शनिवार, 29 मार्च 2014

लघु कथाएँ

लधु कथा

 महान सभ्यता और संस्कृति के लक्षण

सभ्यताओं और संस्कृतियों के संरक्षण के लिए ईश्वर ने विश्व निबंध प्रतियोगिता की योजना बनाई। योजना के प्रमुख बिन्दु इस प्रकार थे -

प्रतियोगिता का नाम - विश्व निबंध प्रतियोगिता
निबंध का विषय - महान सभ्यता और संस्कृति के लक्षण
प्रतियोगिता का क्षेत्र - संपूर्ण विश्व
प्रतिभागियों की अवस्था - हाई और हायर सेकण्डरी स्तर के सभी विद्यार्थी

प्रतियोगिता के उद्देश्य -

1. विश्व की विलुप्त हो रही महान सभ्यताओं और संस्कृतियों का संरक्षण करना।
2. प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी के निबंध को पाठयक्रम में शामिल करना। 
3 प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को पुरस्कृत करना।

इस महान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु देवताओं की एक परीक्षा आयोजन समिति बनाई गई। समिति का अध्यक्ष पद ईश्वर के लिए आरक्षित था।

धरती के समस्त सरकारों, उनके मानव संसाधन विभागों और शिक्षा विभाग के प्राचार्यों से पत्र व्यवहार किया गया। समिति के देवदूतों ने विद्यालयों में जा-जाकर शिक्षकों को योजना के उद्देश्यों के बारे में समझाया। इतना सब कुछ करते-करते पाँच वर्ष कब निकल गये, पता ही नहीं चला। ईश्वर ने सोचा था, परीक्षा और परिणामों की घोषणा के लिए छः महीने का समय पर्याप्त होगा।

इन पाँच सालों में ईश्वर का उत्साह ठंडा पड़ चुका था। उन्हें काफी निराशा हुई। अनमने भाव से उन्होंने मेरिट में प्रथम आने वाले विद्यार्थी की काॅपी देखी। पढ़कर उनके दिमाग की बत्ती फिर जलने लगी। निबंध में महान् सभ्यता और संस्कृति के जो लक्षण उस विद्यार्थी ने लिखा था, उसके कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु इस प्रकार हैं -

1. इस पृथ्वी पर पाई जाने वाली महान् सभ्यता और संस्कृति ईश्वर की अनुपम और श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। ईश्वर की इस अनुपम और श्रेष्ठ रचना का स्रोत स्वयं ईश्वर के ही द्वारा लिखी गई उनकी कुछ पुस्तकें हैं। (पढ़कर ईश्वर का माथा ठनका, इस प्रकार बेकार की रचना उन्होंने कब की थी, बहुत प्रयास करने पर भी उनकी स्मरण शक्ति ने उनका साथ नहीं दिया।)

2. महान् सभ्यता और संस्कृति में मुफ्तखोरी और भिक्षावृत्ति को श्रेष्ठ माना जाता है। इस वृत्ति को अनेक तरह से महिमा-मंडित किया जाता है। मुफ्तखोरों और भिखारियों को समाज में श्रेष्ठ स्थान दिया जाता है, इन्हें ईश्वर का दर्जा दिया जाता है।

3. महान् सभ्यता और संस्कृति में मेहनमकश लोगों को, जिनके परिश्रम से उत्पन्न अन्न से दुनिया का पोषण होता है, निकृष्ट, हीन, अछूत और पशुओं से भी बदतर समझे जाते हैं।

4. महान् सभ्यता और संस्कृति में ईश्वर रचित तथाकथित पुस्तकों में वर्णित बातों को ही परम ज्ञान और इसके आधार पर शब्दों का प्रपंच रचने वालों को परम ज्ञानी माना जाता है। मेहनतकश किसानों और दस्तकारों के पास भी उनके काम से संबंधित, प्रकृति और प्रकृति की गोद में पलने वाले जीवों के क्रियाकलापों से संबंधित ज्ञान का खजाना पाया जाता है फिर भी इन्हें निपट अज्ञानी और मूर्ख ही समझा जाता है।

निबंध में आगे और भी अनमोल बातें लिखी हुई थी परन्तु इतना ही पढ़कर ईश्वर गश खाकर सिंहासन पर लुड़क गए।

परन्तु ईश्वर के देवदूतों के अनुसार निबंध प्रतियोगिता के परिणामों से अति प्रसन्न होकर ईश्वर योगनिद्रा में चले गये हैं।
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कुबेर
Mo 9407685557

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