बुधवार, 1 अप्रैल 2015

आलेख

1 अप्रेल की शाम : दाऊ मंदराजी के नाम

1 अप्रेल 2015 की शाम नाचा के पितृपुरूष मंदराजी दाऊ को उनकी 104 वीं जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि देने के लिए रायपुर की सुप्रसिद्ध लोक-गायिका, जोशी बहनों और दुर्ग की जयंती यादव सहित छत्तीसगढ़ के अनेक लोककलामंच के कलाकार उनकी जन्मस्थली ग्राम रवेली में जुटे। 

दाऊ जी का जन्म 1 अप्रेल 1911 ई. को राजनांदगाँव से सात कि.मी. दूर रवेली गाँव के संपन्न मालगुजार श्री रामाधीन साव के घर में हुआ था। उनकी माता जी का नाम श्रीमती रेवती बाई साव था।  

इस नश्वर शरीर के बारे  में यह उक्ति प्रसिद्ध है - ’क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पंचतत्व मिल बना शरीरा।’ मंदराजी दाऊ के जीवन चरित्र और छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा के प्रति उनके समर्पण और त्याग को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि वे इस संसार में रहकर भी इस संसार से अलग थे। मंदराजी दाऊ जैसे वीतरागी पुरूष का शरीर भी पंच तत्वों से ही बना रहा होगा परन्तु उनके ये पाँचों तत्व केवल, और केवल नाचा के विभिन्न अवयवों से ही बने रहे होंगे। उन्होंने उम्र भर केवल नाचा को जीया और नाचा में ही जीया। अब जब वे इस संसार में नहीं हैं, उनकी चेतना और उनकी प्रेरणाएँ प्रतिक्षण नाचा के ही आस-पास उपस्थित प्रतीत होती हैं। 

छत्तीसगढ़ में जब तक लोक कलाओं और लोक कला के शीर्ष स्तंभ नाचा की चर्चा होगी, मंदराजी दाऊ का नाम बहुत ही प्रेम, श्रद्धा और सम्मान के साथ सर्वप्रथम लिया जायेगा। वे अमर हैं और अमर ही रहेंगे।
कुबेर
Mo. 9407685557
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