मंगलवार, 12 नवंबर 2013

सोंच

सोंच


आज रंधनी खोली ह
कोन जाने काबर अबड़ उदास हे,
चूल्हा के घला
अटकत जइसे साँस हे।

छुटकी नोनी ह
पहिली तो गजब रेंध मताइस,
दाई के गोड़ ल पोटार-पोटार के,
फेर खूब रोइस -
कल्हर-कल्हर के।

किहिस -
’गाँव भर के जम्मों टुरी मन,
नवा-नवा फराक पहिरे हें,
लाल-पींयर फुंदरा बाँधे,
महमाती तेल लगाय हें,
मोला जिबरा-जिबरा के,
बरा-सोंहारी खावत हें,
खाँध जोरे-जोरे खोर कोती
फुगड़ी खेले बर जावत हें,
दाई! वइसने बरा सोंहारी महूँ खाहूँ
नवा फराक पहिर के
संगवारी मन संग खेले बर
खोर डहर महूँ जाहूँ।’

बिल्लू भइया ह अब समझदार हो गे हे
सोंचे रिहिस -
फटाका बर रो-रो के
दाई ल हलाकान करहूँ
दाऊ लइका मन जइसे
अगास के पार नहकइया राकेट चलाहूँ
फेर नोनी के कल्हरइ ल देख के
वो ह कलेचुप
चिरहा कथरी ल ओढ़ के सुत गे हे।

बिल्लू ह आज समय के पहिलिच्
सचमुच समझदार हो गे हे।

नोनी के कल्हरइ
छोटकुन बिल्लू के भारी समझदारी
अउ
बनिहारिन दाई के पहाड़ जइसे लाचारी
सब्बो ल देख के चुल्हा ल
तइहा दिन के सुरता आ गे,
इँखर वो दिन ह अब
कोन जाने कहँ नँदा गे?

एती हाँड़ी म भात के
गदबद-गदबद डबकइ
ओती जम्मों झन के
कठल-कठल के हँसइ
एती कड़ाही म साग के
छनन-छनन बघरइ,
वोती नोनी अउ बिल्लू के
खुन-खुन, खुन-खुन खिलखिलइ
खीर-तसमइ के मीठ-मीठ खुशबू
अउ बरा-सोंहारी के महर-महर महकइ।

कोन जाने !
अइसन दिन अब कब आही?
नोनी बर फराक अउ
बिल्लू बर फटाका कब लेवाही?

गरीब के घर देवारी कब आही?
गरीब ह देवारी कब मनाही?
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