मंगलवार, 3 जून 2014

आलेख

कबीर की परम्परा

डाॅ. सी. एल. प्रभात एक सिद्ध साहित्यकार हैं। उन्होंने अपने एक लेख में आदिकवि बाल्मीकि रचित रामायण के राम-भरत मिलाप प्रसंग का उल्लेख किया है। आदिकवि बाल्मीकि ने अपने विश्व प्रसिद्ध ’रामायण’ में जावालि जैसे तेजस्वी पात्र का सृजन किया है। राम को वनवास से लौटा लाने के लिए भरत के साथ वे भी गये थे। जावालि ने राम से कहा - ’’राम, राजा को जहाँ जाना था, चले गये। तुम चलो और राज्य संभालो। श्राद्ध आदि व्यर्थ है, अन्न का अपव्यय है। देखो, मरा हुआ व्यक्ति क्या खाता है? यदि दूसरे का खाया हुआ अन्न दूसरे व्यक्ति के शरीर में चला जाता हो तो, परदेश गये व्यक्ति के लिए श्राद्ध ही कर देना चाहिए। उन्हें मार्ग के लिए भोजन की आवश्यकता नहीं होगी। (यदि भूमिहान्येन देहमन्यस्य गच्छति/तद्यात प्रसवतां श्राद्ध न तत् पश्यनं भवतः, अयोध्याकाण्ड 108/15)

इसी लेख में डाॅ. प्रभात ने केशकम्बली और सरहपाद (सरहपा) की चर्चा की है। दोनों ही भिक्खु थे। केशकम्बली की भाषा पालि थी। सरहपाद अपभं्रश काल से संबंधित हैं। यज्ञ में बलि दिये गये पशु की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है; ऐसा दावा करने वाले ब्रह्मर्षियों को लक्ष्य करते हुए केशकम्बली पूछता है - ’’अग्निष्टोम यज्ञ में मारा गया पशु यदि स्वर्ग चला जाता है, तो यजमान अपने बाप का वध क्यों नहीं करता?’’ इसी तरह सरहपाद कहते हैं - ’’यदि नग्न रहने से मुक्ति हो जाय, तो कुत्ते और सियार भी मुक्त हो जायेंगे। मोरपंख धारण करने से मुक्ति यदि संभव है तो मोर और चँवर भी मुक्त हो जायेंगे। शिला चुगकर खाने से यदि ज्ञान प्राप्त हो जाय तो कांटे और तुरंग भी ज्ञानी हो जायेंगे।’’

कबीर इन्हीं बाल्मीकि, केशकम्बली और सरहपाद की परंपरा के साधक कवि है। आज हम न तो बाल्मिीकि के रामायण के बारे में ही जानते हैं और न ही केशकम्बली और सरहपाद को ही जानते हैं। कारण सिर्फ एक ही है, शास्त्र, धर्म और कर्मकाण्ड को हथियार बनाकर जनता का शोषण करने वाले परजीवी शोषकों ने बाल्मीकि, केशकम्बली और सरहपाद के विचारों की हत्या कर दी है, क्योंकि इनके विचार कर्मकाण्डियों के शोषण कर्म में बाधक थे। इनके विचार जनता को मुक्ति की ओर ले जाने वाले विचार थे। शास्त्र, धर्म और कर्मकाण्ड को हथियार बनाकर जनता का शोषण करने वालों ने कबीर के भी विचारों की हत्या करने के कम प्रयास नहीं किये हैं; और अब भी कर रहे हैं। परन्तु ऐसा कर पाना क्या संभव हो सकेगा। अल्लामा इकबाल के शब्दों में - ’’कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा।’’  
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