सोमवार, 9 सितंबर 2013

मित्र


’’मित्र! तुम सबसे अच्छे हो
हाँ मित्र!
इस दुनिया की सबसे अच्छी वस्तु से भी,
और तुम सबसे सुंदर भी हो
इस दुनिया की तमाम सुंदर वस्तुओं से भी।

मित्र!
तुम्हारा मन, सबसे अधिक उजला है
चाँद-तारों से भी अधिक,
और तुम्हारा हृदय -
बहुत गहरा और बहुत विशाल है
समुद्र और आसमान से भी अधिक
क्योंकि -
ईश्वर ने अपने ही हाथों,
पवित्र मन से, और -
सृजन के पवित्रतम पलों में तुम्हें बनाया है।

मित्र!
दुनिया की हर कठिनाई को
तुम जीत सकते हो,
क्योंकि -
शिकायतों और शर्तों से भरी इस दुनिया को
बिना शिकायत तुमने अपनाया है,
दुनिया में तुमने केवल मित्र बनाया है।’’



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