शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

व्यंग्य

दोनों चुप थे

बंसीराम नेत्र दिव्यांग था और गंगाराम पाद दिव्यांग। बंसीराम देख नहीं सकता था और गंगाराम चल नहीं सकता था। परंतु दोनों लंगोटिया यार थे। दोनों की दोस्ती देशभर में प्रसिद्ध थी। दोनों मेला देखने के शौकीन थे। दोनों एक दूसरे की सहायता से मेला जाते। बंशीराम गंगाराम को अपने कंधे पर बिठा लेता, गंगाराम रास्ता बताता और बातों-बातों में ही सफ़र तय कर लेते। खूब मौज-मस्ती करते और लौट आते थे।
इधर पास के गाँव में इस साल फिर मेला लगा था। पहले गंगाराम सुबह होते ही बंशीराम के घर पहुँच जाता था और गंगाराम की खुशामद करता था पर इस साल उसका कोई आता-पता नहीं था। कुछ दिनों से वह दिख भी नहीं रह था।
बंशीराम से रहा नहीं गया। वह किसी तरह गंगा राम के घर जा पहुँचा। कहा - क्यों मित्र! इस साल मेला जाने का इरादा नहीं है क्या?
गंगाराम ने कहा - चलेंगे मित्र, ऐसी भी क्या जल्दी है। यह देखो, राजा ने मुझे पेट्रोल इंजन से चलनेवाली तिपहिया सायकिल दी है। कितना समय लगेगा?
सुनकर बंशीराम को खुशी हुई। परन्तु जल्द ही वह निराश हो गया। सोचने लगा कि अब वह किस तरह मेला पहुँचेगा। हँसते हुए उसने पूछा - मित्र! तुम्हारे तिपहिया में मेरे लिए जगह नहीं है?
गंगाराम ने कहा - जगह तो है मित्र, पर समस्या पेट्रोल की है। पेट्रोल के लिए तुम्हारे पास पैसे हैं?
बंशीराम ने पूछा - मित्र! पैसे नहीं होने पर क्या तुम मुझे नहीं बिठाओगे?
गंगाराम ने कहा - समझने की कोशिश करो मित्र। मँहगाई का जमाना है। पेट्रोल तो खरीदना ही पड़ेगा न।
बंशीराम ने सोचा, पहले भी आख़िर मेरा ही पेट्रोल जलता था। कहा - ठीक है मित्र, हो जायेगा।
दोनों तिपहिया पर सवार होकर मेला के लिए रवाना हुए। दोनों चुप थे। न कहीं कोई हँसी-मजाक, न कोई मस्ती।
बंशीराम ने पूछा - मित्र, मेला अब तक नहीं आया। और कितना दूर रह गया है?
- कुबेर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें