बुधवार, 5 अगस्त 2015

व्यंग्य

स्टेच्यू आफ क्राइम


एक कानूनी लाल हैं, इनसे मेरी बचपन से जान-पहचान है।

’इनसे मेरी बचपन से जान-पहचान है’ ऐसा मैं पूरी तरह होश में और अच्छी तरह सोच-समझकर कह रहा हूँ। कानूनी लाल पहले मेरा हमप्याला-हमनिवाला हुआ करता था। उनकी रूचि कानून में थी। उन्होंने अपने लिए कानून का व्यवसाय चुना। इस व्यवसाय में अब वे दोनों हाथों से पैसा और प्रतिष्ठा बटोर रहे हैं। और शायद ’पैसा और प्रतिष्ठा’; इन्हीं दोनों के बहकावे के कारण अब मैं उनके केवल जान-पहचान वालों की लिस्ट तक सिमट कर रह गया हूँ।

एक प्रसिद्ध कवि हैं जो पत्नी पर बड़ी अच्छी कविता कहते हैं। कविता कुछ इस प्रकार है -
’पहले वह चन्द्रमुखी लगती थी
फिर सूरजमुखी 
और अब ज्वालामुखी लगती हैं।’
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इसी तर्ज पर कानूनी लाल के बारे में मैंने यह कविता बनाई है -

’मन मिला, मनमीत बना वह,
मान मिला, बस मीत रह गया वह,
अब धन पाकर धनमीत बन गया है,
दुनिया की इस रीत-नीत में,
गया-मिला के इस खेल में,
दया-मया अब, कहीं रह गया है?
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एक अवकाश के दिन, जब उनके सारे ग्राहक सुलट गये, मैंने उसके ग्राहकी कक्ष में जबरन प्रवेश किया। बचपन से अभ्यास है, एक-दूसरे की गंध पहचानने में हम लोग माहिर हो चुके हैं। फाइल से नजरें हटाये बिना ही उन्होंने प्रश्न किया - ’’कैसे आये हो?’’

’’चलकर।’’

’’क्यों?’’

’’तेरा माथा फोड़ने।’’

’’यह अपराध कर्म है। और कोई काम नहीं है?’’

’’सोचा था तेरा भेजा खाऊँगा। पर अब इरादा बदल गया है। बेस्वाद चीज भला कोई कैसे खा सकता है?’’

फिर काफी देर तक उन्होंने और कोई सवाल नहीं किया। इनकी फीस प्रति सवाल के दर से तय होती है, सोचा होगा, कहीं यह मुझ पर ही लागू न हो जाय; लिहाजा वह फाइलों में खोया रहा।

मैं उसके दहिनी ओर रखी, तराजू धारिणी, गांधारी जैसे दिखने वाली धातु की सुंदर प्रतिमा को देखने लगा। मित्र महोदय को उकसाने के लिए मैंने कहा - ’’वाह! कितना आकर्षक है। कितना दिव्य है। आँखों पर पट्टी बाँधकर तराजू का खेल दिखा रही है।’’

’’शर्म नहीं आती, न्याय की देवी के लिए ऐसी बातें कहते हुए।’’

’’शर्म कैसी, अपने-पराये की पहचान तो आवाज से भी हो जाती है। आँखों पर पट्टी बाँध लेने से क्या होता है?’’

’’प्रतीकात्मक बातें हैं, तेरे समझ में नहीं आयेगी। .... बकबक बंद कर ...।’’

’’जब न्याय की देवी की प्रतिमा है, तो अपराध के देवता की भी प्रतिमा होनी चाहिए। पलड़ा तभी तो सम की स्थित पर आयेगा। यह तो अपराधियों के प्रति अन्याय है। इस तथ्य में तुम्हें पक्षधरता नजर नहीं आती?’’

कानूनी लाल ने कहा - ’’यह बात हमारे संज्ञान में है। न्याय की देवी के दूसरे पक्ष की प्रतिमा, ’स्टेच्यू आफ क्राइम’, जन्द ही बना लिया जायेगा। काम युद्धगति से चल रहा है। इस बाबत अखबारों में हम जल्द ही टेण्डर प्रकाशित करवाने वाले हैं। पर टेण्डर का मसविदा तैयार करने में बड़ी समस्या आ रही है।’’

’’रावण और कंस जैसे दुर्दान्त छवियों के रहते कैसी अलझन?’’

’’उलझन है। धर्मनिरपेक्षता भी कोई चीज होती है न?

’’गब्बर को जिन्दा कर लो। ताजा छवि चाहिए तो डी कंपनी से सलाह ले लो।’’

’’तू समझेगा नहीं। अब तक ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ नहीं बन बन पाने का कारण इसकी लोकप्रियता और इसका महत्व है। लोगों को जब से पता चला कि न्याय की देवी के दूसरे पक्ष की प्रतिमा ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ बनाना प्रस्तावित है तब से बड़ा विवाद पैदा हो गया है। अपराध जगत से जुड़े तमाम तरह के लोगों की आस्थाएँ एकाएक जागृत हो गई हैं। अपराध के प्रति आस्था का एकाएक विस्फोट हो गया है। देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से, अपराध कर्म में संलग्न अनेक लोगों और संगठनों की ओर से, बड़ी मात्रा में अर्जियाँ मिल रही हैं। सर्वाधिक अर्जियाँ देश के पार्लियामेंट और असेंबलियों की ओर से आ रही हैं। माननीय आवेदकों का दावा है कि ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ का रंग-रूप और हुलिया केवल उन्हीं की तरह होनी चाहिए।’’

’’तो क्या ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ का रंग-रूप और हुलिया तय हो गया है?’’

’’मिस्टर! समझने की कोशिश करो। मामला इतना आसान नहीं है। इसीलिए इसे सुलझाने के लिए समस्त माननीयों के निर्देश पर सर्व समस्या निवारक,  ’शोध-सलाहकार कमेटी’ का गठन किया गया है।’’

मैंने जिज्ञासावश पूछा - ’’मित्र! हमारे देश में कमेटियों को रिपोर्ट पेश करने में बड़ी दिक्कतें होती हैं। रिपोर्ट पेश हो पायेगी इसकी कुछ संभावना बनती है?’’

’’मिस्टर! मामला इतना आसान नहीं है। उम्मीद थी कि छः सप्ताह में रिपोर्ट आ जायेगा। आज छः साल हो गये हैं। मामला और उलझता जा रहा है। कहा नहीं जा सकता कि रिपोर्ट कब तक पेश हो पायेगा।’’

’’क्या आम जनता की राय भी ली जायेगी?’’

’’लिया जायेगा भाई! जरूर लिया जायेगा। कमेटी का रिपोर्ट तो आ जाने दीजिए। इसका रंग-रूप और हुलिया तो तय हो जाने दीजिए। बनने में देरी नहीं होगी। वर्षों से, प्राचीन और बहुमूल्य मूर्तियों की तस्करी में संलग्न, तजुर्बा प्राप्त अनेक संगठनों ने इसके निर्माण के लिए टेण्डर भेजना शुरू कर दिया है। इस कार्य को जनहितकारी और पवित्र मानते हुए सबने इसे मुफ्त में बनाने और वितरित करने का प्रस्ताव भेजा है।’’

मैंने कहा - ’’वाह! हमारे देश की महान सांस्कृतिक विरासत का इससे अधिक उत्कृष्ठ नमूना और क्या हो सकता है?’’

मित्र ने आगे की योजना को अनावृत्त करते हुए कहा - ’’प्रस्तावित ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ के अनावरण की शुभ तिथि किस महान अपराधी के जीवन के किस महान कारनामें से संबंधित होगा, इस पर भी गहन मंथन चल रहा है। ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ के अनावरण कार्यक्रम के मंच पर कौन-कौन हस्तियाँ विराजित होंगी, मुख्य अतिथि कौन होगा, कमेटी को इस संबंध में भी रोजाना हजारों आवेदन प्राप्त हो रहे हैं।’’

मुझे समझते देर नहीं लगी। रोजाना हजारों की तादाद में प्राप्त होने वाले इन आवेदनों से निपटना इतना आसान नहीं है। मैंने मित्र को सुझाव देते हुए कहा - ’’इस मामले में आपको देश की गुप्तचर संस्थाओं और गृह विभाग के आला अधिकारियों से सलाह लेना चाहिए। उनके अनुभवों और दस्तावेजों से आपका काम आसान हो सकता है।’’

मित्र ने आनंद विभोर होते हुए कहा - ’’हमने लिया है। गृहमंत्रालय से जवाब भी आ गया है। जवाब उचित और हमारी आशाओं के अनुरूप ही है। उन्होंने लिखा है - ’आपका मिशन पवित्र और जनहितकारी है। यह न्याय की मूल अवधारण के अनुकूल है। हम आपकी पूरी सहायता करेंगे। पर हमें खेद है, अब तक हमारे पास न तो ’स्टेच्यू आफ क्राइम’ के लायक कोई उचित छवि ही अपलब्ध है और न ही इसके अनावरण तिथि के लायक अब तक कोई बड़ी आपराधिक घटना ही घटित हुई है। भविष्य में यदि इस स्तर की कोई घटना घटित होती है तो हम आपकी मदद जरूर करेंगे। तब तक प्रतीक्षा करें और अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु ईश्वर से प्रार्थना करें।’ तो मित्र! अब तो इसी की प्रतीक्षा है।’’

मित्र की बातें हृदय को छू गईं। सारा देश उस महान तिथि की प्रतीक्षा कर रहा है। आइये हम सब भी उस संभावित महान घटना की प्रतीक्षा करें और उसके जल्द से जल्द घटित हो जाने के लिए ईश्वर से कामना करें।
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