बुधवार, 9 सितंबर 2015

व्यंग्य

 व्यंग्य

अभ्यास कविता


यदि आप कविता लिखते हैं या कविता लिखने में रूचि रखते हैं और आपको लगता हैं कि इस क्षेत्र में आपको वांक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है तो निराश मत होइये। इसके लिए कुछ एक्सरसाइज अर्थात अभ्यास की आवश्यकता है। अभ्यास के लिए हमने कुछ नये और चमत्कारिक विधियों की या तकनीक की खोज की है। जमाना नये-नये तकनीकों की है। इस नये तकनीक के साथ आइये कुछ एक्सरसाइज करें। नीचे दी गयी कविता को पढ़ें -

वह सोचता है कि वह सोच रहा था
वह सोचता है कि वह सोच रहा है
वह सोचता है कि वह सोचता रहेगा
वह सोचता है कि वह सोचता है

मैं सोचता हूँ
सोचने के इस युग में, कोई तो है
जिसे गुमान है कि वह सोचता है।
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यह एक अभ्यास कविता है। अभ्यास को अंग्रेजी में एक्सरसाइज कहते हैं। अब आप समझ गये होंगे कि अभ्यास कविता का आविष्कार और विकास कविता कर्म की बारीकियों को सम्यक रूप से समझने के लिए किया गया है। दरअसल इस कविता के मूल प्रारूप में मोटे रेखांकित शब्दों (वह तथा सोच, जो क्रमशः कर्ता और क्रिया शब्द हैं।) की जगह खाली स्थान है।

अब अइये! इस प्रारूप के साथ कुछ एक्सरसाइज करें। आप इस प्रारूप में पहले खाली स्थान जहाँ अभी ’वह’ कर्ता विराजमान हैं, को यथावत रहने दें। दूसरे खाली स्थान में, जहाँ अभी ’सोच’ क्रिया विराजित है, की जगह कोई अन्य क्रिया बिठा दें, जैसे - ’देख’, तो एक अलग कविता तैयार हो जायेगी। यदि आपके पास सौ क्रियाएँ हैं तो समझ लीजिए, आपने सौ कविताएँ तैयार कर लीं।

आपके पास क्रियाओं की कोई कमी नहीं हैं। बहुत सारी क्रियाओं को दिन में आप कई-कई बार दुहराते होंगे। कहना, बोलना, सुनना, सूंघना, चलना-फिरना, उठना-बैठना, दौड़ना-भागना, मारना-पीटना, लड़ना-झगड़ना, जलना, जलाना, खिलना, मुरझाना, हँसना, हँसाना, रोना, रुलाना, लूटना, ठगना, हड़पना आदि ऐसी ही क्रियाएँ हैं। पर ठहरिये, आपकों अभी यहाँ पर रुकना नहीं है। अभी ’वह’ कर्ता का खाना, पीना, हजमना, सोना, जगना, मूतना और फिर अंत में शौचना जैसी अति महत्वपूर्ण क्रियाएँ बाकी हैं। इस तरह ’सोचने’ क्रिया से शुरू करके ’शौचने’ क्रिया तक ’वह’ कर्ता के साथ आप जितनी चाहें, कविता बना सकते हैं।

अलग-अलग क्रियाओं का प्रयोग करके ’वह’ कर्ता के साथ अब तक हमने कम से कम सौ कविताएँ तो तैयार कर ली है। अभ्यास के दूसरे चरण में अब आपका पैटर्न बदल जायेगा। अब आप पहले वाले खाली स्थान, जहाँ अभी ’वह’ कर्ता विराजित है, की जगह कोई अन्य कर्ता जैसे ’यह’ बिठा दीजिए। लीजिए सौ कविताएँ फिर तैयार हो गईं। कर्ताओं की क्या कमी है? यह, वह, के बाद तुम, हम, राम, श्याम, कृष्ण, कन्हैया, गोपाल, विशाल, फिर नेता, मंत्री, संत्री, कंत्री, यंत्री और फिर व्यापारी, अधिकारी, कर्मचारी, चपरासी, भ्रष्टाचारी, दुराचारी, अत्याचारी को कर्ता की जगह पर एक-एक कर बिठाते जाइये और प्रत्येक कर्ता के साथ सौ-सौ कविताएँ तैयार कर लीजिए।

ध्यान रहे, प्रत्येक कर्ता के साथ कविता की शुरुआत ’सोचने’ क्रिया के साथ और अंत ’शौचने’ क्रिया के साथ ही होना चाहिए।

पिछली रात (एक ही रात में) मैंने इस अभ्यास कविता के साथ लगभग सात सौ कविताओं का एक संग्रह तैयार कर लिया। संग्रह को देख-देखकर बड़ा गर्व हुआ। मन-मयूर नाचने लगा, कहा - ’वाह! साला मैं तो कवि बन गया’।

सुबह होने पर मैंने देखा, कविताएँ तो हैं पर इनमें विचार कहीं नहीं है। विचारहीन इन कविताओं को मैं क्या कहूँ? कविता कहूँ?
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kuber

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