सोमवार, 29 जून 2015

कविता

हाइकु: शिल्पगत विशेषताएँ

कुबेर
हाइकु मूलतः जापानी साहित्य का छंद है। विधा के रूप में इसे मात्सुओ बाशो (1644-1694) ने प्रतिष्ठित किया था। हिन्दी छंद शास्त्र के अनुसार यह तीन पदों वाला, अतुकान्त वार्णिक छंद है। पदों में क्रमशः 5, 7, 5 वर्ण होते हैं। तीनों पद स्वयं में एक स्वतंत्र वाक्य रचना होते हैं। यह प्रकृति, प्रेम और दर्शन की कविता है। बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से विषय, विचारों तथा भावों को अभिव्यक्ति करने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है। कवित्व की दृष्टि से यह एक पूर्ण रचना होती है। अपने शिल्पगत सौन्दर्य तथा अभिव्यक्ति कौशल के कारण आज यह जापानी साहित्य की सीमाओं को लांघकर विश्व साहित्य की निधि बन चुका है। भारत में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साथ छत्तीसगढ़ी में भी इसे स्वीकृति मिल चुकी है। कृपया निम्न उदाहरणों पर ध्यान दें -
खिला पलास,
रंगा वन, जीवन,
छाया यौवन।
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हवा मात गे,
आमा मउरिस का?
कोयली आ गे।
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उठ मितान,
समय बिकट हे,
कब जागबे?
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बन सजोर,
बरोड़ा ला मुसेट,
तोलगी भीर।
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चुप रहिबे,
तब सब गंवाबे,
कब चिल्लाबे?
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टेंड़गा बन,
सिधवा-जोजवा ल
सब मारथें।
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मांगे मिलथे?
नंगाय बर सीख,
तभे जीतबे।
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Kuber
Mo. 9407685557

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