गुरुवार, 9 जुलाई 2015

समीक्षा

छत्तीसगढ़ में कुबेर का खजाना-‘‘कथा-कंथली‘‘ (समीक्षा)

चर्चित व्यंग्य संग्रह ’कार्यालय तेरी अकथ कहानी’ से राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरने वाले व्यंग्यकार का नाम है - वीरेन्द्र ‘सरल‘। यहाँ प्रस्तुत है, श्री कुबेर की ’छत्तीसगढ़ी कथा-कथली’ पर उनकी समीक्षात्मक टिप्पणी।
वीरेन्द्र ‘सरल‘
महानदी की चैड़ी छाती और विशाल हृदय के समान ही छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति समृद्ध और इतिहास वैभवशाली है। ऋषि संस्कृति से कृषि संस्कृति तक की यात्रा की साक्षी छत्तीसगढ़ की धरती में लोक साहित्य का विपुल भंडार भरा है। यहाँ लोक गीतो की मधुर तान, लोक पर्वो की लम्बी श्रृंखला और लोक कथा तथा लोक-गाथाओं का अक्षय कोश है। लोक साहित्य ही किसी राज्य के संस्कृति की रीढ़ होती है। लोक संस्कृति से कटने का मतलब अपनी जड़ों से कटना होता है और इतिहास गवाह है कि जड़ों से कटने के बाद किसी भी विशालकाय पेड़ को धराशायी होने में ज्यादा समय नहीं लगता। आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होकर हम अपनी जड़ों से कटने लगे हैं। ऐसे समय में यह बहुत आवश्यक है कि हम अपनी जड़ों को सुरक्षित रखने के लिए सदैव सजग और तत्पर रहें।

लोक साहित्य के महत्व को भली-भांति जानने और समझने वाले विद्वानों के द्वारा इस दिशा में पहले भी स्तुत्य प्रयास किया जाता रहा है पर अपेक्षित महत्व और समग्र मूल्यांकन नहीं होने के कारण इस कार्य की गति धीमी रही है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद विद्वानों की सजगता और सरकार की गंभीरता के कारण इस कार्य में तेजी आई है। अब लोक साहित्य को संकलित और संग्रहित करने का कार्य तेज गति से होने लगा है। यही कारण है कि जहाँ एक ओर यहाँ की धानी धरती के रत्नों की चमक से निवेशक आकर्षित हुए है वहीं दूसरी ओर यहाँ की कला, साहित्य और संस्कृति से देश-दुनिया के विद्वत और कला प्रेमी लोग सम्मोहित भी हो रहे हैं।

अपने पूर्वजों से विरासत में मिले  लोक साहित्य के अनमोल धरोहर को सहेज कर नई पीढ़ी को हस्तांरित करने का महत्वपूर्ण काम भाई कुबेर ने भी कथा कंथली के माध्यम से किया है। प्रयोग धर्मी रचनाकार भाई कुबरे ने लोक कथाओं को कथा-कथन की सामान्य शैली से अलग एक विशिष्ट शैली ओर मनमोहक अंदाज में पाठकों तक पहुँचाने का विनम्र प्रयास किया है। लोक कथाओं में निहित संदेशों को अधिक प्रभावी और ग्राह्य बनाने के लिए उन्होंने एक अनुपम शैली का आश्रय लेते हुए कथाक्रम को खलिहान में रखे धान के खरही की उपमा दी है। अपने श्रमसीकर से धरती को सींचकर अन्न उपजाने वाला छत्तीसगढ़िया श्रमवीर अपने परिश्रम के फलस्वरूप प्राप्त धान के फसल को अपने खलिहान में देवप्रतिमा की तरह खरही के रूप में स्थापित कर क्रमशः उसकी मिसाई का कार्य करता है। इस कार्य में पूरे परिवार की सहभागिता होती है। परिवार के छोटे-से-छोटे और बड़े-से-बड़े बुजुर्ग लोग भी तन-मन-धन से इस कार्य में कमर कसकर जुटे होते हैं और अपने सामथ्र्य अनुसार सहयोग प्रदान करते रहते हैं। ज्यादा कुछ नहीं तो श्रम करने वालों को मानसिक संबल प्रदान करते रहते हैं। ग्राम्य सहकारिता के इस पवित्र भाव के साथ डेरहा बबा, नंदगंहिन और राजेश के माध्यम से भाई कुबेर जब लोक कथाओं को कहना शुरू करते हैं तब कथोपकथन की इस शैली से कथाओं की प्रभावोत्पादकता और सम्प्रेषणीयता देखते ही बनती है।

इस संकलन में कथा में समाहित जीवन संदेश तो है ही साथ-ही-साथ राजेश और डेरहा बबा, नंदगहिन तथा कथा रस में भींगते हुए अन्य बड़े बुजुर्गो के संवाद में जीवन के विविध रंगों यथा सुख-दुख, आशा-निराशा, हास-परिहास के माध्यम से लोक जीवन की झांकी जीवन्त हो उठती है और अपनी भाषा की मिठास कानों में रस घोलने लगती है। कथा के बीच-बीच में उद्धृत छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ सोने में सुहागा का काम करती हैं। भाई कुबेर ने लोक कथाओं को संग्रहित करते हुए इस बात का पर्याप्त ध्यान रखा है कि इस संकलन में बच्चों से बूढ़ों तथा युवक से युवतियों तक के लिए कथा समाहित हो तभी तो संकलन में लधु लोक कथाओं से लेकर शिव और नाथ की अमर प्रेम कथा को सम्मानपूर्वक रखा गया है। आज झूठे प्रेमपाश में जकड़कर बर्बाद होते युवाओं के लिए शिव और नाथ के अमर प्रेम की भावपूर्ण कथा एक प्रकाशस्तंभ की तरह दिशा देती है कि प्रेम दैहिक आकर्षण नहीं बल्कि प्रेमी आत्माओं के लिए पूजा, इबादत, अरदास जैसी पवित्र भावना है। सामाजिक, पारिवारिक, आघ्यात्मिक एवं ऐतिहासिक संदर्भो को स्पर्श करती हुई लोक कथाएँ निःसंदेह नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक साबित होंगी, ऐसा विश्वास है। इसके संकलन और प्रकाशन के लिए भाई कुबेर साहू को हार्दिक बधाई।

बोड़रा (मगरलोड़), पोस्ट-भोथीडीह, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
ई मेल - saralvirendra@rediffmail.com
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