शनिवार, 16 मई 2020

कविता - राजाजी आत्मदर्शी हो गए हैं

राजाजी आत्मदर्शी हो गए हैं
राजाजी आजकल आत्मदर्शी हो गए हैं देशी जुगाड़ और देशी तकनीक से एक आत्मदर्शी यंत्र बनाया है उन्होंने शतप्रतिशत सटीक परिणाम देनेवाला, उनकी इच्छाओं और उनकी प्रेरणाओं से चलनेवाला आत्मगुणवत्ता के मानकों के स्तरों को मापनेवाला देश की आत्मा को दिखानेवाला अब वह देख सकेगा देश की आत्मा को अब वह आत्मनिर्भर बना सकेगा देश की आत्मा को देश की आत्मा को अब वह, देख लेगा और देख लेगा देश के अंदर की हर एक आत्मा को भी इस समय राजा जी बहुत व्यस्त हैं देश के अंदर की हर आत्मा को अब वह माप रहा है हर आत्मा को अब वह तौल रहा है हर आत्मा को अब वह परख रहा है इस समय राजा जी देश के अंदर की हर एक आत्मा को चुन-चुनकर देख रहा है राजा के देखने मात्र से देश की हर आत्मा सहमी हुई है देश की हर आत्मा कांप रही है और राजा के हर हाँ में हाँ मिला रही है राजाजी की आत्मदर्शी नजरों से बचने के लिए देश की आत्मा ने घोषित कर लिया है स्वयं को पहले ही आत्मनिर्भर राजाजी ही नहीं राजाजी के हर दरबारी की जेब में है आत्मदर्शी यंत्र देश की आत्मनिर्भर आत्मा अब राजा और उनके दरबारियों की जेब में है।
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Sudhir Thakur


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