शनिवार, 28 दिसंबर 2013

पत्र

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एक पत्र श्री कौशल जी के नाम

छत्तीसगढ़ी भासा के मानकीकरण

आदरणीय कौशल जी,
सादर नमस्कार।
छत्तीसगढ़ी भासा के मानकीकरण के बिसय म आप मन के आलेख ह सुघ्घर, चेतपरहा अउ चेतलगहा घला हे। आपके बिचार ले महूँ ह राजी हँव। स्कूल मन म हमर ’राष्ट्र भाषा हिन्दी’ किताब के पाठ म आज के 'हिन्दी भाषा' के पाठ मन के संगेसंग सूरदास अउ दूसर कवि मन के ब्रज भासा के कविता, तुलसीदास के अवधी भासा के कविता, कबीरदास के सधुक्कड़ी भासा के कविता, मीरा बाई के राजस्थानी मिलेजुले भासा के कविता घला पढ़थन अउ पढ़ाथन। जिहाँ छायावादी कवि मन के रचना मन के अर्थ ल उँकर तत्सम शब्द मन के मारे समझत ले चेत ह उबुकचुबुक हो जाथे विहिंचेच् प्रेमचंद, परसाई अउ जोशी जइसन लेखक मन के सोझ आउ सरल भासा ह हिरदे अउ मन म तुरते उतर जाथे। अब तो हिन्दी के लेखक-कवि मन ह अपन-अपन क्षेत्र के बोली मन ल मिंझार के लिखे के सुरू कर देय हें। हालाकि दिल्ली अउ वोकर अतराब के हिन्दी ल मानक हिन्दी माने के बात कहे गे हे, फेर मोर मति के अनुसार हिन्दी के मानकीकरण आज तक होयेच् नइ हे; होना घला नइ चाही। कोनों भासा के मानकीकरण करे के मतलब वोला एक ठन बनेबनाय सांचा म ढाल देय के सिवा अउ कुछू नो हे। भासा ह सरलग बोहात नदिया हरे, बोहावत-बोहावत वो ह अपन सरूप खुदे गढ़ लिही, येकर पीछू जादा चिंता करके हमला दुबराय के कोनों जरूरत नइ हे। छत्तीसगढ़ी ल पोट बनाय बर छत्तीसगढ़ म जतका तरह के छत्तीसगढ़ी चलागन म हे अउ जतका बोली चलागन म हे, वो सब्बो ल संघेर के चलना जरूरी हे। फिलहाल तो हमला छत्तीसगढ़ी भासा के भण्डार ल पोट करे के काम म लग जाना चाही। हजारों टन कोइला के बीच म एकाध हीरा मिलथे। कोन्हों घला रचनाकार के कोनों न कोनों  रचना ह हीरा जइसन होबेच् करथे। रचनाकार मन के भीड़ बाढ़ही तब वो भीड़ म कोनों न कोनों शुक्ल अउ द्विवेदी निकलबेच् करही।
जइसन कि आप मन कहे हव, छत्तीसगढ़ी के विभक्ति अउ कारक मन के प्रयोग म एकरूपता लाय, संगेसंग जतका शब्द जिंकर एक ले जादा रूप चलागन म हे, उँकर कोनों एक ठन रूप ल बढ़ावा देय के जरूरत अवश्य हे।
कुबेर।


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