छत्तीसगढ़ियों का शोषण - 1
भिलाई स्पात संयंत्र छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों के लिए अभिशाप के अलावा और कुछ भी साबित नहीं हुआ। इससे चाहे देश समृद्ध हुआ होगा, परंतु यहाँ के लोग केवल शोषत हुए हैं। संयत्र स्थापित होते समय यहाँ के लोक कलाकार ददरिया में एक नवीन पद गाते थे -
’का साग रांधे टुरी लोहा के कड़ाही में।
तोर-मोर भेट होही दुरुग-भिलाई में।।’
(प्रेम करनेवाले नायक-नायिका की आर्थिक स्थिति असमान है। नायिका की रसोई में सब्जी लोहे की कड़ाही में बनती है। लोहे की कड़ाही में सब्जी का बनना संपन्नता का प्रतीक है। नायक गरीब है। इसीलिए दोनों के मिलने की संभावना कम है। परंतु अब भिलाई में स्पात का कारखाना बन रहा है। सरकार ने कहा है कि यहाँ के सभी गरीबों को वह कारखाने में नौकरी देगी। नायक भी वहाँ नौकरी पायेगा। नौकरी पाकर खूब पैसा कमायेगा। तब नायिका से मिलन में कोई बाधा नहीं होगी। इसीलिए उन्होंने नायिका से वादा किया है कि अब उनकी अगली भेंट दुरुग-भिलाई में ही होगी।)
भिलाई स्पात संयंत्र की स्थापना के समय सरकार ने यहाँ के लोगों को संपन्नता के खूब सब्जबाग दिखाये। यहाँ के लोग अपनी उम्मीदों को अपनी लोककलाओं के विभिन्न माध्यमों के द्वारा व्यक्त करते रहे। परंतु जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि वे छल लिये गये हैं।
संयंत्र स्थापना हेतु जिन गाँवों को उजाड़ा गया, जिन किसानों की जमीनों, और खेतों को अधिग्रहित किया गया; उनके लिए बड़े-बड़े वादे किये गये। पर वे अब कहाँ और किस हालत में हैं, कोई नहीं जानता।
यहाँ की नदियों में बहनेवाले जल से यहाँ के खेतों की सिंचाई के लिए बारहों महीने पानी दिया जा सकता था। तब यहाँ के किसान और खेतिहर मजदूर पंजाब के किसानों की तरह समृद्ध और खुशहाल होते। परंतु स्पात संयंत्र बनने से यहाँ की नदियों का अधिकांश जल स्पात कारखाने में और स्पात नगरी के लोगों के टायलेटों में खप जाता है। छत्तीसगढ़ में केवल वर्षा आधारित खरीफ की खेती हो पाती है। प्रचुर जल संपदा के रहते छत्तीसगढ़ को हर साल सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ता है।
स्पात नगरी में अन्य प्रांत से आकर बसनेवाले लोगों ने यहाँ की समृद्ध लोक परंपराओं का, यहाँ की भाषा का मजाक उड़ाने में कोई कमी नहीं की।
यहाँ के लौह अयस्क का दोहन करके जो स्पात बनाया जाता है वह छत्तीसगढ़ियों के लिए नहीं है। आज से पाँच-सात साल पूर्व तक यहाँ के किसानों और मजदूरों के बच्चों के लिए उच्चशिक्षा (मेडिकल, इंजीनियरिंग, आई.आई.टी., आई.आई.एम. आदि) की कोई व्यवस्था नहीं थी। यहाँ के बच्चों को षडयंत्रपूर्वक उच्चशिक्षा से वंचित रखा गया। आज भी ऐसी कोई व्स्पष्ट यवस्था नहीं है जिससे यहाँ के गरीबों-किसानों के प्रतिभावान बच्चों को इन संस्थानों में प्रवेश मिल सके।
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