छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग से अपेक्षाएँ
ककरो ले होवय, कोनो तरह के घला होवय, अपेक्षा पाल लेना अपन आप म दुख के कारण बनथे। 1 नवंबर 2000 के दिन जब छत्तीसगढ़ राज के गठन होइस अउ हमन अतका उत्साहित हो गेन कि वो उत्साह म जतका अपेक्षा हमन पालेन, वोकर पालन होना अतका आसान नइ हे। 1 नवंबर 2000 के दिन ले अब तक के समय ल मंय हर अतिउत्साह काल के रूप म देखथंव। इहीे उत्साह के सेती आज गाँव-गाँव कवि-साहित्यकार के बइहापूरा आ गिस। बने हे, फेर खाली कविता, अउ वहू हर बिना कोनो विचारधारा के, साहित्य के भण्डार म बढौतरी तो करत हे फेर एकतरफा। गद्य के बिना साहित्य के भण्डार हर कइसे समृद्ध होही? सोचव।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग हर सरकारी तंत्र हरे। कोनो स्वायत्त संस्था नोहे। वोकर तीर संसासन के कमी हे। बजट खातिर अउ हर बात खातिर सरकार के मुँहू ताके बर पड़थे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अधिनियम 2010 के धारा 3.2 म लिखाय हे कि आयेग के अध्यक्ष ल मिलाके येमा 4 सदस्य होही। येमा संशोान होय होही वोकर जानकारी मोला नइ हे। अध्यक्ष अउ सदस्य के नियुक्ति हर सरकार के कृपा ऊपर निर्भर हे। सरकारी कृपा ले जिंकर नियुक्ति होही वोमन कतका खुल के काम कर सकहीं, सोचे के बात हरे अउ अइसन आयोग ले कुछू अपेक्षा करना मतलब अपन आप ल दुखी करना हे।
आप जानथव, अलग तेलंगाना राज खातिर उहाँ के मन हर देश के आजादी के समय ले लड़ाई करत आवत रिहिन पन वोमन ल हमर ले पीछू अलग तेलंगाना राज मिलिस। अलग छत्तीसगढ़ राज खातिर हमरो सियान मन हर, डाॅ. खूबचंद बघेल हर, आंदोलन करिन, फेर हमला वोतका लड़ाई लड़े के जरूरत नइ परिस। तब के माननीय प्रधान मंत्री अटल विहारी बाजपेयी हर बहुत आसानी ले हमला छत्तीसगढ़ राज दे दिस। हमन वोकर गुन गाथन। फेर येकर पीछू वोकर मूल मंशा का हो सकथे, येकर बारे म कभू हम सोचथन?
छत्तीसगढ़ राजभाषा (संशोधित) अधिनियम 2007 हर 28 नवंबर 2007 म विधान सभा म पारित होइस। येकर मतलब साफ हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा ल राजकाज के भाषा के रूप म मान्य कर ले गिस। ये अलग बात हरे कि छत्तीसगढ़ी भाषा हर आज तक राजकाज माने कार्यालय के भाषा नइ बन पाय हे।
11 जुलाई 2008 म ये अधिनियम के प्रकाशन हर छत्तीसगढ़ राजपत्र म होइस। 14 अगस्त 2008 म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन होइस। 2/3 सितंबर 2010 म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अधिनियम 2010 के प्रकाशन छत्तीसगड़ राजपत्र म होइस। छत्तीसगढ़ राजभाषा अधिनियम 2010 के प्रस्तावना म ये लिखाय हे -
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अधिनियम 2010
प्रस्तावना
राज्य के विचारों की परंपरा, राज्य की समग्र भाषाई विविधता के परिरक्षण, प्रचलन और विकास करने तथा इसके लिए भाषायी अध्ययन, अनुसंधान तथा दस्तावेज संकलन, सृजन तथा अनुवाद, संऱक्षण, प्रंकाशन, सुझाव तथा अनुशंसाओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ी पारंपरिक भाषा को बढ़ावा देने हेतु शासन में भाषा के उपयोग को समुन्नत बनाने के लिए ’’छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग’’ का गठन करने हेतु अधिनियम।
भारत गणराज्य के इकसठवें वर्ष में छत्तीसगढ़ विधान मंडल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: -
PREAMBLE
An Act to constitute the "Chhattisgarh Official Language Commission" with the object to preserve, prevail and develop the State's tradition of ideas and the complete linguistic variety of the State and to encourage the traditional language of Chhattisgarhi through linguistic studies, research and documentation, creations and translations, conservation, publications, suggestions and recommendations, as also towards promoting the use of the language in Government.
Be it enacted by the Chhattisgarh Legislature in the Sixty-first year of the Republic of India, as follows:--
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छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग हर एक तरह के सरकारी संगठन आय जेकर गठन छत्तीसगढ़ी भाषा ल विशेष दर्जा दिलाय खातिर, वोकर विकास अउ राजकाज म वोकर प्रयोग ल बढ़ावा देय खातिर, छत्तीसगढ़ी ल शिक्षा के माध्यम बनाय खातिर, बनाय गे हे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के गठन के उद्देश्य ल 03 सितंबर 2010 के राजपत्र में प्रकाशित छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अधिनियम 2010 के प्रस्तावना ल पढ़ के समझे-जाने जा सकथे, जउन अइसन हें -
राज्य के वैचारिक परंपरा अउ भाषायी विविधता के -
1. परिरक्षण,
2. प्रचलन और विकास करना
3. भाषायी अध्ययन,
4. अनुसंधान तथा दस्तावेज संकलन,
5. सृजन तथा अनुवाद, (साहित्य के)
6. संऱक्षण,
7. प्रकाशन,
8. सुझाव अउ अनुशंसा के माध्यम लेे छत्तीसगढ़ी पारंपरिक भाषा ल बढ़ावा देना,
9. शासन में भाषा के उपयोग ल समुन्नत बनाना।
आयोग हर अभी सक्रिय है। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग विधेयक ल 28 नवम्बर 2007 के दिने पारित करे गे रिहिस इही उपलक्ष्य में हर साल 28 नवम्बर के दिन ल राजभाषा दिवस के रूप में मनाय जाथे। आयोग के प्रथम सचिव - पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे जी होइन। अभी वर्तमान म येकर द्वितीय सचिव श्री जगदेव राम भगत जी मन हावंय। अब आयोग के अध्यक्ष मन के बात करन तब येकर माननीय अध्यक्ष मन के नाम ये प्रकार ले हवंय -
प्रथम अध्यक्ष - पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी।
द्वितीय अध्यक्ष - पंडित दानेश्वर शर्मा।
तृतीय अध्यक्ष - डाॅ. विनय कुमार पाठक।
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छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अधिनियम 2010 के प्रस्तावना म आयोग के उद्देश्य अउ लक्ष्य मन के निर्धारण तो करेच गेय हे फेर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग हर अपन खातिर कुछ अउ उद्देश्य तय करे हें जउन मन हर अइसन हें -
1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा ल संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करवाना येकर पहली उद्देश्य हवय।
2. येकर दूसरा उद्देश्य हवय, छत्तीसगढ़ी भाषा ल राजकाज के भाषा के रूप म उपयोग म लाना। अउ येकर तीसरा उद्देश्य हवय,
3. त्रिभाषायी भाषा सूत्र के रूप म छत्तीसगढ़ी भाषा ल स्कूल-कालेज के पाठ्यक्रम में शामिल करवाय के प्रयास करना।
आयोग हर अपन पहिली उद्देश्य ल पूरा करे खातिर का करत हे येकर ब्योरा अउ जानकारी हमला आयोग के प्रांतीय सम्मेलन म हर साल मिलत रहिथे। छै सम्मेलन हो गिस हल्ला करत। हल्ला करना बेकार नइ जावय फेर खाली हल्ला करे से का लाभ होही? आयोग डहर ले कुछू ढंग के रचनात्मक काम तो होइस नहीं अब तक। न तो छत्तीसगढ़ी भाषा के राज्य स्तरीय न तो कोनो अखबार हे अउ न कोनो साहित्यिक पत्रिका। जउन हाबे, वो सब आयोग के गठन होय के पहिलिच ले हे अउ निजी प्रयास हरे - लोकाक्षर ल कहस कि बरछा बारी ल कहस। रचना प्रकाशन करे खातिर आयोग हर लेखक मन ल दस हजार रूपिया के अनुदान देथे, फेर वहू म पेंच हे।
दूसर उद्देश्य ल पूरा करे खातिर आयोग हर तीन खंड म छत्तीसगढ़ी प्रशासनिक शब्दकोश बना के जरूर सराहनीय काम करे हे। प्रयास जारी हे। फेर जब लग येला जन आंदोलन के रूप नइ मिल पाही, अपेक्षित सफलता मिलना मुस्किल हे। छत्तीसगढ़ के पढ़ेलिखे नागरिक मन ल संकोच, लाज सरम अउ हीन भावना ल छोड़ के खुद, छत्तीसढ़ी के प्रयोग, आगू आ के करना चाही। 08 जनवरी 2002 के दिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायधीश माननीय फखरुद्दीन महोदय ह छत्तीसगढ़ी म अपन फैसला लिखिन अउ सुनाइन। येकर ले हमला प्रेरणा लेना चाही। 2002 म तो आयोग नइ रिहिस।
आयोग के तीसरा उद्देश्य ल पूरा करे के काम हर आयोग गठन के पहिलिच ले चलत हे। पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय हर अपन जिम्मेवारी ल निभावत पहल करिस अउ एम.ए. छत्तीसगढ़ी के पाठ्यक्रम शुरु करिस, जउन हर अभी तक चलत हे। कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय हर घलो छत्तीसगढ़ी भाषा में डिप्लोमा कोर्स चलावत हे। पन ये सब काम हर सरकार अउ आयोग के सहयोग या हस्तक्षेप करे ले नइ होय हे, ये हर विश्वविद्यालय मन के स्वयं के इच्छा से होय हे। सरकार मेर अइसन इच्छा शक्ति नइ हे। सरकार हर अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूल खोले के घोषणा भले कर सकथे, पन छत्तीसगढ़ी भाषा ल शिक्षा के माध्यम बनाय बर वोकर कोनो योजना नइ दिखय। हम सरकार, राजभाषा आयोग, अउ शिक्षामंत्री मन के कोनो आलोचना नइ करत हन, ये सवाल तो प्रदेश के छत्तीसगढ़िया जनता मन पूछत हें कि हमर मातृभाषा, छत्तीसगढ़ी के विकास खातिर आपमन का करत हव? कोई एकात उपलब्धि हासिल करे हव तो बतावव। पन हमला ये बात मन ल नइ भाूलना चाही कि छठवीं कक्षा ले लेके 12वीं कक्षा के हिंदी किताब मन म छत्तीसगढ़ी के पाठ जोड़े के काम होय हे। अब पीछू साल ले 11वीं अउ 12वी कक्षा म एन सी ई आ टी के किताब मन ल लागू करे ले 11वीं अउ 12वी कक्षा के हिंदी किताब ले छत्तीसगढ़ी पाठमन हर गायब हो गिन। आयोग अउ सरकार हर का करत हें। सुते हें का?
माध्यमिक शिक्षा मंडल के अध्यक्ष श्री के. डी. पी. राव हर 9वीं ले 12वीं तक छत्तीसगढ़ी भाषा ल एक वैकल्पिक विषय के रूप म विषय सूची म शामिल करे के अउ वोला लागू करे बात कहे रिहिन फेर ये विचार के आज तक कुछू अतापता नइ हे। आज तक अमल नइ हो पाइस। आयोग हर का करत हे?
जहाँ तक 9वीं ले 12वीं तक छत्तीसगढ़ी भाषा ल अलग वैक्लपित विषय के रूप म पाठ्यक्रम म शामिल करे के बात हे। घोषणा करना सहज हे पन घोषणा हर लागू कइसे होही, सोच के देखव। 9वीं ले 12वीं तक छत्तीसगढ़ी भाषा के किताब तैयार करे पड़ही। मंय हर खुद एस सी ई आर टी के पाठ्यक्रम निर्माण समिति म रहि चुके हंव। एक किताब म औसतन 25 पाठ रहिथे। 4 किताब बर 100 पाठ के जरूरत पड़ही। पाठ्यक्रम खातिर पाठ के छंटई करत समय पाठ्यक्रम निर्माण समिति के पसीना छूट जाथे। पचास ठन रचना ल पढ़बे-छांटबे तक कहूँ जाके एक ठन पाठ के लाईक सामग्री मिलथे। गुणा-भाग कर लव, 100 पाठ तैयार करे खातिर कतका किताब अउ कतका सामग्री के जरूरत पड़ही। हमर कना वोतका मात्रा म पाठ्यक्रम के स्तर के छत्तीसगढ़ी साहित्य उपलब्ध हे का?
9वीं अउ 10वीं कक्षा के किताब मन के बनावत ले एस सी ई आर टी के हाथ-पाँव फूल गिस अउ 11वीं-12वीं के किबाब बनाय के समय वोहर हाथ झर्रा दिस। मजबूरी म 11वीं अउ 12वीं बर एन सी ई आर टी के किताब मन ल अपनाय बर पड़ गिस।
बीच म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग हर प्राथमिक कक्षा के किताब मन के छत्तीसगढ़ी भाषा म अनुवाद करे के बात चलाय रिहिस। काम के का होइस येकर जानकारी मोला नइ हे। पन विही दौरान मंय हर रायपुर म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के एक ठन स्थापना दिवस समारोह के समय आयोग के सचिव महोदय ले अपन परिचय देवत निवेदन करेंव कि महोदय जी, आपके इच्छा होही ते, कोनो कक्षा के एकात विषय के अनुवाद करे के काम ल मंय हर कर सकथंव। सचिव मोदय के हर छूट किहिस, आवेदन कर दव, विचार करबोन।
आवेदन करे के बात ल वोमन प्रक्रिया के तहत किहिन होहीं, येमा कोनो रीस-दुख के बात नइ हे, पन कहत समय उंकर हावभाव म उपेक्षा के जउन बात रिहिस, वोकर ले मोर उत्साह के दीया हर बुता गिस।
संगवारी हो! अपन उद्देश्यमन ल पूरा करे खातिर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग हर लेखक अउ कवि मन ल उंकर किताब प्रकाशित करवाय खातिर 10 हजार रू. के अनुदान देवत रिहिस। माई कोठी योजना चला के किताब मन के संग्रह करे के कोशिश करिस, बिजहा योजना चलाके छत्तीसगढ़ी के नंदावत शब्द मन बचाय के काम करिस। काम मन हर प्रशंसनीय हे। येमा कतिक सफलता मिलिस, येकर बारे म तो आयोगेच हर बता सकत हे।
आज स्थिति ये हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास अउ प्रसार खातिर सरकारी प्रयास ले जादा निजी प्रयास होवत हे। दुर्ग निवासी वकील साहब संजीव तिवारी ल देख लव, छत्तीसगढ़ी भाषा के पहली वेब पोर्टल ’’गुरतुर गोठ’’ लांच करने वाला वोमन पहिली व्यक्ति हरंय। उंकर ये प्रयास ल आज कोन नइ जानय? गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी के मदद लेके गूगल हर छत्तीसगढ़ी भाषा म जी-बोर्ड एप लांच करिस हे। जी-बोर्ड खातिर संजीव तिवारी हर गुगल ल 10 हजार छत्तीसगढ़ी शब्द उपलब्ध कराइन। पूरा संसार भर म छत्तीसगढ़ी जाननेवाला मनके बीच आज ’’गुरतुर गोठ’’ के चर्चा हे। हमर सरकार तीर न तो छत्तीसगढ़ी के एको ठन रेडियो चैनल हे अउ न दूरदर्शन के चैनल। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वेब पोर्टल हर कोन जघा खुसरे हे, खोजे म नइ मिलय।
’छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच’ के संयोजक नंदकिशोर तिवारी अउ उंकर ’छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर’ के योगदान ल कोन हर नइ जानय। समाचार माध्यम ले जानकारी मिले हे कि ’छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना’ के कार्यकर्ता मन प्रदेश भर म अउ दिल्ली के जंतर-मंतर में घला धरना दे चुके हें।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग से अपेक्षा अउ सुझाव
अब मंय हर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग से मोर का अपेक्षा हे अउ मोर का सुझाव हे वोकर चर्चा करना चाहहूँ।
1. आयोग कना संसाधन के कमी हे, बजट के कमी हे; अउ ये दूनों कमी हमेशा बने रही, येमा सुधार के कोनो गुंजाइश मोला नइ दिखय। सरकार हर राज्य स्थापना दिवस के उत्सव म करोड़ों रूपिया फूंकत होही। पढ़े-सुने बर मिलथे कि एक झन फिल्मी कलाकार ल कार्यक्रम म बलाय खातिर पचास लाख अउ एक करोड़ रूपिया सरकार हर दे देथे। पन इही कार्यक्रम बर छत्तीसगढ़िया कलाकार ल हजार रूपिया देवत समय सरकार के आँखीं कोती ले पानी निकल जाथे। ये सब छत्तीसगढ़ विरोधी बात मन के जानकारी हमला समाचार पढ़के मिलथे, पन येकर विरोध म हमर जुबान नइ खुलय। का मजबूरी हे भई! हमर? हमर तीर मोबाइल हे। विरोध म सोसल मिडिया म एक लाइन तो जरूर लिख सकथन। फेर नई लिखन, काबर कि हमला केहे गे - ’सबले बढ़िया, छत्तीसगढ़िया’। लिख देबोन त हम खराब बन जाबोन? आयोग से आप किताब छपाय बर अनुदान के मांग करव या कोनो साहित्यिक आयोजन खातिर मदद मांगे बर जावव, अक्सर कम बजट के बात सुने बर मिलथे। सही होही। मोर कहना हे, सरकार द्वारा फिल्मी कलाकार मन ल करोड़ो रूपिया देय जा सकथे पन आयोग बर पइसा के अंकाल पर जाथे।
2. आमदनी ले जादा महत्वपूर्ण होथे कि वोला खरचा कइसे करन। आयोग हर अपन बजट के खरचा करत समय ये बात ल धियान म काबर नइ रखय? आयोग के प्रांतीय सम्मेलन के रेवाटेवा ल पीछू छै साल ले देखत आवत हन। का हासिल होथे? आयोग ल मिलनेवाला बजट के खरचा कइसे होय? मोर सुझाव हे - छत्तीसगढ़ के हर जिला म कतरो साहित्यिक संस्था संचालित होवत हें। येमा कुछ मन हर रजिस्टर्ड हें अउ अधिकांश मन हर अनरजिस्टर्ड हें। उदाहरण बर मंय हर आपके इही संस्था के नाम लेवत हंव। ये सब संस्था मन अपन-अपन जघा, अपन-अपन संसाधन के जरिया आयोगेच के उद्देश्य मन ल पूरा करे के काम करत हें। इंकर कार्यक्रम मन म बहुत सार्थक चर्चा होथे। इंकर काम हर काफी रचनात्मक होथे। आयोग हर इंकर सहयोगी बनंय। इन संस्था मन के सूची बनावंय। इंकर अध्यक्ष मन संग मिल के सालभर के साहित्यिक कार्यक्रम के कैलेडंर बनावंय। अउ एक जघा प्रांतीय सम्मेलन न करके पूरा राजभर म अलग-अलग जघा कार्यक्रम करंय। मोला सौ परसेंट उम्मीद हे, प्रांतीय सम्मेलन म जउन काम होथे, वोकर ले सौ गुना जादा, सार्थक, रचनात्मक अउ उद्देश्यपूर्ण काम हो सकही। संसाधन के कमी हर पूरा होही। बजट के जादा अच्छा ढंग ले उपयोग होही। मंय पूछथंव, आयोग कना प्रदेश के रजिस्टर्ड अउ अनरजिस्टर्ड ये साहित्य समिति अउ परिषद् के सूची हे का?
3. विचारधारा के कमी - हम जम्मों साहित्यकार मन अपन-अपन स्तर म गजब के लेखन काम करत हन। पन हमर लेखन म समकालीन साहित्य के विशेषता देखे बर नइ मिलय। येकर कारण हरे, हमर लेखन म विचारधारा के कमी हे, जेकर कारण से हमला लेखन के सही दिशा नइ मिल पाय। आयोग हर स्थानीय साहित्यिक संस्था मन ले जुड़ के, या वोमन ल अपन ले जोड़ के काम करही तभे अइसन साहित्यकार मन ल वैचारिक रूप ले प्रशिक्षित करे जा सकही। दुख के बात हे, ’’बमलई म चढ़, मुनगा ल चुचर, इही ल कथे छत्तीसगढ़।’’ छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन के अइसन परिभाषा गढ़नेवाला आदमी हर आयोग के कर्ता-धर्ता बनही त वो हर हमला विचारधारा के नाम म का देही? समझव। बड़े सवाल ये हे कि प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार मन आयोग के कार्यक्रम सेे काबर नइ जुड़ंय?
4. भाषा हर लोक के रचना हरे। संसार के कोनो भाषा के निर्माण ल साहित्यकार मन कि व्याकरणाचार्य मन हर नइ करे हें। भाषा के मानकीकरण करना भाषा के गति अउ विकास म बाधा परे के समान हरे। पन भाषा के साहित्यिक प्रयोग म एक रूपता लाय खातिर कुछ उपाय, कुछ प्रयास करना मोला जरूरी लागथे। उदाहरण खातिर - कुछ अव्यय (अविकारी शब्द) अउ परसर्ग (विभक्ति) मन के मनमाना उपयोग होवत हें, एके ठन अव्यय के एक ले जादा रूप प्रचलित हे, जइसे - नइ अउ नई, येमा कोनो एक ठन ल मान्यता मिलना चही। अइसने अउ कतरो काम हे, जउन ल सुलझाय खातिर आयोग ह भाषा विज्ञानी अउ भाषा के जानकार, साहित्यकार मन के समिति बना के कोनो उपाय निकाल सकथे। अइसे पता चले हे कि अइसने एक ठन काम डाॅ. अिनय पाठक हर अपन कार्यकाल म बिलासपुर म करिन हे, पन वोकर नतीजा का निकलिस, हमला पता नइ हे।
-जोहर-
कुबेर
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