सोमवार, 1 मई 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

अव्यय एवं विभक्तियाँ

अव्यय:-  

अव्यय ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। इनका व्यय नहीं होता इसलिए ये अव्यय तथा इनमें विकार उत्पन्न नहीं होते इसलिए ये अविकारी शब्द हैं। जैसे -  और, इसलिए, किन्तु, परन्तु, बल्कि, अर्थात्, क्यों, कब, आदि।

कारक:-

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका संबंध सूचित हो, उसे कारक कहते हैं। 
अथवा
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका क्रिया से संबंध सूचित हो, उसे कारक कहते हैं।
जैसे - रामचन्द्रजी ने समुद्र पर पुल बंधवाया।
रामचन्द्रजी ने, समुद्र पर तथा पुल कारक पद हैं इनका संबंध बंधवाया क्रिया के साथ सूचित होता है।

विभक्ति:-

कारकपद या क्रियापद बने बिना कोई शब्द वाक्य में बैठने योग्य नहीं होता। कारक पद बनाने के लिये ’ने, पर’ आदि अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें ही विभक्ति कहा जाता है।

हिन्दी कारकों की विभक्तियों के चिह्न -

    कारक                    विभक्तियाँ

    कर्ता                        0, ने
    कर्म                         0, को
    करण                      से
    सम्प्रदान                 को, के, लिए
    अपादान                  से
    सम्बन्ध                   का, के, की, रा, रे, री
    अधिकरण                में, पर
    सम्बोधन                  0, हे, अजी, अहो, अरे

विभक्तियों की प्रायोगिक विशेषताएँ :-

1. विभक्तियाँ प्रायः संज्ञा या सर्वनामों के साथ आते हैं।
2. ये अव्यय होते हैं।
3. ये स्वतंत्र होते हैं।
4. इनके अर्थ नहीं होते।

हिन्दी की विभक्तियाँ सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होने पर प्रायः उनमें विकार उत्पन्न कर उनसे संयुक्त हो जाते हैं। जैसे - मैंने,  मेरा, हमारा आदि।
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