सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आलेख

छत्तीसगढ़ी भाखा म हाना बिचार


हाना ह छत्तीसगढ़ी भाखा के परान तो आयेच् येकर सुभाव अउ सिंगार घला आय


मुहावरा, कहावत अउ लोकोक्ति मन भाखा के आत्मा होथंय। छत्तीसगढ़ी म मुहावरा, कहावत अउ लोकोक्ति खातिर एके ठन शब्द हे ’हाना’। जउन बात ल घंटा भर ले प्रवचन दे के कि दसों पेज के पत्री लिख के समझाना मुश्किल होथे वहू ल लाइन-आधालाइन के कहावत नइ ते मुहावरा के जरिया सफा-सफा, फरिया के समझाय जा सकथे। मूरख से मूरख आदमी ह घला मुहावरा, कहावत अउ लोकोक्ति के जरिया कहे गे बात के अर्थ ल साफ-साफ समझ लेथे। येकर एके कारण हो सकथे अउ वो ये कि मुहावरा, कहावत अउ लोकोक्ति मन लोक-व्यवहार, लोक -संस्कृति, लोक-परंपरा, लोक-रीति, लोक-नीति अउ लोक-व्यवसाय के उपज आय। येकर नेरवा ह लोक समाज रूपी जमीन म गड़े रहिथे।

मुहावरा होय कि कहावत होय कि लोकोक्ति होय; अर्थ बोध के हिसाब से सब म एक बात समान हे; सबे म लक्षणा शब्द शक्ति होथे अउ इंकर अरथ निकालत खानी इंकर लक्ष्यार्थ ल ही ग्रहण करे जाथे। मुहावरा अउ कहावत के अंतर मन ह एकदम साफ हे। मुहावरा ह मुख्य वाक्य के बीच म, वोकर हिस्सा बन के, माने वाक्यांश के रूप म ही प्रयुक्त होथे। मुहावरा ल मुख्य वाक्य ले निकाल देय ले वाक्य ह अर्थहीन हो जाथे, उरक जाथे। उदाहरण बर येदे वाक्य ल देखन, - सालिक के एकलौता टूरा ह आजकल छानी म होरा भूँजत हे। इहाँ वाक्य के बीच म प्रयुक्त छानी म होरा भूँजना वाक्यांश ह एक ठन मुहावरा आय। येला मुख्य वाक्य ले अलग कर देय से बचल वाक्य ’सालिक के एकलौता टूरा ह आजकल’ के कोनो अरथ नइ निकल सकय, मतलब ये वाक्य ह उरक गे। कहावत ह अपन आप म सुतंत्र वाक्य होथे। मुख्य वाक्य या कथन के बाद अपन बात ल अउ जादा स्पष्ट करे खातिर, अपन कथन ल अउ जादा वजनदार बनाय खातिर अलग से येकर प्रयोग करे जाथे। मुख्य वाक्य ह अर्थबोध के हिसाब ले पूरा रहिथे अउ कहावत ल हटा देय से घला येकर अर्थ ह जस के तस बने रहिथे। एक ठन उदाहरण देखव - रमेसर ल का के कमी हे। तभो ले वो ह जब देखो तब नाक म रोवत रहिथे। इही ल कहिथे, रांड़ी ह रोय ते रोय एहवाती ह घला रोय। इहाँ ’रांड़ी ह रोय ते रोय एहवाती ह घला रोय’ एक ठन कहावत आय। ये ह वक्ता के मुख्य कथन ल अउ जादा बजनदार बना देय हे। येला निकाल देय से घला वक्ता के मुख्य कथन म कोनों फरक नइ पड़य।

विद्वान मन कहावत अउ लोकोक्ति ल एके मानथें। पर बारीकी ले जांच करे जाय त दुनों के फरक ह जगजग ले दिखाई पड़ जाही। कहावत अउ लोकोक्ति मन लक्षणा के संगेसंग व्यंजना शब्द शक्ति ले घला भरपूर रहिथे। इंकर उद्गम लोक व्यवहार के कोनो अटल अउ मान्य सच्चाई के कोख ले होथे।

लोकोक्ति शब्द के संधि बिलगाव करे ले दू ठन शब्द मिलथे - लोक$ऊक्ति; माने लोक व्यवहार म प्रचलित ऊक्ति। लोक समाज म घटित होय कोनों अइसन विशेष घटना, जेकर असर ह व्यापक होथे अउ तीनों काल म जेकर सत्यता ह अमिट रहिथे, के कोख ले लोकाक्ति के जनम होथे। जादातर लोकोक्ति मन काव्यात्मक होथे अउ येमा अन्योक्ति अलंकार के गुण साफ-साफ झलकथे। खाल्हे के उदाहरण मन ल देखव -
1. कब बबा मरे, त कब बरा चुरे।
2. ददा मरे दाऊ के, बेटा सीखे नाऊ के।
कबीर दास के एक ठन दोहा हे -

माली आवत देख के, कलियन करे पुकार।
फूले-फूले चुन लिये, काल्ह हमारी बार।

ये दोहा म बात होवत हे फुलवारी, फूल, कली अउ माली के, पन इशारा होवत हे मानव जीवन के अटल सच्चाई अउ जीवन के नश्वरता डहर। फुलवारी, फूल, कली अउ माली के उदाहरण दे के ये दोहा म मानव जीवन के अटल सच्चाई अउ जीवन के नश्वरता ल समझाय गे हे। फुलवारी ह संसार, माली ह काल, कली ह बालपन अउ फूल ह सियानापन के सच्चाई ल फोर-फोर के बतावत हे। येला अन्योक्ति अलंकार कहे गे हे। अइसने इशारा लोकोक्ति मन म घला रहिथे।
मुहावरा होय कि कहावत होय कि लोकोक्ति होय, छत्तीसगढ़ी म सबोच ह हाना आय। हाना कइसे बनत होही, येकरो बिचार करके देखथन। येदे कहानी ल देखव -

बुधारू घर के बहू के पाँव भारी होइस, बुधारू के दाई ह गजब खुस होईस। फेर बिचारी ह नाती के सुख नइ भोग पाईस। बहू के हरू-गरू होय के पंदरा दिन पहिलिच् वोकर भगवान घर के बुलव्वा आ गे। बुधारू के बहू ह सुंदर अकन नोनी ल जनम दिस, सियान मन किहिन “डोकरी मरे छोकरी होय, तीन के तीन।”

बहू के दाई ह महीना भर ले जच्चा-बच्चा के सेवा-जतन करिस। दाईच् आय त का होईस, कतका दिन ले अपन घर-दुवार ल छोड़ के पर घर म जुटाही नापतिस, दू दिन बर घर जावत हंव बेटी कहिके गिस तउन हा हिरक के अउ नइ देखिस। लहुटबेच् नइ करिस। लइका के थोकुन अउ टंच होवत ले बहु ह थिराईस, तहन फेर बनी-भूती म जाय के शुरू कर दिस। पर के आँखीं म के दिन ले सपना देखतिस। बनिहार अदमी, के दिन ले घर म बइठ के रहितिस। परोसिन दाई के गजब हाथ-पाँव जोरिस अउ वोला लइका के रखवारिन बने बर राजी करिस। परोसिन दाई के घर लोग-लइका नइ रहय, वहू ह सरको म राजी हो गे।

पर के लइका के नाक-मुहूँ ह के दिन ले सुहातिस। डोकरी ह लंघियांत कउवा गे। साफ-साफ सुना दिस कि अब वो ह ये लइका के जतन नइ कर सकय। कहूँ ऊँच-नीच हो गे ते बद्दी म पड़ जाहूँ।

बहू ह रोजे परोसिन डोकरी के किलोली करय, संझा-बिहाने वोकर पाँव परय। जइसने-तइसने दिन निकालत गिस। परोसिन डोकरी ह कउवा जातिस त कहितिस - “परोसी के भरोसा लइका उपजारे हे दुखाही-दुखहा मन ह। हमर मरे बिहान कर के रखे हें।

ये कहानी म “डोकरी मरे छोकरी होय, तीन के तीन।” अउ “परोसी के भरोसा लइका उपजारना’’ ये दुनों हाना अउ कहानी के घटना म संगत बिठा के देखे ले बात ह समझ म आ जाही।

हाना अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के का बरनन-बिखेद करे जाय। छत्तीसगढ़ी भाखा म हाना बिचार करबे ते चकरित खा जाबे। छत्तीसगढ़ी भाखा ह हाना प्रधान भाखा आय। हाना ह येकर परान तो आयेच् येकर सुभाव अउ सिंगार घला आय। छत्तीसगढ़ के गाँव मन म जा के देख लव, बात-बात म, हर वाक्य म हाना सुने बर मिल जाही। छत्तीसगढ़िया मन के कोनों वाक्य ह बिना हाना के संपूरन होयेच् नहीं। जमाना ह अब बदलत जावत हे। लोग लइका मन पढ़त-लिखत जावत हें। छत्तीसगढ़ी भाखा के सरूप ह घला बदलत जावत हे। हाना के प्रयोग ह कम होवत जावत हे। भाखा के मिठास ह उरकत जावत हे। पढ़े-लिखे लइका मन ल अपन मातृ-भाखा ल बोले बर शरम आथे। अब के जवनहा मन अपन गुरतुर मातृ-भाखा ल भुलावत जावत हें, हाना मन ल ये मन का सरेखहीं, का जानहीं? अइसे जनावत हे कि अवइया पढ़े-लिखे पीढ़ी ह हाना ल बिसर जाही। हमर साकेत साहित्य परिषद् के संगवारी मन बाते बात म अइसने भूलत-बिसरत हाना मन ल सकेले-संजोय के प्रयास करे हंे। येकर मात्रा ह कम हे। थोकुन अउ मेहनत करे ले, अउ कोशिश करे ले येकर ले कई गुना हाना अउ सकेले जा सकत हे। ये स्मारिका म सकेले गेय हाना मन के हिन्दी म अरथ बताय के कोशिश घला करे गे हे। सकेले गेय हाना के बनावट अउ वोकर अरथ म चूक होना संभव हे। अइसन कोनों बात होही तब पढ़इया विद्वान संगवारी मन ले निवेदन हे कि हमला वोकर जानकारी देय के कृपा करहीं।

स्मारिका म गीत, कविता, कहानी, व्यंग्य अउ दूसर विधा के रचना मन ल घला सकेले गेय है। स्मारिका खातिर रचना भेजइया जम्मों संगवारी मन के हम हिरदे ले आभारी रहिबो।

जय हिंद-जय छत्तीसगढ़।
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कुबेर
9407685557
Email- kubersinghsahu@gmail.com

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