शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

कविता

फिल्म - राम और श्याम (1967)
गीत - शकील बदाँयुनी
संगीत - नौशाद
स्वर - मोहम्मद रफी

ये रात जैसे दुल्हन बन गई च़रागों से,
करूँगा उज़ाला मैं, दिल के दाग़ों से।

आज़ की रात मेरे दिल की सलामी ले ले
दिल की सलामी ले ले
कल तेरे बज़्म से दीवाना चला जायेगा
शम्मा रह जायेगी, परवाना चला जायेगा।

तेरी महफिल तेरे ज़लवे हो मुबारक तुझको,
तेरी उल्फत से नहीं आज भी इनकार मुझे।
तेरा मयख़ाना सलामत रहे ऐ जान-ए-वफा,
मुस्कुराकर तू ज़रा देख ले एक बार मुझे।
फिर तेरे प्यार का मस्ताना चला जायेगा।
शम्मा रह जायेगी, परवाना चला जायेगा।

मैंने चाहा कि बता दूँ मैं हकीक़त अपनी
तूने लेकिन न मेरा राज़-ए-मोहब्बत समझा।
मेरी उलझन मेरे हालात यहाँ तक पहुँचे,
तेरी आँखों ने मेरे प्यार को नफरत समझा।
अब तेरी राह से बेगा़ना चला जायेगा।
शम्मा रह जायेगी, परवाना चला जायेगा।

तू मेरा साथ न दे राह-ए-मोहब्बत में सनम,
चलते-चलते मैं किसी राह पे मुड़ जाऊँगा।
कहकशाँ, चाँद, सितारे तेरे चूमेंगे क़दम,
तेरे रास्ते की मैं एक धूल हूँ उड़ जाऊँगा।
साथ मेरे मेरा अफसाना चला जायेगा।
शम्मा रह जायेगी, परवाना चला जायेगा।

आज़ की रात मेरे दिल की सलामी ले ले
दिल की सलामी ले ले
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