गुरुवार, 18 मई 2017

आलेख

अगर मैं किसी किसान से कहूँ कि - ’आपका ज्ञान दुनियाभर के शास्त्रों, ग्रंथों और किताबों में वर्णित सभी ज्ञानों से श्रेष्ठ है, क्योंकि -

आपका ज्ञान उत्पादक और पोषक है।

आपका ज्ञान दुनिया का पेट भरता है और उसे जीवन देता है।

आपके ज्ञान ने भूख को जीतकर दुनिया को स्वतंत्रता की अवधारणा दिया है, यह मोक्ष देनेवाला है।

आपका ज्ञान समस्त कलाओं, सभ्यताओं, धर्मों और ईश्वरों को जन्म देनेवाला है। आप अपने ज्ञान पर गर्व करो।

जो शास्त्रीय ज्ञान अनाज का एक दाना भी पैदा नहीं कर सकता, किसी का पोषण नहीं कर सकता, वह आनंद और मोक्ष कैसे दे सकता है? समस्त शास्त्रों और ग्रंथों की रचना आपकों मूर्ख और आपके ज्ञान को हीन साबित करने के लिए एक प्रपंच है, जिससे आपके श्रम का, आपके धन का और आपका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा सके। आप पर शासन किया जा सके और शोषित होने को आप अपनी नियति स्वीकार लें।’ तो वह किसान मुझे मूर्ख समझकर मेरी बातों को अनसुना कर देगा। बहुत संभव है कि वह मुझे स्वर्ग-नर्क, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म और चैरासी लाख योनियों, ईश्वर और अवतारों की बातें समझाने लगेगा।

फिर भी मैं अपनी बात पर कायम हूँ और इन बातों को मैं हमेशा दुहराता रहूँगा।
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