सोमवार, 22 मई 2017

आलेख

मुगल बादशाहों के बारे में ...


साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका ’आजकल’ मई 2017 ’भारतीय नव जागरण और हिंदी’ अंक कें कुछ अंश और -
1.
उपन्यास (शाज़ी ज़मा का उपन्यास ’अकबर’) में बाबर की हुमायुँ के नाम वह वसीयत भी दस्तावेज़ के रूप में शामिल है जिसमें हुमायुँ को यह हिदायत दी गई थी कि, ’बेटा, हिंदुस्तान की सरज़मीं में हर मज़हब को माननेवाले लोग रहते हैं। अल्हम्दोलिल्लाह इस मुल्क की बादशाहत तुम्हें सौंपी गई है। अपने दिल से भेदभाव दूर करके इन्साफ करो। ख़ास तौर पर तुम गाय की कुर्बानी न करो। इससे तुम हिंदुस्तान के लोगों का दिल जीत लोगे और लोग बादशाहत से जुड़ेंगे। सल्तनत में रहनेवालों की इबादतगाहों को गिराओ मत। इतना बराबरी का इन्साफ करो कि लोग अपने बादशाह से खुश हों और बादशाह लोगों से। इस्लाम जुल्म की तलवार से नहीं, नरमी से आगे बढ़ेगा।’
(पृष्ठ 43)
2.
उपन्यास (शाज़ी ज़मा का उपन्यास ’अकबर’) में मुल्ला अब्दुल कादि़र बदाँयुनी के हवाले से अकबर का यह चित्रण दिलचस्प है - ’सुल्तान जलालुद्दीन अकबर ने जो बहुत सी गलत और इस्लामी शरीयत के खिलाफ बातें लागू कीं उनमें से एक यह थी कि गाय का गोश्त खाना हराम कर दिया गया। इसकी वजह यह थी कि बादशाह बचपन से ही कट्टर मज़हबी हिंदुओं के साथ उठता-बैठता था और गाय का एहतराम करना हिंदुओं के अकीदे के मुताबिक दुनिया की सलामती का सबब है और हिंदुओं की गलत बाते बादशाह के दिल में घर कर गई थीं और भारत के बहुत से हिंदू राजाओं की बहुत-सी लड़कियाँ जो हरम में दाखिल थीं, वो बादशाह के मिजाज में बहुत दखल देती थीं और बादशाह गोमांस, लहसुन और प्याज के खाने और दाढ़ीवाले और तरह के लोगों से परहेज करने लगेे थे।’’
(पृष्ठ 43)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें