अनुस्वार ( ं ) तथा अनुनासिक ( ँ )
हिंदी में अनुस्वार ( ं ) तथा अनुनासिक ( ँ ) दोनों अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। परंतु अनुनासिक ( ँ ) अखबारों से गायब हो चुका है। अखबारों की हिंदी को आदर्श माननेवालों की वर्तनी से भी यह गायब हो चुका है। इन ध्वनियों में निम्न अंतर है -1. अनुस्वार
1. अनुस्वार की ध्वनि को प्रगट करने के लिए वर्ण के ऊपर बिंदु लगाया जाता है जैसा कि इस कोष्टक ( ं ) में दिखाया गया है।2. व्यंजन ध्वनियाँ स्वर के पहले आती है। अनुस्वार स्वर के बाद आनेवाली ध्वनि है अतः इसे व्यंजन ध्वनि नहीं कहा जाना चाहिए। परंतु इसका उच्चारण व्यंजन ध्वनियों की तरह होता है। यह पूर्णतः अनुनासिक ध्वनि है। अतः यह एक व्यंजन ध्वनि है। हिंदी में स्वर रहित पंचमाक्षरों अर्थात अनुनासिक ध्वनियों के लिए अनुस्वार का प्रयोग होता है।
जैसे - च् + अ + ञ् + च् + अ + ल् + अ = चञ्चल या चंचल
परंतु जब कोई पंचमाक्षर किसी पंचमाक्षर से ही संयुक्त हो रहा हो तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता।
3. अनुस्वार के उच्चारण में जीभ वायु को मुखगुहा में बाधित करती है और मुँह बंद रहता है। अधिकांश वायु नाक से निकलती है।
4. अनुस्वार स्वर ध्वनि के बाद आनेवाली ध्वनि है; अर्थात यह स्वर का अनुसरण करता है इसलिए अनुस्वार कहलाता है।
5. यह दीर्ध स्वर है और छंदों में इसकी मात्रा 2 मानी गयी है।
2. अनुनासिक ( ँ )
1 अनुनासिक की ध्वनि को प्रगट करने के लिए वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु लगाया जाता है जैसा कि इस कोष्टक ( ँ ) में दिखाया गया है। परंतु ए, ऐ, ओ, औ, इ तथा ई की मात्राओं के साथ आने पर इसे बिना चंद्र के लिखा जाता है। जैसे - हैँ को हैं लिखा जाता है।2 अनुनासिक एक स्वर ध्वनि है।
3 अनुनासिक के उच्चारण में मुँह खुला रहता है और अधिकांश वायु मुँह से निकलती है। नाक से बहुत कम वायु निकलती है।
4 यह ह्रस्व स्वर है और छंदों में इसकी मात्रा 1 मानी गई है।
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