रविवार, 29 दिसंबर 2013

आलेख

बस्मार्क

ओटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क (बिस्मार्क का जन्म शून हौसेन में 1 अप्रैल, 1815  तथा निधन 30 जुलाई, 1898 को हुआ था), जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर तथा तत्कालीन यूरोप का प्रभावी राजनेता था। वह ’ओटो फॉन बिस्मार्क’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। उसने अनेक जर्मनभाषी राज्यों का एकीकरण करके शक्तिशाली जर्मन साम्राज्य स्थापित किया। वह (1862 ई. में) द्वितीय जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर बना। वह ’रीअलपालिटिक’ की नीति के लिये प्रसिद्ध है जिसके कारण उसे ’लौह चांसलर’ के उपनाम से जाना जाता है। वह लगभग 25 वर्षों तक जर्मनी का सर्वेसर्वा रहा। बिस्मार्क एक महान राष्ट्रनिर्माता था, जिसने अपने राष्ट्र की जरूरतों को समझा और उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश की। जर्मन राष्ट्र उसके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा।

बिस्मार्क का जन्म शून हौसेन में 1 अप्रैल, 1815 को हुआ। गांटिंजेन तथा बर्लिन में कानून का अध्ययन किया। बाद में कुछ समय के लिए नागरिक तथा सैनिक सेवा में नियुक्त हुआ। 1847 ई. में वह प्रशा की विधान सभा का सदस्य बना। 1848-49 की क्रांति के समय उसने राजा के ’दिव्य अधिकार’ का जोरों से समर्थन किया। सन् 1851 में वह फ्रैंकफर्ट की संघीय सभा में प्रशा का प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया। वहाँ उसने जर्मनी में आस्ट्रिया के आधिपत्य का कड़ा विरोध किया और प्रशा को समान अधिकार देने पर बल दिया। आठ वर्ष फ्रेंकफर्ट में रहने के बाद 1859 में वह रूस में राजदूत नियुक्त हुआ। 1862 में व पेरिस में राजदूत बनाया गया और उसी वर्ष सेना के विस्तार के प्रश्न पर संसदीय संकट उपस्थित होने पर वह परराष्ट्रमंत्री तथा प्रधान मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया। सेना के पुनर्गठन की स्वीकृति प्राप्त करने तथा बजट पास कराने में जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने पार्लमेंट से बिना पूछे ही कार्य करना प्रारंभ किया और जनता से वह टैक्स भी वसूल करता रहा। यह ’संघर्ष’ अभी चल ही रहा था कि श्लेजविग होल्सटीन के प्रभुत्व का प्रश्न पुनः उठ खड़ा हुआ। जर्मन राष्ट्रीयता की भावना से लाभ उठाकर बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के सहयोग से डेनमार्क पर हमला कर दिया और दोनों ने मिलकर इस क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया (1864)।

दो वर्ष बाद बिस्मार्क ने आस्ट्रिया से भी संघर्ष छेड़ दिया। युद्ध में आस्ट्रिया की पराजय हुई और उसे जर्मनी से हट जाना पड़ा। अब बिस्मार्क के नेतृत्व में जर्मनी के सभी उत्तरस्थ राज्यों को मिलाकर उत्तरी जर्मन संघराज्य की स्थापना हुई। जर्मनी की इस शक्तिवृद्धि से फ्रांस आंतकित हो उठा। स्पेन की गद्दी के उत्तराधिकार के प्रश्न पर फ्रांस जर्मनी में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई और अंत में 1870 में दोनों के बीच युद्ध ठन गया । फ्रांस की हार हुई और उसे अलससलोरेन का प्रांत तथा भारी हर्जाना देकर जर्मनी से संधि करनी पड़ी। 1871 में नए जर्मन राज्य की घोषणा कर दी गई। इस नवस्थापित राज्य को सुसंगठित और प्रबल बनाना ही अब बिस्मार्क का प्रधान लक्ष्य बन गया। इसी दृष्टि से उसने आस्ट्रिया और इटली से मिलकर एक त्रिराष्ट्र संधि की। पोप की ’अमोघ’ सत्ता का खतरा कम करने के लिए उसने कैथॉलिकों के शक्तिरोध के लिए कई कानून बनाए और समाजवादी आंदोलन के दमन का भी प्रयत्न किया। इसमें उसे अधिक सफलता नहीं मिली। साम्राज्य में तनाव और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई। अंततागत्वा सन् 1890 में नए जर्मन सम्राट् विलियम द्वितीय से मतभेद उत्पन्न हो जाने के कारण उसने पदत्याग कर दिया।
बिस्मार्क के समान ही लौह संकल्पों के कारण भरत के लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल को ’भारत का बिस्मार्क’ कहा जाता है।
कुबेर

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