी करता रहा है। लोक प्रतिकार के इस रूप को हम उसके विभिन्न कलामाध्यमों में देख सकते हैं। छत्तीसगढ में लोकनाट्य नाचा की परंपरा इसी प्रतिकार का प्रस्तुतिकरण है।
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गुरुवार, 11 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

अनुस्वार ( ं ) तथा अनुनासिक (  ँ )

हिंदी में अनुस्वार ( ं ) तथा अनुनासिक (  ँ ) दोनों अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। परंतु अनुनासिक (  ँ ) अखबारों से गायब हो चुका है। अखबारों की हिंदी को आदर्श माननेवालों की वर्तनी से भी यह गायब हो चुका है। इन ध्वनियों में निम्न अंतर है -

1. अनुस्वार

1.    अनुस्वार की ध्वनि को प्रगट करने के लिए वर्ण के ऊपर बिंदु लगाया जाता है जैसा कि इस कोष्टक ( ं ) में दिखाया गया है।
2.    व्यंजन ध्वनियाँ स्वर के पहले आती है। अनुस्वार स्वर के बाद आनेवाली ध्वनि है अतः इसे व्यंजन ध्वनि नहीं कहा जाना चाहिए। परंतु इसका उच्चारण व्यंजन ध्वनियों की तरह होता है। यह पूर्णतः अनुनासिक ध्वनि है। अतः यह एक व्यंजन ध्वनि है। हिंदी में स्वर रहित पंचमाक्षरों अर्थात अनुनासिक ध्वनियों के लिए अनुस्वार का प्रयोग होता है।
जैसे - च् + अ + ञ् + च् + अ + ल् + अ = चञ्चल या चंचल
परंतु जब कोई पंचमाक्षर किसी पंचमाक्षर से ही संयुक्त हो रहा हो तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता।
3.    अनुस्वार के उच्चारण में जीभ वायु को मुखगुहा में बाधित करती है और मुँह बंद रहता है। अधिकांश वायु नाक से निकलती है।
4.    अनुस्वार स्वर ध्वनि के बाद आनेवाली  ध्वनि है; अर्थात यह स्वर का अनुसरण करता है इसलिए अनुस्वार कहलाता है।
5.    यह दीर्ध स्वर है और छंदों में इसकी मात्रा 2 मानी गयी है।

2. अनुनासिक (  ँ )

1    अनुनासिक की ध्वनि को प्रगट करने के लिए वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु लगाया जाता है जैसा कि इस कोष्टक (  ँ ) में दिखाया गया है। परंतु ए, ऐ, ओ, औ, इ तथा ई की मात्राओं के साथ आने पर इसे बिना चंद्र के लिखा जाता है। जैसे - हैँ को हैं लिखा जाता है।
2    अनुनासिक एक स्वर ध्वनि है।
3    अनुनासिक के उच्चारण में मुँह खुला रहता है और अधिकांश वायु मुँह से निकलती है। नाक से बहुत कम वायु निकलती है।
4    यह ह्रस्व स्वर है और छंदों में इसकी मात्रा 1 मानी गई है।
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बुधवार, 10 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण



हिन्दी के वर्ण

1. स्वर वर्ण

                   स्वर (घोष)
                   कुल - 11      ह्रस्व स्वर                अ, इ, उ, ऋ
                                      दीर्घस्वर                  आ, ई, ऊ
                                      संयुक्त स्वर (दीर्घ)      ए, ऐ, ओ, औ

2. व्यंजन


प्रकार                                                  अघोष (श्वास का उपयोग)            घोष (स्वर तंत्रियाँ झंकृत होती हैं)
                                                                                                                            नाद का उपयोग
                                                               अल्पप्राण    महाप्राण              अल्पप्राण    महाप्राण    अल्पप्राण
व्यंजन
(33)          क वर्ग    स्पर्श    कण्ठ से                 क               ख                       ग               घ                ड.
                च वर्ग                 तालु से                 च                छ                       ज               झ               ञ
                ट वर्ग                 मूर्धा से                  ट                 ठ                       ड                ढ                ण
                त वर्ग                 दन्त से                 त                थ                        द               ध                न
                प वर्ग                  ओष्ठ से                 प                फ                       ब                भ               म
   
                अंतःस्थ (अल्पप्राण - घोष)              य                 र                       ल                व   
                ऊष्म (महाप्राण)                              श                 ष                      स                 ह  
(4)            संयुक्त व्यंजन                                  क्ष                त्र                      ज्ञ                 श्र   
(2)           द्विगुण व्यंजन (संयुक्त)                      ड़                  ढ़           
(2)            अनुस्वार एवं विसर्ग                      ( ं )               (: )           




वर्णों का उच्चारण

                कंठस्थ              अ    आ    क     ख     ग      घ      ड.     (: )      ह
                तालव्य              इ      ई     च     छ     ज     झ     ञ       य       ष
                 मूर्द्धन्य                     ऋ     ट     ठ      ड      ढ     ण        र       श
                  दन्त्य                              त     थ     द      ध     न       ल       स
                ओष्ठ्य              उ      ऊ     प    फ     ब      भ    म       
         कण्ठतालव्य             ए      एै                           
              कंठोष्ठ्य             ओ    औ                           
            दन्तोष्ठ्य                                                                       व   

शनिवार, 6 मई 2017

आलेख

भारतीय उच्च शिक्षा की दशा, दिशा और इसके आयाम - सुबीर राणा

आक्सफैम ने अपने 2017 के रिपोर्ट एन इकाॅनाॅमी फार द 99 परसेंट में कड़े शब्दों में कहा है कि वैश्विक असमानता अब घिनौनी हो गई है। आक्सफैम ने खुलासा किया कि विश्व के केवल 8 उद्योगपतियों के पास, जिनमें छः अमरीकी नागरिक हैं, के पास दुनिया के आधे से अधिक गरीबों के बराबर की संपत्ति है। आक्सफैम ने अपने रिपोर्ट में बताया कि दुनिया की आधी से भी अधिक संपत्ति 1 प्रतिशत लाोगों के पास हैं तथा सबसे गरीब 50 प्रतिशत के पास 5 प्रतिशत से भी कम संपत्ति है। वैश्विक दशा का प्रतिबिंब अब भारत में भी देखने को मिल रहा है जहाँ 2014-15 में सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 58 प्रतिशत संपत्ति है तथा उसकी व्यक्तिगत आय कर की 11 प्रतिशत थी। .......

वैश्वीकरण ने बाजार को एक बिगड़ैल बादशाह बना दिया है जिसके जरिये सिर्फ चीजों का ही नहीं बल्कि भावनाओं का भी वस्तुकरण और निर्धारण हो गया और अंततः उनका बाजार पर एकाधिकार भी। इन सबमें सबसे ज्यादा खामियाजा उच्च शिक्षा तथा इनसे जुड़े और भी बहुत सारे मुद्दों को झेलना पड़ा है। ......

व्यापम घोटाला मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर सरकारी मेडिकल एवं अन्य किस्म की प्रवेश परीक्षा, दाखिला और बहाली से जुड़ा था और जिसका सीधा संबंध राजनेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से था, बहुत बड़े घालमेल का हिस्सा था। इस मामले में बहुत सारे अयोग्य उम्मीदवार जिनकी साँठगाँठ भ्रष्ट अधिकारियों, राजनेताओं और बिचैलियों से थी, पैसे और पहुँच के बलबूते पर सरकारी व्यवस्था का हिस्सा बननेवाले थे। इस मामले की जांच, धड़-पकड़, पुलिसिया कार्यवाही एवं न्यायिक प्रक्रिया के फैसले की सुनवाई होते-होते 23 से 40 लोगों की अप्राकृतिक मृत्यु हो गई जो व्यापम घोटाले से किसी न किसी रूप में जुड़े थे।
(बया, जनवरी - मार्च 2017, पृ.42-43 से साभार) 
(Oxfam was founded at 17 Broad Street in Oxford, Oxfordshire, in 1942 as the Oxford Committee for Famine Relief by a group of Quakers, social activists, and Oxford academics)

शुक्रवार, 5 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

(2) ’र’ की समस्या - लेखन में र की समस्या वस्तुतः इसे अन्य वर्णों के साथ संयुक्त करने की अथवा र के साथ अन्य वर्णों के संयुक्त होने की समस्या है। ऐसा करते समय इसके रूपों में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार र के दो रूप हैं -
(1). र, तथा (2) <  (कोणवत् रूप)
दूसरा, कोणवत् रूप प्राचीन लिपियों में मिलता है, वर्तमान वर्णमाला में यह विद्यमान नहीं है, परन्तु संयुक्त रूप में यही कोणवत् रूप निम्नलिखित रूपों में आज भी विद्यमान हैं -
1. रेफ के रूप में - उच्चारण क्रम में र के बाद व्यंजन ध्वनि आने पर (अर्थात र जब बिना स्वर ध्वनि के उच्चरित होता है) वह बाद में आनेवाले वर्ण के साथ संयुक्त हो जाता है (तात्पर्य - जब र अन्य वर्ण के साथ संयुक्त होता है।) तब इसे रेफ के रूप में शिरो रेखा के ऊपर लिखा जाता है।
जैसे -      क् + अ + र् + म् + अ = कर्म
    ध् + अ + र् + म् + अ = धर्म, आदि में।
2. उच्चारण क्रम में र के बाद स्वर ध्वनि आने पर अर्थात र के पूर्व का व्यंजन जब स्वर ध्वनि के बिना  उच्चरित होता है और वह र के साथ संयुक्त होता है (तात्पर्य - जब अन्य वर्ण र के साथ संयुक्त होता है।) तब र के कोणवत् रूप का प्रयोग किया जाता है। यह दो प्रकार से होता है -
(अ) खड़ी पाईवाला व्यंजन जब र के साथ संयुक्त होता है तब तब र के कोणवत् रूप < की एक भुजा व्यंजन की खड़ी पाई में समायोजित हो जाता है और निम्न रूप बनता है। जैसे - क् +  < = क्र, (जैसे - क्रम में)
क् + र् + अ + म् + अ = क्रम
व्रण घ्राण, प्राण आदि भी इसी के उदाहरण हैं।
(ब) बिना खड़ी पाईवाला व्यंजन जब र के साथ संयुक्त होता हैं तब र का कोणवत् रूप व्यंजन के नीचें संयुक्त होकर निम्न रूप बनाता है। जैसे - ट् +  < = ट्र (जैसे राष्ट्र में)
र् + अ + ष् + ट् + र् + अ = राष्ट्र
उसी प्रकार - ड् +  < = ड्र (जैसे - ड्रम)
3. कभी-कभी यह  ृ रूप धारण कर कृ, घृ, दृ, मृ आदि रूपों में प्रगट होता है। अनेक विद्वान इसे (अर्थात          ृ को) ऋ की मात्रा मानते हैं।

टिप्पणी

कुछ नोट्स

(नयी शिक्षानीति पर बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट - नाॅलेज इकाॅनमी)

................  1992 तक आते-आते भारतीय राजनीति और अर्थनीति में परिवर्तन आ गया और भारत में भूमंडलीकरण की शुरुआत होती है। स्वाभाविक तौर पर भारत के पूंजीपति वर्ग का हित भी अब वैश्विक पूंजी के हित से जुड़ गया था। अकारण नहीं कि जहाँ पहले राधाकृष्णन और कोठारी जैसे शिक्षाविद् शिक्षानीति तय करते थे उनकी जगह मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला को विश्व बैंक और डब्ल्यू. टी. ओ. के निर्देश पर शिक्षा की दिशा तय करने की जिम्मेदारी दी जाती है और सन 2000 में बिड़ला-अंबानी की रिपोर्ट पेश की जाती है। इस रिपोर्ट में ’’नाॅलेज इकाॅनमी’’ की बात करते हुए इसके विशाल ग्लोबल बाजार और भारत की संभावनाओं को रेखांकित किया गया है।

अभी तक शिक्षा के क्षेत्र को मुनाफा कमाने की आजादी नहीं थी। इस रिपोर्ट में फीस बढ़ौतरी और फंड जेनरेट करने से आगे बढ़कर निजी निवेश पर भी सभी तरह के सरकारी नियंत्रण को खत्म करने का सुझाव दिया गया है।

बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट में प्रायवेट युनिवर्सिटी एक्ट लाये जाने का सुझाव देते हुए कहा गया है कि सरकार की भूमिका मात्र फेसिलिटेटर की होनी चाहिए।

पहली बार उच्च शिक्षा में एफ. डी. आई. के निवेश की जोरदार सिफारिश की गई है।

सेल्फ फायनेंसिंग प्रायवेट सेंटर और बाजार की मांग पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था पर जोर दिया गया है।
सब्सिडी के अंत और फुल कोस्ट रिकवरी के तहत विद्यार्थियों से फीस लेने एवं इसके लिए कर्ज की व्यवस्था की बात की गयी है।

विद्यार्थियों को उपभोक्ता के अधिकार के लिए संस्थानों के रेटिग का ंसुझाव दिया गया है। इसके लिए NAAC जैसी संस्था की स्थापना का सुझाव दिया गया है।

इसके साथ ही सरकारी संस्थानों के डिसइनवेस्टमेन्ट और किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि पर रोक लगाने का सुझाव दिया गया है।

छात्र और शिक्षक एवं कर्मचारियों के यूनियन पर पूर्ण प्रतिबंध की बात की गई है। 

बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट के बाद देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए माॅडल एक्ट लाने का प्रयास किया गया, हालाकि देशभर में हुए जबरदस्त विरोध के कारण इसे संसद में पास नहीं किया जा सका।
..........................
सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण अब राष्ट्र-निर्माण बन गया है। सरकारी स्कूल हों या सरकार अस्पताल हों - नष्ट कर दिये गये हैं। इसी की अगली कड़ी उच्च शिक्षा है। कुछ एक टापुओं को छोड़ दें तो देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों को या तो खत्म कर दिया गया
(बया, जनवरी - मार्च 2017, पृ.28-30 - सत्ता और पूंजी के प्रपंच में दम तोड़ती उच्च शिक्षा व्यवस्थ, लेखक - राजीव कुँवर, से साभार)

टिप्पणी

कुछ नोट्स

उच्चशिक्षा : कमजोर नींव पर टिकी इमारत  -  अनुराग मोदी

(बया, जनवरी - मार्च 2017, पृ.20-21)

  •  90 प्रतिशत बच्चों के लिए उच्चशिक्षा आजादी के 69 साल बाद भी दिवास्वप्न बनी हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 71 वां दौर जनवरी से जून 2014 के अनुसार देश में मात्र 5.7 प्रतिशत लोग ही स्नातक एवं 1.6 प्रतिशत लोग ही स्नातकोत्तर डिग्रीधारक हैं। मतलब कुल आबादी के 7.3 प्रतिशत लोग ही ग्रेजुएट हैं। 
  •  असल में किसी भी वर्ग की लूट का सबसे पहला सूत्र है : उसे वर्ग में अपने अहसास के प्रति हीनभावना भरना; वो किसी भी तरह से हो सकता है; उसके रंग, लिंग, जाति, धर्म। और इसका अगला रूप था - शिक्षा के नाम पर शोषण।  .........  आज इस व्यवस्था में शोषित वर्ग - जिसकी 98 प्रतिशत जनसंख्या आज भी इससे (उच्चशिक्षा) दूर है।
  •  अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था - अगर हम मछली का कौशल उसकी झाड़ पर चढ़ने की क्षमता से नापेंगे, तो वो अपनी पूरी जिंदगी अपने आपको बेवकूफ मानकर जीने को मजबूर होगी। इस तरह सत्ता संचालकों (इसमें बाजार की ताकत भी शामिल है) ने हमेशा से अपनी व्यवस्था की व्यूहरचना ऐसी की जिसमें आम जनता के ज्ञान को दोयम दर्जे का करार देकर ना सिर्फ उनके श्रम का शोषण किया जा सके, बल्कि उन्हें उचित मानवीय सम्मान से भी महरूम किया जा सके।  

भारतीय उच्चशिक्षा की समस्याएँ और उनका समाधान -  कृष्णा मेनन

(बया, जनवरी - मार्च 2017, पृ.22-23)

हमें भी विश्वविद्यालयों की आजादी के लिए कुछ करना होगा:-

  •  शैक्षणिक बेहतरी के लिए पश्चिम की एक और परंपरा का हम अनुकरण कर सकते हैं। वहाँ पर अगर कोई इन्सान प्रोफेसर बन जाता है तो वह कभी रिटायर नहीं होता, न ही कोई सरकार उसे हटा सकती है।
  •  इमैनुअल कांट को अफलातून के बाद पश्चिम का सबसे बड़ा दार्शनिक माना जाता है। (वहाँ की शिक्षा व्यवस्था को तत्कालीन धर्मसत्ता और राजसत्ता की जकड़ से बचाने के लिए ) उन्होंने ’इंस्टीट्यूशन ट्रांसेंडोटलिज्म’ का एक खयाल सामने लाया। तथा यह कहकर कि हर संस्थान अपना एक आदर्श संविधान बना ले, उस पर चले, और उसके साथ छेड़छाड़ करने की छूट किसी को न रहे, चाहे वह राजा या पादरी ही क्यों न हो। ....................इस सिद्धांत को वहाँ इस कदर मान्यता प्राप्त है कि दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी और इंगलैंड को समझौता करना पड़ा कि वे एक दूसरे के विश्वविद्यालयों पर बम नहीं गिरायेंगे। सो हुआ यह कि राजाओं के महलों पर तो बम गिरे मगर आक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज तथा हेडोलबर्ग और लिप्जिग बच गये। जबकि हम आज भी विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर, और किसी संस्थान के निदेशक को नियुक्त करते समय उसकी जाति और धर्म को खंगालते हैं।
 000kuber000

गुरुवार, 4 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

कर्ताकारक की विभक्ति - ’ने’ के संदर्भ में -

'ने' विभक्ति अन्य विभक्तियों से विशिष्ट है। वाक्य में क्रिया के लिंग और वचन को यह प्रभावित करता है।
1. सामान्यतः क्रिया के लिंग और वचन का निर्धारण कर्ता के लिंग और वचन के आधार पर होता है। जैसे -
     अ. राम रोटी खाता है।
     ब. सीता रोटी खाती है।
2. परंतु कर्ता में यदि ’ने’ विभक्ति लगा हो तो क्रिया के लिंग और वचन का निर्धारण कर्म के लिंग और वचन के आधार पर होता है। जैसे -
     अ. राम ने रोटी खाई।
     ब. सीता ने रोटी खाई।
     द. राम ने आम खाया।
     इ. सीता ने आम खाया।
3. कर्ता में यदि ’ने’ विभक्ति लगा हो और वाक्य में कर्म न हो तो क्रिया सदैव पुल्लिंग में होता है। जैसे -
    राम ने खाया।
    सीता ने खाया।
    मैंने खाया।
    मैंने पढ़ा।
4. यदि कर्ता और कर्म, दोनों में विभक्ति लगा हो तो कर्ता सदैव पुल्लिंग में होता है। जैसे -
    राम ने रोटी को खाया।
5. स्वतंत्र रूप में क्रिया पुल्लिंग होता है।
000kuber000

बुधवार, 3 मई 2017

भाषा विचार - 2

भाषा और संस्कृति

भाषा के साथ उसे व्यवहार में लानेवाले समाज की संस्कृति, परंपराएँ, भावनाएँ और आस्थाएँ भी जुड़ी होती हैं। मातृभाषा सीखने की प्रक्रिया में हम इन्हें भी अनायास सीखते चले जाते हैं। शैक्षणिक संस्थाओं में यदि हम कोई विदेशी भाषा सीखते हैं तो हम केवल उस भाषा को सीखते हैं। संभव है कि उस भाषा को हम बहुत शुद्धता के साथ बोल और लिख पाते हों। यहाँ तक कि जिस समाज में वह भाषा मातृभाषा के रूप में बोली जाती हो उस समाज के लोगों से भी अधिक शुद्ध रूप में। परंतु इस प्रक्रिया में उस भाषा को बोलनेवाले समाज की संस्कृति, परंपराओं, भावनाओं, और आस्थाओं को हम नहीं सीख सकते हैं। इसके लिए हमें उस समाज के साथ घुलना-मिलना होगा। इसे मैं एक आपबीती प्रसंग के द्वारा स्पष्ट करना चाहूँगा।

राजस्थान का एक ब्राह्मण परिवार यहाँ (राजनांदगाँव में) आकर बस गया है। जाहिर है, छत्तीसगढ़ी उस परिवार की मातृभाषा नहीं है। उस परिवार के मुखिया महोदय से मेरी अच्छी जान-पहचान है। शहर में जहाँ उनका घर है, उस कालोनी में छत्तीसगढ़ी बोलनेवाले नहीं होंगे फिर भी व्यावसायिक सरोकारों की वजह से वे छत्तीसगढ़ी सीख चुके हैं और बहुत शुद्ध और धाराप्रवाह छत्तीसगढ़ी बोल लेते हैं। मिलने पर वे मुझसे हमेशा छत्तीसगढ़ी में ही बातें करते हैं। उसके सुपुत्र के विवाह आशीर्वाद भोज का प्रसंग है। भोजनोपरांत बिदा लेते समय उन्होंने मुझसे पूछा - ’कइसे साहू जी! बने गोहगोहों ले खायेस कि नहीं?’ (छत्तीसगढ़ी में ’गोहगोहों ले खाना’ एक मुहावरा है। बहुत दिनों का भूखा व्यक्ति या बहुत ही निर्धन व्यक्ति जिसने कभी व्यंजनों का स्वाद न लिया हो, व्यंजन पाकर अपनी क्षुधा रोक नहीं पाता है। लोक मर्यादा भूलकर वह भोजन पर टूट पड़ता है। यदि ऐसा व्यक्ति गले तक भोजन ठूँस ले तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है, वह भी पीठ पीछे। मित्र द्वारा पूछे गये वाक्य का हिंदी में अनुवाद कुछ इस तरह होगा - ’क्यों साहू जी! गले के आते तक खाये कि नहीं?’) जाहिर है, ऐसा पूछना अतिथि का घोर अपमान करना है। मुझे ध्यान आया, इसके विपरीत यदि वह मेरा अतिथि होता तब? तब भी वह इसी तरह का वाक्य बोल सकता था। तब बिदा लेते वक्त वह शायद इस तरह कहता - ’बढ़िया गोहगोहों ले खवायेस साहू जी, धन्यवाद।’ ऐसा इसलिए हुआ कि वह केवल छत्तीसगढ़ी भाषा को ही सीख पाया है, यहाँ की संस्कृति को नहीं।
000कुबेर000

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

भाषा विचार

भाषविज्ञानियों ने अपने-अपने तरीकों से भाषा को परिभाषित करने का प्रयास किया है। परंतु भाषा की अवधारणा को मानव और उसके स्वरयंत्र द्वारा उच्चरित ध्वनियों तक सीमित करने के बाद भी इसकी सर्वमान्य और पूर्ण परिभाषा अब तक नहीं आई है। इसका कारण भाषा की विलक्षणता है। ध्वनि, शब्द, वाक्य, पदबंध, अनुच्छेद और पाठ, भाषिक संरचना के पदक्रम हैं। भाषा का संबंध हमारे ज्ञान तंत्र से है। भाषा की उपयोगिता के बारे में सोचें तो लिखित व मौखिक अभिव्यक्ति के अलावा चिंतन, विचार, तर्क, कल्पना, विश्लेषण, निष्कर्ष और निर्णय लेने में भी भाषा का प्रयोग होता है। आधुनिक भाषाविज्ञानियों ने भाषा की निम्नलिखित चार प्रमुख विशेषताओं को रेखांकित किया है -

1. DISPLACEMANT (व्यापकता - देशकाल की सीमा से परे होना):-
भाषा मूर्त-अमूर्त, वर्तमान, भूत और भविष्य सबमें व्याप्त है।

2. ARBITERINESS  (यादृच्छिकता):-
भाषा के परंपरागत शब्दों की तार्किक व्याख्या संभव नहीं है। (आविष्कार और तकनीकी आवश्यकता के अनुरूप गढ़े गये तकनीकी शब्दावलियों को छोड़कर)

3.  DUALITY / MULTIPLICITY  (रचनात्मकता):-
भाषा में संदर्भ के अनुसार अर्थ व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता होती है।

4. PRODUCTIVITY  (उत्पादकता ):-
सीमित ध्वनियों में असीमित अभिव्यक्तियाँ। संसार की समस्त मानव-भाषाओं में 20 से कम और 70 से अधिक ध्वनियाँ नहीं पाई जाती। भारतीय भाषाओं में 50 से 65 तक ध्वनियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण स्वरूप अंग्रेजी में ध्वनि संकेत 26 होते हैं और ध्वनियाँ 44 होती हैं। इसके बावजूद भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता असीमित होती है।

इसके अलावा संसार की सभी भाषाओं में निम्न विशषताएँ भी पाई जाती हैं:-
1. सी.वी.सी.वी. पैटर्न (CVCV Pattern)
अ. संसार की सभी भाषाओं में ’व्यंजन-स्वर-व्यंजन-स्वर’ एकान्तर क्रम में आते हैं। इसे (CVCV) पैटर्न कहा जाता है। बोलते समय व्यंजन ध्वनि के उच्चारण के लिए जीभ को एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए गोता लगाना पड़ता है। इस अवधि में वायु बिना व्यवधान के बाहर आती है और दो व्यंजन ध्वनियों के मध्य स्वर ध्वनि पैदा होती है।
ब. शुरुआत में लगातार दो व्यंजन ध्वनि (cc) वाले शब्द कम पाये जात हैं। जैसे - क्रम (क् र् अ म)
स. शुरुआत में लगातार तीन व्यंजन ध्वनि (ccc) वाले शब्द गिनती के हैं। जैसे - स्प्राइट, (स् प् र् अ इ ट अ)
इसी तरह - स्प्रिट,  स्क्वाश ।
द. शुरुआत में लगातार चार व्यंजन ध्वनि (cccc) लगातार आने वाले शब्द नहीं पाये जाते।

2. सभी भाषाओं में कर्ता, क्रिया और कर्म पाये जाते हैं। इनके क्रम अलग हो सकते हैं।

3. कारक - कर्ता और कर्म (संज्ञा अथवा सर्वनाम) का क्रिया के साथ संबंध बताने के लिए विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार बने पद को कारक पद कहते हैं। सभी विभक्तियाँ अव्यय होती हैं। जैसे:- राम ने रोटी को खाया।
(यहाँ ’ने’ तथा ’को’ विभक्ति हैं। तथा ’राम ने’ और ’रोटी को’ कारक पद हैं।)







   

               
   

मंगलवार, 2 मई 2017

आलेख

कुछ जानकारियां अंतर्जाल से

प्रक्षेपास्त्रों के प्रकार Types Of Missiles :- प्रमुख रूप से मिसाइल दो प्रकार के होते हैं,
   १ - क्रूज मिसाइल Cruise Missile
   2 - बैलिस्टिक मिसाइल Ballistic Missile

१- क्रूज मिसाइल Cruise Missile
क्रूज मिसाइलें स्वचालित, स्व निर्देशित होती है.। ये सतह के काफी  नजदीक उड़ते हैं। क्रूज मिसाइलें ज्वलनशील विस्फोटक के द्वारा लक्ष्य को भेदती हैं। यह प्रक्षेपास्त्र प्राय: जेट इंजन से चालित होता है। इन प्रक्षेपास्त्रों को विस्फोटकों को उच्च सटीकता  एवं उच्च गति से ले जाने के लिए बनाया जाता है।

2- बैलिस्टिक मिसाइल Ballistic Missile
बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र या बैलिस्टिक मिसाइल (ballistic missile) उस प्रक्षेपास्त्र को कहते हैं जिसका प्रक्षेपण पथ सब-आर्बिटल बैलिस्टिक पथ होता है। इसका उपयोग किसी हथियार (प्राय: नाभिकीय अस्त्र) को किसी पूर्वनिर्धारित लक्ष्य पर दागने के लिये किया जाता है। यह मिसाइल अपने प्रक्षेपण के प्रारम्भिक चरण में ही निर्देशित की जाती है; उसके बाद इनका पथ कक्षीय यांत्रिकी (या आर्बिटल मेकैनिक्स) के सिद्धान्तों एवं बैलिस्टिक्स के सिद्धान्तों से निर्धारित होता है। अभी तक इन्हें रासायनिक रॉकेट इंजनों के द्वारा प्रणोदित (प्रोपेल) किया जाता है। यह मिसाइलें बड़ी मात्रा में विस्फोटकों को ले जाने में सक्षम होती हैं। भारत की पृथ्वी, अग्नि, और धनुष मिसाइलें इस श्रेणी में आती हैं।

गति के आधार पर क्रूज मिसाइलें 3 प्रकार की हो सकती हैं-

१- अवध्वनिक क्रूज प्रक्षेपास्त्र Subsonic Cruise Missile –  इस प्रकार के मिसाइलों की रफ़्तार ध्वनि की रफ़्तार से कम होती है। ये मिसाइलें लगभग 0.8 मैक(1 मैक ध्वनि के रफ़्तार के बराबर अर्थात 343.2 मी./से. या 1236 किमी./घं) होती है। इस प्रकार की मिसाइलों का अच्छा उदाहरण अमेरिका की टॉमहॉक (Tomahawk) और फ्रांस की एक्सोसल (Exocel) है।

2- पराध्वनिक क्रूज प्रक्षेपास्त्र Supersonic Cruise Missile-  इस प्रकार की मिसाइलें लगभग 2 से 3 मैक की रफ़्तार से उड़ने में सक्षम होती हैं, अर्थात ये लगभग 1 किमी. की दुरी 1 सेकंड में तय कर लेती हैं। उच्च गति से उड़ने के कारण ये मिसाइलें अति विध्वंसक होती हैं। भारत और रूस के सहयोग से निर्मित ब्रह्मोस (BRAHMOS) मिसाइलें इस श्रेणी में आती हैं।  ब्रह्मोस मिसाइल विश्व में अपनी श्रेणी का एकमात्र कार्यरत प्रक्षेपास्त्र है।

३- अतिध्वनिक क्रूज प्रक्षेपास्त्र Hypersonic Cruise Missile- 5 मैक से अधिक गति से उड़ने वाली मिसाइलें इस श्रेणी में आती है। भारत में ब्रह्मोस – II का विकास इस श्रेणी में किया जा रहा है। विश्व के कई अन्य देश भी इस तरह की मिसाइलो के विकास की प्रक्रिया में शामिल हैं।

प्रक्षेपास्त्रों का वर्गीकरण निम्न आधार पर भी किया जाता है.

अ. प्रक्षेपण के आधार पर मिसाइलों के प्रकार Types  Of Missiles On The Basis Of Launch Mode
    सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल Surface-To -Surface Missile
    सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल Surface-To-Air Missile
    सतह (समुद्र-तट) से समुद्र  में मार करने वाली मिसाइल Surface (Coast)-To- Sea Missile
    हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल  Air-To -Air Missile
    हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइल Air-To- Surface Missile
    समुद्र से समुद्र में मार करने वाली मिसाइल Sea-To- Sea Missile
    समुद्र से सतह (तट) पर मार करने वाली मिसाइल Sea-To- Surface Missile
    टैंक रोधी मिसाइल Anti-Tank Missile

ब. दूरी या मारक क्षमता के आधार पर मिसाइलों के प्रकार Types Of Missiles On The Basis Of Range
    कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल Short Range Missiles
    मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल Medium-Range Ballistic Missiles (MRBM)
    मध्यवर्ती दूरी तक मार करने वाली मिसाइल Intermediate-Range Ballistic Missiles(IRBM)
    अंतरमहाद्वीपीय दूरी तक मार करने की क्षमता वाली मिसाइल Intercontinental Or Long-Range Ballistic Missiles(ICBM)


स. नोदन या संचालक शक्ति के आधार पर मिसाइलों के प्रकार Types Of Missiles On The Basis Of Propulsion
    ठोस नोदन Solid Propulsion
    तरल नोदन Liquid Propulsion
    मिश्रित नोदन Hybrid Propulsion
    रैमजेट Ramjet
    स्क्रैमजेट Scramjet
    निम्नतापी नोदन Cryogenic


द. हथियारों के आधार पर प्रक्षेपास्त्रों के प्रकार Types Of Missiles On The Basis Of Warhead
    पारंपरिक हथियार ले जाने में सक्षम Conventional
    सामरिक हथियार ले जाने में सक्षम Strategic

इ. निर्देशन प्रणाली के आधार पर मिसाइलों के प्रकार Types Of Missiles On The Basis Of Guidance System
    तार द्वारा निर्देश Wire  Guidance
    समादेश निर्देश Command  Guidance
    तुलनात्मक भूभागीय निर्देश Terrain Comparison  Guidance
    स्थलीय या पार्थिव निर्देश Terrestrial Guidance
    जड़त्वीय निर्देश Inertial Guidance
    लेजर निर्देश  Laser Guidance
    किरणपुंज आरोही निर्देशन  Beam Rider Guidance
    ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.) और रेडियो फ्रीक्वेंसी द्वारा (आर.एफ.) निर्देश Global Positioning System (GPS) and Radio Frequency (RF) Guidance


आलेख

’’जनप्रतिनिधित्व अनुपात: आबादी के आधार पर न हो इजाफा’’

आजादी के बाद देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है परंतु जनप्रतिनियों की संख्या उतनी ही बनी हुई है। अब तक की सरकारों ने इस पर कोई विचार नहीं किया। दैनिक ’नई दुनिया’ 02 मई 2017 के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर ए. सूर्यप्रकाश का एक लेख छपा है जिसका शीर्षक है - ’’जनप्रतिनिधित्व अनुपात: आबादी के आधार पर न हो इजाफा’’। लेख में कहा गया है कि - ’’संविधान के अनुच्छेद 81 (2) (ए) के अनुसार लोक सभा में हर राज्य के लिए सीटों का अबंटन जनगणना के अनुपात से होता है। वहीं अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक दशकीय जनगणना के बाद हरेक राज्य में सीटों के परिसीमन के लिए किसी निकाय का गठन कर सकती है।’’ 

पर इसमें कुछ दिक्कते हैं जिसे लेख स्पष्ट किया गया है - आज की स्थिति में जनसंख्या के अनुपात में जनप्रतिनिधयों की संख्या नहीं तय की जा सकती। ऐसा करना उन दक्षिणी राज्यों के लिए हानिकारक होगा जहाँ साक्षरता दर अधिक है और जिन्होंने परिवार नियोजन कार्यक्रम को ईमानदारी से लागू करके अपने राज्य की जनसंख्या को अधिक बढ़ने नहीं दिया। यह अच्छे काम के लिए दंडित करने जैसा होगा। दूसरी ओर उत्तरी राज्य हैं जहाँ साक्षरता दर अपेक्षाकृत कम है और परिवार नियोजन के प्रति उपेक्षित रवैये के कारण वहाँ की जनसंख्या में तेजी से बढौतरी हुई है। दक्षिणी राज्यों के मुकाबले इन राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर तीन से चार गुना अधिक रही है। राष्ट्रीय हित के मुद्दों की उपेक्षा करनेवाले इन राज्यों के लिए यह किसी पुरस्कार से कम नहीं हागा। अतः ऐसी स्थिति में जाहिर है, जनप्रतिनिधित्व अनुपात को आबादी के आधार पर बढ़ाना न्यायसंगत नहीं होगा।

जहाँ तक मैं समझता हूँ - 2003 में अटलविहारी बाजपेयी सरकार ने इस पर विचार करने का मन बनाया था। परंतु इस सरकार ने उल्टा निर्णय लेते हुए जनप्रतिनिधयों की संख्या बढ़ाने का विचार 2026 तक के लिए मुल्तबी कर दिया। इसका अर्थ है कि 2031 की दशकीय जनगणना के पहले जनप्रतिनिधयों की संख्या बढ़ाना अब संभव नहीं है। यह एक कूटनीतिक प्रपंच है जिसे समझा जाना चाहिए। वह यह कि - जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ने का अर्थ है संसद में गैर सवर्णों की संख्या में इजाफा होना। इससे सरकार का नेत्त्व गैर सवर्णों के हाथों में चले जाने की संभावना बनती है। अब तक देश में सवर्णों के नेतृत्ववाली सरकारें रही हैं। सवर्ण किसी भी हालत में सत्ता से दूर होना नहीं चाहेंगे। ऐसे में वे कदापि नहीं चाहेंगे कि संसद और विधान सभाओं में जनप्रतिनिधयों की संख्या बढ़े। 
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सोमवार, 1 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

अव्यय एवं विभक्तियाँ

अव्यय:-  

अव्यय ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। इनका व्यय नहीं होता इसलिए ये अव्यय तथा इनमें विकार उत्पन्न नहीं होते इसलिए ये अविकारी शब्द हैं। जैसे -  और, इसलिए, किन्तु, परन्तु, बल्कि, अर्थात्, क्यों, कब, आदि।

कारक:-

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका संबंध सूचित हो, उसे कारक कहते हैं। 
अथवा
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका क्रिया से संबंध सूचित हो, उसे कारक कहते हैं।
जैसे - रामचन्द्रजी ने समुद्र पर पुल बंधवाया।
रामचन्द्रजी ने, समुद्र पर तथा पुल कारक पद हैं इनका संबंध बंधवाया क्रिया के साथ सूचित होता है।

विभक्ति:-

कारकपद या क्रियापद बने बिना कोई शब्द वाक्य में बैठने योग्य नहीं होता। कारक पद बनाने के लिये ’ने, पर’ आदि अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें ही विभक्ति कहा जाता है।

हिन्दी कारकों की विभक्तियों के चिह्न -

    कारक                    विभक्तियाँ

    कर्ता                        0, ने
    कर्म                         0, को
    करण                      से
    सम्प्रदान                 को, के, लिए
    अपादान                  से
    सम्बन्ध                   का, के, की, रा, रे, री
    अधिकरण                में, पर
    सम्बोधन                  0, हे, अजी, अहो, अरे

विभक्तियों की प्रायोगिक विशेषताएँ :-

1. विभक्तियाँ प्रायः संज्ञा या सर्वनामों के साथ आते हैं।
2. ये अव्यय होते हैं।
3. ये स्वतंत्र होते हैं।
4. इनके अर्थ नहीं होते।

हिन्दी की विभक्तियाँ सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होने पर प्रायः उनमें विकार उत्पन्न कर उनसे संयुक्त हो जाते हैं। जैसे - मैंने,  मेरा, हमारा आदि।
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