संस्कार ले उपजे कहानी : बनकैना
कुबेर
साहित्य अउ संस्कृति के तिमाही पत्रिका "विचार वीथी" के संपादक अउ साहित्यकार सुरेश सर्वेद के नाम ह न सिरिफ पत्रकारिता ले जुडे बुद्धिजीवी मनबर भलुक साहित्य के जानकार विद्वान मनबर घला कोनों अनजाना नइ हे। न सिरिफ छत्तीसगगढ, छत्तीसगगढ के बाहिर, देश भर म, समर्पित अउ जागरूक संपादक के रूप म अउ विशेष रूप म गद्य साहित्य के क्षेत्र कथाकार के रूप म, वोकर पहिचान बन गे हे। "विचार वीथी" के जरिया वो मन ह राष्टभाषा हिन्दी के संगेसंग छत्तीसगढी भाखा के सोर ल घला देश भर म बगरावत हें।
येकर पहिली सुरेश सर्वेद के हिन्दी कहानी मन के दू ठन संग्रह छप चुके हे, ये दरी वो मन ह छत्तीसगढी साहित्य के भंडार म बढौतरी करे बर ये छत्तीसगढी के कहानी संग्रह ल आप मन के हाथ म संउपत हें। सूमुद्र ह घला बूँद-बूँद पानी के जुरियाय ले बने हे। "बनकैना" ह घला छत्तीसगढी साहित्य के समुद्र ल भरे खातिर एक ठन बूँद हरे।
सुरेश सर्वेद ह साहित्य, पत्रकारिता अउ संपादन के क्षेत्र म हमर मयारूक छत्तीसगढ के गाँव के माटी ले निकल के आय हवंय, उंकर तन-मन अउ हिरदे म छत्तीसगढ के माटी के महक ह, इहां के संस्कार अउ संस्कृ ति ह रचे-बसे हे, इही पाय के ये कहानी संग्रह म रचाय जम्मो कहानी मन ल पढत खानी आप मन ल, अपने गाँव म, अपने गाँव के खेत-खार के मेड म, खेती-डोली के बीच म किंजरत हव तइसे लगही।
ये संग्रह म कुल जमा नौ ठन कहानी मन ल जोरे गे हे।
'फ,ुुटहा छानी', 'मतलाहा पानी', 'नियाव के जीत' अउ 'मनहरण भइया' ये चारों ठन कहानी मन म सरपंच के आगू-पीछू किंजरत गाँव के राजनीति, गाँव के खेत-खार अउ खेत-डोली मनबर सिंचाई-पानी के समस्या, परदेसिया मन हमरे गाँव म आ के हमी मन ल दबाय के कोशिश करथें तेकर समस्या ल बड सुघ्घर ढंग ले रखे गे हे।
गाय-गरू, बइला-भंइसा मन ह हमर खेती-किसानी अउ जीता-जिनगी के अधार आवंय। इही पाय के गउ ल हम माता कहिके वोकर पूजा करथन। बइला के बिना हमर किसानी नइ हो सकय, ये ह किसान मन के संगी-संगवारी आवंय, भाई आवंय। इही पाय के हम बइला के घला पूजा करथन। हमर समाज म हमर गोधन के रक्षा करे खातिर जउन नियम बनाय गे हे वो ह हमर दूसर सामाजिक नियम मन ले बढ के होथे। गउ हत्या के पाप ल मनखे हत्या के पाप ले बडे पाप माने गे हे। अब गाँव-गाँव म टेक्टर आ गे हे, पशुधन बर हमर प्रेम ह कम होवत जावत हे, इही समस्या ल 'छन्नू अउ मन्नू', 'बन कैना' अउ 'गउ प्रेम' कहानी मन म उठाय गे हे। पढ के हमर चेथी के आँखी ह आगू डहर आ जाथे।
जुग-जोडी के जीवन ह आपसी बिश्वास के ठीहा म टेके रहिथे, बिश्वास के धारन ह बड कमजोर होथे, थोरको धक्का परे म गिर जाथे। 'बिही चानी' म इही बात ल समझाय गे हे। छुआ-छूत, छोटे-बडे येकर अधार पइसा ह हरे। अपन सुविधा अउ फायदा बर हम येकर बर नियम बनाथन, इही बात ल 'देखावा' म बताय गे हे।
हाना ह छत्तीसगढी भाषा के परान आवय। कथाकार ह अपन कहानी मन म येकर प्रयोग तो करे हे फेर छत्तीसगढी के हिसाब से जतका अउ जइसन होना चाही वइसन नइ हे। कथाकार के भाषा ह कोनो-कोनो जघा अखरथे घला।
येकर पहिली सुरेश सर्वेद के हिन्दी कहानी मन के दू ठन संग्रह छप चुके हे, ये दरी वो मन ह छत्तीसगढी साहित्य के भंडार म बढौतरी करे बर ये छत्तीसगढी के कहानी संग्रह ल आप मन के हाथ म संउपत हें। सूमुद्र ह घला बूँद-बूँद पानी के जुरियाय ले बने हे। "बनकैना" ह घला छत्तीसगढी साहित्य के समुद्र ल भरे खातिर एक ठन बूँद हरे।
सुरेश सर्वेद ह साहित्य, पत्रकारिता अउ संपादन के क्षेत्र म हमर मयारूक छत्तीसगढ के गाँव के माटी ले निकल के आय हवंय, उंकर तन-मन अउ हिरदे म छत्तीसगढ के माटी के महक ह, इहां के संस्कार अउ संस्कृ ति ह रचे-बसे हे, इही पाय के ये कहानी संग्रह म रचाय जम्मो कहानी मन ल पढत खानी आप मन ल, अपने गाँव म, अपने गाँव के खेत-खार के मेड म, खेती-डोली के बीच म किंजरत हव तइसे लगही।
ये संग्रह म कुल जमा नौ ठन कहानी मन ल जोरे गे हे।
'फ,ुुटहा छानी', 'मतलाहा पानी', 'नियाव के जीत' अउ 'मनहरण भइया' ये चारों ठन कहानी मन म सरपंच के आगू-पीछू किंजरत गाँव के राजनीति, गाँव के खेत-खार अउ खेत-डोली मनबर सिंचाई-पानी के समस्या, परदेसिया मन हमरे गाँव म आ के हमी मन ल दबाय के कोशिश करथें तेकर समस्या ल बड सुघ्घर ढंग ले रखे गे हे।
गाय-गरू, बइला-भंइसा मन ह हमर खेती-किसानी अउ जीता-जिनगी के अधार आवंय। इही पाय के गउ ल हम माता कहिके वोकर पूजा करथन। बइला के बिना हमर किसानी नइ हो सकय, ये ह किसान मन के संगी-संगवारी आवंय, भाई आवंय। इही पाय के हम बइला के घला पूजा करथन। हमर समाज म हमर गोधन के रक्षा करे खातिर जउन नियम बनाय गे हे वो ह हमर दूसर सामाजिक नियम मन ले बढ के होथे। गउ हत्या के पाप ल मनखे हत्या के पाप ले बडे पाप माने गे हे। अब गाँव-गाँव म टेक्टर आ गे हे, पशुधन बर हमर प्रेम ह कम होवत जावत हे, इही समस्या ल 'छन्नू अउ मन्नू', 'बन कैना' अउ 'गउ प्रेम' कहानी मन म उठाय गे हे। पढ के हमर चेथी के आँखी ह आगू डहर आ जाथे।
जुग-जोडी के जीवन ह आपसी बिश्वास के ठीहा म टेके रहिथे, बिश्वास के धारन ह बड कमजोर होथे, थोरको धक्का परे म गिर जाथे। 'बिही चानी' म इही बात ल समझाय गे हे। छुआ-छूत, छोटे-बडे येकर अधार पइसा ह हरे। अपन सुविधा अउ फायदा बर हम येकर बर नियम बनाथन, इही बात ल 'देखावा' म बताय गे हे।
हाना ह छत्तीसगढी भाषा के परान आवय। कथाकार ह अपन कहानी मन म येकर प्रयोग तो करे हे फेर छत्तीसगढी के हिसाब से जतका अउ जइसन होना चाही वइसन नइ हे। कथाकार के भाषा ह कोनो-कोनो जघा अखरथे घला।
गाँव - भोडिया, पोस्ट - सिंघोला,
जिला - राजनांदगाँव, छ.ग.
मो. - ९४०७६८५५५७
जिला - राजनांदगाँव, छ.ग.
मो. - ९४०७६८५५५७
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