मंगलवार, 4 अगस्त 2015

अनुवाद

 (रस्किन बाण्ड की कहानी का छत्तीसगढ़ी अनुवाद)

मास्टरजी

रस्किन बाण्ड
(छत्तीसगढ़ी अनुवाद - कुबेर)

जब मंय ह अमृतसर एक्सप्रेस के अगोरा म प्लेटफारम म किंजरत रेहेंव तभे मंय ह हथकड़ी लगे खुशाल मारस्टरजी ल पुलिसवाले के संग देखेव।

मंय ह वोला पहली घांव म पहिचान नइ सकेंव - भुरवा दाढ़ी-चूँद़ी वाले सभ्य पेटलू अउ वइसनेच् अक्खड़, मजाकिया स्वभाव वाले। वो तो जब मंय ह वोकर अउ नजीक पहुँचेव, आमने-सामने होइस तब पहिचानेव, अरे! ये ह तो हमर स्कूल जमाना के हिन्दी मास्टर हरे।

नजीक जाके मंय ह खड़े होगेंव अउ वोला एकटक देखे लगेंव। पहिचाने के कोशिश म आँखी लिबलिबावत वहू ह मोला एकटक देखे लगिस। आखिरी बार बीस साल पहिली कक्षा म वोला श्यामपट के नजीक टहलत देखे रेहेंव। अउ अब इहाँ, वइसनेच् टहलत, पुलिस वाले के संग बंधाय देखत हंव। ’’नमस्कार .... नमस्कार सर।’’ पब्लिक स्कूल के अपन आदत मुताबिक वइसनेच् हकलात-हकलात मंय ह केहेंव। (स्कूल म सिखाय जाथे कि समय अउ परिस्थिति कइसनो होय, आप ल अपन गुरू के हमेशा आदर करना चाही।)

खुशाल सर के चेहरा म खुशी अउ चमक आ गे, किहिस - ’’आखिर तंय मोला पहिचानिच डरेस, मोर बच्चा, तोर से दुबारा मिल के बड़ नीक लागिस।’’

वोकर से हाथ मिलाय बर मंय ह हाथ बढ़ायेंव, मंय ह ये भुलागेंव कि वोकर जेवनी हाथ ल पुलिसवाले ह अपन डेरी हाथ म चमचमा के धरे हे। लौंग अउ दालचीनी के मद्धिम खुशबू आइस अउ मोला वो दिन के सुरता आ गिस कि कइसे वो ह अइसनेच् खुशबू उड़ात, आ के मोर डेस्क तीर खड़े हो जाय, जब हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद करत समय मोर व्याकुलता ल वो ह देखय।

1948 म जब वो ह स्कूल से जुड़िस, देश के बँटवारा होय जादा दिन नइ होय रिहिस। तब उहाँ हिन्दी के कोनो गुरूजी नइ रहिन। हमला खाली उर्दू अउ फ्रेंच भाषा पढ़ाय जाय। अउ जइसने सुराज आइस, हिन्दी ल अनिवार्य कर देय गिस, मोर अवस्था तब सोलह साल के रिहिस, अउ ये नवा विषय संग मोला जूझे बर पड़ गे। जब खुशाल सर ह स्कूल म आइस (एक स्थानीय अधिकारी के सिफारिस म) तब उहाँ अइसे कोनों नइ रिहिन जउन हिन्दी जानत रिहिस होही, जउन ह एक शिक्षक के रूप म खुशाल सर के योग्यता के परीक्षा ले सकतिस। अउ विही खुशाल सर ह आज फेर मोर सामने खड़े हे, अंतर केवल अतका हे कि ये समय वो ह कानून के हिरासत म हे।  

जब रेलगाड़ी आइस, मंय ह अपन ये दुख ले उबर चुके रेहेंव। प्लेटफारम खड़े हर आदमी ह डब्बा के दरवाजा कोती दउड़े लगिन। जब देखेंव कि वो पुलिसवाला ह भीड़ ल कोनियावत अपनबर रस्ता बनावत जावत हे, मंय ह वोकर पीछू धर लेयेंव।

अउ वोकर परिणाम ये होइस कि वो तीसरा दर्जा के डब्बा म अपन बर जघा बना सकेंव। खुशाल सर के आघू मोला सीट मिल गे। वोला हथकड़ी लगे रहय, जम्मों यात्रीमन वोला घूर-घूर के देखत रहंय, तभो ले अइसे नइ जनाय कि वोला रत्तीभर अपमान या लाज-शरम लगत रिहिस होही। बल्कि वो पुलिसवाला ह जरूर दुखी अउ बीमार दिखत रहय।

रेलगाड़ी ह जइसे चले लगिस, मंय ह खुशाल सर ल एक ठन पराठा खाय के आग्रह करेंव, जउन ल फिरोजपुर के मालकिन ह जोरे रिहिस। वो ह झट स्वीकार कर लिस। मंय ह पुलिस वाले से घला आग्रह करेंव, वोकरो मुँहू ह पनछियाय रहय, फेर सरकारी ड्यूटी के लिहाज के सेती वो ह मना कर दिस।

’’येमन आप ल काबर पकड़े हें सर?’’ मंय पूछेंव। ’’बहुत गंभीर मामला हे का?’’

’’कुछ नइ हे,’’ खुशाल सर ह किहिस ’’चिंता के कोनो बात नइ हे, जल्दी छूट जाहंव।’’

’’पर आप करे का हव?’’

खुशाल सर ह आगू झुक गे अउ बड़ बिसवास के साथ किहिस, ’’येमा शरम के कोनों बात नइ हे। सुकरात जइसे महान गुरू ह घला कानूनी पचड़ा म पड़े रिहिस।’’

’’आपके मतलब ये तो नइ हे कि ... आपे के कोनो चेला ह .... आपके शिकायत करे हे।’’

’’मोर कोनों शिष्य मन काबर मोर शिकायत करहीं?’’ खुशाल सर ह रोसिया के किहिस, ’’वो कुछ फोकटूचंद रिहिन हें .... उंकरे करनी आय।’’ वो ह मोर चेहरा म घबराहट देखिस होही, अउ ये निर्णय करिस कि आखरी बात ल बता देय जाय - ’’बिलकुल साधारण बात आय, नकली प्रमाणपत्र के।’’

मंय ह केहेंव, ’’ओह!’’ मोर मुँहू ओसक गे। पब्लिक स्कूल के छात्रमन अपन गलत निष्कर्ष ल माने म कोनों देरी नइ करंय ....

’’आपके प्रमाणपत्र, सर!’’

’’बिलकुल नहीं। मोर प्रमाणपत्र संग कोनों गलत बात नइ होय हे - मंय ह वो मन ला 1946 म लाहौर म छपवाय रेहेंव।’’ ’’उम्र के संग समझदारी आथे, मंय ह ध्यान देयेंव, ’वो प्रकरण म,  जिंकर ...........   ?’’

’’काबर, मेट्रिक के वो प्रमाणपत्र ल, वो बेचारा मूर्खमन ल, जउनमन अपन मेहनत के बल म कभी पास होइच् नइ सकतिन, ये साल भर मंय ह  बांटत फिरे हंव, अब समझ म आइस।’’

’’आपके मतलब ये कि आप वोमन ल अपन खुद के प्रमाणपत्र ल दे देव।’’

’’बिलकुल सही। अउ यदि वोमा छपाई के ढेर सारा गलती नइ होतिस, कोनों नइ जानतिन। आजकल आप ल खोजे म अच्छा छापाखाना नइ मिलय, यही तो मुसीबत हे ... ये ह जनसेवा आय .... मोर बच्चू, मंय ह उम्मीद करथंव कि आप ये बात ला स्वीकार करहू ...... ये ह कोनों उचित बात नोहे कि छोटे-मोटे परीक्षा देय खातिर घेरीबेरी कोनों लइका मन ल मजबूर करे जाय ... ध्यान रख, मंय ह कोनों ल अपन प्रमाणपत्र ल नइ देय हंव। वो मन ह मोर तीर तभे आथें जब दू-तीन घांव फेल हो जाथें।’’

’’अउ मंय ह समझथंव, आपमन येकर कीमत लेवत होहू।’’

’’उंकरेमन ले जउनमन दे सकथें। कोनों कीमत तय नइ हे। जो भी वोमन मोला देना पसंद करथें। ये बाबत मंय ह कभू लालच नइ करेंव, अउ तंय ह जानथस, मंय ह निर्दयी नइ हंव   ......।’’

ये बात ह बिलकुल सही आय। मोगा के लहलहात खेतमन ल गाड़ी के खिड़की ले झांकत मंय ह सोचेंव अउ अपन हिन्दी के अर्धवार्षिक परीक्षा के घटना ल याद करेंव जब प्रश्नपत्र ल खाली टकबांध के देखत भर रेहेंव, काबर कि वोमा के कोनों प्रश्न के उत्तर लिखे के मोर म योग्यता नइ रिहिस। खुशहाल सर ह धीरे से मोर कना आइस, मोर डेस्क म निहरिस, वोकर सांस के खुशबू ह मोर ऊपर छा गे। किहिस - ’’लिख बेटा टकटकी बांध के का देखत हस?’’

’’नइ लिख सकंव सर!’’ मंय ह केहेंव, ’’बहुत कठिन प्रश्न हें।’’

’’बिलकुल चिंता मत कर,’’ वो ह फुसफुसा के किहिस - ’’कुछ तो कर। येला जस के तस उतार दे, उतार दे।’’

समय बिताय बर, मंय ह वइसनेच् करेंव। प्रश्नपत्र के एक-एक शब्द ल जस के तस उतार देंव। अउ पखवाड़ा भर बाद, जब परिणाम घोषित होइस, मोला पता चलिस, मंय ह पास हो गे रेहेंव।

’’लेकिन सर’’, जब मय खुशाल सर ल अकेला पायेंव, हकलात-हकलात केहेंव, ’’सर! मंय ह तो उत्तर लिखेच् नइ रेहेंव, गद्यांशमन के अनुवाद मंय करेच् नइ सकेंव। प्रश्न मन ल जस के तस उतारे भर रेहेंव।’’

’’येकरे बर तो मंय ह तोला पासिंग नंबर देय हंव’’, वो ह अविचलित भाव से किहिस, ’’तोर लिखावट ह बहुत सुंदर हे। बेटा! यदि तंय ह हिन्दी सीख लेबे, बहुत बढ़िया गद्य लिख लेबे।’’

अउ वो झण ल याद करत-करत, मोर हृदय ह मोर वो डोकरा गुरूजी के प्रति श्रद्धा भाव से भर गे। मंय ह झुकेंव, अपन हाथ मन ल वोकर पैर म रख देंव, अउ केहेंव, ’’सर! यदि ये मन आप ल दोषी पाहीं, जादा सजा नइ दे पाहीं। अउ जब आप छूटहू, यदि दिल्ली या फिरोजपुर म रहना होही, मोर ऊपर कृपा करहू। आप देखतेच् हव, अब तक मंय ह हिन्दी म भकला हंव, आप मन मोला ट्यूशन पढ़ा देतेव। आप ल कुछ दे के मोला अघात खुशी होही ...... ।’’

खुशाल सर ह अपन मुड़ी ल पीछू डहर झटकार के जोर से हाँसिस अउ वोकर हाँसी म पूरा डब्बा ह हाल गिस।
’’तोला हिन्दी पढ़ाहूँ!’’ वो ह चिल्लाइस ’’मोर प्रिय बच्चा, तोला ये विचार कइसे आइस कि आज तक मोला कुछ हिन्दी आथे?’’

’’लेकिन सर ..... यदि आप ल हिन्दी नइ आय, तब सालभर आप स्कूल म हमला काला पढ़ाव?’’

’’पंजाबी!’’ वो ह चिल्ला के किहिस, सुन के जम्मों आदमी अपन सीट ले उछल गें। ’’शुद्ध पंजाबी! पर हिन्दी अउ पंजाबी के अंतर ल तुम कइसे समझतेव?’’
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