’’मैं कौन हूँ’’ इस रहस्य को समझातेे हुए ओशो सिकंदर से जुड़ी एक कथा कहते हैं। लौटते समय सिकंदर अपने साथ यहाँ से एक फकीर ले जाना चाहता था। उन्होंने अपने सैनिकों कोे कोई फकीर ढूँढ़कर लाने का आदेश दिया। तलाश शुरू हो गई। तलाशी में जुटे एक सैनिक ने एक दिन आकर सिकंदर से कहा - महाराज! एक बहुत विचित्र फकीर का पता चला है। उसे यहाँ तक लाने के लिए हमने हर संभव काशिश किया। आपका भय भी दिखाया। पर उसने आने से इन्कार कर दिया।
सुनकर सिकंदर चकित भी हुआ और क्रोधित भी। वह स्वयं उस फकीर के पास गया। पूछा - क्या तुम्हें सिकंदर से डर नहीं लगता?
कैसा डर?
हुक्म न मानने पर हम तुम्हारा सर कलम कर सकते हैं।
हाँ! जानता हूँ। आप एक शरीर से उसका सिर काट सकते हैं। पर मेरा सिर नहीं।
मौत से तुम्हें भय नहीं लगता?
किसकी मौत? आप एक शरीर को जरूर मार सकते हैं। मुझे कैसे मारोगे? एक शरीर से उसका सर कटता हुआ जैसे आप देखेंगे, और लोग देखेंगे, वैसा ही मैं भी देख लूँगा। फिर डर कैसा?
सिकंदर हारकर लौट गया।
भय से मुक्त होना ही मोक्ष प्राप्त करना है। कबीर ऐसा ही था।
सुनकर सिकंदर चकित भी हुआ और क्रोधित भी। वह स्वयं उस फकीर के पास गया। पूछा - क्या तुम्हें सिकंदर से डर नहीं लगता?
कैसा डर?
हुक्म न मानने पर हम तुम्हारा सर कलम कर सकते हैं।
हाँ! जानता हूँ। आप एक शरीर से उसका सिर काट सकते हैं। पर मेरा सिर नहीं।
मौत से तुम्हें भय नहीं लगता?
किसकी मौत? आप एक शरीर को जरूर मार सकते हैं। मुझे कैसे मारोगे? एक शरीर से उसका सर कटता हुआ जैसे आप देखेंगे, और लोग देखेंगे, वैसा ही मैं भी देख लूँगा। फिर डर कैसा?
सिकंदर हारकर लौट गया।
भय से मुक्त होना ही मोक्ष प्राप्त करना है। कबीर ऐसा ही था।
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