शनिवार, 7 मार्च 2015

आलेख

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सभी परंपरागत मान्यताएँ और कर्मकांड खारिज करने योग्य नहीं हैं


हमारी सभी परंपरागत मान्यताएँ और कर्मकांड खारिज करने योग्य नहीं हैं। हिन्दू संस्कृति में गंगाजल का विशेष महत्व है। हम परंपरागत रूप से दैनिक जीवन में अनेक अवसरों पर, और धार्मिक क्रियाकलापों में इसका प्रयोग श्रद्धापूर्वक करते आ रहे हैं। घर के वातावरण को शुद्ध करने के लिए गंगाजल छिड़का जाता है। कुएँ के जल को शुद्ध करने के लिए समय-समय पर उसमें गंगाजल डाला जाता है। स्नान करने के बाद तुलसी चाँवरा में जल चढ़ाने और गंगाजल के साथ तुलसीदल तथा चाँवल के कुछ दानों का सेवन करने की परंपरा है। आयुर्वेद में इस परंपरा को उदर संबंधी समस्त रोगों का निवारण करने वाली महा-औषधि माना गया है।
हमारा इको सिस्टम जैविक और अजैविक घटकों से मिलकर बना हुआ है। जैविक घटकों में, हरे पेड़-पौधे उत्पादक हैं, जो प्रकाश संष्लेशण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। मनुष्य सहित सभी जन्तु उपभोक्ता हैं जो पौधों द्वारा उत्पादित भोजन पर आश्रित रहते हैं। सभी सूक्ष्मजीव अपघटक हैं जो समस्त जीवों की मृत्यु के बाद उसके शरीर को अपघटित करके इको सिस्टम को संतुलित बनाये रखते हैं। अपघटक सूक्ष्मजीवों में एक कोशीय जीवाणु(Bacteria) वीषाणु (Virus) तथा फफूंद (Fungus) शामिल हैं। सभी जीवणु तथा विषाणु एक कोशीय होते हैं। फफूंद एक कोशीय तथा बहुकोशीय, दोनों प्रकार के होते हैं।
ये सूक्ष्मजीव वातावरण में हर जगह मौजूद हैं। हम सदैव इन्हीं सूक्ष्म जीवियों के महासागर में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इन असंख्य सूक्ष्मजीवों में अधिकांश हमारे मित्र होते हैं। कुछ ही सूक्ष्मजीव ऐसे होते हैं जो मनुष्य सहित विभिन्न जीवों में रोग पैदा करते हैं। रोग पैदा करने वाले इन सूक्ष्मजीवों को रोगजनक, रोगाणु या पैथोजन (Pathogen) कहा जाता है।
अन्य श्रोतों से प्राप्त जल की तुलना में गंगाजल में दो अतिविशिष्ट गुण पाये जाते हैं, जो निम्नानुसार हैं -  
1. गंगाजल में एक विशिष्ट प्रकार का विषाणु पाया जाता है जो जीवणुओं का भक्षण करके गंगाजल को जीवाणु रहित बनाते हैं। इन विषाणुओं को जीवाणुभोजी या बैक्टिरियोफाज (Bacteriophage) कहा जाता है। जीवाणुभोजी की उपस्थिति ही गंगाजल को चिरकाल तक शुद्ध बनाये रखता है। जीवाणुभोजी  (Bacteriophage) का पता पेरिस के पाश्चर संस्थान में कार्य करने वाले फ्रांसीसी सूक्ष्म विज्ञानी डाॅ. फेलिस ही हेर्ले ने सन् 1917 में लगाया था।
2. गंगाजल में एक रहस्यमय कारक और होता है जिसकी वजह से गंगाजल में आक्सीजन का स्तर काफी उच्च रहता है। इस रहस्य का पता अभी तक नहीं चल पाया है।
स्पष्ट है कि गंगाजल अपने इन्हीं रोगाणुनाशक गुणों के कारण एक प्राकृतिक दिव्य औषधि भी है। घर के वातावरण को शुद्ध करने के लिए गंगाजल छिड़कने, कुएँ के जल को शुद्ध करने के लिए समय-समय पर उसमें गंगाजल डालने अथवा स्नान करने के बाद तुलसी चाँवरा में जल चढ़ाने और उसके पश्चात गंगाजल के साथ तुलसीदल तथा चाँवल के कुछ दानों का सेवन करने की परंपरा के पीछे की वैज्ञानिकता के बारे में अब आप स्वतः समझ गए होंगे।
कुबेर

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