शनिवार, 1 अगस्त 2015

मेरी सद्यप्रकाशित व्यंग्य रचना ’माइक्रोकविता और दसवाँ रस’ से

गुण

अन्य मुहल्लों की तरह हमारे मुहल्ले में भी बहुत सारे कुत्ते रहते हैं। पर जिन दो कुत्तों की यह कहानी है, वे अन्य कुत्तों से बिलकुल भिन्न हैं। वे परम मित्र हैं। उनकी मित्रता इतनी प्रगाढ़ है कि मुहल्ले वाले उनकी दोस्ती की कसमें तक खाते हैं। अपने बच्चों को नसीहत देते वक्त उनकी मिसालें देते हैं।

आज तक इन कुत्तों को न तो किसी ने आपस में लड़ते देखा है, और न ही एक दूसरे पर गुर्राते सुना है। लेकिन मजाल है कि दूसरे इलाके का कोई अवांछित कुत्ता उनके इलाके में प्रवेश कर जाय।
मुहल्ले के ये सच्चे और ईमानदार पहरेदार हैं।

एक दिन दोनों मित्र-कुत्ते गलियों की पहरेदारी करते घूम रहे थे। उनकी दोस्ती परखने की गरज से मैंने उनके सामने दो रोटियाँ डाल दी। मेरा अनुमान था कि वे एक-एक रोटी आपस में बांट लेंगे। पर यह क्या? गजब हो गया। रोटियाँ जिसके कब्जे में आई वह उसी की हो गई।

दूसरे नें अपना हिस्सा मांगा।

अब तो दोनों में मरने-मारने की लड़ाई छिड़ गई। पहले वाला जैसे कह रहा हो - ’’हरामखोर, कुत्ते की औलाद, खुद को आदमी समझने लगा है? कुत्ते भी कभी बाट कर खाते हैं?’’

                         000
कृपया शेयर/टिप्पणी करें
कुबेर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें