बुधवार, 23 सितंबर 2015

समीक्षा

मेरी व्यंग्य संग्रह  ’माइक्रोकविता और दसवाँ रस’ पर वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री त्रिभुवन पाण्डेय की लिखित प्रतिक्रिया/समीक्षा प्राप्त हुई है जिसे मूलतः यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। - कुबेर

समीक्षा

’माइक्रोकविता और दसवाँ रस’ 

                                                                                                                               त्रिभुवन पाण्डेय

कुबेर का प्रथम व्यंग्य संग्रह ’माइक्रोकविता और दसवाँ रस’ अनुभव प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा बड़े ही आकर्षक आवरण पृष्ठ के साथ प्रकाशित हुआ है। संग्रह में कुबेर की साठ व्यंग्य रचनाएँ सम्मिलित हैं। अधिकांश रचनाएँ छोटी हैं इसलिए इसे लघु व्यंग्य भी कहा जा सकता है। इनमें से कुछ उल्लेखनीय व्यंग्य पाठक का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं। ’तोंद की नैतिकता’, ’प्रश्न चिह्न’, ’भ्रष्टाचार का अवलेह पाक’, ’जेब’, ’कुर्सी तोड़ने वाले’, एवं ’खपरैलों की हेराफेरी’ अपनी नवीन व्यंग्य दृष्टि के कारण पाठक को अपनी और आकर्षित करेंगे।

’तोंद की नैतिकता में एक ओवरसियर बाबू का चित्रण है। पहले वे छरहरे बदन के थे लेकिन अब उनकी तोंद खाने और पचाने के लिए पूरी तरह अनुकूलित हो चुकी है। गाँव के बरसाती नाले का स्टाडेम बन रहा है। मस्टररोल में जैसे-जैसे मजदूरों की बढौतरी हो रही है उनकी तोंद की आकृति भी बढ़ रही है। देश के विकास के साथ उसके पेट का भी विकास हो रहा है।

इसी तरह ’प्रश्न चिह्न’ साम्प्रदायिकता की प्रकृति पर तीखा व्यंग्य है। एक व्यक्ति वृक्ष के नीेचे बैठा हुआ है। चार व्यक्ति उसे घेर कर प्रश्न पूछते हैं - कौन हो तुम? व्यक्ति उत्तर देता है - आदमी। लेकिन क्या हिन्दू हो? मुसलमान हो? सिख हो? इसाई हो? उत्तर में वह कहता है - मैं आदमी हूँ। उत्तर सुनकर आततायी कहते हैं - फिर अब तक तू इस शहर में जिंदा कैसे है?

’भ्रष्टाचार का अवलेह पाक’ भी दिलचस्प व्यंग्य है। भ्रष्टाचार का अवलेह पाक बनाने की विधि - सर्वप्रथम झूठ-बेल के कपड़छन चूर्ण को बेईमानी के वृक्ष के स्वरस के साथ अच्छी तरह खरल करें। इस तरह प्राप्त अवयव को निर्लज्जता के तेल से अच्छी तरह तर करें। अंत में चिकनी-चुपड़ी-मक्खनी-शर्करा की चाशनी में इसे पाक कर लें। ’भ्रष्टाचार का अवलेह पाक’ तैयार है। सेवन विधि इस प्रकार है - अवसरवादिता के गुनगुने दूध के साथ एक चम्मच अवलेह पाक चाँट लें। स्वार्थ, चमचागिरी, दलाली जैसे सुपाच्य भोजन का सेवन करें। नैतिकता, सदाचार, सच्चाई, परोकार जैसी गरिष्ठ चीजों के सेवन से बचकर रहें।

’जेब’ भी उल्लेखनीय व्यंग्य है। ’’दिल और जेब, दोनों की महिमा निराली है। देखने में ये जितने छोटे होते हैं, इनकी धारण-क्षमता उतनी ही अधिक होती है। दादाजी की कमीज में बहुत सी जेबें हुआ करती थीं। किसी में घर की चाबियाँ, किसी में आय-व्यय की डायरी और किसी में कलम रखते। उनकी जेबों में केवल जिम्मेदारियाँ ही भरी रहती थी। जेबों का इस्तेमाल वे आदमी को रखने के लिए कभी नहीं करते थे।’’

’कुर्सी तोड़ने वाले’ की पहली ही पंक्ति व्यंग्य से शुरू होती है - मेरी जन्मकुण्डली में लिखा है - जातक कुर्सी तोड़ेगा। मैं शिक्षाकर्मी बन गया हूँ। मेरे मित्र की कुण्डली में लिखा है - जातक कुर्सी पर बैठेगा। वह नेता बन गया है। वह भी मेरे जैसा बनना चाहता था पर उसकी डिग्री ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी। आगे चलकर वह कुर्सी की दयनीय टूटी-फूटी स्थिति देखता है तब वह सोचता है इस कुर्सी को वह और कैसे बैठकर तोड़ेगा। वह नयी कुर्सी के लिए विभाग को लिखता है? विभाग से जो कुर्सी मिलती है वह टूटी हुई नई कुर्सी होती है। वह जब बड़े बाबू से शिकायत करता है तब बड़े बाबू ने बगैर विचलित हुए उत्तर दिया - देखिए मिस्टर, यह कुर्सी सुपर कंप्यूटर द्वारा डिजायन किया हुआ है। देश की नामी कम्पनी द्वारा बनायी गयी है। विभागीय कमेटी द्वारा अनुमोदित और चीफ इन्जीनियर द्वारा टेस्टेड ओ. के. है। आप इसमें कमियाँ नहीं निकाल सकते। आप इन्जीनियर नहीं हैं।

’खपरैलों की हेराफेरी’ पाठशाला भवनों की स्थिति पर प्रभावी व्यंग्य है। व्यंग्य की शुरुआत इन पंक्तियों से होती है - हमारी शाला भवन की छत गरीबों की झोपड़ी की तरह है जो बरसात होते ही किसी रईस के स्नान घर के शावर की तरह झरने लगती है। जब से पंचायती राज आया है, खपरैलों की मरम्मत हर वर्ष होने लगी है। गत वर्ष का अनुभव अच्छा नहीं था। टपकने के पुराने द्वार तो बंद हो गये थे पर उतने ही नये द्वार फिर खुल गये थे। फिर से नये विशेषज्ञों को भेजा गया लेकिन नतीजा क्या हुआ - ’कुछ ही देर में कमरों में पानी भरना शुरू हो गया। मुझे लगा स्कूल दलदल में तब्दील हो चुका है और हमारी शिक्षा व्यवस्था उसमें गले तक डूब गयी है।’
 
कुबेर का व्यंग्य संग्रह पढ़कर आप आश्वस्त हो सकते हैं कि भविष्य में वे और मार्मिक व्यंग्य लिखने की दिशा में अग्रसर होंगे।
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त्रिभुवन पाण्डेय
सोरिद नगर धमतरी 

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