बुधवार, 31 दिसंबर 2014

कविता

मंगलमय हो

जग-जीवन सारा मंगलमय हो,
यशमय हो, लाभमय हो,
भावरस से सिक्त-सिक्त हो-
    जीवन सारा रसमय हो।

भाव शेष पर, अभाव निःशेष हो,
अक्ष-पक्ष-लक्ष्य विशेष हो,
जन-परिजन, मीत-सुमीत से-
सहज,साकार, सुविचार निवेश हो।
    हर पल, हर क्षण हर्षमय हो।

ज्ञान-ज्योति का अवतरण हो,
अज्ञान-अंध का अपहरण हो,
निज का जग से भावकरण हो,
स्व, सहकार में विलय-विलय हो।
    लक्ष्य-क्षेत्र में विजय-विजय हो।
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