शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

आलेख

लोकसमाज में सामूहिकता की जड़ें 


सामूहिकता समाज की आत्मा है। लोकसमाज में सामूहिकता की जड़ें और भी गहरी होती हैं। छत्तीसगढ़ का लोकसमाज कृषि संस्कृति को जीनेवाला समाज है। यहाँ लोक और कृषि एक दूसरे में व्याप्त हैं। यहाँ लोक के लिए कृषि कार्य में प्रयुक्त हर वस्तु देवतुल्य है। इस भावना का प्रथम प्रत्यक्ष दर्शन हरियाली त्योहार में होता है। सूप, टोकरी और बुहारी भी कृषि कार्य में प्रयुक्त होनेवाली सामग्री है। लोक की जो श्रद्धा हल आदि कृषि यंत्रों के प्रति होती है वही श्रद्धा सूप, टोकरी और बुहारी के प्रति भी होती है। अनुपयोगी हो जाने पर इन कृषि सहायक सामग्रियों का निस्तारण श्रद्धापूर्वक और सम्मानजनक हो इसके लिए लोक ने जेठवनी (देवउठनी) एकादशी को चुना है। लोक की आत्मिक ताप हरनेवाली, उसके पेट की आग का शमन करनेवाली अन्न उपजाने में सहायता प्रदान करनेवाली यही वस्तुएँ जेठवानी के दिन लोक को शारीरिक उष्णता प्रदान कर उसे आरोग्यता का वरदान भी देती है, जब लोक इन वस्तुओं को विधिविधान पूर्वक भुर्री (अंगीठी) का रूप देता है।
शुभ कामनाएं।

कुबेर

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