रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता - अब से पहले

अब से पहले


आदमी जब नहीं जानता होगा
आग पैदा करना
ठंड तब लोगों को इतना ठिठुराती नहीं होगी
ठंड से ठिठुरकर तब
मानवता मरती नहीं होगी
आग सबके दिलों में रहती होगी

आदमी जब नहीं जानता होगा
रोशनी पैदा करना
अंधेरा तब इतना घना नहीं रहता होगा
अंधेरों में रिश्तों के खो जाने के खतरे
तब नहीं ही रहे होंगे

आदमी जब नहीं जानता होगा
अस्त्र-शस्त्र बनाना
इतनी असुरक्षा तब नहीं रही होगी
भय तब इतनी घनीभूत नहीं होती होगी -
आदमी के अस्तित्व में
नहीं करता होगा कभी आदमी,
आदमी का शिकार

आदमी जब नहीं जानता होगा
पहिया बनाना
आदमी के चलने की गति
अधिक रही होगी
हमसे पहले पहुँच जाया करता होगा
पड़ोसियों के घर वह
वक्त-जरूरत पर संबल बनकर

आदमी जब नहीं जानता होगा
खेती करना और अन्न उगाना
भूखा कोई सोता नहीं होगा,
आज की तरह
आँतों की भूख
इतनी पीड़ादायक नहीं होती होगी
भूख से मरता नहीं होगा कोई

आदमी जब नहीं जानता होगा
लिखना और पढ़ना
अशिक्षित इतने,
तब वे नहीं रहे होंगे
अच्छी तरह लिख और पढ़ लेते होंगे
प्रेम के ढाई आखर को

आसमान से टपकने से पहले
वेदों, धर्मग्रंथों और पोथियों के
ज्ञान का इतना अभाव नहीं रहा होगा

धर्मों के अभ्युदय से पहले
नहीं रही होगी
अधर्म की ऐसी प्रतिष्ठा

सभ्यता विकसित होने से पहले
असभ्यता इतनी नहीं रही होगी।
000कुबेर000

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