फिल्म - हकी़क़त (1964)
गीत - कैफी आज़मी
स्वर - लता मंगेशकर
संगीत - मदनमोहन
जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
छुप के सीने में, आँ .......
छुप के सीने में कोई जैसे सदा देता है
शाम से पहले दीया दिल का जला देता है
है उसी की ये सदा, है उसी की ये अदा
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
शक्ल फिरती है, हाँ .......
शक्ल फिरती है निगाहों में वही प्यारी-सी
मेरी नस-नस में मचलने लगी चिंगारी-सी
छू गई जिस्म मेरा, किसके दामन की हवा
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
गीत - कैफी आज़मी
स्वर - लता मंगेशकर
संगीत - मदनमोहन
जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
छुप के सीने में, आँ .......
छुप के सीने में कोई जैसे सदा देता है
शाम से पहले दीया दिल का जला देता है
है उसी की ये सदा, है उसी की ये अदा
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
शक्ल फिरती है, हाँ .......
शक्ल फिरती है निगाहों में वही प्यारी-सी
मेरी नस-नस में मचलने लगी चिंगारी-सी
छू गई जिस्म मेरा, किसके दामन की हवा
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
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