रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता - राजा की अभ्यर्थना में दो शब्द

राजा की अभ्यर्थना में दो शब्द

हे राजन!
तुम महान् हो।

इस धरती पर तुम ईश्वर के रूप हो
इसलिए नहीं
इसलिए कि
ईश्वर जैसे विवादित अवधारणा से परे
अवधारणा नहीं तुम एकमात्र यथार्थ हो

कर नहीं सकता कोई दोष तुम्हें दूषित
हो नहीं सकता कोई पाप तुम पर साबित
नैतिकता और कानून से तुम मुक्त हो
सांसारिक अपराधों से असंपृक्त हो

तुम्हारे सलाहकार और मंत्री भी
उतने ही दिव्य हैं
क्योंकि,
वे ही देश हैं
वे ही दरवेश हैं
उनके लिए
जनता हव्य और औरतें भोग्य हैं
तुमसे भी अधिक वे योग्य हैं

हे राजन! तुम महान हो।
तुम ही ज्ञेय हो, तुम ही ज्ञान हो।
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