लघु व्यंग्य कथाएँ
1. माता पार्वती का देवभूमि की सैर
सब्र की एक सीमा होती है। आखिर कोई कब तक धीरज रखे? या फिर इस तरह की इच्छा जाहिर करने वाली दुनिया की वह पहली पत्नी है? देवी पार्वती ने मन ही मन सोचा; और किसी अज्ञात संकल्प के साथ उसके दोनों गाल कुप्पे की तरह फूल गये।
पत्नी हठ के सामने भोलेनाथ को आत्म समर्पण करना ही पड़ा। उसने अपने स्वचलित नंदी विमान को पृथ्वी भ्रमण पर जाने के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। नंदी, देवी पार्वती का चहेता, पहले ही तैयार बैठा था। उसने देवी माता पार्वती को फौरन यह शुभ समाचार सुनाया। देवी पार्वती की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तैयारी में जुट गई।
यह सुबह-सुबह की बात थी।
सूरज ढलने वाला था, जब भोले बाबा और देवी पार्वती का नंदी विमान कैलाश से उड़ान भरा।
विमान की दिशा देखकर देवी को आश्चर्य हुआ। उसने भोलेनाथ से पूछा - ’’भगवन! हम किस द्वीप की ओर जा रहे हैं?’’
भोलेनाथ ने उत्तर दिया - ’’देवी! आज हम आपको पाश्चात्य देशों की यात्रा पर लेकर जा रहे हैं। आपको प्रसन्नता नहीं हुई?’’
देवी पार्वती ने रूठने का अभिनय करते हुए कहा - ’’भगवन! आप कब से भोगवादी बन गए? मैंने तो तपस्वियों, योगियों और त्यगियों की भूमि आर्यावर्त की सैर पर जाने के लिये कहा था, भोगियों के देश की नहीं।’’
भोलेनाथ - ’’देवी! आप उसी आर्यावर्त की बात कर रहीं है न जिसे आजकल कुछ लोग हिन्दुस्तान, पुरातनपंथी लोग भारत और पढ़े-लिखे लोग इंडिया कहते हैं?’’
देवी पार्वती - ’’हाँ देव! वही देवभूमि, जिसे लोग भारत वर्ष भी कहते हैं।’’
भोलेनाथ - ’’ठीक कहती हो देवी! पर वहाँ जाने का हठ न करो। ’’
देवी पार्वती - ’’क्यो देव?’’
भोलेनाथ - ’’इसी में हमारी भलाई है।’’
देवी पार्वती - ’’आखिर कैसे, देव?’’
भोलेनाथ - ’’देवी! अब आप मुझे इतना भी भोलाभाला न समझो। आप जैसी रूपवान और सोलहों श्रृँगार युक्त पत्नी साथ में हो तो ऐसी मूर्खता कोई कर सकता है? इस स्थिति में मूर्ख से मूर्ख आदमी भी वहाँ जाने का खतरा मोल नहीं लेगा जिसे आप देवभूमि कह रही हैं, समझीं देवी।’’
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2. नेता जे. पी. बी. की आत्मा
सुधी पाठकों से विनम्र अनुरोध -
1. इस कहानी में नेता जे. पी. बी. का अर्थविस्तार नेता जनता प्रसाद भारतीय है।
2. जे. पी. बी., इन अक्षरों को पढ़ते वक्त कृपया इनके क्रम में परिवर्तन करने का दुःसाहस कदापि न करें।
कहानी इस प्रकार है -
खाली हाथ लौटे कालिया नामक यमदूत को डाटते हुए यमराज ने कहा - ’’क्यों? खाली हाथ लौट आये? नेता जे. पी. बी. की तुच्छ आत्मा को भी पकड़ नहीं पाये? इसकी सजा तुझे जरूर मिलेगी। जरूर मिलेगी इसकी सजा तुझे।’’
यमदूत ने भय से काँपते हुए कहा - ’’क्षमा करें भगवन! मैं मजबूर था। नेता जे. पी. बी. की आत्मा को ढूँढने में मैंने अपनी पूरी ताकत लगा दी, धरती, आकाश और पाताल एक कर दी, पर वह कहीं नहीं मिली। भगवन! मुझे पता था, आप मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे इसीलिये मैंने उसे सशरीर पकड़ लाया है। आप स्वयं देख लीजिये, प्रभु।’’
मृत्युलोक से किसी आदमी को सशरीर पकड़ लाना यहाँ के नियमों के विरुद्ध है। यमदूत के इस अपराध पर यमराज को बहुत क्रोध आया, परंतु घटना आश्चर्यजनक थी। यमराज को भी कौतुहल हुआ। उसने सोचा, देखा जाय आखिर माजरा क्या है। आदेश दिया - ’’नेता जे. पी. बी. के शरीर को उपस्थित किया जाय।’’
नेता जे. पी. बी. का शरीर यमराज के सामने अपनी विशेष भाव-भंगिमा के साथ खड़ा था। देखते ही यमराज के पसीने छूटने लगे। उसकी विशेष भाव-भंगिमा को देखकर उसने अनुमान लगाना चाहा कि इस व्यक्ति के चेहरे पर आखिर कौन सा भाव है। उसने रस सिद्धांत को याद किया। दस में से किसी भी रस का भाव उसके चेहरे पर नहीं मिला। उसे यमदूत की बात याद आई कि यह शरीर तो आत्माविहीन है। उसने अपने विशेष दिव्य परीक्षण यंत्रों की सहायता से नेता जे. पी. बी. के शरीर में आत्मा को ढूँढने का प्रयास किया। अपनी दिव्य दृष्टि का उपयोग किया। उसने दशों दिशाओं और समस्त लोकों को देखा, पर उसे नेता जे. पी. बी. की आत्मा का कोई अता-पता नहीं मिला। अब तो उसे सिहरन होने लगी। उसने सोचा - ईश्वर की कलाकारी का भी कोई जवाब नहीं। माजरा क्या है, अब तो वे ही बतायेंगे।
यमराज ने ईश्वर से पूछा - ’’प्रभु! यह कैसा विचित्र आत्माविहीन प्राणी बनाया है आपने, समझ में नहीं आया। इसकी आत्मा को ढूँढ-ढूँढकर हम सब थक गये प्रभु, अब आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं।’’
ईश्वर ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा - ’’ढूँढकर भी कोई फायदा नहीं होगी यमराज। इसकी आत्मा को वापिस लाने में मैं भी तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर पाऊँगा।’’
यमराज - ’’आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है प्रभु?’’
ईश्वर - ’’इन्होंने अपनी आत्मा को स्वीसबैंक के लाॅकर में जमा कर रखा हैं।’’
ईश्वर का यह रहस्योद्घाटन सुनते ही यमराज गश खाकर गिर पड़ा।
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3. विलुप्त प्रजाति का भारतीय मानव
उस दिन यमराज के पास और एक विचित्र केस आया। केस स्टडी करने के बाद यमराज को बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ। उन्हें लगा कि इस केस को ईश्वर की जानकारी में लाना जरूरी है। केस को लेकर वह दौड़ा-दौड़ा ईश्वर के पास गया। कहा - ’’प्रभु! आज बेहद शुभ समाचार लेकर आया हूँ; सुनकर आपको भी सुखद आश्चर्य होगा।’’
ईश्वर ने मुस्कुराकर कहा - ’’तब तो बिलकुल भी विलंब न करो यमराज जी, सुना ही डालो।’’
यमराज ने कहा - ’’प्रभु! जिस भारतीय प्रजाति के मनुष्य को हम विलुप्त समझ लिये थे, वह अभी विलुप्त नहीं हुआ है। देखिये, सामने खड़े इस मनुष्य को। साथ ही साथ इसके बहीखाते को भी देखते चलिये।’’
पहले तो ईश्वर ने उस अजूबे मनुष्य को निगाह भर कर देखा, फिर जल्दी-जल्दी उसके खाते के पन्नों को पलटने लगा। खाते में उस मनुष्य के सम्बंध में निम्न विवरण दर्ज थे
नाम - दीनानाथ
पिता का नाम - गरीबदास
माता का नाम - मुरहिन बाई
(ईश्वर की बहीखता में मनुष्य की जाति, वर्ग, वर्ण, देश आदि का उल्लेख नहीं होता।)
पता ठिकाना - जम्बूखण्ड उर्फ आर्यावर्त उर्फ भारतवर्ष उर्फ भारत उर्फ हिन्दुस्तान उर्फ इंडिया।
(एक ही स्थान के इतने सारे नामों को पढ़कर ईश्वर की बुद्धि चकराने लगी।) हिम्मत करके उसने आगे की प्रविष्टियाँ पढ़ी। बही खाते के बाईं ओर के (आवक अर्थात पुण्य वाले) सारे पन्ने भरे पड़े थे परन्तु दाईं ओर के (जावक अर्थात पाप वाले) सारे पन्ने बिलकुल कोरे थे। ईश्वर को बड़ी हैरत हुई। अंत में बने गोशवारे को उन्होंने देखा जिसमें संक्षेप में निम्न लिखित बातें लिखी हुई थी -
पिता का नाम - गरीबदास
माता का नाम - मुरहिन बाई
(ईश्वर की बहीखता में मनुष्य की जाति, वर्ग, वर्ण, देश आदि का उल्लेख नहीं होता।)
पता ठिकाना - जम्बूखण्ड उर्फ आर्यावर्त उर्फ भारतवर्ष उर्फ भारत उर्फ हिन्दुस्तान उर्फ इंडिया।
(एक ही स्थान के इतने सारे नामों को पढ़कर ईश्वर की बुद्धि चकराने लगी।) हिम्मत करके उसने आगे की प्रविष्टियाँ पढ़ी। बही खाते के बाईं ओर के (आवक अर्थात पुण्य वाले) सारे पन्ने भरे पड़े थे परन्तु दाईं ओर के (जावक अर्थात पाप वाले) सारे पन्ने बिलकुल कोरे थे। ईश्वर को बड़ी हैरत हुई। अंत में बने गोशवारे को उन्होंने देखा जिसमें संक्षेप में निम्न लिखित बातें लिखी हुई थी -
झूठ बोलने की संख्या - शून्य
चोरी, धोखेबाजी अथवा ठगी करने की संख्या - शून्य
आजीविका के लिये भीख मांगने की संख्या - शून्य
अपने स्वार्थ, सुख अथवा स्वाद के लिए दूसरे प्राणियों को दुख देने, पीड़ित करने अथवा हत्या करने की संख्या - शून्य
अपने स्वार्थ, सुख अथवा स्वाद के लिए, धर्म के नाम पर शब्दों का प्रपंच रचकर, लोगों को ठगने, लूटने, दिग्भ्रमित करके उन्हें आपस में लड़वाने की संख्या - शून्य
ईश्वर और धर्म के नाम पर लोगों को देश, जाति अथवा संप्रदाय में बाँटने का काम करने की संख्या - शून्य
बहीखाता पढ़कर ईश्वर के मन की शंका और गहरी हो गई। उन्होंने यमराज से पुनः पूछा - ’’क्या यह मानव वाकई भारतीय है?’’
यमराज ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा - ’’मैंने इसके बारे में बहुत बारीकी से जांच किया है, प्रभु! यह भारतीय ही है। संभालिये इसे और मुझे आज्ञा दीजिये।’’
’’ठहरिये यमराज जी!’’ ईश्वर ने कहा - ’’इसके सम्बन्ध में हमारी योजना अलग है। इस विचित्र मानव को वापस पवित्र देवभूमि भारत भेज दीजिये। वहाँ किसी अजायब घर में इसे सुरक्षित रखवा दीजिये। इसके पिंजरे के बाहर सूचना-पट टंगवा दीजिये जिसमें लिखा हो - ’विलुप्त प्रजाति का भारतीय मानव’।
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4. अंधे और लंगड़े की कहानी
अंधे और लंगड़े की कहानी के दोनों प्रमुख पात्र वास्तविक पात्र हैं। आज की युवा पीढ़ी इस सच्ची कहानी से प्रेरणा ग्रहण करे और अपना कैरियर बनायेे, इसी महान् उद्देश्य से इस कहानी को प्रकाशित किया जा रहा है।
एक था गंगाराम। एक था बंशीराम। दोनो में गाढ़ी मित्रता थी। मेहनत करके आजीविका कमाना इनके सिद्धांत के विरूद्ध था। वे छल-बल से पैसा कमाते, डटकर खाते, खूब कसरत करते और बदन बनाते। उन दोनों की सोच समान थी। दोनों रातों-रात अरबपति बनकर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीना चाहते थे। वहाँ से बहुत दूर, देश की राजधानी में एक मेला लगती थी। इस मेले में पहँुचकर लोग रातों-रात अरबपति बन जाते थे। उन दानों ने भी वहाँ जाकर अपनी किस्मत आजमाने की सोची। परन्तु वहाँ तक पहुँचना आसान नहीं था। उन दानों ने देखा, उस मेले में जाने वाले सारे लोग विकलांग थे, कोई अंधा था, कोई लंगड़ा था, कोई बहरा था, पर सभी हट्टेकट्टे और बलशाली थे।
हट्टेकट्टे और बलशाली तो वे थे ही, उन्होंने सोचा, विकलांग बनने में समय ही कितना लगता है, केवल अभिनय ही तो करना है। उन्हें बचपन में पढ़ी कहानी याद आई, बंशी अंधा था और गंगाराम लंगड़ा था। बंशी ने गंगाराम से कहा - ’’मित्र! मैं तो अंधा बन चुका हूँ, लंगड़ा बनने में अब तुम विलंब न करो, मुझे अपने कंधे पर बिठाओ, मैं रास्ता बताता जाऊँगा और हम मेले में आसानी से पहुँच जायेंगे।’’
गंगाराम को इस प्रस्ताव में बंशी की चालाकी दिखी। उसने विरोध करते हुए कहा - ’’नहीं मित्र! अंधा मुझे बनने दो, तुम्हारे कंधे पर सवार होकर रास्ता बताने का काम मुझे करने दो।’’
दोनों मित्रों में इस बात पर खूब विवाद हुआ। बंशी ने बचपन में पढ़ी उस कहानी की दुहाई दी और कहा -’’मित्र! मैं तुम्हारे साथ कोई चालाकी नहीं कर रहा हूँ, परंपरा की बात कर रहा हूँ।’’
गंगा राम ने कहा - ’’लानत है ऐसी परंपरा पर।’’
अंत में दोनों ने एक समझौता किया। तय हुआ कि प्रतिदिन वे अपनी भूमिकाएँ बदल लिया करेंगे। वक्त आने पर बहरा भी बन जाना होगा। इस समझौते को उन्होंने नाम दिया, कामन मिनिमम प्रोग्राम।
जल्द ही वे दोनों मेले में पहुँच गये। पहुँचकर वे बहुत खुश हुए। उन्होंने देखा, वहाँ पहुँचने वाले सारे लोग उन्हीं के जैसे थे।
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KUBER
Mo. 94076855557
E Mail - kubersinghsahu@gmail.com
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