गुरुवार, 9 अगस्त 2018

व्यंग्य

नयी शिक्षानीति का प्रारूप

(कांवड़ियाई दहशत के संदर्भ में यह व्यंग्य एक बार और)

आजकल अजूबावर्त नामक देश की सरकार देश की शिक्षानीति में बदलाव को लेकर अत्यंत उत्साहित है। इस पुण्यकार्य को संपन्न करने के लिए वह अत्यंत उतावली हो रही है। वह कह रही है - मंहगाई, भष्टाचार, व्यभिचार, बेरोजगारी, भूखमरी, नक्सलवाद, आतंकवाद, आरक्षणवाद और क्षेत्रियतावाद, ये हमारे राष्ट्रीय नौग्रह हैं। आजकल हमारे ये सभी राष्ट्रीय नौग्रह क्षुब्ध और कुपित हो गए हैं। इन राष्ट्रीय नौग्रहों के क्षुब्ध और कुपित होने का ही दुष्परिणाम है कि देश में आज बड़े पैमाने पर खाने-पीने की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं और इससे त्रस्त, भूख से बिलबिलाते राजनेता देश को खाने पर तुले हुए हैं। देश के वातावरण में सर्वत्र ’यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ....’ पवित्र महामंत्र की जगह अब सातों दिन चैबीसों घंटे  ’यत्र नार्यस्तु भोग्यन्ते ....’ का विकृत मंत्र गूँजने लगा है।

न तो मास्टरों की रूचि पढ़ाने में है और न ही बच्चों की रूचि पढ़ने में। शिक्षक और बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगे हैं। परीक्षा में अधिकांश बच्चे फेल हो जाते हैं। बच्चों के सांस्कृतिक, नैतिक, पारंपरिक और धार्मिक चरित्र में गिरावट आई हुई है। राष्ट्रविरोधी ताकतें सिर उठाने लगी है। क्षेत्रियतावाद मुखर होने लगी है। और इन सबके कारण एक ही है - देश की त्रुटिपूर्ण, धर्मविरोधी, राष्ट्रविरोधी और नैतिकताविरोधी, मौजूदा शिक्षानीति। अतः इसमें यथाशीघ्र बदलाव की जरूरत है। इस अतिमहत्वपूर्ण जनहितैशी कार्य के लिए देशभर के अतिप्रभावशाली, दिव्य व्यक्तित्व के धनाचार्यों, धनी धर्माचार्यों, नैतिकताचार्यों, मद्याचार्यों, उद्योगाचार्यों, और राष्ट्राचार्यों की रहनुमाई में ’राष्ट्रीय शिक्षा संचालन कंपनी’ का गठन किया गया। इस कंपनी की सहायता और निगरानी के लिए देश की सबसे बड़ी एन. जी. ओ. ’राष्ट्रीय सहयोग एवं सेवा कंपनी’ को कहा गया है। कंपनी ने तुरंत अपना काम शुरू कर दिया है।

कंपनी को अपना रिपोर्ट बनाने और पेश करने में साल-दो साल या कई सालों का वक्त लग सकता है; अधिक भी लग सकता है। यह हमारे माननीय शिक्षामंत्री को पसंद नहीं है। हमारे माननीय शिक्षामंत्री दूरबाहिर, दूरदेशी और दूरगति प्रकृतिवाले विराट और विचित्र व्यक्ति हैं। ईंट का जवाब पत्थर से देना उनकी आदत है। समय की बर्बादी उन्हें कतई पसंद नहीं है। नयी शिक्षानीति के संदर्भ में उन्होंने भी अपनी एक नीति बनायी हुई है।

माननीय शिक्षामंत्री महोदय ने अपनी बनायी हुई शिक्षानीति को पंचपदीय शिक्षानीति का नाम दिया है। उन्होंने अपने इस पंचपदीय शिक्षानीति को इसी सत्र से लागू करने का फररमान भी जारी कर दिया है। नई शिक्षानीति बनानेवाली कंपनी को उन्होंने इस तथ्य से अवगत करा दिया है। इस पंचपदीय शिक्षानीति के पाँचों पद एवं इनके कुछ महत्वपूर्ण उपपद इस प्रकार हैं -
1. भक्तिपद
2. वर्गपद
3. जातिपद
4. राजनीतिपद
5. सत्तापद

भक्तिपद के उपपदों में कहा गया है कि शिक्षासत्र की शुरुआत पूर्णतः भक्तिभाव के साथ होना चाहिए। इससे शाला का वातावरण सत्रांत तक भक्तिमय बना रहेगा। सावन का महीना इस कार्य में हमारी मदद करेगा। इस कार्यक्रम के तहत हर साल सावन के महीने में, सभी स्कूलों के शिक्षकों और छात्रों का विशेष कांवड़िया जत्था बनाया जयेगा। इनके लिये हाईटेक लिबास और कांवड़ की व्यवस्था सरकारी खजाने से की जायेगी। इन दलों कोें इनकी इच्छा और सुविधा के अनुसार शासकीय खर्च पर जलाभिषेक के लिए तीर्थों की ओर भेजा जायेगा। बजट में इसके लिए विशेष प्रावधान किये जायेंगे। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए देश में राष्ट्रीय स्तर पर देश के शिक्षामंत्री खुद राष्ट्रीय कांवड़िया दल का नेतृत्व करेंगे। इसी क्रम में राज्य स्तर के कांवड़िया दल का नेतृत्व राज्य के शिक्षामंत्री, नगर स्तर पर महापौर, वार्ड स्तर पर वार्ड पार्षद, और पंचायत स्तर पर सरपंच करेंगे। सावन महीने में वंचित शिक्षकों और छात्रों के दल को नवरात्रि पर्वों पर पदयात्रा पर भेजा जायेगा। इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के लिए देशभर में जिला स्तर पर जिला बोलबम और जय मातादी विभाग खोले जायेंगे। इसका विभागप्रमुख जिला बोलबम अधिकारी के नाम से जाना जायेगा। जिला बोलबम अधिकारी हेतु नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि नैतिक-धार्मिक कार्यों में दस वर्षों की संलिप्तता और भोग-चढ़ावे की वसूली का अनुभव होगा।

कांवड़ यात्रा से छात्र और शिक्षक देश की भाषायी और सामाजिक-सांस्कृतिक भिन्नता को अपने स्वयं के अनुभवों से समझ सकेंगे। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी।

भक्तिपद के एक अन्य उपपद में कहा गया है कि सत्तारूढ़ दल के प्रति विशेष भक्तिभाव रखनेवाले, मंत्रियों, नेताओं तथा अधिकारियों के प्रति निष्ठा व समर्पण का भाव रखनेवाले शिक्षकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करते हुए उन्हें उनके ईष्टों की सेवा का भरपूर अवसर दिया जायेगा। ऐसे शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के प्रकरणों में प्राथमिकता प्रदान किया जायेगा।

वर्गपद के प्रावधानों में कहा गया है कि बहुत सारे शिक्षक अत्यंत प्रभावशाली वर्ग-समूहों से संबंधित होते हैं। इन शिक्षकों की पदस्थापना में बड़ी दुविधा होती है। इनका स्थानांतरण सरकार के लिए जानलेवा सिरदर्द का सबब बनता है। इससे सरकारी कामकाज बाधित होते हैं। अधिकारियों को मानसिक दबावों से दो-चार होना पड़ता है। अध्यापन कार्य प्रभावित होते हैं। इन सारी मुसीबतों से बचने के लिए ऐसे सभी शिक्षकों को उनके अपने ही घरों में कक्षा लगाने का विकल्प दिया जायेगा। इस योजना के लागू होने से शाला भवनों की कमी की समस्या दूर होगी। शिक्षकों के अप-डाउन करने से होनेवाले धन और समय का अपव्यय रुकेगा। अपडाडन करनेवाले अनेक शिक्षक सार्वजनिक परिवहन के वातावरण से प्रभावित होकर अस्वस्थ हो जाते हैं। इस योजना से विभाग को ऐसे तमाम स्वास्थ्यक्षति से होनेवाले नुकसानों से बचा जा सकेगा। शिक्षाविभाग की समस्याएँ दूर होगी। बच्चों को ट्यूशन का आनंद मिलेगा। शिक्षक सुरूचिपूर्वक तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षणकार्य कर सकेंगे। भारत की गुरूकुल की प्राचीन परंपरा जीवित हो जायेंगी। गुरूओं का सम्मान बढ़ेगा। घर पर ही शाला लगानेवाले ऐसे सभी शिक्षकों को क्षतिपूर्ति के रूप में विशेष मानदेय भी दिया जायेगा। व्यवस्था के प्रति आस्था रखनेवाले ऐसे शिक्षक ही राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कारों के असली वारिस होंगे। इन शिक्षकों को इसमें सर्वोच्च वरीयता दी जायेगी।

विपक्ष ने इस पर जोरदार हंगामा करते हुए कहा कि माननीय शिक्षामंत्री द्वारा लायी जा रही यह पंचपदीय शिक्षानीति वास्तव में प्रपंचपदीय शिक्षानीति है। इससे देश की शिक्षा व्यवस्था रसातल में चली जायेगी।

सरकार ने जवाब में कहा - इतिहास साक्षी है, और अब तक के सारे स्थापित मूल्य और उनके सत्य इस बात के सजीव व प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि हर शुभ और नये कार्य का विरोध होता ही है। विरोध होना महान शुभ लक्षण है।
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नयी शिक्षानीति बनानेवाली कंपनी ने शंकाओं-कुशंकाओं के विपरीत और देश की समस्त आयोग-नियोग-परंपराओं का अतिक्रमण करते हुए, अतिसुयोग का परिचय दिया और कुछ ही दिनों में नई शिक्षानीति का प्रारूप शिक्षा मंत्रालय को सौंप दिया। विपक्ष ने हंगामा किया कि यह असंभव है। सरकार ने सारी बातें जरूर पहले से तय करके रखी होंगी। केवल औपचारिकता निभाया गया है।

खैर! कुछ भी हो, हमें क्या लेना-देना। सरकार जाने और विपक्ष जाने। नई शिक्षानीति के प्रारूप में दिये गये प्रावधानों का अध्ययन करके शिक्षा मंत्रालय का हृदय-कमल, कमलगंध से महकने लगा। इन प्रावधानों के कुछ अतिमहत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं -

- नयी शिक्षानीति बनानेवाली कंपनी ने कहा है कि शिक्षामंत्री के उपर्युक्त पंचपदीय सिद्धांतों को बिना किसी प्रूफ संशोधन के अक्षरशः शामिल कर लिया जाय

- नयी शिक्षानीति बनानेवाली कंपनी ने छात्रों के अनुत्तीर्ण होने के कारणों का अत्यंत सूक्ष्मतापूर्वक व गहनतापूर्वक अध्ययन करने के बाद कहा है कि इस देश के डी. एन. ए. में केवल धर्म और अध्यात्म के ही जीन पाये जाते हैं। गणित, विज्ञान और विदेशी भाषा सीखनेवाले जीनों का सर्वथा अभाव होता है। फलतः छात्र इन्हीं विषयों में अनुत्तीर्ण होते हैं और परीक्षाफल प्रभावित होता है। अतः उचित होगा कि इन विषयों को पाठ्यक्रमों से हटा लिया जाये। इसके स्थान पर देश में पाये जानेवाले समस्त धार्मग्रंथों, अध्यात्मग्रंथों को शामिल कर लिया जाय। देवभाषा को सर्वोच्च स्थान दिया जाय।

- जिन गिने-चुने विद्याथियों के जिनों में गणित, विज्ञान और विदेशी भाषा सीखनेवाले जीनों के लक्षण पाये जायेंगे अथवा पाये जाने की संभावना होगी उन्हें निजी शिक्षण संस्थानों के हवाले कर दिया जायेगा। घोर आश्चर्य पैदा करनेवाली ऐसी घटना कैसे संभव हुई, इसका रहस्य जानने के लिए इनके जीनों को शोध और परीक्षण के लिए विदेशी प्रयोगशालाओं में भेजा जायेगा।

- शासकीय शालाओं में भीड़ पैदा करनेवाले जिन असंख्य विद्याथियों के जिनों में गणित, विज्ञान और विदेशी भाषा सीखनेवाले जीनों का अभाव होता है उनके जीनों को भी शोध और परीक्षण के लिए विदेशी प्रयोगशालाओं में भेजा जायेगा। आधुनिक जिनेटिक इन्जीनियरिंग के द्वारा इनके गुणसूत्रों में गणित, विज्ञान और विदेशी भाषा सीखनेवाले जीनों को प्रत्यारोपित करने का प्रयास किया जायेगा ताकि इनकी आनेवाली नस्लों में वांक्षित सुधार हो सके।

- इस देश के लोगों के गुणसूत्रों में हरामीपन, बेशर्मीपन, बेईमानी, भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता और दायित्वहीनता आदि के जीन बहुतायत में क्यों पाये जाते हैं? ये कहाँ से आते हैं? क्या अन्य आनुवांशिक रोगों की तरह यह भी कोई आनुवांशिक रोग तो नहीे है? क्या यह हमारे देश में आतंकवाद परोसनेवाले विदेशियों की कोई नयी आतंकवादी साजिश तो नहीं है? इन समस्त पहलुओं की जांच करने के लिए प्रतिवर्ष सभी विद्याार्थियों के गुणसूत्रों की अनिवार्य रूप से जांच करायी जाय।

- इन अतिमहत्वाकांक्षी परियोजनाओं को सफल बनाने के लिए विश्वप्रसिद्ध विदेशी प्रयोगशालाओं, विशेषज्ञ दलों, जिनेटिक्स इन्जीनियरों को इसका टेंडर दिया जाय। पृथ्वी नामक इस पवित्र ग्रह में ऐसी कोई प्रयोगशाला और कोई विशेषज्ञ उपलब्ध न होने की दशा में आऊटसोर्सिंग नीति के तहत स्वर्गलोक से ऐसे विशेषज्ञों को बुलाया जाय। इस स्थिति में स्वर्गाधिपति से संपर्क कायम करने के लिए देश के शंकाचार्यों की सेवाएँ लेना सर्वथा उचित होगा।

- ये सभी कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ तय समयसीमा में संपन्न हो सकें इसके लिए निष्ठावान और ईमानदार लोगों की टीम का होना जरूरी है अतः इसका जिम्मा किसी बड़े राजनेता समर्थित एनजीओ को सौपा जाय।

- स्मृतिग्रंथों की उपेक्षा के कारण ही देश में जाति-वर्ग का बखेड़ा खड़ा हुआ है। अतः देश की महानतम व प्राचीनम संस्कृति को जीवन देनेवाली इन पवित्र ग्रंथ को पाठ्यक्रमों में शामिल कर लिया जाय।

- गोरक्षा इस देश की दुर्लभ संस्कृति की पहचान है अतः इसे प्राथ्मिकता के आधार पर पाठ्यक्रमों में शामिल कर लिया जाय। प्रत्येक स्कूल में समुन्नत व हाईटेक गोठानों की स्थापना की जाय। दुग्धउत्पादन से संबंधित विभागों को इसमें मर्ज कर दिया जाय। इससे देश में ग्वाल-बालों की एक स्वस्थ और बलिष्ठ पीढ़ी का उदय होगा। इससे बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान होगा।

- मध्याह्न भोजन में दाल-भात-चटनी परंपरा को तुरंत बंद कर दिया जाय। इस योजना को और अधिक स्वास्थ्यवर्धक, स्वादपूर्ण, सुरूचिपूर्ण व सुपाच्य बनाने के लिए सप्ताह के सातों दिन के मेनू में क्रमशः पिज्जा, बर्गर, नूडल, चाऊमिन, चाट, छोले-भटूरे, तथा आइसक्रीम को शामिल कर लिया जाय। कुछ मीठा हो जाये, नीति के तहत मध्याह्न भोजन में प्रतिदिन चाॅकलेट दिये जायें। बच्चों को पानी की जगह साफ्टड्रिंक्स दिये जायें।

इन खाद्य सामग्रियों के निर्माण के लिए महिला स्व-सहायता समूह की माताओं-बहनों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। सरकार को चाहिए कि वह इस पुण्य कार्य को प्राथमिकता दे। महिला स्व-सहायता समूह की माताएँ-बहनें जब तक इस काम में दक्ष न हो जायें, इस योजना को इससे जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौप देना चाहिए।
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