शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

कविता

ऐसा हमारा वर्तमान कहता है


हमारी आँखें, हमारे कान
और हमारे मस्तिष्क की रचना
नहीं होते अब माँ की कोख में
ये अब धर्म नामक कंपनी में बनते हैं।

जिन्होंने ये कंपनियाँ बनाई
उनकी आँखें, उनके कान
और उनके मस्तिष्क कहाँ बने होंगे?
माँ की कोख में
या किसी कंपनी में?

कंपनियों का विज्ञापन कहता है -
’मनुष्य अब सभ्य हो गया है
उसके पास है अब अकूत
ज्ञान की राशियाँ
और, राशियों का ज्ञान।’

पहले मनुष्य के पूँछ हुआ करते थे
जो अब झड़ गये हैं
बड़े-बड़े नाखून और दांत हुआ करते थे
जो अब घट गये हैं
आदमी पशु की तरह रहा करते थे
अब वे पशु से हट गये हैं
(पृथक हो गये हैं)
ऐसा विज्ञान कहता है।

ये सब मिथ्या है, भ्रम है
ऐसा हमारा वर्तमान कहता है।
000
kuber
October 11, 2015

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