सोमवार, 30 जून 2014

आलेख


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इतिहास में रद्दोबदल की कोशिशें - मोहन गुरुस्वामी

(नई दुनिया, 30 जून 2014, से साभार)

.... चार्ल्स एलेन अपनी किताब - ’अशोका: द सर्च फार इण्डियाज लास्ट एम्परर’ में बताते हैं कि उन्हें किस तरह से भारत के इस महानतम् सम्राट और उनके जीवन से जुड़ी नटकीय घटनाओं के बारे में मालूमात हासिल करने के लिए इतिहास में झांक कर पड़ताल करना पड़ी थी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि जो सम्राट अशोक आज भारत की पहचान के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं, मात्र दो सदी पूर्व तक हम उन्हें पूरी तरह से भुला चुके थे? हमें जेम्स प्रिंसेप का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिन्होंने ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सफलता पाई और हमें अशोक से फिर से परिचित कराया। ....
...... हावर्ड मेडिकल स्कूल में जेनेटिक्स के प्राध्यापक डेविड रीच हाल ही में 25 विभिन्न भारतीय जनसमूहों का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि इन सभी समूहों में दो विभिन्न समूहों के आनुवांशिक मिश्रण के साक्ष्य पाये गये हैं। ये दो समूह - एनसेस्ट्रल नार्थ इण्डियन्स (ए. एन. आई.) और एनसेस्ट्रल साऊथ इण्डियन्स (ए. एस. आई.)  हैं। ए. एन. आई. का नाता मध्य और मध्य पूर्व एशिया, कॉकेशिया, और यूरोपियन समुदायों से रहा था तो ए. एस. आई. मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप के रहवासी थे। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन दोनों के बीच मेलजोल की शुरुआत 4200 साल पहले हुई थी। तब तक सिंधु घाटी सभ्यता का पतन शुरू हो चुका था। ....
..... विमर्श का विषय यह होना चाहिए कि इतिहास किस तरह का हो? जाहिर है तथ्यों को नहीं बदला जा सकता। आर्यों और द्रविड़ों दोनो को ही भारत का मूल निवासी बताया जाता है। लेकिन बलूचिस्तान के चंद कबायलियों द्वारा बोली जाने वाली हुब्रई भाषा के बारे में क्या, जिसे भाषाशास्त्रियों द्वारा द्रविड़ भाषा बताया जाता है? दुनिया भर के भाषाशास्त्रियों के इस निष्कर्ष के बारे में क्या कि सभी आधुनिक इण्डो-यूरोपियन भाषाएँ नोस्ट्रेटिक नामक एक ही पुराभाषा से उपजी हैं, जिसका उद्गम मध्य उशिया में हुआ था? ....
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