गुरुवार, 7 नवंबर 2013

छत्‍तीसगढ़ी कविता

छत्तीसगढ़िया होटल


छत्तीसगढ़ राज  म  एक ठन,
छत्तीसगढ़िया होटल बनाना हे।
चहा  के बदला ग्राहक मन  ल,
पसिया-पेज    पिलाना    हे।

सेव के  बदला ठेठरी-खुरमी,
इडली के बदला मुठिया-फरा,
दोसा  के  बदला चिला रोटी,
तुदूरी के बदला अंगाकर रोटी खवाना हे।

मंझनिया तात पेज,  संग म  अमारी भाजी,
रात म दार-भात  अउ इड़हर   के कड़ही,
बिहिनिया  नास्ता म  आमा के अथान संग,
दही बरा के बदला, दही-बासी खवाना हे।

कुर्सी के बदला मचोली, टेबल के बदला पिड़हा,
प्लेट के  बदला बटकी,  कप के बदला कटोरी,
बेयरा ल बस्तर के, बस्तरिहा पगड़ी पहिराना हे।

न  कोई  कपाट-बेड़ी,  न कोई छेंका-फरिका,
छकत ले खाओ संगी, अउ जी ल जुड़ावव जी,
जनता के होटल,  जनता के द्वारा, जनता बर
होटल के आगू अइसने साइन बोर्ड लगाना हे।
0
कुबेर
email - kubersinghsahu@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें